सापेक्षता का सिद्धांत और भारतीय मनीषि...
विश्व में अल्बर्ट आइंस्टीन की General Theory of Relativity (GTR) की सौंवी वर्षगांठ मनाई जा चुकी. इस सन्दर्भ में श्रीमान् सुधीन्द्र कुलकर्णी जी ने महाराष्ट्र सरकार को बिज़नेस स्टैण्डर्ड अखबार के हवाले से पत्र लिखा की मुंबई समेत पूरा राज्य आइंस्टीन की GTR के सौ वर्ष पूरे होने पर ‘जश्न’ मनाये और मुंबई की सड़क का नाम आइंस्टीन के नाम पर कर दिया जाए. जगदीश चन्द्र बसु की जन्मतिथि 30 नवंबर को Observer Research Foundation ने टाटा इंस्टिट्यूट के मूर्धन्य भौतिकशास्त्री प्रो० स्पेंटा वाडिया साहब को बुला कर आइंस्टीन की थ्योरी ऑफ जनरल रिलेटीविटी पर लेक्चर का आयोजन भी किया. लेकिन ये विद्वान् लोग उन्हें भूल गए जिनकी बदौलत इस देश में GTR जैसी जटिल थ्योरी पर शोध होता है और आज भारत सैद्धांतिक भौतिकी (Theoretical Physics) के क्षेत्र में विश्व में अग्रणी है. मुद्दा ये है की आप अपनी पहचान उत्सव के सापेक्ष रखते हैं या उपलब्धियों के; बाकि आइंस्टीन का नाम हर वो व्यक्ति जानता है जो वैज्ञानिक दृष्टिकोण के निरपेक्ष साम-दाम की कल्पना में जीता है. मैं आपको तीन महान भारतीय वैज्ञानिकों के बारे में बताना चाहता हूँ जिनमें से एक मराठी थे, एक गुजराती और एक बंगाली.
सबसे पहले इस थ्योरी का एक अति संक्षिप्त परिचय.
नवम्बर सन 1915 में आइंस्टीन ने ‘सापेक्षता का सामान्य सिद्धांत’ प्रतिपादित किया था. इससे दस वर्ष पूर्व 1905 में आइंस्टीन ने ‘सापेक्षता का विशिष्ट सिद्धांत’ (Special Theory of Relativity) भी दिया था जिस पर आगे चलकर परमाणु ऊर्जा संयंत्र और अस्त्र दोनों बने. हिंदी में General शब्द का अनुवाद ‘सामान्य’ कर दिया जाता है लेकिन इन दोनों ही सिद्धांतों ने ब्रह्माण्ड और पदार्थ को देखने की दुनिया की सामान्य समझ को पूरी तरह से बदल दिया था. हम जिस ब्रह्माण्ड को अपरिमित समझते थे GTR ने उस सोच को बदल दिया और ऐसे समीकरण निकले जिनसे पता चला ब्रह्माण्ड की भी सीमांए हैं. आइंस्टीन ने गुरुत्व (Gravity) को मात्र खींचने-धकेलने वाला एक ‘बल’ नहीं बल्कि वृहद् ज्यामितीय संरचना के रूप में समझाया और प्रमेयों के माध्यम से सिद्ध किया कि जैसे एक फैले हुए चादर पर भारी गेंद डालने से वो सिकुड़ जाता है वैसे ही पदार्थ अपने द्रव्यमान से दिक्-काल (Space-Time) को विकृत करता है. यही ज्यामिति गुरुत्वाकर्षण के लिए जिम्मेदार है. इसी सिद्धांत की बदौलत हमनें विशाल द्रव्यमान वाले तारों, मंदाकिनियों का अध्ययन भी किया और आज का ‘मॉडर्न कुतुबनुमा’ यानि GPS भी बनाया. हमें ब्लैक होल, क्वेसर, पल्सर जैसी विचित्र वस्तुएं भी ज्ञात हुईं और हम ये भी जान पाए की गुरुत्वाकर्षण बल ‘तरंगों’ के रूप में विद्यमान है जिन्हें Gravity Waves कहा जाता है. कालांतर में ‘ब्रह्मान्डिकी’ या Cosmology एक विषय के रूप में परिणत हुआ जिसमे सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को एक entity मान कर अध्ययन किया जाता है. ये विषय बहुत विस्तृत और जटिल है. बहुत सारी बातें हैं इस पर चर्चा फिर कभी.
भारतीय वैज्ञानिकों में खगोलशास्त्री प्रो० जयंत विष्णु नार्लीकर (JVN) एक बड़ा नाम हैं. दुःख की बात है की उनके पिताजी प्रो० विष्णु वासुदेव नार्लीकर (VVN) को बहुत कम लोग जानते हैं. जैसे एक बार हरिवंशराय बच्चन को क्षोभ हुआ था जब लोग उन्हें इसलिए जानने लगे थे क्योंकि उनके सुपुत्र अमिताभ स्टार बन गए थे. खैर. प्रो० वी० वी० नार्लीकर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में गणित के प्रोफेसर थे. उनका जन्म कोल्हापुर, महाराष्ट्र में 1908 में हुआ था और उच्च शिक्षा कैंब्रिज में हुई थी. कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में उन्होंने Sir Arthur Eddington के सानिध्य में काम किया था. आप जानते हैं Eddington कौन थे? जब आइंस्टीन ने थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी पर पेपर प्रकाशित किया था तो कहा जाता है कि उस समय विश्व में इस थ्योरी को समझने वाले कुल ‘तीन’ लोगों में से एक Eddington थे! काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक महाप्राण महामना मालवीयजी ने Eddington को पत्र लिखा और उनके प्रयासों के फलस्वरूप 1932 में VVN जब केवल 24 वर्ष के थे और पीएचडी पूरी भी नहीं की थी, तब उन्हें गणित विभाग का अध्यक्ष बनाया गया. अब ये जरुरी नहीं है की कोई वैज्ञानिक तभी कहलाये जब वो कोई चमत्कारिक खोज करने में सफल हो या बड़े पुरस्कार से सम्मानित किया जाए. एक विद्वान् की विद्वत्ता या scholarship इस पर निर्भर करती है की उसकी विषय पर कितनी गहरी समझ है. थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी की इतनी गहरी समझ उस समय भारत में भी गिने चुने लोगों को ही थी. प्रो० VVN ने बनारस में इस विषय पर एक ‘मत’ स्थापित किया और शांत स्वभाव वाले इस अध्यापक ने ऐसे छात्रों को पीएचडी कराई जिन्होंने आगे चल कर बड़ा नाम कमाया. दोनों सुपुत्र JVN और उनके भाई अनंत नार्लीकर भी इसके अपवाद नहीं जिन्हें VVN की अकादमिक छत्रछाया मिली हालाँकि इन्होंने पीएचडी देश के बाहर से की थी. प्रो० विष्णु वासुदेव नार्लीकर का देहांत 1 अप्रैल 1991 को हुआ. उन्हें “Grandpa of Relativity in India” कहा जाता है.
दूसरा नाम है गुजरात के प्रो० प्रह्लाद चुन्नीलाल वैद्य. जन्म 23 मार्च 1918. इनके नाम से रिलेटिविटी में एक सूत्र प्रसिद्ध है जिसे कहा जाता है ‘Vaidya Metric’. मुंबई विश्वविद्यालय से MSc करने के बाद श्री वैद्य 1942 में प्रो० VVN के सानिध्य में काम करने के लिए काशी हिन्दू विश्वविद्यालय चले आये. आप नौकरी के उद्देश्य से या पीएचडी के लिए नहीं आये थे. जेब में कुछ पैसे और एक छः महीने की बिटिया को गोद में ले कर सिर्फ थ्योरी ऑफ़ जनरल रिलेटिविटी पर VVN के साथ काम करने आये थे. ऐसा समर्पण आपने कहीं देखा सुना है क्या? वे बनारस में सिर्फ दस महीने रहे, गंगाजल से बना भोजन किया और इसी अवधि में उन्होंने कुछ ऐसा खोज निकाला जो Vaidya Metric के रूप में अमर हो गया. इस सूत्र का वास्तविक महत्व और प्रत्यक्ष प्रमाण तब सामने आया जब साठ के दशक में अन्तरिक्ष में क्वेसर, पल्सर जैसी विचित्र वस्तुएं पता चलीं. इस सूत्र के महत्व को समझने के लिये एक विशाल तारे की कल्पना करें. एक बड़ा तारा निश्चित ही अपने समीप दिक्-काल की विमाओं को विकृत कर ज्यामिति बदल देगा और यदि उसमे से Radiation या तरंगे भी निकल रही हों तो ऐसी स्थिति में गुरुत्व कैसे काmम करेगा इसका समाधान इस सूत्र में है. बनारस से ‘आज’ नाम का अखबार आज भी निकलता है. इसी अखबार में गाँधी के आन्दोलन की खबर पढ़ते हुए श्री वैद्य के दिमाग में ये आईडिया आया. श्री वैद्य ने मुंबई के टाटा इंस्टिट्यूट में भाभा के साथ भी काम किया. कालांतर में पीएचडी भी की, गुजरात विश्वविद्यालय में प्रोफेसर भी रहे लेकिन तब तक वो प्रसिद्ध हो चुके थे. उन्होंने गुजरात में ‘गुजरात गणित मंडल’ नामक संस्था की स्थापना की और जवाहरलाल के हाथों उद्घाटित एक ऐसे विद्यालय में भी पढ़ाया जिसकी छत तक नहीं थी. एक अध्यापक कैसा होना चाहिये इसके बारे में श्री वैद्य एक डाक्यूमेंट्री में जगदीश चन्द्र बसु के Law of Teacher Education को याद करते हैं और बताते हैं की प्रो० बसु कहते थे की एक अध्यापक से सारी पुस्तकें छीन लो यदि फिर भी वह पढ़ाने लायक है तब वो अध्यापक है. दूसरा ये की एक अध्यापक को छात्र के सामने खुद एक रोल मॉडल बन कर दिखाना चाहिये ताकि वो छात्र अपने अध्यापक की नकल कर सके. अपने गुरु प्रो० विष्णु वासुदेव नार्लीकर को याद करते हुए प्रो० वैद्य ने लिखा है की जब Vaidya Metric पर पेपर छपा तो प्रो० नार्लीकर ने उस पेपर में सिर्फ वैद्य का नाम छपवाया क्योंकि सारी मेहनत वैद्य की थी. वो चाहते तो First author में अपना नाम दे सकते थे लेकिन उन्होंने वैद्य को पूरा श्रेय दिया. प्रो० प्रह्लाद चुन्नीलाल वैद्य और प्रो० नार्लीकर ने भारत में Indian Association for General Relativity and Gravitation (IAGRG) की स्थापना की. प्रो० वैद्य मार्च 2010 में दुनिया से चले गए.
तीसरी विभूति का नाम है प्रो० अमल कुमार रायचौधुरी. उनके सहकर्मी और छात्र उन्हें प्यार से AKR या अमल बाबू बुलाते थे. आपका जन्म 14 सितम्बर 1923 को हुआ था. प्रो० रायचौधुरी के नाम से Raychaudhuri Equation प्रसिद्ध है. इस समीकरण को हिंदी में समझा पाना मेरे लिए संभव नहीं. लेकिन इसका महत्त्व बता सकता हूँ. आप जानते हैं की कैम्ब्रिज के प्रो० स्टीफेन हॉकिंग को आइंस्टीन के बाद दुनिया का सबसे महान वैज्ञानिक माना जाता है. ऑक्सफ़ोर्ड के प्रो० रॉजर पेनरोस और हॉकिंग दोनों ने कुछ प्रमेय सिद्ध किये थे जिनसे हमें ये पता चलता है की ब्रह्माण्ड का जन्म एक ‘व्यष्टि-बीज’ से हुआ था. वह बीज अत्यंत सघन और गर्म था. इन प्रमेयों को Penrose-Hawking Singularity Theorems कहा जाता है. इन प्रमेयों को सिद्ध करने के लिए Raychaudhuri Equation की जरुरत पड़ती है. रायचौधुरी समीकरण के बिना ये प्रमेय सिद्ध नहीं किये जा सकते थे. कुछ विद्वानों का ये भी मानना है की अगर प्रो० रायचौधुरी को इंग्लैंड-अमरीका में उन्नत गणितीय उपकरण सीखने का मौका मिलता तो वो उन प्रमेयों को भी खोज लेते जिनकी बदौलत हॉकिंग को इतनी प्रसिद्धि मिली. लेकिन दुर्भाग्य से उन्हें ऐसा माहौल नहीं मिला. एम० एस० सी० करने के बाद उन्हें Indian Association for Cultivation of Science कलकत्ता में शोध की नौकरी मिल गई. उनसे कहा गया की प्रायोगिक भौतिकी (Experimental Physics) में शोध की नौकरी बचा के रखने लिए उन्हें सिर्फ दो पेपर प्रकाशित करने होंगे इससे ज्यादा काम नहीं है. लेकिन प्रो० रायचौधुरी को सैद्धांतिक भौतिकी में रूचि थी. उन्होंने अपना पठन-पाठन स्वयं चुपचाप जारी रखा और विपरीत परिस्थितियों में 1954 में रायचौधुरी समीकरण की खोज हुई. रायचौधुरी समीकरण बताता है की ‘व्यष्टि-बीज’ अथवा Singularity अव्यश्यम्भावी है. इसका पता भी तब चला जब अमरीका के प्रो० John Archibald Wheeler ने इसका संज्ञान लिया और 1959 में रायचौधुरी ने डी० एस० सी० डिग्री के लिए थीसिस सबमिट कर दी. सन 2005 में अमल बाबू भी दुनिया से चले गए और अपने पीछे सैकड़ों छात्र छोड़ गए जो उन्हें याद करते हैं.
मेरा अनुरोध है की इस पोस्ट को पढ़ने के बाद आप अपने बच्चों को बताएं क्योंकि आपके बच्चे आइंस्टीन का नाम जरुर सुनेंगे लेकिन रायचौधुरी, नार्लीकर और वैद्य का नाम शायद ही सुनें.
धन्यवाद.
✍🏼
यशार्क पांडेय
#उत्पीड़न_का_प्रपंच :
जो लोग मनुस्मृति के हवाले से जाति के नाम पर राजनैतिक खेल खेल रहे हैं उनको नश्लवादी अंग्रेज ईसाइयों की सच्चाई समझनी चाहिए।
1807 में दक्षिण भारत का सर्वे करने के बाद उसने हिन्दू समाज को 122 कास्ट/ ट्रेड में वर्णित किया। जाति का अर्थ था मैन्युफैक्चरिंग या ट्रेडिंग कम्युनिटी।
जीवंत शिल्प और वाणिज्य के समय भारत मे जाति एक शक्तिशाली सामाजिक ढांचा था, जिसमे हर जाति या समुदाय के स्वयं के विधान थे, और उनके पालन करवाने हेतु उनके स्वयं का समर्थवान सिस्टम था जिसको आज आप #खाप_पंचायत का एक विकसित स्वरूप समझ सकते हैं। वे किसी धार्मिक या राजनैतिक संस्था से अनुशासित न होकर स्वयं शासित समुदाय थे। इस बात को फ्रांसिस हैमिलटन बुचनान भी लिखता है अपनी पुस्तक में। बुचनान की पुस्तक तीन वॉल्यूम में है लगभग 1450 पेज में।
उसने किसी भी अछूत जाति या ऐसी किसी प्रथा के बारे में लिखा नही है।
क्यों ?
वह अंधा था?
नही अभी ईसाइयो का पूरा ध्यान भारत के धन और वैभव को लूटना था, यहां के साइंस और टेक्नोलॉजी के मॉडल को चुराकर अपने देश मे मैन्युफैक्चरिंग शुरू करना था जिसको वे औद्योगिक क्रांति का नाम देंगे।
वही भारत के मैन्युफैक्चरिंग और ट्रेड को नष्ट करेंगे।
फिर अपने अपराधों पर पर्दा डालने तथा राजनैतिक और धर्म परिवर्तन का आधार गढ़ने हेतु फेक न्यूज़ की रचना करेंगे।
जाति के उस स्वरूप के जिंदा रहते उसमे ईसाइयत का प्रवेश संभव नही था। इसीलिये मैक्समुलर लिखता है -" जाति धर्म परिवर्तन में सबसे बड़ी बाधा है, लेकिन सम्भव है कि कभी यह पूरे समुदाय के धर्म परिवर्तन हेतु एक शक्तिशाली इंजन का काम करे"।
इसलिए उन्होंने कास्ट को टारगेट करके कास्ट को एक अमानवीय प्रथा घोसित करना शुरू किया।
पहले उन्होंने शिल्पकार और वाणिज्यिक समुदायों को आर्थिक रूप से विनष्ट किया फिर आने वाले समयकाल में अनेको कारणों से चार वर्ण वाले हिन्दू समाज को 2000 से अधिक जातियों में वैधानिक रूप से चिन्हित किया।
मेरी पुस्तक में आपको यह देखने को मिलेगा कि किस तरह ईसाई मिशनरी एम ए शेररिंग ( 1872) ने कास्ट के लिए ब्रमांहणो को गन्दी गन्दी गालियां दी है। वह काम आज भी जारी है। लेकिन पूरी स्किप्ट उसी की लिखी हुई है। भाषा बदल सकती है लेकिन स्क्रिप्ट वही है।
1901 के जनगणना कमिश्नर रिसले और मैक्समुलर में अच्छी सांठ गांठ थी।
1901 में रिसले ने मैक्समुलर के #आर्यन_अफवाह से निर्मित तथाकथित सवर्णो को ऊंची जाति घोसित किया बाकी अन्य समुदायों को नीची जाति।
2378 जातियां।
एक आधुनिक लेखक निकोलस बी डर्क लिखता है:
“ रिसले के द्वारा तैयार किए गए सिस्टम की बुद्धिमत्ता का सबसे बड़ा प्रमाण इस बात से सिद्ध होता है कि इसके कारण बहुत लोगों ने बहुत सारे मुकदमों और प्रतिनिधित्व (memorials) अङ्ग्रेज़ी सरकार के पास भेजे । इसके पूर्व भी जनगणना अधिकारियों के पास शिकायते दर्ज हुयी थे , लेकिन रिसले द्वारा ये घोषणा होने के बाद कि जनगणना को सामाजिक तरजीह का आधार माना जाएगा ; जनगणना को एक ऐसा अभूतपूर्व राजनैतिक हनथियार बना दिया”।
(निकोलस बी दर्क्स ; कास्ट ऑफ minds पेज- 221 )
“1911 के जनगणना कमिश्नर ने अपनी रिपोर्ट इस शिकायत के साथ शुरुवात की –‘ जनगणना की किसी भी अन्य मुद्दे ने इतनी उत्तेजना पैदा नहीं किया है जितना कि कास्ट की वापसी ने। बंगाल के लोगों को ऐसा लगता है कि जातिगत जनगणना उस कास्ट के लोगों की संख्या जानने के लिए नहीं बल्कि उनको उनकी सामाजिक हैसियत बताने के लिए की जा रही है ....लोगों की इस भावना का कारण पिछली जनगणना रिपोर्ट मे लोगों की सामाजिक हैसियत तय किए जाने के कारण है’।
कमिश्नर ने बताया कि विभिन्न कास्ट संस्थाओं से सैकड़ो मुकदमे दाखिल किए गए हैं, कि उनका वजन ही यदि तौला जाय तो डेढ़ मोन्द (120 पाउंड ) निकलेगा, जिनकी मांग है कि उनका नामकरण बदला जाय और सामाजिक तरजीह मे उनको ऊपर रखा जाय, और उनको तीन द्विज वर्ण मे रखा जाय । शेखर उपद्ध्याय ने नोट किया –‘ लोकल स्तर पर इन नीची (घोसित) जातियाँ का आंदोलन कभी कभी ऊंची जातियों के खिलाफ दुश्मनी पैदा कर रहा है, और कभी कभी नीची जातियों के हरकतों से ऊंची जतियों मे गुस्सा और विरोध देखने को मिल रहा है ?”
(निकोलस बी दर्क्स ; कास्ट ऑफ minds पेज- 223 )
1921 और 1931 मे भी जातिगत जनगणना होते है लेकिन 1941 मे जातिगत जनगणना बंद कर दी जाते है उसका कारण बताया गया कि दूसरे विश्व युद्ध के कारण जनगणना अधिकारियों की कमी आ गयी थी।
लेकिन शेखर उपदध्याय का नोट इस बात को प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त है कि भारत मे 1857 के बाद हिंदुओं द्वारा उठ रहे विरोध के खिलाफ उनको बांटने की कूटनीति मे अंग्रेज़ सफल हो गए । हिंदुओं को एक दूसरे के सम्मुख खडा करके वे अपने विरोध खड़े हो रहे जन आंदोलन को खत्म करने की कूटनीतिक काट तैयार करने मे सफल हो रहे थे । अब उनको अपना एक नायक चुनना था जो मैकाले की शिक्षा नीति से निकला हुआ शक्ल से भारतीय परंतु अक्ल से अंग्रेज़ हो या उनकी शाजिश को भारत के लोगों की आकांक्षा के रूप प्रस्तुत करने को उद्धत हो। और आने वाले दिनों मे वे उसे खोज भी लेंगे।
पहला काम लेकिन ये होगा कि 1906 मे मुस्लिम लीग के नाम पर एक सहयोगी पार्टी तुरंत खोज लिया जाय ।
ब्रिटिश दस्युयों के विरुद्ध 1857 में मुश्लमान और हिन्दू एक साथ लड़े थे।
50 वर्षो में वे हिन्दू और मुसलमानों को आमने सामने खड़ा करने में सफल रहे। नीति यही थी कि एक समुदाय को सरकारी संरक्षण देकर दूसरे समुदाय को चिढाना और प्रताड़ित करना।
अगले 20 - 25 वर्षो में हिंदुओं को बांटने की योजना बनाएंगे और जनगणना को हन्थियार की तरह प्रयुक्त करते हुए विकृत इतिहास की मदद से हिंदुओं को बांटेंगे और उनके नायक चुनेंगे जिनको सरकारी प्रश्रय देकर स्थापित नायक बनाया जाएगा।
इनके ऐतिहासिक नायक भी चुने जाएंगे #एकलव्य_और_शम्बूक के नाम से।
और वर्तमान नायक भी।
वे शक्ल से भारतीय और अक्ल से अंग्रेज होंगे।
"एलियंस एंड स्टूपिड प्रोटागोनिस्ट" - मैकाले के शब्दों में।
साधो यह मुर्दों का देश।
#एकलव्य_और_शम्बूक का भारतीय इतिहास में औचित्य:
क्यों इन हजारों वर्ष पूर्व के चरित्रों को पिछले 100 वर्षों में हिन्दुओ के एक वर्ग द्वारा दूसरे वर्ग के उत्पीड़न के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया गया?
किसने किया और क्यों किया ?
मैंने एक पोस्ट लिखी थी कि त्रेता और द्वापर के इन चरित्रों का ब्रिटिश दस्युवों ने, हिंदुओं का हिंदुओं के द्वारा ही उत्पीड़न के एक प्रतीक के रूप में उपयोग क्यों किया?
प्रायः होता यह है कि आप इन चरित्रों की प्रामाणिकता को सत्य सिद्ध करने के लिए अनेक स्थापनाएं देने लगते हैं। यथा एकलव्य जरासंध के सेनापति का पुत्र था और जरासंध कृष्ण के दुश्मन थे। ऐसी स्थिति में आप वही भूल करने लगते हैं जो डॉ आंबेडकर ने किया था। ब्रिटिश दस्युवो के अफवाह को खण्डित करने के लिए आप संस्कृत ग्रंथो को पढ़ने लगते हैं यह निरी मूर्खता के अतिरिक्त कुछ भी नही है।
- रोमेश दत्त की पुस्तक Economic History of British India जो 1902 में प्रकाशित हुई है। इसके समस्त डेटा 1800 और 1814 के बीच भारत का, ईस्ट इंडिया कंपनी के फ्रांसिस हैमिलटन बुचनान द्वारा किये गए एकोनिमिक सर्वे से उद्धरित हैं।
1800 से 1807 के बीच बुचनान दक्षिण भारत का सर्वे करता है, और उसके बाद उत्तर भारत का सर्वे करता है। उसके सर्वेक्षण को 1500 पेज की तीन वॉल्यूम की पुस्तक के रूप में प्रकाशित। यह पुस्तक मेरे पास है, इसमें अछूत शब्द पूरी तरह विलुप्त है? क्यों ? अंधा था वह क्या?
अंधा नही था वह। अछूत थे ही नहीं।
उत्तर भारत का सर्वे करने का खर्च आया है 30,000 पौंड, यह रोमेश दत्त लिख रहे हैं।
कृषि शिल्प और वाणिज्य पर आधारित भारत की जीडीपी 0 AD से 1750 तक पूरी दुनिया की जीडीपी का 24% था जबकि ब्रिटेन और अमेरिका की जीडीपी उस समय मात्र 2% थी। यह बात अब आप समझ सकते हैं।
विल दुरंत लिखता है कि ऐसा कोई भी बहुमूल्य उत्पाद जिससे विश्व परिचित था वह सबके सब भारत मे तब तक निर्मित होते आये थे, जब समुद्री डाकुओं ने भारत की भूमि पर पैर रखा था।
अब रोमेश दत्त मात्र एक शिल्प का बिहार के एक जिले पटना का व्योरा लिख रहे हैं 1800 के आस पास का, जब भारत विश्व की लगभग 20% जीडीपी का उत्पादक बचा था।
" स्पिनिंग और बुनकरी भारत का राष्ट्रीय उद्योग है। इस जिले में बुचनान के अनुसार 330,426 स्पिनर थे, जो सबकी सब महिलाएं थी। और वह भी दोपहर के बाद कुछ घण्टों के लिए ही स्पिनिंग करती थीं। कुल 2,367,277 रुपये के धागे काते जाते थे, जिनमे यदि कच्चा माल का मूल्य 1,286,272 रुपये घटा दिया जाय तो 1,081,005 रुपये का कुल लाभ होता था जिसमे प्रति महिला को 3.25 रुपये वार्षिक आय होती थी। चूंकि अच्छे गुणवत्ता के सामानों की मांग पिछले कुछ वर्षों में घटी है इसलिए महिलाएं काफी मुश्किलों से गुजर रही हैं।
बुनकरों की संख्या बहुत अधिक है। लूम्स की कुल संख्या 750 है जिनसे 540,000 मूल्य का वार्षिक उत्पाद निर्मित किया जाता है। यदि उसमे सूत का मूल्य घटा दिया जाय तो कुल लाभ 81,400 रूपये का होता है- प्रति लूम 108 रुपये जो तीन बुनकरों द्वारा चलाया जाता है। प्रति व्यक्ति 36 सालाना। देशी उपयोग के लिए निर्मित करने वाले बुनकरों की आय 28 रुपये है।"
( रेफ - Economic History of British India - Ramesh dutt vol i p. 233 - 234)
पटना में कितने गाँव होंगे?
जोड़ लीजिये।
लगभग प्रति गांव में एक लूम।
इसको पूरे भारत का एक पायलट प्रोजेक्ट समझकर अध्ययन कीजिये। क्योंकि कमोवेश हर जिले का ऐसा ही मॉडल था। और यह सिर्फ वस्त्र उद्योग का मॉडल है। ऐसे सैकङो अन्य उद्योग भी थे, जिनका वर्णन इस पोस्ट में संभव नही है।
आने वाले 100 वर्षो में भारत कृषि शिल्प वाणिज्य को पूरी तरह नष्ट किया जाएगा। उषा पटनायक के अनुसार कुल 45 ट्रिलियन पौंड लूटकर ले जाया जाएगा। करोड़ो लोग बेरोजगार होंगे जिनमे से चार से पांच करोड़ भारतीय भुखमरी और संक्रामक रोगों से मौत के मुंह मे समायेंगे। इएलिये नहीं कि अन्न की कमी होगी। वरन इसलिए कि इनके जेब मे अन्न खरीदकर अपना पेट पालने का पैसा नही होगा।
इन घटनाओं को भारत के इतिहास और समाजशास्त्र से पूरी तरह गायब कर दिया जाएगा।
क्यों ?
सोचिये वे ऐसा क्यों करेंगे?
कोई अपने अपराधों को स्वीकार करता है?
चिदम्बरम जैसे काले अंग्रेज तक 21 बार जमानत ले लेते हैं तो वह तो गोरे अंग्रेज थे। इनके माई बाप।
विलियम जोंस और मैक्समुलर के #फेकन्यूज़_फैक्ट्री से निकले अफवाह साहित्य को विश्व साहित्य का हिस्सा बनाया जाएगा। यह अफवाह गढ़ी जाएगी कि आर्यन ( सवर्ण) बाहर से आये और भारत के शूद्र/ अतिशूद्र/ द्रविड़ो को गुलाम बनाया। उनकी स्त्रियों को गुलाम और वेश्या बनाकर उनसे बच्चे पैदा किये जिससे हिंदूइस्म का सबसे घृणित व्यवस्था #कास्ट_सिस्टम का जन्म हुआ।
यह कथा आप जानते हैं।
भारत के शिल्पियों और कृषकों के इस दुर्दशा भूंखमरी और मौत के लिए हिंदूइस्म और ब्रम्हानिस्म को गाली दिया जाएगा।
#आर्यन अफवाह को गजेटियर ऑफ इंडिया में 1882 में दर्ज करके वैधानिक बनाया गया और सत्य की तरह प्रसारित किया गया।
अब एक तीर से कई शिकार किये जाएंगे - अपने अपराधों पर पर्दा डाला जाएगा, फेक न्यूज़ के माध्यम से, हिन्दुओ को बांटा जाएगा, उनको खण्डित करने के लिए झूंठे साहित्य का गठन किया जाएगा, जिससे ईसाइयत में धर्म परिवर्तन का आधार बनाया जा सके। यह स्थापित किया जाएगा कि इनको हजारों साल से प्रताड़ित किया जा रहा है। ऐसे में एकलव्य और शम्बूक जैसे प्रतीकों की आवश्यकता पड़ेगी इस झूंठ को सत्य की तरह स्थापित करने के लिए।
यह काम जनगणना के माध्यम से किया जाएगा।
1901 में जनगणना कमिश्नर H H रिसले ने कल्पित आर्यन अर्थात सवर्णो को तीन ऊंची कास्ट घोसित किया और बाकी हिन्दू समुदायों को निम्न कास्ट घोसित करके भारतीय वर्ण व्यवस्था को वैधानिक रूप से नष्ट किया इस तरह फारवर्ड कास्ट और बैकवर्ड कास्ट की नींव रखी गयी।
1911 की जनगणना में यह स्थापित किया गया कि पहाड़ो और वनों में निवास करने वाले हिन्दू, हिन्दू नही है वे #animist हैं। अब इसका जो भी अर्थ होता हो।
इनके नायक के रूप में वनवासी #एकलव्य के प्रतीक को स्थापित किया गया जिसको गुरु द्रोण ने शिक्षा न देने के बाद भी अंगूठा दान में मांग लिया। इनको 1936 गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 के तहत scheduled Tribe घोसित किया जाएगा।
1917 में इन्ही बेरोजगार और मौत के मुंह मे धकेले गए हिन्दुओ के लिए, शिक्षा के नाम पर उन्हें हिन्दुओ से अलग चिन्हित करने के लिए एक शब्द गढ़ा गया - डिप्रेस्ड क्लास।
1921 में डिप्रेस्ड क्लास को जनगणना का अंग बनाकर उसे वैधानिक बनाया गया।
1931 में इनको एक्सटीरियर कास्ट का भी नाम दिया गया।
1928 में साइमन से मिलने के बाद डॉ आंबेडकर नग्रेजो को एक एफीडेविट देते है जिसको लोथियन समिति के नाम से जाना जाता है। उन्होंने लिखकर दिया कि डिप्रेस्ड क्लास ही अछूत हैं। और अछूतपन हिन्दू धर्म एक अविभाज्य अंग है। उनसे बड़ा हिन्दू धर्म का ज्ञाता उस समय कौन था।
1932 में मुसलमानों की तरह ही इन्ही वैधानिक घोसित अछूतों को हिन्दू की मुख्य शाखा से अलग करने हेतु seperate एलेक्टरेट दिया गया। उसके बाद 1936 में इन्हें भी गोवर्नमेंट एक्ट ऑफ इंडिया के तहत इनको scheduled Caste की उपाधि दी गयी। अब इस शब्द का जो भी अर्थ होता हो। इनके उत्पीड़न के प्रतीक के रूप में त्रेता युग के शम्बूक नामक चरित्र को स्थापित किया गया।
बाकी की कथा से आप लोग परिचित ही हैं।
इसके प्रमाण के रूप में आप चेक कीजिये कि पिछले 72 वर्षो में ईसाइयत में सर्वाधिक धर्मांतरण किस हिन्दू समुदाय करने में वे सफल रहे - द्रविड़ स्कीडुलेड ट्राइब और शेड्यूल्ड कास्ट, इन्ही का सर्वाधिक धर्मांतरण किया गया है।
N. B. जिसने भी #मंडल_कमीशन की रिपोर्ट ध्यान से पढ़ी होगी उसको पता होगा कि 1989 में ओबीसी के आरक्षण सुझाव देते समय बी पी मंडल ने उनके सामाजिक पिछले पन का आधार निर्धारित करते हुए इन दो ऐतिहासिक चरित्रों को एक प्रतीक उद्धरण की तरह प्रस्तुत किया है।
क्या आप समझ सकते हैं कि हमारे नीति नियामक किस स्तर के "एलियंस और स्टुपिड प्रोटागोनिस्ट" हैं ?
इस विषय को क्या राष्ट्रव्यापी बहस का मुद्दा नहीं बनाया जा सकता?
बनाया जा सकता है।
बशर्ते कि आपके अंदर इन अफवाह आधारित साहित्य के खण्डन करने की क्षमता हो तो।
©डॉ त्रिभुवन सिंह
ॐ
#भारत_जहाँ_रथ_हाँकने_वाला_इतना_जानता_था
पहले बात करते हैं बोड्स लॉ(Bode's Law) की, इसने पृथ्वी से ग्रहों की दूरी का एक समानुपातिक गणित दिया और बताया कि प्रत्येक ग्रह दूनी दूनी दूरी पर स्थित है। Titius ने सन् 1766 में Bode को लिखा था और सन् 1772 में यह प्रचारित हुआ। इसके बाद ही सन् 1801 में मंगल तथा बृहस्पति के मध्य Ceres को खोजा गया था। Titius-Bode से भी पहले Gregory ने 1702 में इसे लिखा था। कुछ अन्य सन्दर्भ भी मिलते हैं कि योरुप में यह बात कुछ अन्य लोग भी लिख पढ़ रहे थे। इस प्रकार Bode's Law को अब Gregory-Wolff-Titius-Bode Law भी कहा जाने लगा है।
ग्रहों की अवस्थिति तथा दूरी के समानुपात की अवधारणा या सूत्र वस्तुतः अत्यन्त प्राचीन है और भारतीय पुराणों में ही इसका सर्वप्रथम उल्लेख प्राप्त होता है।
महाभारत युद्ध का हाल जब संजय धृतराष्ट्र को सुनाने पहुँचता है तब आरम्भ में भूमि के वर्णन के साथ ही सौरमण्डल का वर्णन भी है क्योंकि पृथ्वी सौरमण्डल के अन्तर्गत है और उसी पृथ्वी पर ही युद्ध हुआ था।
धृतराष्ट्र बोले- संजय! तुमने यहाँ #जम्बूखण्ड का यथावत् वर्णन किया है। अब तुम इसके विस्तार और परिमाण को ठीक-ठीक बताओ। संजय! समुद्र के सम्पूर्ण परिमाण को भी अच्छी तरह समझा कर कहो। इसके बाद मुझसे #शाकद्वीप और #कुशद्वीप का वर्णन करो। संजय! इसी प्रकार #शाल्मलिद्वीप, #क्रौंचद्वीप तथा सूर्य, चन्द्रमा एवं राहु से सम्बन्ध रखने वाली सब बातों का यथार्थ रूप से वर्णन करो।
संजय बोले- राजन्! बहुत-से द्वीप हैं, जिनसे सम्पूर्ण जगत् परिपूर्ण है। अब मैं आपकी आज्ञा के अनुसार सात द्वीपों का तथा चन्द्रमा, सूर्य और राहु का भी वर्णन करूंगा। राजन्! जम्बूद्वीप का विस्तार पूरे 18600 योजन है। इसके चारों ओर जो खारे पानी का समुद्र है, उसका विस्तार जम्बूद्वीप की अपेक्षा दूना माना गया है। लवणसमुद्र सब ओर से मण्डलाकार है। राजन्! अब मैं शाकद्वीप का यथावत् वर्णन आरम्भ करता हूँ। कुरुनन्दन! मेरे इस न्यायोचित कथन को आप ध्यान देकर सुनें।
महाराज! नरेश्वर! वह द्वीप विस्तार की दृष्टि से जम्बूद्वीप के परिमाण से दूना है। भरतश्रेष्ठ! उसका समुद्र भी विभागपूर्वक उससे दूना ही है। भरतश्रेष्ठ! उस समुद्र का नाम क्षीरसागर है, जिसने उक्त द्वीप को सब ओर से घेर रखा है।
संजय बोले- महाराज! कुरुनन्दन! इसके बाद वाले द्वीपों के विषय में जो बातें सुनी जाती हैं, वे इस प्रकार हैं; उन्हें आप मुझसे सुनिये। #क्षीरोद समुद्र के बाद #घृतोद समुद्र है। फिर #दधिमण्डोदक समुद्र है। इनके बाद #सुरोद समुद्र है, फिर #मीठे पानी का सागर है। महाराज! इन समुद्रों से घिरे हुए सभी द्वीप और पर्वत उत्तरोत्तर #दुगुने विस्तार वाले हैं।
धृतराष्ट्र बोले- संजय! तुमने द्वीपों की स्थिति के विषय में तो बड़े विस्तार के साथ वर्णन किया है। अब जो अन्तिम विषय- सूर्य, चन्द्रमा तथा राहु का प्रमाण बताना शेष रह गया है, उसका वर्णन करो। संजय बोले- महाराज! मैंने द्वीपों का वर्णन तो कर दिया। अब ग्रहों का यथार्थ वर्णन सुनिये। कौरवश्रेष्ठ! राहु की जितनी बड़ी लंबाई-चौड़ाई सुनने में आती है, वह आपको बताता हूँ। महाराज! सुना है कि राहु ग्रह मण्डलाकार है। निष्पाप नरेश! राहु ग्रह का व्यासगत विचार बारह हजार योजन है और उसकी परिधि का विस्तार छत्तीस हजार योजन है। पौराणिक विद्वान् उसकी विपुलता (मोटाई) छ: हजार योजन की बताते हैं। राजन्! चन्द्रमा का व्यास ग्यारह हजार योजन है।
कुरूश्रेष्ठ! उनकी परिधि या मण्डल का विस्तार तैंतीस हजार योजन बताया गया है और महामना शीतरश्मि चन्द्रमा का वैपुल्यगत विस्तार (मोटाई) उनसठ सौ योजन हैं। कुरुनन्दन! सूर्य का व्यासगत विस्तार दस हजार योजन है और उनकी परिधि या मण्डल का विस्तार तीस हजार योजन है तथा उनकी विपुलता अट्ठावन सौ योजन की है।
अनघ! इस प्रकार शीघ्रगामी परम उदार भगवान् सूर्य के त्रिविध विस्तार का वर्णन सुना जाता है। भारत! यहाँ सूर्य का प्रमाण बताया गया, इन दोनों से अधिक विस्तार रखने के कारण राहु यथासमय इन सूर्य और चन्द्रमा को आच्छादित कर लेता है।
✍🏼अत्रि विक्रमार्क अन्तर्वेदी
🎋"भूतपूर्व वैयाकरणज्ञ 🔥भव्य-भारत"🎋
एक समय था, जब भारत सम्पूर्ण विश्व में प्रत्येक क्षेत्र सबसे आगे था । प्राचीन काल में सभी भारतीय बहुश्रुत,वेद-वेदाङ्गज्ञ थे । राजा भोज को तो एक साधारण लकडहारे ने भी व्याकरण में छक्के छुडा दिए थे ।व्याकरण शास्त्र की इतनी प्रतिष्ठा थी की व्याकरण ज्ञान शून्य को कोई अपनी लड़की तक नही देता था ,यथा :- "अचीकमत यो न जानाति,यो न जानाति वर्वरी।अजर्घा यो न जानाति,तस्मै कन्यां न दीयते"
यह तत्कालीन लोक में ख्यात व्याकरणशास्त्रीय उक्ति है 'अचीकमत, बर्बरी एवं अजर्घा इन पदों की सिद्धि में जो सुधी असमर्थ हो उसे कन्या न दी जाये" प्रायः प्रत्येक व्यक्ति व्याकरणज्ञ हो यही अपेक्षा होती थी ताकि वह स्वयं शब्द के साधुत्व-असाधुत्व का विवेकी हो,स्वयं वेदार्थ परिज्ञान में समर्थ हो, इतना सम्भव न भी हो तो कम से कम इतने संस्कृत ज्ञान की अपेक्षा रखी ही जाती थी जिससे वह शब्दों का यथाशक्य शुद्ध व पूर्ण उच्चारण करे :-
यद्यपि बहु नाधीषे तथापि पठ पुत्र व्याकरणम्।
स्वजनो श्वजनो माऽभूत्सकलं शकलं सकृत्शकृत्॥
अर्थ : " पुत्र! यदि तुम बहुत विद्वान नहीं बन पाते हो तो भी व्याकरण (अवश्य) पढ़ो ताकि 'स्वजन' 'श्वजन' (कुत्ता) न बने और 'सकल' (सम्पूर्ण) 'शकल' (टूटा हुआ) न बने तथा 'सकृत्' (किसी समय) 'शकृत्' (गोबर का घूरा) न बन जाय। "
भारत का जन जन की व्याकरणज्ञता सम्बंधित प्रसंग "वैदिक संस्कृत" पेज के महानुभव ने भी आज ही उद्धृत की है जो महाभाष्य ८.३.९७ में स्वयं पतञ्जलि महाभाग ने भी उद्धृत की हैं ।
सारथि के लिए उस समय कई शब्द प्रयोग में आते थे । जैसे---सूत, सारथि, प्राजिता और प्रवेता ।
आज हम आपको प्राजिता और प्रवेता की सिद्धि के बारे में बतायेंगे और साथ ही इसके सम्बन्ध में रोचक प्रसंग भी बतायेंगे ।
रथ को हाँकने वाले को "सारथि" कहा जाता है । सारथि रथ में बाई ओर बैठता था, इसी कारण उसे "सव्येष्ठा" भी कहलाता थाः----देखिए,महाभाष्य---८.३.९७
सारथि को सूत भी कहा जाता था , जिसका अर्थ था----अच्छी प्रकार हाँकने वाला । इसी अर्थ में प्रवेता और प्राजिता शब्द भी बनते थे । इसमें प्रवेता व्यकारण की दृष्टि से शुद्ध था , किन्तु लोक में विशेषतः सारथियों में "प्राजिता" शब्द का प्रचलन था ।
भाष्यकार ने गत्यर्थक "अज्" को "वी" आदेश करने के प्रसंग में "प्राजिता" शब्द की निष्पत्ति पर एक मनोरंजक प्रसंग दिया है । उन्होंने "प्राजिता" शब्द का उल्लेख कर प्रश्न किया है कि क्या यह प्रयोग उचित है ? इसके उत्तर में हाँ कहा है ।
कोई वैयाकरण किसी रथ को देखकर बोला, "इस रथ का प्रवेता (सारथि) कौन है ?"
सूत ने उत्तर दिया, "आयुष्मन्, इस रथ का प्राजिता मैं हूँ ।"
वैयाकरण ने कहा, "प्राजिता तो अपशब्द है ।"
सूत बोला, देवों के प्रिय आप व्याकरण को जानने वाले से निष्पन्न होने वाले केवल शब्दों की ही जानकारी रखते हैं, किन्तु व्यवहार में कौन-सा शब्द इष्ट है, वह नहीं जानते । "प्राजिता" प्रयोग शास्त्रकारों को मान्य है ।"
इस पर वैयाकरण चिढकर बोला, "यह दुरुत (दुष्ट सारथि) तो मुझे पीडा पहुँचा रहा है ।"
सूत ने शान्त भाव से उत्तर दिया, "महोदय ! मैं सूत हूँ । सूत शब्द "वेञ्" धातु के आगे क्त प्रत्यय और पहले प्रशंसार्थक "सु" उपसर्ग लगाकर नहीं बनता, जो आपने प्रशंसार्थक "सूत" निकालकर कुत्सार्थक "दुर्" उपसर्ग लगाकर "दुरुत" शब्द बना लिया । सूत तो "सूञ्" धातु (प्रेरणार्थक) से बनता है और यदि आप मेरे लिए कुत्सार्थक प्रयोग करना चाहते हैं, तो आपको मुझे "दुःसूत" कहना चाहिए, "दुरुत" नहीं ।
उपर्युक्त उद्धरण से यह स्पष्ट है कि सारथि, सूत और प्राजिता तीनों शब्दों का प्रचलन हाँकने वाले के लिए था । व्याकरण की दृष्टि से प्रवेता शब्द शुद्ध माना जाता था । इसी प्रकार "सूत" के विषय में भी वैयाकरणों में मतभेद था ।
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इत्यलयम् 🌺 संलग्न कथानक के लिये "वैदिक संस्कृत" पृष्ठ के प्रति कृतज्ञ हूँ।💐
जैसे नदी की धारा की लम्बाई जब गंगा, सतलज, कावेरी जैसी नदियों से बढ़कर ब्रह्मपुत्र के आकार की होने लगे तो उसे नदी नहीं, नद् कहा जाने लगता है, कुछ उसी तरह जब वाक्य में प्रयुक्त शब्दों की गणना बढ़ जाए तो वो नयी वाली हिंदी से बदलकर पुरानी वाली हिंदी हो जाएगी। समय के साथ पुरानी देवनागरी की वर्तनी भी बदलती रही है, यथा अनुस्वार का प्रयोग अब बढ़ता जा रहा है तथा गंगा को गङ्गा लिखना भी लोग भूल चले हैं।
कुछ दशक पहले छपाई के शुरू होने पर अक्षर बदले और तब की बम्बई, और आज की मुंबई की ओर से आने वाले अ, ण, जैसे अक्षर हम आज प्रयोग करते हैं, पुराने वाले भुला दिए गए। लिपियों का अध्ययन करने वाले इसे ‘परिवर्तन’ में गिनते हैं या ‘विकास’ मानते हैं, पता नहीं, बल्कि भाषाविज्ञान में देवनागरी का कितना अध्ययन किया जाता है ये भी ज्ञात नहीं। जब शब्दों से हटकर व्याकरण की बात होती है तो हमें कोई हिंदी लेखक नहीं, भारतीय मूल के एक अंग्रेजी लेखक की याद आती है।
सर वी.एस. नैपौल की एक किताब के सम्पादक ने जब कई जगह उनके लिखे को बदल डाला तो उन्होंने प्रकाशन को पत्र लिखकर उन्हें वापस अंग्रेजी पढ़ा डाली थी। उन्होंने अंग्रेजी के बारे में कहा था कि ये भाषा इसलिए चलती है क्योंकि इसे विशेषज्ञ नहीं, आम जनता चला रही होती है। वो ऑक्सफ़ोर्ड में अंग्रेजी के ही छात्र थे और उन्होंने अपनी पढ़ाई के जमाने की याद दिलाते हुए कहा था कि अंग्रेजी भाषा में प्रयुक्त व्याकरण तो पुराने फ़्रांसिसी दरबार में अंग्रेजी के प्रयोग का तरीका भर है, तो जिस भाषा का व्याकरण है ही नहीं, वो व्याकरण मुझे सिखाने की कोशिश क्यों की जा रही है?
हिंदी के बारे में आज ऐसा कहना विवादों को जन्म दे सकता है किन्तु सत्य तो यही है कि ये भाषा कल तक उर्दू जैसी लिपि में लिखी जाती थी और महामना मदन मोहन मालवीय ने करीब-करीब बनारस के हिन्दू विश्वविद्यालय वाले अभियान के समय ही हिंदी की लिपि देवनागरी करने का अभियान भी छेड़ रखा था। व्याकरण के मामले में एक किसी ज्ञानी का प्रश्न था कि संस्कृत में तो ‘रामः गच्छति’ और ‘सीता गच्छति’ होता है, उस से निकले हिंदी व्याकरण में फिर ‘राम जाता है’ और ‘सीता जाती है’ क्यों हो जाता?
तत्सम और तद्भव शब्दों का प्रयोग, सीधा दूसरी भाषाओँ से आने वाले शब्दों का प्रयोग, यहाँ तक कि व्याकरण भी हिंदी में कई दिशाओं से प्रभावित होता रहता है। किसी के लिए बिहार में बोली जाने वाली हिंदी के व्याकरण में हर चीज़ का पुल्लिंग हो जाना अजीब होगा तो किसी का बंगाल और उस से आगे के पूर्वोत्तर में ‘ट्रेन-बस में उठना’ और पीने की चीज़ों को खाना कहना, वहीँ कुछ दूसरे लोग दिल्ली और उसके आस पास की विकृत हिंदी पर भी सर धुन सकते हैं। शब्दों-वाक्यों के अर्थ भी यहाँ बदलते रहते हैं इसलिए पश्चिम की ‘बाई जी’ पूरब में आते आते कुछ और ही हो जाती है।
इन सभी बातों के बीच ये भी सोचना होगा कि मानक क्या है जिसके आधार पर अच्छी-बुरी, परिष्कृत या अशुद्ध हिंदी की पहचान की जाये? मानक हिंदी के लिए कामताप्रसाद गुरु के व्याकरण को कई लोग अच्छा मानते हैं। करीब पांच सौ पन्ने की इस मोटी सी किताब के बाद भी हिंदी व्याकरण पर कुछ बच्चों के लायक किताबें लिखी गयी होंगी, थोड़ी पूछताछ से शायद उनका भी पता चल जाएगा। हाँ इन सभी बातों के बीच ये ध्यान रखियेगा कि विकृत को ही सौन्दर्य घोषित करने का रोग कुछ आयातित विचारधाराओं के साथ आ जाता है।
जैसा किसी भी उत्पाद के साथ होता है, वैसे ही भाषा के सौन्दर्य को बनाए रखना उस भाषा को इस्तेमाल करने वालों का काम है न कि उसे बेचकर खाने वालों का। जैसे बाजार से निकलते वक्त किसी परिचित सेठ जी से पूछ लें कि धंधा कैसा चल रहा है तो वो ग्राहकों की कमी, करों के बढ़ने और पड़ोसी दुकानदार के चोर होने से लेकर अच्छे कामगार न मिलने तक दर्जन भर रोने की वजहें गिनवाते हैं वैसे ही हिंदी बेचने वाले पाठकों की कमी, प्रकाशकों के कामचोर होने से लेकर दूसरे लेखकों के चोर होने तक दर्जन भर दुखांत कहानियां सुना देंगे।
बाकी परिस्थितियां इतनी बुरी होतीं तो बाजार में नित नए प्रकाशक क्यों कूद रहे हैं, या स्थापित अंग्रेजी प्रकाशक भी हिंदी में किताबें क्यों छापने लगे हैं, ये भी सोचने लायक मुद्दा है। सोचकर देखिये तो पता चलेगा कि ज्यादातर लोग हिंदी में ही सोच पाते हैं, अंग्रेजी जैसी किसी और भाषा में क्यों नहीं सोचते?
✍🏼आनन्द कुमार
पोथी, पुुंथी, चौपड़ी, पुस्तक, ग्रन्थ
उन सभी को नमन और प्रणाम जिन्होंने पुस्तक के महत्व को बरकरार रखा है, जिनके घरों को दीवारें नहीं, पुस्तकें शोभायमान करती है और जिनके हाथों को पुस्तक रत्न की तरह आभरणमय करती हैं।
बधाई कि पुस्तकों के प्रति आदर अब भी हमारे कहीं न कहीं बना हुआ है। पुस्तक कहीं पोथी, कहीं पुंथी, कहीं चौपड़ी तो कहीं ग्रन्थम् नाम से जानी जाती है। नई पीढ़ी बुक कहती है...। सब शब्दों की अपनी अपनी परिभाषाएं हैं। असुर बेनीपाल ने तो पूरा पुस्तकालय ही बनवाकर दुनिया को एक परम्परा दे दी थी।
क्या ये मालूम है कि पुस्तक भारतीय शब्द नहीं है, जबकि यह हमें संस्कृत का शब्द लगता है। संस्कृत वालों ने तो वीणा च पुस्तकं कह कर इसे सरस्वती का करचिह्न भी बताया है। हमारे यहां पुस्तक शब्द बहुत काल से व्यवहार में आ रहा है। पुस्तक लेखन, पुस्तक दान के महत्व कई पुराणों में आया है। अग्निपुराण और उससे पूर्व शिवधर्मोत्तर पुराण में तो पुस्तक की यात्राएं आयोजित करने का भी वर्णन मिलता है। उसका पूरा विधान भी लिखा गया है कि नन्दी नागरी अक्षरों में लिखी गई पुस्तक को सिंहासन पर विराजित कर नगर में उसकी परिक्रमा करवाई जाए..।
नारदपुराण में विविध पुस्तकों को लिखवार दान करने के कई पुण्य फलों को लिखा गया है। वैसे यह प्रसंग लगभग प्रत्येक पुराण के अन्त में मिल ही जाता है।... तो पुस्तक शब्द अरब के रास्ते भारत में आया। पुस्त माने हाथ। हाथ में रखने के कारण यह पुस्तक है। इस स्वरूप ने मूर्तिकारों को बहुत प्रभावित किया और पुस्तक जो रेयल पर रखकर पढी जाती थी, वह हाथों की शोभा होकर ब्रह्मा, सरस्वती आदि की मूर्तियों के करकमल में आयुध-स्वरूप स्थान पा गई। यह शब्द पांचवीं सदी तक तो व्यवहार में आ ही चुका था क्योंकि बाद में हर्ष के दरबारी बाण ने इसे प्रयुक्त किया है।
हमारे यहां तो ग्रंथ कहा जाता था। ग्रंथ से आशय जिसको ग्रंथित या गांठ लगाकर रखा जाए। पुरानी जितनी पोथियां हैं, उन सबमें कागज अलग-अलग होते थे और उनको क्रम लगाते हुए क्रमश: रखा जाता। उनके ऊपर और नीचे लकड़ी के पट्टियों को कागज के ही आकार में जमाया जाता था। उसको लाल, पीले कपड़े या खलीते में बांधकर डोरी की गांठ लगा दी जाती थी। गांठ के कारण ही ये पोथियां ग्रंथ कही जाती... दुनियाभर के प्राचीन पुस्तकालयों में पांडुलिपियां इसी सूरत में मिलती हैं। ग्रंथ शब्द आज भी व्यवहार में है और बहुत सम्मान का स्थान रखता है। हर किताब को ग्रंथ नहीं कहा जाता क्यों...।
पट्टी या तख्ती
#Slate_for_writing
लिखने के लिए कभी तख्ती काम में आती थी। इसे पाटी कहा जाता। पट्टी भी इसी का नाम है। पट्टी पढ़ाना, पट्टी लिखना, पट्टी पहाड़े.. कई मुहावरों से इसके मायने समझे जा सकते हैं। मगर, आज यह चलन के बाहर हो गई है। स्कूलों से पट्टी का प्रयोग बाहर होता जा रहा है।
कई प्रकार की पट्टियां बनती थी। काष्ठ फलक की बनी पट्टी, मिट्टी की पट्टी, श्लिष्ट पाषाण की पट्टी और गत्ते पर कालिख चढ़ाकर तैयार की गई पट्टी। हर्ष के दरबार में लिखने के लिए पट्टिकाओं के निर्माण का संदर्भ बाणभट्ट भी देता है। बहुत पहले कागज को बचाने के लिए ग्रंथकार पट्टियों पर ही श्लोक की रचना करते थे ताकि गलती होने पर तत्काल सुधार हो जाए। बाद में अच्छी लिखावट वाला उसको बहुत मनोयोग से कागज या भुर्जपत्र पर लिखता। इसलिए कई ग्रंथों की मूल प्रति या पहली पांडुलिपि नहीं मिलती है।
काष्ठफलक की पट्टियां तो अब देखने को भी नहीं मिलती जो एक हाथ लंबी, आधे हाथ चौड़ी और लगभग 5 यव मोटी होती थी। विद्यार्थियों के लिए पट्टीदान का महत्व भी मिलता है। पूर्व में पट्टिकाओं पर रमणियों को अपने मन के उद्गार लिखते हुए मंदिरों पर दिखाया जाता था। आज केवल उनकी स्मृतियां ही रह गई हैं। संत ज्ञानेश्वर फिल्म के एक गीत : पट्टी लिखना, पोथी भी पढ़ना, सारे जग में चम चम चमकना... में वह पट्टी दिखाई देती है।
सोचिये, वह भी क्या दौर था जब पट्टी पर गणित के सवाल होते। तब गणित को भी पाटीगणित के नाम से ही जाना जाता था। श्रीपति, श्रीधर, आर्यभट, भास्कराचार्य आदि ने इस शब्द का प्रयोग किया है, हालांकि टीकाकारों ने क्रमपद्धति के रूप में इस शब्द का अर्थ लिया है मगर, यह पाटी पर होने के अर्थ में अधिक व्यावहारिक थी... आज कहां गया वह दौर...।
✍🏼श्रीकृष्ण जुगनू
भूर्जपत्र - ओढ़ने बिछाने से लेकर लिखने तक के काम आने वाली जलरोधी वस्तु।
चर्चित बख्शाली मेनसक्रिप्ट भोजपत्र पर ही लिखी हुई है। चीन में ६००ई.पू. के खरोष्ठी गान्धारी लिपि में लिखित सैकड़ों पत्र रखे हुये हैं। समय के साथ "लिखित" की प्रतिलिपि तैयार करनी ही पड़ती है और लिपि परिवर्तित होती चली जाती है।
भारत में इन पत्रों पर लेखन स्थायी स्याही से किया जाता रहा जिसे बनाने की भी विशेष विधि होती है। पानी से धुलती नहीं।
प्रस्तुत चित्र शारदा लिपि में लिखे एक भोजपत्र का स्कैन है। किसी प्राचीन लेख में कोई सामग्री जोड़े जाने हेतु प्रथम आवश्यकता उस पत्र में अतिरिक्त लेखन हेतु 'अवकाश' की है, द्वितीय आवश्यकता इस बात की होती है कि आप उस भाषा व लिपि के पूर्ण जानकार हों और पुराने हस्तलेख की नकल 'नटवरलाल' के जैसे कर सकें। यदि नकल करने की आपमें जन्मजात प्रतिभा हो तो भी किसी अप्रचलित प्राचीन लिपि के लेखन कर पाने के लिये बहुत कुछ सीखना व अभ्यास करना पड़ेगा।
तब भी स्मरण रखिये "नकल हमेशा होती है पर बराबरी कभी नहीं" ऐसे ही नहीं कहा जाता है।
जब कभी पत्रों का निरीक्षण विशेषज्ञों द्वारा किया जायेगा आपकी फोर्जरी पकड़ में आ जायेगी। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि किसी 'कृति' की अनेक अनुकृतियाँ कई स्थानों पर होती हैं , यदि किसी एक स्थान की प्रति में कोई गड़बड़ी हो भी या की जाये तो शेष प्रतियाँ अपरिवर्तित ही रहेंगी।
अँगरेजों के पूर्वाग्रहों और दुराग्रहों का पालन आज भी पूर्ण श्रद्धा एवं भक्ति से हो रहा है।
लगध के याजुष् ज्योतिष की एक प्रति को छोड़ किसी में भी गणित शब्द नहीं है, षड् वेदाङ्गों में भी 'गणित' नहीं है फिर भी बड़ी ही ढिठाई से वह श्लोक लगातार "कोट" होता है।
कल्प तथा ज्योतिष वेदाङ्गों में गणित अनुप्रयुक्त होता ही है।
Mathematics is the queen of Science
पुराने मठों में भोजपत्रों पर लिखित ग्रन्थों का संग्रह आज भी है।
ब्रिटेन ने एसिआ में प्राप्त प्राचीन हस्तलिखित सामग्री जितनी उनको प्राप्त हो सकी उसको अपने अधिकार में कर अपने देश ढोकर ले गये। अब वे भी इनके संरक्षण के उपाय खोज रहे हैं और प्रतिलिपियाँ तैयार करवाने में जुटे हैं
"द हिन्दू" में प्रकाशित वर्ष 2011ई. की वार्ता पढ़ी जा सकती है।
✍🏼अत्रि विक्रमार्क अन्तर्वेदी
*कुछ 100 जानकारी जिसका ज्ञान सबको होना चाहिए*
1.योग,भोग और रोग ये तीन अवस्थाएं है।
2. *लकवा* - सोडियम की कमी के कारण होता है ।
3. *हाई वी पी में* - स्नान व सोने से पूर्व एक गिलास जल का सेवन करें तथा स्नान करते समय थोड़ा सा नमक पानी मे डालकर स्नान करे ।
4. *लो बी पी* - सेंधा नमक डालकर पानी पीयें ।
5. *कूबड़ निकलना*- फास्फोरस की कमी ।
6. *कफ* - फास्फोरस की कमी से कफ बिगड़ता है , फास्फोरस की पूर्ति हेतु आर्सेनिक की उपस्थिति जरुरी है । गुड व शहद खाएं
7. *दमा, अस्थमा* - सल्फर की कमी ।
8. *सिजेरियन आपरेशन* - आयरन , कैल्शियम की कमी ।
9. *सभी क्षारीय वस्तुएं दिन डूबने के बाद खायें* ।
10. *अम्लीय वस्तुएं व फल दिन डूबने से पहले खायें* ।
11. *जम्भाई*- शरीर में आक्सीजन की कमी ।
12. *जुकाम* - जो प्रातः काल जूस पीते हैं वो उस में काला नमक व अदरक डालकर पियें ।
13. *ताम्बे का पानी* - प्रातः खड़े होकर नंगे पाँव पानी ना पियें ।
14. *किडनी* - भूलकर भी खड़े होकर गिलास का पानी ना पिये ।
15. *गिलास* एक रेखीय होता है तथा इसका सर्फेसटेन्स अधिक होता है । गिलास अंग्रेजो ( पुर्तगाल) की सभ्यता से आयी है अतः लोटे का पानी पियें, लोटे का कम सर्फेसटेन्स होता है ।
16. *अस्थमा , मधुमेह , कैंसर* से गहरे रंग की वनस्पतियाँ बचाती हैं ।
17. *वास्तु* के अनुसार जिस घर में जितना खुला स्थान होगा उस घर के लोगों का दिमाग व हृदय भी उतना ही खुला होगा ।
18. *परम्परायें* वहीँ विकसित होगीं जहाँ जलवायु के अनुसार व्यवस्थायें विकसित होगीं ।
19. *पथरी* - अर्जुन की छाल से पथरी की समस्यायें ना के बराबर है ।
20. *RO* का पानी कभी ना पियें यह गुणवत्ता को स्थिर नहीं रखता । कुएँ का पानी पियें । बारिस का पानी सबसे अच्छा , पानी की सफाई के लिए *सहिजन* की फली सबसे बेहतर है ।
21. *सोकर उठते समय* हमेशा दायीं करवट से उठें या जिधर का *स्वर* चल रहा हो उधर करवट लेकर उठें ।
22. *पेट के बल सोने से* हर्निया, प्रोस्टेट, एपेंडिक्स की समस्या आती है ।
23. *भोजन* के लिए पूर्व दिशा , *पढाई* के लिए उत्तर दिशा बेहतर है ।
24. *HDL* बढ़ने से मोटापा कम होगा LDL व VLDL कम होगा ।
25. *गैस की समस्या* होने पर भोजन में अजवाइन मिलाना शुरू कर दें ।
26. *चीनी* के अन्दर सल्फर होता जो कि पटाखों में प्रयोग होता है , यह शरीर में जाने के बाद बाहर नहीं निकलता है। चीनी खाने से *पित्त* बढ़ता है ।
27. *शुक्रोज* हजम नहीं होता है *फ्रेक्टोज* हजम होता है और भगवान् की हर मीठी चीज में फ्रेक्टोज है ।
28. *वात* के असर में नींद कम आती है ।
29. *कफ* के प्रभाव में व्यक्ति प्रेम अधिक करता है ।
30. *कफ* के असर में पढाई कम होती है ।
31. *पित्त* के असर में पढाई अधिक होती है ।
33. *आँखों के रोग* - कैट्रेक्टस, मोतियाविन्द, ग्लूकोमा , आँखों का लाल होना आदि ज्यादातर रोग कफ के कारण होता है ।
34. *शाम को वात*-नाशक चीजें खानी चाहिए ।
35. *प्रातः 4 बजे जाग जाना चाहिए* ।
36. *सोते समय* रक्त दवाव सामान्य या सामान्य से कम होता है ।
37. *व्यायाम* - *वात रोगियों* के लिए मालिश के बाद व्यायाम , *पित्त वालों* को व्यायाम के बाद मालिश करनी चाहिए । *कफ के लोगों* को स्नान के बाद मालिश करनी चाहिए ।
38. *भारत की जलवायु* वात प्रकृति की है , दौड़ की बजाय सूर्य नमस्कार करना चाहिए ।
39. *जो माताएं* घरेलू कार्य करती हैं उनके लिए व्यायाम जरुरी नहीं ।
40. *निद्रा* से *पित्त* शांत होता है , मालिश से *वायु* शांति होती है , उल्टी से *कफ* शांत होता है तथा *उपवास* ( लंघन ) से बुखार शांत होता है ।
41. *भारी वस्तुयें* शरीर का रक्तदाब बढाती है , क्योंकि उनका गुरुत्व अधिक होता है ।
42. *दुनियां के महान* वैज्ञानिक का स्कूली शिक्षा का सफ़र अच्छा नहीं रहा, चाहे वह 8 वीं फेल न्यूटन हों या 9 वीं फेल आइस्टीन हों ,
43. *माँस खाने वालों* के शरीर से अम्ल-स्राव करने वाली ग्रंथियाँ प्रभावित होती हैं ।
44. *तेल हमेशा* गाढ़ा खाना चाहिएं सिर्फ लकडी वाली घाणी का , दूध हमेशा पतला पीना चाहिए ।
45. *छिलके वाली दाल-सब्जियों से कोलेस्ट्रोल हमेशा घटता है ।*
46. *कोलेस्ट्रोल की बढ़ी* हुई स्थिति में इन्सुलिन खून में नहीं जा पाता है । ब्लड शुगर का सम्बन्ध ग्लूकोस के साथ नहीं अपितु कोलेस्ट्रोल के साथ है ।
47. *मिर्गी दौरे* में अमोनिया या चूने की गंध सूँघानी चाहिए ।
48. *सिरदर्द* में एक चुटकी नौसादर व अदरक का रस रोगी को सुंघायें ।
49. *भोजन के पहले* मीठा खाने से बाद में खट्टा खाने से शुगर नहीं होता है ।
50. *भोजन* के आधे घंटे पहले सलाद खाएं उसके बाद भोजन करें ।
51. *अवसाद* में आयरन , कैल्शियम , फास्फोरस की कमी हो जाती है । फास्फोरस गुड और अमरुद में अधिक है
52. *पीले केले* में आयरन कम और कैल्शियम अधिक होता है । हरे केले में कैल्शियम थोडा कम लेकिन फास्फोरस ज्यादा होता है तथा लाल केले में कैल्शियम कम आयरन ज्यादा होता है । हर हरी चीज में भरपूर फास्फोरस होती है, वही हरी चीज पकने के बाद पीली हो जाती है जिसमे कैल्शियम अधिक होता है ।
53. *छोटे केले* में बड़े केले से ज्यादा कैल्शियम होता है ।
54. *रसौली* की गलाने वाली सारी दवाएँ चूने से बनती हैं ।
55. हेपेटाइट्स A से E तक के लिए चूना बेहतर है ।
56. *एंटी टिटनेस* के लिए हाईपेरियम 200 की दो-दो बूंद 10-10 मिनट पर तीन बार दे ।
57. *ऐसी चोट* जिसमे खून जम गया हो उसके लिए नैट्रमसल्फ दो-दो बूंद 10-10 मिनट पर तीन बार दें । बच्चो को एक बूंद पानी में डालकर दें ।
58. *मोटे लोगों में कैल्शियम* की कमी होती है अतः त्रिफला दें । त्रिकूट ( सोंठ+कालीमिर्च+ मघा पीपली ) भी दे सकते हैं ।
59. *अस्थमा में नारियल दें ।* नारियल फल होते हुए भी क्षारीय है ।दालचीनी + गुड + नारियल दें ।
60. *चूना* बालों को मजबूत करता है तथा आँखों की रोशनी बढाता है ।
61. *दूध* का सर्फेसटेंसेज कम होने से त्वचा का कचरा बाहर निकाल देता है ।
62. *गाय की घी सबसे अधिक पित्तनाशक फिर कफ व वायुनाशक है ।*
63. *जिस भोजन* में सूर्य का प्रकाश व हवा का स्पर्श ना हो उसे नहीं खाना चाहिए
64. *गौ-मूत्र अर्क आँखों में ना डालें ।*
65. *गाय के दूध* में घी मिलाकर देने से कफ की संभावना कम होती है लेकिन चीनी मिलाकर देने से कफ बढ़ता है ।
66. *मासिक के दौरान* वायु बढ़ जाता है , 3-4 दिन स्त्रियों को उल्टा सोना चाहिए इससे गर्भाशय फैलने का खतरा नहीं रहता है । दर्द की स्थति में गर्म पानी में देशी घी दो चम्मच डालकर पियें ।
67. *रात* में आलू खाने से वजन बढ़ता है ।
68. *भोजन के* बाद बज्रासन में बैठने से *वात* नियंत्रित होता है ।
69. *भोजन* के बाद कंघी करें कंघी करते समय आपके बालों में कंघी के दांत चुभने चाहिए । बाल जल्द सफ़ेद नहीं होगा ।
70. *अजवाईन* अपान वायु को बढ़ा देता है जिससे पेट की समस्यायें कम होती है
71. *अगर पेट* में मल बंध गया है तो अदरक का रस या सोंठ का प्रयोग करें
72. *कब्ज* होने की अवस्था में सुबह पानी पीकर कुछ देर एडियों के बल चलना चाहिए ।
73. *रास्ता चलने*, श्रम कार्य के बाद थकने पर या धातु गर्म होने पर दायीं करवट लेटना चाहिए ।
74. *जो दिन मे दायीं करवट लेता है तथा रात्रि में बायीं करवट लेता है उसे थकान व शारीरिक पीड़ा कम होती है ।*
75. *बिना कैल्शियम* की उपस्थिति के कोई भी विटामिन व पोषक तत्व पूर्ण कार्य नहीं करते है ।
76. *स्वस्थ्य व्यक्ति* सिर्फ 5 मिनट शौच में लगाता है ।
77. *भोजन* करते समय डकार आपके भोजन को पूर्ण और हाजमे को संतुष्टि का संकेत है ।
78. *सुबह के नाश्ते* में फल , *दोपहर को दही* व *रात्रि को दूध* का सेवन करना चाहिए ।
79. *रात्रि* को कभी भी अधिक प्रोटीन वाली वस्तुयें नहीं खानी चाहिए । जैसे - दाल , पनीर , राजमा , लोबिया आदि ।
80. *शौच और भोजन* के समय मुंह बंद रखें , भोजन के समय टी वी ना देखें ।
81. *मासिक चक्र* के दौरान स्त्री को ठंडे पानी से स्नान , व आग से दूर रहना चाहिए ।
82. *जो बीमारी जितनी देर से आती है , वह उतनी देर से जाती भी है ।*
83. *जो बीमारी अंदर से आती है , उसका समाधान भी अंदर से ही होना चाहिए ।*
84. *एलोपैथी* ने एक ही चीज दी है , दर्द से राहत । आज एलोपैथी की दवाओं के कारण ही लोगों की किडनी , लीवर , आतें , हृदय ख़राब हो रहे हैं । एलोपैथी एक बिमारी खत्म करती है तो दस बिमारी देकर भी जाती है ।
85. *खाने* की वस्तु में कभी भी ऊपर से नमक नहीं डालना चाहिए , ब्लड-प्रेशर बढ़ता है ।
86 . *रंगों द्वारा* चिकित्सा करने के लिए इंद्रधनुष को समझ लें , पहले जामुनी , फिर नीला ..... अंत में लाल रंग ।
87 . *छोटे* बच्चों को सबसे अधिक सोना चाहिए , क्योंकि उनमें वह कफ प्रवृति होती है , स्त्री को भी पुरुष से अधिक विश्राम करना चाहिए
88. *जो सूर्य निकलने* के बाद उठते हैं , उन्हें पेट की भयंकर बीमारियां होती है , क्योंकि बड़ी आँत मल को चूसने लगती है ।
89. *बिना शरीर की गंदगी* निकाले स्वास्थ्य शरीर की कल्पना निरर्थक है , मल-मूत्र से 5% , कार्बन डाई ऑक्साइड छोड़ने से 22 %, तथा पसीना निकलने लगभग 70 % शरीर से विजातीय तत्व निकलते हैं ।
90. *चिंता , क्रोध , ईर्ष्या करने से गलत हार्मोन्स का निर्माण होता है जिससे कब्ज , बबासीर , अजीर्ण , अपच , रक्तचाप , थायरायड की समस्या उतपन्न होती है ।*
91. *गर्मियों में बेल , गुलकंद , तरबूजा , खरबूजा व सर्दियों में सफ़ेद मूसली , सोंठ का प्रयोग करें ।*
92. *प्रसव* के बाद माँ का पीला दूध बच्चे की प्रतिरोधक क्षमता को 10 गुना बढ़ा देता है । बच्चो को टीके लगाने की आवश्यकता नहीं होती है ।
93. *रात को सोते समय* सर्दियों में देशी मधु लगाकर सोयें त्वचा में निखार आएगा
94. *दुनिया में कोई चीज व्यर्थ नहीं , हमें उपयोग करना आना चाहिए*।
95. *जो अपने दुखों* को दूर करके दूसरों के भी दुःखों को दूर करता है , वही मोक्ष का अधिकारी है ।
96. *सोने से* आधे घंटे पूर्व जल का सेवन करने से वायु नियंत्रित होती है , लकवा , हार्ट-अटैक का खतरा कम होता है ।
97. *स्नान से पूर्व और भोजन के बाद पेशाब जाने से रक्तचाप नियंत्रित होता है*।
98 . *तेज धूप* में चलने के बाद , शारीरिक श्रम करने के बाद , शौच से आने के तुरंत बाद जल का सेवन निषिद्ध है
99. *त्रिफला अमृत है* जिससे *वात, पित्त , कफ* तीनो शांत होते हैं । इसके अतिरिक्त भोजन के बाद पान व चूना । देशी गाय का घी , गौ-मूत्र भी त्रिदोष नाशक है ।
100. इस विश्व की सबसे मँहगी *दवा। लार* है , जो प्रकृति ने तुम्हें अनमोल दी है ,इसे ना थूके ।
_*जनजागृति हेतु लेख को पढ़ने के बाद साझा अवश्य करें*।🌷☘🌺 ☘ 🌺 🌷
महर्षि वाग्भट के अष्टांगहृदयम में दातून के बारे में बताया गया है। वे कहते हैं कि दातुन कीजिये | दातुन कैसा ? तो जो स्वाद में कसाय हो। कसाय मतलब कड़वा और नीम का दातुन कड़वा ही होता है और इसीलिए उन्होंने नीम के दातुन की बड़ाई (प्रसंशा) की है। उन्होंने नीम से भी अच्छा एक दूसरा दातुन बताया है, वो है मदार का, उसके बाद अन्य दातुन के बारे में उन्होंने बताया है जिसमे बबूल , अर्जुन, आम , अमरुद जामुन,महुआ,करंज,बरगद,अपामार्ग,बेर,शीशम,बांस इत्यादि है। ऐसे 12 वृक्षों का नाम उन्होंने बताया है जिनके दातुन आप कर सकते हैं। चैत्र माह से शुरू कर के गर्मी भर नीम, मदार या बबूल का दातुन करने के लिए उन्होंने बताया है, सर्दियों में उन्होंने अमरुद या जामुन का दातुन करने को बताया है, बरसात के लिए उन्होंने आम या अर्जुन का दातुन करने को बताया है। आप चाहें तो साल भर नीम का दातुन इस्तेमाल कर सकते हैं लेकिन उसमे ध्यान इस बात का रखे कि तीन महीने लगातार करने के बाद इस नीम के दातुन को कुछ दिन का विश्राम दें। इस अवधि में मंजन कर ले। दन्त मंजन बनाने की आसान विधि उन्होंने बताई है। वे कहते हैं कि आपके स्थान पर उपलब्ध खाने का तेल (सरसों का तेल. नारियल का तेल, या जो भी तेल आप खाने में इस्तेमाल करते हों, रिफाइन छोड़ कर), उपलब्ध लवण मतलब नमक और हल्दी मिलाकर आप मंजन बनाये और उसका प्रयोग करें।
दातून (Teeth cleaning twig) किसी उपयुक्त वृक्ष की पतली टहनी से बना लगभग १५-२० सेमी लम्बा दाँत साफ करने वाला परम्परागत बुरुश है। इसके लिये बहुत से पेड़ों की टहनियाँ उपयुक्त होती हैं किन्तु नीम, मिसवाक आदि की टहनिया विशेष रूप से लोकप्रिय हैं। कृत्रिम बुरुश की अपेक्षा दातून के कई लाभ हैं, जैसे कम लागत, अधिक पर्यावरणहितैषी आदि।
आपने कभी सोचा है कि पहले जमाने में दांतों की समस्या बहुत कम लोगों को होती थी, क्या आपने कभी सोचा है क्यों? पहले लोग ब्रश-पेस्ट का इस्तेमाल नहीं करते थे, बल्कि दातुन से मुंह धोते थे। न उनके दांतो में सेंसिटिविटी की समस्या थी, न ही पीले दांतों की, और न ही सांसो में बदबू की। और सबसे आश्चर्य की बात यह है कि आज बड़ी-बड़ी कंपनियाँ इन्हीं नैचुरल चीजों को मिलाकर टूथपेस्ट बनाकर मार्केट में लाती है लोग पागलों की तरह उनको खरीदते हैं, चाहे वह कितने ही महंगे क्यों न हो।
रोगों के अनुसार दातुन करिए और स्वस्थ रहिए
शरीर का प्रमुख अंग मुंह को माना जाता है, क्योंकि इसी के माध्यम स शरीर को आहार पहुंचाया जाता है।...
शरीर का प्रमुख अंग मुंह को माना जाता है, क्योंकि इसी के माध्यम स शरीर को आहार पहुंचाया जाता है। मुंह के अन्दर निवास करने वाले दांत खाये जाने वाले पदार्थों को पीसने का काम करते हैं ताकि मुंह में डाले गये भोज्य पदार्थ आसानी से गले के रास्ते होकर पेट तक पहुंच जायें।
हमारे देश में प्राचीन काल से ही दांतों को साफ करने के लिए अनेक प्रकार के वृक्षों की हटनियों को दातुन के रूप में प्रयोग किया जाता है। दातुन करने के माध्यम से हम उस वृक्ष विशेष के रसों को अपने दांतों, मसूड़ों और जीभ के सम्पर्क में ले जाते हैं। वृक्ष विशेष के रस न सिर्फ हमारे दांतों और मसूड़ों को ही स्वस्थ रखते हैं बल्कि शरीर के अनेक रोग भी शान्त होते हैं। इस प्रकरण में अनेक प्रकार के दातुनों का प्रयोग कर अलग-अलग रोगों को रोकथाम के बारे में बताया जा रहा है।
नीम की दातुन : नीम की छाल में निम्बीन या मार्गोसीन नामक तिक्त रालमय सत्व तथा निम्बोस्टेरोल एवं एक प्रकार के उड़नशील तेल के साथ ही छह प्रतिशत टैनिक पाया जाता है। इसका दातुन सभी दातुनों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। इसकी टहनी से प्राप्त रस से मसूड़ंों की सूजन, पायरिया (खून निकलना), दांतों में कीड़ा लगना, पीप आना, दाह (जलन), दांतों का टेढ़ा होना आदि रोगों का नाश होता है।
'गर्भवती औरत अगर अपने गर्भकाल के समस्त दिनों में नीम की ताजी टहनियों की दातुन सुबह-शाम नियमित रूप से करती है तो उसका गर्भस्थ शिशु सम्पूर्ण निरोग होकर जन्म लेता है तथा उसे किसी भी प्रकार के रोग निरोधी टीकों को लगाने की आवश्यकता ही नहीं होती।
बबूल की दातुन : आयुर्वेद के मतानुसार बबूल कफनाशक, पित्तनाशक, व्रणरोषण, स्तम्भन, संकोचक, रक्तरोधक, कफध्न, गर्भाशयशोथहर, गर्भाशय स्रावहर तथा विषघ्न माना गया है। बबूल के अन्दर एक गोंद होता है। बबूल के अन्दर पाये जाने वाले रस में श्वेतप्रदर, शुक्र रोग, अतिसार, फुफ्फुसत्रण, उराक्षत, प्रवाहिका आदि जटिल रोगों के साथ ही दांतों को असमय ही न गिरने देने का, हिलने न देने का, मसूड़ों से खून न निकलने देने का मुंह के छालों का रोकने का भी गुण होता है। ब्रह्मलीन पं. तृप्तिनारायण झा शास्त्री के अनुसार लगातार बबूल के दातुन को करते रहने से बांझपन एवं गर्भपात होने का डर नहीं रहता।
अर्जुन का दातुन : हरीतक्यादि कुल का अर्जुन क्रिस्टलाइन तत्व, अर्जुनेटिन, लेक्टोन था टैनिक से युक्त होता है। यह रक्त स्तम्भक, हृदय रोगों में लाभप्रद, रक्तपित्तशामक, प्रमेहनाशक तथा शारीरिक सुन्दरता को बढ़ाने वाला होता है। इसकी ताजी टहनी से दातुन करने से उच्च रक्तचाप, एन्जाइना, मधुमेह, राजयक्ष्मा आदि अनेक बीमारियां नष्ट हो जाती हैं। अर्जुन की दातुन करने से वक्षस्थल सुडौल होते हैं तथा कमर पतली होती है।
महुआ की दातुन : मधूक या महुआ के रसायनिक संगठनों में माउरिनग्लाइाोसाइडल सैपोनिन तत्व पाया जाता है। जिसका प्रभाव विषैला होताहै परन्तु इसकी टहनी में यह तत्व अतिकम पाया जाता है जो वातपित्तशामक, नाड़ीबल्य, कफनिस्सारक, मूत्रल, दाहप्रशमन, कुष्ठघ्न आदि प्रभाव वाला होता है। साथ ही दांतों का हिलना, दांतों से रक्त आना, मुंह की कड़वाहट, मुंह और गला सूखने की परेशानियों से बचाती है। महुआ दातुन को नियमपूर्वक करने से स्वप्नदोष, शीघ्रपतन, मूत्रप्रदाह आदि बीमारियां भी शान्त होती है।
बरगद की दातुन : बरगद की छाल में दस प्रतिशत टैनिक पाया जाता है। वेदनाहर, वणरोपण, शोथहर, आंखों को ज्योति देने वाला, रक्तरतम्भक, रक्तपित्तहार, गर्भाशयथहर, शुक्रस्तम्भक, गर्भस्थापक, रक्तप्रदर एवं श्वेतप्रदर रोगों में इसका रस उपयोगी होता है। दातुन के माध्यम से चूसा जाने वाला रस मुख को सभी प्रकार से सुरक्षित रखता है। ब्रह्मलीन पं. तृपिनारायण झा शास्त्री के अनुसार बरगद की टहनियों को लगातार दातुन करने से लगातार पुत्रियों का होना रूक जाता है और पुत्र की प्राप्ति होती है।
अपामार्ग की दातुन : अपामार्ग को हिन्दी में चिरचिटा (चिड़चिड़) बंगला में अपाड़, महाराष्ट्र में घाड़ा, अंग्रेजी में प्रिकली चैफ फ्लावर के नामों से जाना जाता है। यह एकपौधीय पौधा होता है। इसके रस में क्षारीय गुण होता है। यह मूत्रल, अश्मरी (पथरी), श्वास रोग, पसीनाजन्य रोग, विषाघ्न, अम्लतनाशक, रक्तवर्ध्दक, शोथहर आदि रोगों का नाश करता है। जो व्यक्ति विवाहोपरान्त प्रतिदिन नियमित रूप से जड़युक्त अपामार्ग का दातुन करता है वह केवल पुत्र को ही जन्म देता है अर्थात् उसे पुत्री नही नहीं होती।
करंज की दातुन : करंज की दातुन बवासीर संग्रहणी, मंदाग्नि जसे पेट के रोग, पेट के कीड़े आदि रोगों में लाभप्रद होती है। बेर के दातुन से गला बैठना, स्वरभेद, गले की खराश, प्रदर रोग, अधिक मासिक स्राव आदि बीमारियां नष्ट होती हैं खैर (खादिर) के दातुन से दांत के कीड़े, रक्त विकार, खांसी मुंह की बदबू आदि बीमारियां दूर हो जाती है।
दातुन लगभग 6-8 इंच लम्बी होनी चाहिए तथा खूब महीन कूची बनाकर ही करनी चाहिए। जितना सम्मत हो, दातुन हमेशा ताजी तोड़ कर ही करनी चाहिए।
प्रातः काल दातुन करने से रातभर की गंदगी निकल जाकी हैं तथा रात में भोजन के बाद दातुन करने से भोजन के फंसे अंश निकल जाते हैं। दातुन करने से पूर्व इन बातों पर भी ध्यान देना आवश्यक होता है।
दातुन खड़े-खड़े या टहल कर नहीं करना चाहिए।
दातुन करने के बाद हमेशा ताजे पानी से ही कुल्ला करना चाहिए।
पांवों के बल उकड़ू बैठकर दातुन करने से दातुन का लाभ सभी अंग प्राप्त कर सकते हैं।
दातुन को बीचों-बीच चीर कर, आपस में रगड़ कर जीभ का साफ करना चाहिए।
चलिये जानते हैं कि क्यों महंगे टूथपेस्ट और ब्रश के जगह पर नीम के दातुन दांतों और ओरल हेल्थ के लिये नीम की दातुन अन्य दातुन से भी अच्छी होती है क्योंकि इसका रासायनिक संगठन नीमबीन नीमबीडीन (nimbin nimbidin) और मारगोडीन (margodin) नामक रासायनिक संगठन से बनता है जो अपने औषधिय गुणों के कारण ओरल हेल्थ के लिए बहुत अच्छा होता है।
आज भी गांवों में लोग व्रत या पूजा में ब्रश का इस्तेमाल करने के जगह पर दातुन का इस्तेमाल करते हैं क्योंकि यह जूठी नहीं होती है। यानि बार-बार का इसका इस्तेमाल नहीं होता है, ताजा तोड़कर इस्तेमाल करने के कारण यह शुद्ध और पवित्र होता है। एक बात का ध्यान रखें कि नीम का दातुन सूखा नहीं होना चाहिए, क्योंकि इससे रस नहीं निकल पाता है जो दांत के साथ पेट और चेहरा के लिए भी अच्छा होता है। चलिये इसके फायदों के बारे में जानते हैं-
• दांतों में कीड़ों से बचाव- बच्चों को दांतों में कीड़ा होने की समस्या तो आम हैं। चॉकलेट खाते रहते हैं और दांत दर्द से रोते रहते हैं। अगर आप नियमित रूप से नीम के दातुन से दांतों को साफ करेंगे तो कभी भी कीड़े की समस्या नहीं होगी, क्योंकि यह किटाणुनाशक होता है।
• मुँह में बदबू, पस और सड़न से राहत दिलाता है-आयुर्वेद के अनुसार यह लघु कषाय कटु एवम् शीत होने के कारण दांतों में सड़न, मुँह में बदबू, पस आदि को होने से रोकती है।
• मुँह के छालों को जल्दी ठीक करता है- नीम के दातुन का एन्टी-माइक्रोबायल गुण मुँह के छालों को जल्दी ठीक होने में बहुत मदद करता है और उनका बार-बार आना कम करता है।
• दांतों के दर्द में असरदार रूप से काम करता है- नीम के दातुन को अच्छी तरह से धोकर धीरे-धीरे चबाना चाहिए, उससे जो रस निकलता है वह दांतो के दर्द को दूर करता है क्योंकि इसका एन्टी-बैक्टिरीयल, एन्टी-फंगल और एन्टी-वायरल गुण इस क्षेत्र में बहुत काम करता है। साथ ही मसूड़े मजबूत होते हैं जिसके कारण बुढ़ापे में भी दांतों की कोई समस्या नहीं होती है।
• दांतो का पीलापन दूर करता है- आजकल तरह-तरह के जंक फूड खाने के वजह से दांतों में पीलेपन की समस्या हो गई है। नीम के दातुन से जो रस निकलता है वह दातों के पीलेपन को साफ करके उन्हें सफेद, स्वस्थ और चमकदार बनाता है।
• फेसलुक को बेहतर बनाता है – कहते हैं कि दातुन को चबाने से जो चेहरे का व्यायाम होता है उससे फेस पर एक स्लिक लुक आ जाता है।
ध्यान देने की बात यह है कि नीम का दातुन कड़वा होने के कारण गर्भवती महिलाएं और बच्चे न ही इस्तेमाल करें तो अच्छा है, हो सकता है कड़वेपन के कारण उन्हें जी मिचलाने या उल्टी होने की समस्या हो। नीम के दातुन से दांतों को रगड़ना नहीं चाहिए बल्कि पहले धीरे-धीरे चबाना चाहिए फिर जब वह ब्रश की तरह मुलायम हो जाय तब धीरे-धीरे दांत को इससे साफ करना चाहिए। यहाँ तक इसको चबाने से जीभ भी साफ हो जाता है। इसलिए टूथब्रश और पेस्ट छोड़े और नीम का दातुन अपनायें-फिर अपने दांतों में आए फर्क को देखें।
ज्योति ओमप्रकाश गुप्ता
वंदेमातरम
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*🔆🔅करेला🌱*
वर्षा ऋतु ⛈🌧में करेले बहुतायत में पाये जाते हैं। मधुमेह, बुखार, आमवात एवं यकृत के मरीजों के लिए अत्यंत उपयोगी करेला, एक लोकप्रिय सब्जी है।
*आयुर्वेद के मतानुसार करेले पचने में हलके, रुक्ष, स्वाद में कच्चे, पकने पर तीखे एवं उष्णवीर्य होते हैं। करेला रुचिककर, भूखवर्धक, पाचक, पित्तसारक, मूत्रल, कृमिहर, उत्तेजक, ज्वरनाशक, पाचक, रक्तशोधक, सूजन मिटाने वाला, व्रण मिटाने वाला, दाहनाशक, आँखों के लिए हितकर, वेदना मिटाने वाला, मासिकधर्म का उत्पत्तिकर्ता, दूध शुद्ध करने वाला, मेद, गुल्म (गाँठ), प्लीहा (तिल्ली), शूल, प्रमेह, पांडु, पित्तदोष एवं रक्तविकार को मिटाने वाला है।* करेले कफ प्रकृतिवालों के लिए अधिक गुणकारी है तथा खाँसी, श्वास एवं पीलिया में भी लाभदायक है। करेले के पत्तों का ज्यादा मात्रा में लिया गया रस वमन-विरेचन करवाता है, जिससे पित्त का नाश होता है।
बुखार, सूजन, आमवात, वातरक्त, यकृत या प्लीहावृद्धि एवं त्वचा के रोगों में करेले की सब्जी लाभदायक होती है। *🔅चेचक-खसरे के प्रभाव से बचने के लिए भी प्रतिदिन करेले की सब्जी का सेवन करना लाभप्रद है। इसके अलावा अजीर्ण, मधुप्रमेह, शूल, कर्णरोग, शिरोरोग एवं कफ के रोगों आदि में मरीज की प्रकृति क अनुसार एवं दोष का विचार करके करेले की सब्जी देना लाभप्रद है।*
🔅आमतौर पर करेले की सब्जी बनाते समय उसके ऊपरी हरे छिलके उतार लिये जाते हैं ताकि कड़वाहट कम हो जाय। फिर उसे काटकर, उसमें नमक मिलाकर, उसे निचोड़कर उसका कड़वा रस निकाल लिया जाता है और तब उसकी सब्जी बनायी जाती है। ऐसा करने से करेले के गुण बहुत कम हो जाते हैं। इसकी अपेक्षा कड़वाहट निकाले बिना, पानी डाले बिना, मात्र तेल में छाँककर (तड़का देकर अथवा बघार कर) बनायी गयी करेले की सब्जी परम पथ्य है। करेले के मौसम में इनका अधिक से अधिक उपयोग करके आरोग्य की रक्षा करनी चाहिए।
✅विशेषः करेले अधिक खाने से यदि उलटी या दस्त हुए हों तो उसके इलाज के तौर पर घी-भात-मिश्री खानी चाहिए। करेले का रस पीने की मात्रा 10 से 20 ग्राम है। उलटी करने के लिए रस पीने की मात्रा 100 ग्राम तक की है। करेले की सब्जी 50 से 150 ग्राम तक की मात्रा में खायी जा सकती है। करेले के फल, पत्ते, जड़ आदि सभी भाग औषधि के रुप में उपयोगी हैं।
🚫सावधानीः जिन्हें आँव की तकलीफ हो, पाचनशक्ति कमजोर दुर्बल प्रकृति के हों, उन्हें करेले का सेवन नहीं करना चाहिए। ग्रीष्म ऋतु में, पित्तप्रकोप की ऋतु कार्तिक मास में करेले का सेवन नहीं करना चाहिए।
*🔆🔅औषधि-प्रयोगः*
🔅मलेरियाः करेले के 3-4 पत्तों को काली मिर्च के 3 दानों के साथ पीसकर दें तथा पत्तों का रस शरीर पर लगायें। इससे लाभ होता है।
🔅बालक की उलटीः करेले के 1 से 3 बीजों को एक दो काली मिर्च के साथ पीसकर बालक को पिलाने से उलटी बंद होती है।
*🔅✅मधुप्रमेहः कोमल करेले के टुकड़े काटकर, उन्हें छाया में सुखाकर बारीक पीसकर उनमें दसवाँ भाग काली मिर्च मिलाकर सुबह शाम पानी के साथ 5 से 10 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन लेने से मूत्रमार्ग से जाने वाली शक्कर में लाभ होता है। कोमल करेले का रस भी लाभकारक है।*
*🔅यकृतवृद्धि(लीवर): 20 ग्राम करेले का रस, 5 ग्राम राई का चूर्ण, 3 ग्राम सेंधा नमक इन सबको मिलाकर सुबह खाली पेट पीने से यकृतवृद्धि, अपचन एवं बारंबार शौच की प्रवृत्ति में लाभ होता है।*
🔅तलवों में जलनः पैर के तलवों में होने वाली जलन में करेले का रस घिसने से लाभ होता है।
🔅बालकों का अफराः बच्चों के अफरे में करेले के पत्तों के आधा चम्मच रस में चुटकी भेर हल्दी का चूर्ण मिलाकर पिलाने से बालक को उलटी हो जायेगी एवं पेट की वायु तथा अफरे में लाभ होगा।
*🔅✅बवासीरः करेले के 10 से 20 ग्राम रस में 5 से 10 ग्राम मिश्री मिलाकर रोज पिलाने से लाभ होता है।*
🔅मूत्राल्पताः जिनको पेशाब खुलकर न आता हो, उन्हें करेले अथवा उनके पत्तों के 30 से 50 ग्राम रस में दही का 15 ग्राम पानी मिलाकर पिलाना चाहिए। उसके बाद 50 से 60 ग्राम छाछ पिलायें। ऐसा 3 दिन करें। फिर तीन दिन यह प्रयोग बंद कर दें एवं फिर से दूसरे 6 दिन तक लगातार करें तो लाभ होता है।
इस प्रयोग के दौरान छाछ एवं खिचड़ी ही खायें।
*🔅अम्लपित्तः करेले एवं उसके पत्ते के 5 से 10 ग्राम चूर्ण में मिश्री मिलाकर घी अथवा पानी के साथ लेने से लाभ होता है।*
*🔅वीर्यदोषः 50 ग्राम करेले का रस, 25 ग्राम नागरबेल के पत्तों का रस, 10 ग्राम चंदन का चूर्ण, 10 ग्राम गिलोय का चूर्ण, 10 ग्राम असगंध (अश्वगंधा) का चूर्ण, 10 ग्राम शतावरी का चूर्ण, 10 ग्राम गोखरू का चूर्ण एवं 100 ग्राम मिश्री लें। पहले करेले एवं नागरबेल के पत्तों के रस को गर्म करें। फिर बाकी की सभी दवाओं के चूर्ण में उन्हें डालकर घिस लें एवं आधे-आधे ग्राम की गोलियाँ बनायें। सुबह दूध पीते समय खाली पेट पाँच गोलियाँ लें। 21 दिन के इस प्रयोग से पुरुष की वीर्यधातु में वृद्धि होती है एवं शरीर में ताकत बढ़ती है।*
*🔅सूजनः करेले को पीसकर सूजव वाले अंग पर उसका लेप करने से सूजन उतर जाती है। गले की सूजन में करेले की लुगदी को गरम करके लेप करें।*
*🔅कृमिः पेट में कृमि हो जाने पर करेले के रस में चुटकीभर हींग डालकर पीने से लाभ होता है।*
🔅जलने परः आग से जले हुए घाव पर करेले का रस लगाने से लाभ होता है।
🔅रतौंधीः करेले के पत्तों के रस में लेंडीपीपर घिसकर आँखों में आँजने से लाभ होता है।
पांडुरोग (रक्ताल्पता)- करेले के पत्तों का 2-2 चम्मच रस सुबह-शाम देने से पांडुरोग में लाभ होता है।
आरोग्य निधि 🔆🔅
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**नेत्र रोग नाशक नुस्खे*
*नेत्र रोग के कारण :खुले स्थान में अधिक देर तक स्नान करना, सूक्ष्म और दूर की वस्तु को बहुत देर तक देखना, रात में जागना और दिन में सोना, आँखों में धूल, धुआँ और मिट्टी पड़ जाना, धूप में गरम हुए पानी से मुँह धोना, पौष्टिक खाद्य का अभाव, चाय और वनस्पति-घी का उपयोग अधिक करना आदि कारणों से नेत्रों के रोग उत्पन्न होते हैं।*
*नेत्र-रोगों से बचने के सामान्य उपाय :*
💐💐💐 *जो मनुष्य नियमित जीवंत सुबह उठते ही बासी थूक(लार) नयन में काजल की तरह लगाते हैं उन्हें जीवंत नयन रोग नहीं होता है व नयन रोग से ग्रसित है तो पूर्णतः ठीक हो जाता है* 💐💐💐
*(1) धूल या मिट्टी आँख में पड़ जाए तो आँखों को मसलना नहीं चाहिए। धीरे-धीरे आँखें खोलने और बन्द करने से या ठण्डे पानी के छींटे देने से धूल के कण आसानी से निकल जाते हैं।*
*(2) पढ़ते-लिखते समय प्रकाश हमेशा उचित मात्रा में, पीछे या बायीं तरफ से आना चाहिए, सामने से प्रकाश आने से आँखें बहुत जल्दी थक जाती हैं।*
*(3) कापी या किताब 12 से 15 इञ्च की दूरी पर रखना चाहिएं।*
*(4) सुबह उठते ही प्रतिदिन ठण्डे पानी से आँखें धोनी चाहिएं।*
*(5) सरसों के तेल से बना काजल या गुलाबजल आँखों में प्रतिदिन डालना चाहिए।*
*(6) अधिक देर तक पढ़ते-लिखते समय आँखों की थकान दूर करने के लिए-बीच-बीच में अपनी हथेलियों को हल्के से आँखों पर रखें, जिससे बाहरी-प्रकाश आँखों पर न पड़े।*
*(7) हरे शाक-सब्जी, दूध आदि के प्रयोग से आँखों की शक्ति बढ़ती है।*
*(8) आँखों को बार-बार ऊपर-नीचे, दाँए-बाँए, तिरछा और गोल-गोल घुमाकर आँखों का व्यायाम करें। फिर थोड़ी देर के लिए आँखें बन्द कर लें ।*
*(9) प्रतिदिन घी का अधिक से अधिक उपयोग करने से आँखों की शक्ति बढ़ती है।*
*(10) अन्य व्यक्ति का रूमाल, तौलिया या अँगोछे का उपयोग नहीं करना चाहिए।*
*नेत्र-रोगों से रक्षा के उपाय :*
*(1) तिल के ताजे 5 फूल प्रातःकाल (अप्रेल में ही) निगलें, तो पूरे वर्ष आँखें नहीं दुखेंगी।*
*(2) चैत्र के महीने में प्रतिवर्ष ‘गोरखमुण्डी’ के 5 या 7 ताजे फूल चबाकर पानी के साथ खाने से आँखों की ज्योति बढ़ती है ।*
*(3) एक सप्ताह के बच्चे को बेलगिरी के बीच की मिंगी शहद में मिलाकर चटाने से जीवनभर आँखें नहीं दुखतीं ।*
*(4) नींबू का एक बूंद रस महीने में एक बार आँखों में डालने से कभी आँखें नहीं दुखतीं।*
*नेत्र रोग नाशक घरेलु इलाज :*
*(1) पुनर्नवा के अर्क की 2-3 बूंदें आँखों में टपकाने से आँखों के सभी रोग दूर होते हैं।*
*(2) तिल के फूलों पर, जो ओस इकट्ठी होती है, उसे इंजेक्शन के द्वारा एकत्रित करके साफ शीशी में रख लें, इसे आँखों में डालने से नेत्रों के सभी विकार दूर होते हैं।*
*(3) नीम के हरे पत्तों को साफ करके एक सम्पुट में रख दें, ऊपर से एक कपड़ा ढंककर मिट्टी लगा दें तथा आग पर रख दें। जब पत्तियाँ बिल्कुल राख हो जायें, तब उन्हें निकालकर, नीबू के रस में मिलाकर आँखों में लगाने से खुजली, जलन आदि दूर होती है।*
*(4) एक भाग पीपल और दो भाग बड़ी हरड़ को पानी में घिसकर बत्ती बनाकर, आँखों में लगाने से सभी रोग दूर होते हैं।*
*(5) गोरखमुण्डी की जड़ को छाया में सुखाकर पीस लें, उसी मात्रा में शक्कर मिलाकर 7 माशा गाय के दूध के साथ पीने से आँखों के अनेक विकार दूर होते हैं।*
*(6) त्रिफला को 4 घण्टे पानी में भिगो दें और छानकर वही पानी आँखों में डालने से व त्रिफला की टिकिया बाँधने से त्रिदोष से उतपन्न आँखों के सभी रोग दूर होते हैं।*
*(7) सोंठ और नीम के पत्तों को पीसकर गरम कर लें और सेंधा नमक मिलाकर टिकिया बना लें फिर आँखों के ऊपर रखकर पट्टी बाँधने से कई रोगों में आराम मिलता है।*
*(8) हरड़, सेंधा नमक, गेरू और रसौत को पानी में पीसकर पलकों पर लगाने से सभी रोग दूर होते हैं।*
*(9) सात माशे फिटकरी को ग्वारपाठे के रस में घोंटकर, काँसे की थाली में बीच में रख दें, ऊपर से काँसे की कटोरी ढक दें। थाली के नीचे हल्की आँच जलाएं, फिटकरी के फूल उचटकर ऊपर ढकी हुई कटोरी में चिपक जायेंगे, इन फूलों में शुद्ध शोरा मिलाकर- आँखों में लगाने से फूला, जाला आदि रोग दूर होते हैं।*
*(10) ढाक की जड़ का स्वरस या भाप के द्वारा निकाला गया अर्क आँखों में डालने से- रतौंधी और आँखों से पानी बहना आदि रोग दूर हो जाते हैं।*
*(11) देवदारु के चूर्ण को बकरी के मूत्र की भावना देकर, घी के साथ लेने से आँखों के सभी रोग दूर होते हैं।*
*(12) देशी गाय के ताजा गौमूत्र को 16 तह सूती कपड़े से छानकर सुबह शाम एक एक बूंद आँखों मे डालने से नयन के सभी रोग नस्ट होते हैं*
*निरोगी रहने हेतु महामन्त्र*
*मन्त्र 1 :-*
*• भोजन व पानी के सेवन प्राकृतिक नियमानुसार करें*
*• रिफाइन्ड नमक,रिफाइन्ड तेल,रिफाइन्ड शक्कर (चीनी) व रिफाइन्ड आटा ( मैदा ) का सेवन न करें*
*• विकारों को पनपने न दें (काम,क्रोध, लोभ,मोह,इर्ष्या,)*
*• वेगो को न रोकें ( मल,मुत्र,प्यास,जंभाई, हंसी,अश्रु,वीर्य,अपानवायु, भूख,छींक,डकार,वमन,नींद,)*
*• एल्मुनियम बर्तन का उपयोग न करें ( मिट्टी के सर्वोत्तम)*
*• मोटे अनाज व छिलके वाली दालों का अत्यद्धिक सेवन करें*
किडनी के रोगियों के लिए 3 रामबाण प्रयोग
किडनी के रोगी चाहे उनका डायलासिस चल रहा हो या अभी शुरू होने वाला हो, चाहे उनका क्रिएटिनिन या यूरिया कितना भी बढ़ा हो, और अगर डॉक्टर्स ने भी उनको किडनी ट्रांसप्लांट के लिए बोल दिया हो, ऐसे में उन रोगियों के लिए विशेष 3 रामबाण प्रयोग हैं, जो उनको इस प्राणघातक रोग से छुटकारा दिला सकते हैं
1. नीम और पीपल की छाल का काढ़ा
आवश्यक सामग्री।
नीम की छाल – 10 ग्राम
पीपल की छाल – 10 ग्राम
3 गिलास पानी में 10 ग्राम नीम की छाल और 10 ग्राम पीपल की छाल लेकर आधा रहने तक उबाल कर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को दिन में 3-4 भाग में बाँट कर सेवन करते रहें। इस प्रयोग से मात्र सात दिन क्रिएटिनिन का स्तर व्यवस्थित हो सकता है या प्रयाप्त लेवल तक आ सकता है।
2. गेंहू के जवारो और गिलोय का रस
गेंहू के जवारे (गेंहू घास) का रस
गिलोय(अमृता) का रस।
गेंहू की घास को धरती की संजीवनी के समान कहा गया है, जिसे नियमित रूप से पीने से मरणासन्न अवस्था में पड़ा हुआ रोगी भी स्वस्थ हो जाता है। और इसमें अगर गिलोय(अमृता) का रस मिला दिया जाए तो ये मिश्रण अमृत बन जाता है। गिलोय अक्सर पार्क में या खेतो में लगी हुयी मिल जाती है।
गेंहू के जवारों का रस 50 ग्राम और गिलोय (अमृता की एक फ़ीट लम्बी व् एक अंगुली मोटी डंडी) का रस निकालकर – दोनों का मिश्रण दिन में एक बार रोज़ाना सुबह खाली पेट निरंतर लेते रहने से डायलिसिस द्वारा रक्त चढ़ाये जाने की अवस्था में आशातीत लाभ होता है।
इसके निरंतर सेवन से कई प्रकार के कैंसर से भी मुक्ति मिलती है। रक्त में हीमोग्लोबिन और प्लेटलेट्स की मात्रा तेज़ी से बढ़ने लगती है। रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत बढ़ जाती है। रक्त में तुरंत श्वेत कोशिकाएं (W.B.C.) बढ़ने लगती हैं। और रक्तगत बिमारियों में आशातीत सुधार होता है। तीन मास तक इस अमृतपेय को निरंतर लेते रहने से कई असाध्य बीमारियां ठीक हो जाती हैं।
इस मिश्रण को रोज़ाना ताज़ा सुबह खाली पेट थोड़ा थोड़ा घूँट घूँट करके पीना है। इसको लेने के बाद कम से कम एक घंटे तक कुछ नहीं खाएं।
उदयपुर के पास के गाँव में एक वैद श्री पालीवाल जी का अनुभव है के नीम गिलोय की तीन अंगुली जितनी डंठल को पानी में उबालकर, मसल छानकर पीते रहने से डायलिसिस वाले रोगी को बहुत लाभ मिलता है।
3. गोखरू काँटा काढ़ा
250 ग्राम गोखरू कांटा (ये आपको पंसारी से मिल जायेगा) लेकर 4 लीटर पानी मे उबालिए जब पानी एक लीटर रह जाए तो पानी छानकर एक बोतल मे रख लीजिए और गोखरू कांटा फेंक दीजिए। इस काढे को सुबह शाम खाली पेट हल्का सा गुनगुना करके 100 ग्राम के करीब पीजिए। शाम को खाली पेट का मतलब है दोपहर के भोजन के 5, 6 घंटे के बाद। काढ़ा पीने के एक घंटे के बाद ही कुछ खाइए और अपनी पहले की दवाई ख़ान पान का रोटिन पूर्ववत ही रखिए।
15 दिन के अंदर यदि आपके अंदर अभूतपूर्व परिवर्तन हो जाए तो डॉक्टर की सलाह लेकर दवा बंद कर दीजिए। जैसे जैसे आपके अंदर सुधार होगा काढे की मात्रा कम कर सकते है या दो बार की बजाए एक बार भी कर सकते है।
ज़रूरत के अनुसार ये प्रयोग एक हफ्ते से 3 महीने तक किया जा सकता है. मगर इसके रिजल्ट १५ दिन में ही मिलने लग जाते हैं. अगर कोई रिजल्ट ना आये तो बिना डॉक्टर या वैद की सलाह से इसको आगे ना बढ़ायें.
*रीढ़ की हड्डी का दर्द*
*नई तकनीकी खोजों , शारीरिक व्यायाम की कमी और आरामदायक जीवन - शैली ने सिरदर्द , चक्कर आना और पीठ दर्द जैसी कई परेशानियाँ पैदा कर दी हैं । ज्यादातर ऑफिस जाने वाले लोग घंटों कुर्सी पर बैठ कर काम करते हैं वे अपने शरीर को ज्यादा कष्ट नहीं देना चाहते । वहीं दूसरी ओर महिलाएं घरेलू कामकाज के लिए मिक्सर , ग्राइंडर और वाशिंग मशीन जैसे उपकरणों का इस्तेमाल करती हैं । इन सब वजह से किसी न किसी प्रकार से दर्द झेलना पड़ता है । हमारी पीठ की इंजिनियरी जबरदस्त है , इसमें लोच है , इसके बोझा उठाने वाले बिंदु सदा सक्रिय रहते हैं । और हमारे पोस्चर को ठीक रखते हैं । परंतु अचानक झटका लगने , भारी सामान उठाने , अचानक झुकने या मुड़ने के कारण पीठ में दर्द हो सकता है ।एक बार मे एक ही काम करना चाहिए । अक्सर लोग हड़बड़ाहट में यह दोनों एक साथ कर बैठते हैं । और दर्द झेलना पड़ता है । वैसे ज्यादातर मामलों में गर्दन व पीठ का दर्द अपने आप ही मिट जाता है और कोई बड़ी समस्या नहीं बन पाता । । अपने आप रोग पहचाने : अगर आप किसी आदमकद शीशे के सामने खड़े हो कर नीचे लिखे प्रश्नों का उत्तर दें तो अपनी रीढ़ की सही हालत का अंदाजा अपने आप लगा सकते हैं : ( १ ) क्या आपके सिर का झुकाव एक ओर रहता है ? ( २ ) क्या गर्दन के बीचों - बीच बल पड़ता है ? ( ३ ) क्या एक कंधा दूसरे कंधे से ऊँचा है ? ( ४ ) क्या एक नितंब दूसरे नितंब से ऊँचा है ?( ५ ) क्या एक नितंब दूसरे नितंब की तुलना में उभरा हुआ । ( ६ ) क्या आपको अपना सिर , आगे - पीछे और दाएं - बाएँ घुमाने में कठिनाई होती है ? ( ७ ) क्या आपको आगे और पीछे की ओर मुड़ने में तकलीफ होती है ? ( ८ ) क्या आपकी खड़ी हुई मुद्रा , एक ओर को झुकी दिखाई देती है ?*
*अगर आपने इनमें से किसी एक भी प्रश्न का उत्तर ' हाँ ' में दिया है तो इसका अर्थ होगा कि आपकी रीढ़ सही आकार में नहीं है जो अलग अलग अंगों में दर्द पैदा करने की वजह बन सकती है ।*
*( १ ) सर्वाइकल क्षेत्र में दर्द*
*( अ ) सर्वाइकल स्पांडिलायसिस - चालीस साल की उम्र के बाद सर्वाइकल स्पाइन में आने वाले डिजेनेरेटिव बदलाव सवाईकल । स्पांडिलायसिस कहलाते हैं । 65 वर्ष के बाद ये बदलाव सभी व्यक्तियों में पाए जाते हैं । यही गर्दन तथा कंधों में दर्द का सबसे बड़ा कारण होता है । इन बदलावों के कारण गर्दन में दर्द हो सकता है , हिलाने में दिक्कत हो सकती है । या मांसपेशियाँ कमजोर पड़ सकती है । कभी कभी किसी एक ही व्यक्ति में एक या एक से अधिक लक्षण पाए जाते हैं । कई बार इसका संबंध व्यवसाय की प्रकृति से भी होता है , जैसे एक कार के ड्राइवर को लगातार अपनी गर्दन इधर - उधर मोड़नी पड़ती है और ऊबड़ - खाबड़ सड़कों पर सहने पड़ते हैं । इससे उसकी डिस्क के अंदरूनी*हिस्से पर चोट पहुँचती है और उसे सहारा देने वाला पदार्थ कम हो जाता है । तनाव , आरामदायक जीवन - शैली और कसरत की कमी से मांसपेशियाँ ढीली पड़ जाती हैं । और मेरुदंड को नुकसान झेलना पड़ता है । निम्न कारणों से भी गर्दन में दर्द पैदा हो सकता है : जोड़ों के क्षतिग्रस्त लिगामेंट । लिगामेंट के ज्यादा खिंचाव से गर्दन अकड़ जाती है । ऑस्टियोफाइटस भी स्नायु पर दबाव डालते हैं । कई बार यह दर्द स्नायु से फैल कर दूसरे अंगों में भी पहुँच जाता है । अक्सर मरीज गर्दन व कंधे के साथ - साथ छाती की मांसपेशियों में तकलीफ की शिकायत भी करते हैं । नस पर किस जगह से दबाव पड़ रहा है , यह जान कर*
*इलाज किया जा सकता है । इसके कारण अंगों में झनझनाहट या सुन्न होने की स्थिति भी हो सकती है । * अगर सर्वाइकल स्पांडिलायसिस गंभीर रूप ले ले तो यह पीछे की ओर जा कर मेरुदंड रज्जु पर दबाव डाल सकता है । जिससे शरीर के पूरी निचले भाग में कमजोरी या बोध की कमी हो सकती है । कभी - कभी डिस्क दो कशेरुकों के बीच से खिसक कर नाड़ी पर दबाव डालती है जिससे दर्द होने लगता है । एम . आर . आई . और सी . टी . स्केन जैसे टेस्टों से ऐसी हालत का पता लगा कर इलाज किया जा सकता है । डिस्क के आगे की ओर उभरने वाली गंभीर स्थितियों में इसे शल्य क्रिया द्वारा हटाया जा सकता है । ताकि स्नायु पर पड़ने वाला दबा कम हो जाए*
*( ब ) सिरदर्द - जब सर्वाइकल वर्टिबरे में से होकर गुजरने वाली नाड़ियाँ उत्तेजित हो जाती हैं तो गर्दन में जकड़न और शरीर के ऊपरी अंगों के सुन्न होने की शिकायत हो सकती है । यह सिर दर्द का प्रमुख कारण होता है । वैसे तो अधेड़ उम्र में सिरदर्द की ज्यादा शिकायत होती है । लेकिन आजकल बच्चों में भी यह समस्या पाई जाने लगी है । अनेक ऐसे मामले भी देखे गए हैं जहाँ युवाओं में सिर दर्द व चक्कर आने की शिकायत पाई जाती है । उनके एक्स - रे से भी कुछ पता नहीं चलता । ऐसे में रोगी को मनोरोगी मान कर मनोचिकित्सक के पास भेज दिया जाता है । वह भी रोग का कोई मानसिक कारण नहीं खोज पाता जबकि यह मेरुदंड में होने वाली उत्तेजना की वजह से होता है । कीरोप्रक्टिक पद्धति से इस रोग का इलाज में किया जा सकता है । ब्रेन ट्यूमर , अपच , मानसिक कारणों , दाँत में इंफेक्शन या दिमाग पर असर डालने वाले दूसरे रोगों के कारण भी सिरदर्द हो सकता है ।*
*( स ) चक्कर आना - सर्वाइकल क्षेत्र से निकलने वाली नाड़ियों की उत्तेजना के कारण ही चक्कर आते हैं । इसका इलाज दवाओं से किया जाए तो रक्त के प्रवाह में सुधार होता है , अस्थायी आराम मिलता है परंतु रोग जड़ से नहीं जाता ।*
*( द ) माइग्रेन : माइग्रेन में रोगी को अचानक तेज सिरदर्द का दौरा पड़ता है । उसे उल्टी करने इच्छा होती है या उल्टी आ जाती है । यह दर्द इतना तेज होता है*
*रोगी जरा सा भड़काने पर उत्तेजित हो जाता है और बाहरी दुनिया से बच कर अपने खोल में छिप जाता है । यह दौरा कुछ घंटों से लेकर कुछ दिन तक का हो सकता है । माइग्रेन का दवाओं से किया जाने वाला इलाज अधूरा और असंतोषजनक है । क्योंकि इसमें नाड़ियों की उत्तेजना शांत कराने का उपाय नहीं किया जाता जो कि इस रोग की जड़ है ।*
*( 2 ) थोरेसिक ( छाती ) क्षेत्र में दर्द होना : इंटरकोस्टल नसों पर दबाव पड़ने से छाती में तेज दर्द होता है । इसे डॉक्टरी भाषा में इंटरकोस्टल न्यूरोलाजिया ( Intercostal neuralgia ) कहते हैं । मेरुदंड रज्जु और पसलियों के बीच निकलने वाली तंत्रिकाओं में उत्तेजना की वजह से ऐसा होता ऐसी हालत में मरीजों को दर्द निवारक दवायाँ लेने की सलाह दी जाती है , जिनसे थोड़ी देर के लिए दर्द घटता है और दवा का असर मिटते ही हालत वैसी ही हो जाती है । कई बार इसे गलती से हृदय रोग मान कर उसी तरह इलाज कर दिया जाता है । कशेरुकों को सही स्थान पर बिठाने से यह दर्द ठीक हो सकता है । वैसे इस क्षेत्र से जुड़ी तकलीफें कम ही देखने में आती हैं ।*
*( ३ ) लम्बर ( कमर ) क्षेत्र में दर्द होना : कई बार हम पीठ दर्द की वजह आस्टियोआर्थराइटिस , स्लिप डिस्क या मेरुदंड को बैठाते हैं जबकि कारण कुछ और ही होता है । यह दर्द अनेक जटिल कारणों से टो सकता है क्योंकि पीठ में अनेक हड्डियाँ , लिगामेंट , मांसपेशियाँ नाडियाँ और रक्त नलिकाएँ हैं जो*सलाह भी दी जाती है । कभी - कभी गंभीर मामलों में रोगी को पैर का लकवा भी मार सकता है जिससे वह न तो पैर उठा पाता है । और न ही चल पाता है । हालांकि ऐसे मामले बहुत कम होते हैं ।*
*( ४ ) प्रोलैप्स्ड डिस्क ( prolapsed disc ) के कारण दर्द होनाः जब भी मरीजों की पीठ में असहनीय दर्द होता है तो वे इसे ' स्लिप डिस्क का नाम दे देते हैं । यह एक गलतफहमी है । डिस्क नहीं खिसकती । दबाव पड़ने या झटका लगने के कारण यह एक बिंदु पर बाहर की ओर उभर आती है । यदि आम भाषा में कहें तो यह कमजोर मांसपेशियों के कारण आगे चल कर खिसक सकती है । अचानक झटका लगने के कारण के केंद्र में भरा नरम जैली जैसा पदार्थ*अचानक झटका लगने के कारण डिस्क के केंद्र में भरा नरम जैली जैसा पदार्थ ( न्यूक्लियस पलपोसस ) बाहरी घेरे को तोड़ कर बाहर आ जाता है जिससे तंत्रिका तंत्र पर दबाव पड़ने लगता है । और तेज दर्द होने लगता है । डिस्क एक नरम और भंगुर पदार्थ है जो शरीर में शॉक एब्जावर ( shock absorber ) का काम करती है । चौबीस हड्डियों के ढांचे में डिस्क के 23 सैट होते हैं । केवल भारी सामान उठाने से ही यह तकलीफ नहीं होती । कभी - कभी छोटी सी वजह भी प्रोलैप्स डिस्क का कारण बन जाती है । जमीन से हल्का सा भार उठान , कार से सामान उतारने या तेजी से व्यायाम करने से भी डिस्क में दरार पड़ सकती है । कई बार सट किया लम्बे समय तक ( वर्षों तक ) चल * अगर दर्द बना रहता है ।*यहाँ तक कि एक स्वस्थ व्यक्ति भी इस तरह के दर्द का शिकार हो सकता है । इस समय उसे डॉक्टर , कीरोप्रेक्टर या फिजियोथैरेपिस्ट की मदद लेनी चाहिए ।*
*( ५ ) शियाटिका : अधेड़ उम्र में अक्सर जाँघों व टाँगों में सनसनाहट महसूस होती है । इसे ' शियाटिका ' कहते हैं । शियाटिका इस बात का लक्षण है । कि शरीर के किसी अंग के ठीक काम न करने या चोट लगने की वजह से तंत्रिका तंत्र पर दबाव पड़ रहा है या उत्तेजना पैदा हो रही है । शियाटिका स्नायु शरीर में सबसे लंबे और बड़े होते है जो कि नितंबों की दाईं ओर से ले कर , जाँघों के पीछे , पाँवों तक फैले होते हैं । शियाटिका का असर इसकी लम्बाई पर निर्भर करता है वैसे ज्यादातर मामलों में यह जाँघ के पीछे दर्द जलन या झनझनाहट के रूप में महसूस होता है । यह पीठ - दर्द के साथ भी उभर सकता है । । जब कोई व्यक्ति लगातार झुक कर काम करता है तो हालत और भी बदतर हो जाती है । यहाँ तक कि खाँसने और छींकने से भी तेज दर्द होता है । गठिया , चोट लगना , कूल्हे का कोई रोग , गर्भधारण के दौरान दबाव पड़ना , सिफलिस , सर्दी लगना व मदिरापान आदि शियाटिका के मुख्य कारण हो सकते हैं । शियाटिका स्नायु पर दबाव पड़ने या चोट लगने से जलन महसूस हो सकती है ।*
*इन सभी रोगों का इलाज कैसे हो ?*
*इतिहास : किसी भी रोग के सफल इलाज के लिए मरीज की केस हिस्टरी पता होना बहुत जरूरी है । यह जानना जरूरी होता के दर्द*कहाँ व किस हिस्से में है , कितने समय से है , दर्द गिरने की वजह से हुआ या किसी दुर्घटना की वजह से आदि । कई बार वजन बढ़ने या किसी तरह के संक्रमण ( इंफेक्शन ) के कारण भी दर्द हो सकता है । जांच - पड़ताल : डॉक्टर को देखना चाहिए कि रोगी दोनों ओर ठीक तरह से गर्दन हिला रहा है या नहीं । उसके ऊपरी अंगों में किसी तरह की जकड़न तो नहीं हैं । इस तरह पता चल जाएगा कि दर्द किस हिस्से में है ।*
*रीढ़ की हड्डी में दर्द का इलाज : दर्द किस हिस्से में है , कितने समय से हो रहा है , मांसपेशियों की दशा और लोच पर विचार करने के बाद ही इलाज शुरू किया*जाता है । कुछ इलाज नीचे बताए गए हैं ।*
*( १ ) कमर दर्द के लिए एक्यूपंचर एक बेजोड़ इलाज है । इस पद्धति मे मांसपेशियों को आराम देने के लिए कई तरह की । सुईयँ इस्तेमाल की जाती हैं । छोटे बच्चों के लिए एक्यूपंचर इस तरह होता है , जिससे उन्हें दर्द का एहसास न हो*
*( २ ) कई बार लोकल एनस्थीसिया जाइलोकेन ( 1 % ) देने से भी मांसपेशियों को आराम मिल जाता है । वैसे बिगड़े हुए मामलों में ही इसका प्रयोग होता है इस पद्धति को ' न्यूरल थैरेपी कहते है ।*
*( ३ ) गुनगुने आयुर्वेदिक तेल से की गई मालिश से भी शरीर खुलता है और दर्द भी नस्ट होता है*
*( ४ ) कीरोप्रेक्टर भी समस्या को हल कर सकता है बशर्ते अनाड़ी हाथों से न किया जाए । यह पद्धति ‘ आस्टियोपैथी कहलाती है ।*
*( ५ ) ओजोन थैरेपी में ओजोन का इंजेक्शन दिया जाता है । बहुत गंभीर मामलों में जब रोगी गर्दन हिलाने की हालत में न हो और कंधे की मांसपेशियाँ अकड़ कर दर्द करने लगे तो एक्यूपंचर , गर्म तेल की मालिश , लोकल एनस्थीसया और ओजोन थैरेपी को मिला कर इलाज करना पड़ता है । जब एक - दो दिन में मांसपेशियों को आराम आ जाए तो सभी जोड़ों को सही जगह आराम से बिठाना चाहिए । गलत तरीके से इलाज करने पर परेशानी बढ़ भी सकती है । रोगी को इलाज के लिए कितनी बार आना होगा यह उसके दर्द पर निर्भर करता है*इसके बाद रोगी को दोबारा डॉक्टर के पास दिखाने अवश्य जाना चाहिए और लगातार एक - दो सप्ताह तक गर्म आयुर्वेदिक तेल से हल्की मालिश करनी चाहिए ।*
* *रीढ़ की हड्डी में दर्द के घरेलू उपचार :-*
*1 - सोंठ - सोंठ का चूर्ण या अदरक का रस , 1 चम्मच नारियल के तेल में पकाकर फिर इसे ठंडा करके दर्द कमर पर लगभग 15 मिनट तक मालिश करें । इससे रीढ़ की हड्डी में दर्द , कमर दर्द में आराम मिलता है ।*
*सहजन - सहजन की फलियों की सब्जी खाने से रीढ़ की हड्डी में दर्द में फायदा होता है ।*
*3 - मेथी - मेथी दाने के लड्डू बनाकर 3 हफ्ते तक सुबह - शाम सेवन करने और मेथी के तेल को दर्द वाले अंग पर मलते रहने से पूर्ण आराम मिलता है ।*
*4 - अजवाइन - अजवाइन को 1 पोटली में । रखकर उसे तवे पर गर्म करें । फिर इस पोटली से कमर को सेंकें इससे आराम होगा*
*5 - छुहारा - सुबह - शाम 1 - 1 छुहारा खायें । इसके सेवन से रीढ़ की हड्डी में दर्द व कमर दर्द मिट जाता है ।*
*6 - असंगध - असगंध और सोंठ बालर मात्रा में लेकर इनका चूर्ण बना लें । इसमें आ चम्मच चूर्ण सुबह - शाम पानी के साथ सेवन से*
*7 - एलोवेरा - 10 ग्राम ग्वारपाठे का गूदा , 4 लौंग , 50 ग्राम नागौरी असगंध , 50 ग्राम सोंठ , इन सबको पीसकर चटनी बना लें । 4 ग्राम चटनी रोजाना सुबह सेवन करें । इससे कमर दर्द में आराम होगा ।*
*8 - गुग्गुल , गिलोय , हरड़ के बक्कल , बहेड़े के छिलके और गुठली सहित सूखे आंवले सबको 50 - 50 ग्राम लेकर चूर्ण बना लें । इस चूर्ण में से आधा चम्मच चूर्ण 1 चम्मच एरण्ड के तेल के साथ रोजाना सेवन करें । लगभग 20 दिन तक इस औषधि को लेने से रीढ़ हड्डी में दर्द व कमर दर्द सही हो जाता है ।*
*9 चुना- पथरी की शिकायत न हो तो इसके सेवन से वात व कफ के लगभग 70 रोगों का नाश होता है स्वस्थ इंसान एक ग्राम अस्वस्थ इंसान 2 ग्राम दूध छोड़कर किसी भी तरल पेय के साथ शाम से पहले*
*
*निरोगी रहने हेतु महामन्त्र*
*मन्त्र 1 :-*
*• भोजन व पानी के सेवन प्राकृतिक नियमानुसार करें*
*• रिफाइन्ड नमक,रिफाइन्ड तेल,रिफाइन्ड शक्कर (चीनी) व रिफाइन्ड आटा ( मैदा ) का सेवन न करें*
*• विकारों को पनपने न दें (काम,क्रोध, लोभ,मोह,इर्ष्या,)*
*• वेगो को न रोकें ( मल,मुत्र,प्यास,जंभाई, हंसी,अश्रु,वीर्य,अपानवायु, भूख,छींक,डकार,वमन,नींद,)*
*• एल्मुनियम बर्तन का उपयोग न करें ( मिट्टी के सर्वोत्तम)*
*• मोटे अनाज व छिलके वाली दालों का अत्यद्धिक सेवन करें*
*• भगवान में श्रद्धा व विश्वास रखें*
*मन्त्र 2 :-*
*• पथ्य भोजन ही करें ( जंक फूड न खाएं)*
*• भोजन को पचने दें ( भोजन करते समय पानी न पीयें एक या दो घुट भोजन के बाद जरूर पिये व डेढ़ घण्टे बाद पानी जरूर पिये)*
*• सुबह उठेते ही 2 से 3 गिलास गुनगुने पानी का सेवन कर शौच क्रिया को जाये*
*• ठंडा पानी बर्फ के पानी का सेवन न करें*
*• पानी हमेशा बैठ कर घुट घुट कर पिये*
*• बार बार भोजन न करें आर्थत एक भोजन पूणतः पचने के बाद ही दूसरा भोजन करें*
*भाई राजीव दीक्षित जी के सपने स्वस्थ भारत समृद्ध भारत और स्वदेशी भारत स्वावलंबी भारत स्वाभिमानी भारत के निर्माण में एक पहल*
*स्वदेशीमय भारत ही हमारा अंतिम लक्ष्य है :- भाई राजीव दीक्षित जी*
*मैं भारत को भारतीयता के मान्यता के आधार पर फिर से खड़ा करना चाहता हूँ उस काम मे लगा हुआ हूँ*
*आपका अनुज गोविन्द शरण प्रसाद वन्देमातरम जय हिंद*
*🦁 हिन्दू गर्जना ✊🚩*
_(२७ पो :०३)_
📚📚📚📚📚📚📚📚📚📚
*समस्त संसार हमारी महान मातृभूमि (भारत) का ऋणी है। किसी भी देश को ले लीजिए, इस जगत में एक भी जाति ऐसी नही है जिसका संसार उतना ऋणी हो, जितना की यहां के धैर्यशील और विनम्र हिन्दुओ का है!*
*स्वामी विवेकानन्द*
*………………ॐ………………*
*हिन्दू, पढ़ा हो या अनपढ़, गौतम बुद्ध का अपमान नहीं करता, गालियाँ नहीं निकालता, मूर्तियाँ नहीं तोड़ता। फिर ये भीमटे बौद्ध हिन्दू देवी देवताओं के लिए अपमानजनक शब्दों का प्रयोग क्यों करते हैं? उन्हें पता होना चाहिए की बामियान के विशाल बुद्ध मूर्ति को तालिबानी मुसलमानों ने खंडित किया ✍🏻*
*………………ॐ………………*
*हिंदुत्व दरिया है,* *मैं उसी का एक मोती हूँ..* *यह राम नाम का दीपक है,* *मैं उसी का ज्योति हूँ...* *राम का वरदान हूँ,* *अनंत विष्णु का गुणगान हूँ..* *वेदों का वर्णन हूँ, पुराण हूँ,* *कुरूक्षेत्र की गीता का ज्ञान हूँ..* *राम का भक्त हूँ,* *शत्रु का महाकाल हूँ.* *हाँ, मैं हिंदू हूँ🚩*
*जय हिंदुत्व.*
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👍देश को बचाना है तो देश के गद्दारों को जानो👍
विचार जरूर करें तथा सत्य को अब स्वीकार करें!
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👍जाति का मतलब क्या है ? इसे पहले जानो-- 👍
जाति का मतलब समाज द्वारा दिया गया रोजगार या दायित्व या सौंपा गया काम था महाभारत युद्ध एक विश्व युद्ध था उस युद्ध में ज्यादातर धर्मात्मा राजा व भारत की दोनों पक्षों के सैनिक भी मार दिये गये थे इस तरह से 5000 वर्ष पहले महाभारत के युद्ध से तबाह हुये भारत में अराजकता को देखकर स्वार्थी लोगों ने मौका पाकर अत्यचारियों ने सनातन संस्कृति को रौंदा तथा सनातन समाज के हिन्दुओं के पुस्तकालय और कई महाविद्यालय जलाये गये ग्रन्थों व पुस्तकों में सत्ता के बल पर गलत मिलावटी बातें लिखी गई जिसके बल पर सनातन समाज के हिन्दुओं को बांटा जा सके और इसीलिए धीरे धीरे नये नये परमात्मा बनाकर नये नये सामाज के धर्म इस्लाम और इसाइयों ने भी अत्याचार करके सनातन समाज की सही सांस्कृतिक विरासत का खात्मा कराया अब सनातन समाज के हिन्दुओं की संस्कृति की विरासत को झूठे इतिहास के बल पर व साबूत गढ़कर जातिवादी और झूठे धर्म वाले पतन कर रहे हैं। सोचो आज हमारे बुजुर्गों का योग व आयुर्वेदिक दवाओं को विश्व स्वीकार कर रहा है जागो सनातन समाज के हिन्दुओं जागो एक हो जाओ और अपनी संस्कृति विरासत को बचा लो तथा अपने देश को बचा लो !
हे सनातन समाज के हिन्दुओं बचना चाहते हो तो अब अपने बचाव में निर्णायक युद्ध लड़ो !
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अब * चीन * ने पाकिस्तान * का समर्थन किया है और हमारे देश में ब्रह्मपुत्र नदी का पानी पीना बंद कर दिया है * अब एक महीने में नवरात्रि और दिवाली आएगी। चीन 3,000 मिलियन डॉलर की आतिशबाजी बेचता है * किसी को भी नहीं खरीदना चाहिए !!! * विशेष चेतावनी * आज चीनी सामान पर * मेड इन चाइना * नहीं लिखा है। अब लिखा है * PRC * * * * * पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना * लोगों को संदेश दिया कि वे चीन में बनी चीजें न खरीदें। आपको यह संदेश 3 लोगों को भेजना चाहिए। 1 व्यक्ति से 3 लोग ।। ये 3 लोग अन्य 3 लोगों को संदेश देते हैं 3 × 3 = 9 ९ × ३ = २ 27 27 × 3 = 81 81 × 3 = 243 243 × 3 = 729 729 × 3 = 2187 2187 × 3 = 6561 6561 × 3 = 19683 19683 × 3 = 59049 59049 × 3 = 177147 177147 × 3 = 531441 531441 × 3 = 1594323 1594323 × 3 = 4782969 4782969 × 3 = 14348907 14348907 × 3 = 43046721 43046721 × 3 = 129140163 129140163 × 3 = 387420489 387420489 × 3 = 1,162,261,467 अगर आप शुरू करते हैं, तो पूरा देश जुड़ जाएगा ....।
आप से हाथ जोड़ कर निवेदन है
कम से कम 5 लोगो तक यह संदेश भेजे
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विश्व में अल्बर्ट आइंस्टीन की General Theory of Relativity (GTR) की सौंवी वर्षगांठ मनाई जा चुकी. इस सन्दर्भ में श्रीमान् सुधीन्द्र कुलकर्णी जी ने महाराष्ट्र सरकार को बिज़नेस स्टैण्डर्ड अखबार के हवाले से पत्र लिखा की मुंबई समेत पूरा राज्य आइंस्टीन की GTR के सौ वर्ष पूरे होने पर ‘जश्न’ मनाये और मुंबई की सड़क का नाम आइंस्टीन के नाम पर कर दिया जाए. जगदीश चन्द्र बसु की जन्मतिथि 30 नवंबर को Observer Research Foundation ने टाटा इंस्टिट्यूट के मूर्धन्य भौतिकशास्त्री प्रो० स्पेंटा वाडिया साहब को बुला कर आइंस्टीन की थ्योरी ऑफ जनरल रिलेटीविटी पर लेक्चर का आयोजन भी किया. लेकिन ये विद्वान् लोग उन्हें भूल गए जिनकी बदौलत इस देश में GTR जैसी जटिल थ्योरी पर शोध होता है और आज भारत सैद्धांतिक भौतिकी (Theoretical Physics) के क्षेत्र में विश्व में अग्रणी है. मुद्दा ये है की आप अपनी पहचान उत्सव के सापेक्ष रखते हैं या उपलब्धियों के; बाकि आइंस्टीन का नाम हर वो व्यक्ति जानता है जो वैज्ञानिक दृष्टिकोण के निरपेक्ष साम-दाम की कल्पना में जीता है. मैं आपको तीन महान भारतीय वैज्ञानिकों के बारे में बताना चाहता हूँ जिनमें से एक मराठी थे, एक गुजराती और एक बंगाली.
सबसे पहले इस थ्योरी का एक अति संक्षिप्त परिचय.
नवम्बर सन 1915 में आइंस्टीन ने ‘सापेक्षता का सामान्य सिद्धांत’ प्रतिपादित किया था. इससे दस वर्ष पूर्व 1905 में आइंस्टीन ने ‘सापेक्षता का विशिष्ट सिद्धांत’ (Special Theory of Relativity) भी दिया था जिस पर आगे चलकर परमाणु ऊर्जा संयंत्र और अस्त्र दोनों बने. हिंदी में General शब्द का अनुवाद ‘सामान्य’ कर दिया जाता है लेकिन इन दोनों ही सिद्धांतों ने ब्रह्माण्ड और पदार्थ को देखने की दुनिया की सामान्य समझ को पूरी तरह से बदल दिया था. हम जिस ब्रह्माण्ड को अपरिमित समझते थे GTR ने उस सोच को बदल दिया और ऐसे समीकरण निकले जिनसे पता चला ब्रह्माण्ड की भी सीमांए हैं. आइंस्टीन ने गुरुत्व (Gravity) को मात्र खींचने-धकेलने वाला एक ‘बल’ नहीं बल्कि वृहद् ज्यामितीय संरचना के रूप में समझाया और प्रमेयों के माध्यम से सिद्ध किया कि जैसे एक फैले हुए चादर पर भारी गेंद डालने से वो सिकुड़ जाता है वैसे ही पदार्थ अपने द्रव्यमान से दिक्-काल (Space-Time) को विकृत करता है. यही ज्यामिति गुरुत्वाकर्षण के लिए जिम्मेदार है. इसी सिद्धांत की बदौलत हमनें विशाल द्रव्यमान वाले तारों, मंदाकिनियों का अध्ययन भी किया और आज का ‘मॉडर्न कुतुबनुमा’ यानि GPS भी बनाया. हमें ब्लैक होल, क्वेसर, पल्सर जैसी विचित्र वस्तुएं भी ज्ञात हुईं और हम ये भी जान पाए की गुरुत्वाकर्षण बल ‘तरंगों’ के रूप में विद्यमान है जिन्हें Gravity Waves कहा जाता है. कालांतर में ‘ब्रह्मान्डिकी’ या Cosmology एक विषय के रूप में परिणत हुआ जिसमे सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को एक entity मान कर अध्ययन किया जाता है. ये विषय बहुत विस्तृत और जटिल है. बहुत सारी बातें हैं इस पर चर्चा फिर कभी.
भारतीय वैज्ञानिकों में खगोलशास्त्री प्रो० जयंत विष्णु नार्लीकर (JVN) एक बड़ा नाम हैं. दुःख की बात है की उनके पिताजी प्रो० विष्णु वासुदेव नार्लीकर (VVN) को बहुत कम लोग जानते हैं. जैसे एक बार हरिवंशराय बच्चन को क्षोभ हुआ था जब लोग उन्हें इसलिए जानने लगे थे क्योंकि उनके सुपुत्र अमिताभ स्टार बन गए थे. खैर. प्रो० वी० वी० नार्लीकर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में गणित के प्रोफेसर थे. उनका जन्म कोल्हापुर, महाराष्ट्र में 1908 में हुआ था और उच्च शिक्षा कैंब्रिज में हुई थी. कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में उन्होंने Sir Arthur Eddington के सानिध्य में काम किया था. आप जानते हैं Eddington कौन थे? जब आइंस्टीन ने थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी पर पेपर प्रकाशित किया था तो कहा जाता है कि उस समय विश्व में इस थ्योरी को समझने वाले कुल ‘तीन’ लोगों में से एक Eddington थे! काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक महाप्राण महामना मालवीयजी ने Eddington को पत्र लिखा और उनके प्रयासों के फलस्वरूप 1932 में VVN जब केवल 24 वर्ष के थे और पीएचडी पूरी भी नहीं की थी, तब उन्हें गणित विभाग का अध्यक्ष बनाया गया. अब ये जरुरी नहीं है की कोई वैज्ञानिक तभी कहलाये जब वो कोई चमत्कारिक खोज करने में सफल हो या बड़े पुरस्कार से सम्मानित किया जाए. एक विद्वान् की विद्वत्ता या scholarship इस पर निर्भर करती है की उसकी विषय पर कितनी गहरी समझ है. थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी की इतनी गहरी समझ उस समय भारत में भी गिने चुने लोगों को ही थी. प्रो० VVN ने बनारस में इस विषय पर एक ‘मत’ स्थापित किया और शांत स्वभाव वाले इस अध्यापक ने ऐसे छात्रों को पीएचडी कराई जिन्होंने आगे चल कर बड़ा नाम कमाया. दोनों सुपुत्र JVN और उनके भाई अनंत नार्लीकर भी इसके अपवाद नहीं जिन्हें VVN की अकादमिक छत्रछाया मिली हालाँकि इन्होंने पीएचडी देश के बाहर से की थी. प्रो० विष्णु वासुदेव नार्लीकर का देहांत 1 अप्रैल 1991 को हुआ. उन्हें “Grandpa of Relativity in India” कहा जाता है.
दूसरा नाम है गुजरात के प्रो० प्रह्लाद चुन्नीलाल वैद्य. जन्म 23 मार्च 1918. इनके नाम से रिलेटिविटी में एक सूत्र प्रसिद्ध है जिसे कहा जाता है ‘Vaidya Metric’. मुंबई विश्वविद्यालय से MSc करने के बाद श्री वैद्य 1942 में प्रो० VVN के सानिध्य में काम करने के लिए काशी हिन्दू विश्वविद्यालय चले आये. आप नौकरी के उद्देश्य से या पीएचडी के लिए नहीं आये थे. जेब में कुछ पैसे और एक छः महीने की बिटिया को गोद में ले कर सिर्फ थ्योरी ऑफ़ जनरल रिलेटिविटी पर VVN के साथ काम करने आये थे. ऐसा समर्पण आपने कहीं देखा सुना है क्या? वे बनारस में सिर्फ दस महीने रहे, गंगाजल से बना भोजन किया और इसी अवधि में उन्होंने कुछ ऐसा खोज निकाला जो Vaidya Metric के रूप में अमर हो गया. इस सूत्र का वास्तविक महत्व और प्रत्यक्ष प्रमाण तब सामने आया जब साठ के दशक में अन्तरिक्ष में क्वेसर, पल्सर जैसी विचित्र वस्तुएं पता चलीं. इस सूत्र के महत्व को समझने के लिये एक विशाल तारे की कल्पना करें. एक बड़ा तारा निश्चित ही अपने समीप दिक्-काल की विमाओं को विकृत कर ज्यामिति बदल देगा और यदि उसमे से Radiation या तरंगे भी निकल रही हों तो ऐसी स्थिति में गुरुत्व कैसे काmम करेगा इसका समाधान इस सूत्र में है. बनारस से ‘आज’ नाम का अखबार आज भी निकलता है. इसी अखबार में गाँधी के आन्दोलन की खबर पढ़ते हुए श्री वैद्य के दिमाग में ये आईडिया आया. श्री वैद्य ने मुंबई के टाटा इंस्टिट्यूट में भाभा के साथ भी काम किया. कालांतर में पीएचडी भी की, गुजरात विश्वविद्यालय में प्रोफेसर भी रहे लेकिन तब तक वो प्रसिद्ध हो चुके थे. उन्होंने गुजरात में ‘गुजरात गणित मंडल’ नामक संस्था की स्थापना की और जवाहरलाल के हाथों उद्घाटित एक ऐसे विद्यालय में भी पढ़ाया जिसकी छत तक नहीं थी. एक अध्यापक कैसा होना चाहिये इसके बारे में श्री वैद्य एक डाक्यूमेंट्री में जगदीश चन्द्र बसु के Law of Teacher Education को याद करते हैं और बताते हैं की प्रो० बसु कहते थे की एक अध्यापक से सारी पुस्तकें छीन लो यदि फिर भी वह पढ़ाने लायक है तब वो अध्यापक है. दूसरा ये की एक अध्यापक को छात्र के सामने खुद एक रोल मॉडल बन कर दिखाना चाहिये ताकि वो छात्र अपने अध्यापक की नकल कर सके. अपने गुरु प्रो० विष्णु वासुदेव नार्लीकर को याद करते हुए प्रो० वैद्य ने लिखा है की जब Vaidya Metric पर पेपर छपा तो प्रो० नार्लीकर ने उस पेपर में सिर्फ वैद्य का नाम छपवाया क्योंकि सारी मेहनत वैद्य की थी. वो चाहते तो First author में अपना नाम दे सकते थे लेकिन उन्होंने वैद्य को पूरा श्रेय दिया. प्रो० प्रह्लाद चुन्नीलाल वैद्य और प्रो० नार्लीकर ने भारत में Indian Association for General Relativity and Gravitation (IAGRG) की स्थापना की. प्रो० वैद्य मार्च 2010 में दुनिया से चले गए.
तीसरी विभूति का नाम है प्रो० अमल कुमार रायचौधुरी. उनके सहकर्मी और छात्र उन्हें प्यार से AKR या अमल बाबू बुलाते थे. आपका जन्म 14 सितम्बर 1923 को हुआ था. प्रो० रायचौधुरी के नाम से Raychaudhuri Equation प्रसिद्ध है. इस समीकरण को हिंदी में समझा पाना मेरे लिए संभव नहीं. लेकिन इसका महत्त्व बता सकता हूँ. आप जानते हैं की कैम्ब्रिज के प्रो० स्टीफेन हॉकिंग को आइंस्टीन के बाद दुनिया का सबसे महान वैज्ञानिक माना जाता है. ऑक्सफ़ोर्ड के प्रो० रॉजर पेनरोस और हॉकिंग दोनों ने कुछ प्रमेय सिद्ध किये थे जिनसे हमें ये पता चलता है की ब्रह्माण्ड का जन्म एक ‘व्यष्टि-बीज’ से हुआ था. वह बीज अत्यंत सघन और गर्म था. इन प्रमेयों को Penrose-Hawking Singularity Theorems कहा जाता है. इन प्रमेयों को सिद्ध करने के लिए Raychaudhuri Equation की जरुरत पड़ती है. रायचौधुरी समीकरण के बिना ये प्रमेय सिद्ध नहीं किये जा सकते थे. कुछ विद्वानों का ये भी मानना है की अगर प्रो० रायचौधुरी को इंग्लैंड-अमरीका में उन्नत गणितीय उपकरण सीखने का मौका मिलता तो वो उन प्रमेयों को भी खोज लेते जिनकी बदौलत हॉकिंग को इतनी प्रसिद्धि मिली. लेकिन दुर्भाग्य से उन्हें ऐसा माहौल नहीं मिला. एम० एस० सी० करने के बाद उन्हें Indian Association for Cultivation of Science कलकत्ता में शोध की नौकरी मिल गई. उनसे कहा गया की प्रायोगिक भौतिकी (Experimental Physics) में शोध की नौकरी बचा के रखने लिए उन्हें सिर्फ दो पेपर प्रकाशित करने होंगे इससे ज्यादा काम नहीं है. लेकिन प्रो० रायचौधुरी को सैद्धांतिक भौतिकी में रूचि थी. उन्होंने अपना पठन-पाठन स्वयं चुपचाप जारी रखा और विपरीत परिस्थितियों में 1954 में रायचौधुरी समीकरण की खोज हुई. रायचौधुरी समीकरण बताता है की ‘व्यष्टि-बीज’ अथवा Singularity अव्यश्यम्भावी है. इसका पता भी तब चला जब अमरीका के प्रो० John Archibald Wheeler ने इसका संज्ञान लिया और 1959 में रायचौधुरी ने डी० एस० सी० डिग्री के लिए थीसिस सबमिट कर दी. सन 2005 में अमल बाबू भी दुनिया से चले गए और अपने पीछे सैकड़ों छात्र छोड़ गए जो उन्हें याद करते हैं.
मेरा अनुरोध है की इस पोस्ट को पढ़ने के बाद आप अपने बच्चों को बताएं क्योंकि आपके बच्चे आइंस्टीन का नाम जरुर सुनेंगे लेकिन रायचौधुरी, नार्लीकर और वैद्य का नाम शायद ही सुनें.
धन्यवाद.
✍🏼
यशार्क पांडेय
#उत्पीड़न_का_प्रपंच :
जो लोग मनुस्मृति के हवाले से जाति के नाम पर राजनैतिक खेल खेल रहे हैं उनको नश्लवादी अंग्रेज ईसाइयों की सच्चाई समझनी चाहिए।
1807 में दक्षिण भारत का सर्वे करने के बाद उसने हिन्दू समाज को 122 कास्ट/ ट्रेड में वर्णित किया। जाति का अर्थ था मैन्युफैक्चरिंग या ट्रेडिंग कम्युनिटी।
जीवंत शिल्प और वाणिज्य के समय भारत मे जाति एक शक्तिशाली सामाजिक ढांचा था, जिसमे हर जाति या समुदाय के स्वयं के विधान थे, और उनके पालन करवाने हेतु उनके स्वयं का समर्थवान सिस्टम था जिसको आज आप #खाप_पंचायत का एक विकसित स्वरूप समझ सकते हैं। वे किसी धार्मिक या राजनैतिक संस्था से अनुशासित न होकर स्वयं शासित समुदाय थे। इस बात को फ्रांसिस हैमिलटन बुचनान भी लिखता है अपनी पुस्तक में। बुचनान की पुस्तक तीन वॉल्यूम में है लगभग 1450 पेज में।
उसने किसी भी अछूत जाति या ऐसी किसी प्रथा के बारे में लिखा नही है।
क्यों ?
वह अंधा था?
नही अभी ईसाइयो का पूरा ध्यान भारत के धन और वैभव को लूटना था, यहां के साइंस और टेक्नोलॉजी के मॉडल को चुराकर अपने देश मे मैन्युफैक्चरिंग शुरू करना था जिसको वे औद्योगिक क्रांति का नाम देंगे।
वही भारत के मैन्युफैक्चरिंग और ट्रेड को नष्ट करेंगे।
फिर अपने अपराधों पर पर्दा डालने तथा राजनैतिक और धर्म परिवर्तन का आधार गढ़ने हेतु फेक न्यूज़ की रचना करेंगे।
जाति के उस स्वरूप के जिंदा रहते उसमे ईसाइयत का प्रवेश संभव नही था। इसीलिये मैक्समुलर लिखता है -" जाति धर्म परिवर्तन में सबसे बड़ी बाधा है, लेकिन सम्भव है कि कभी यह पूरे समुदाय के धर्म परिवर्तन हेतु एक शक्तिशाली इंजन का काम करे"।
इसलिए उन्होंने कास्ट को टारगेट करके कास्ट को एक अमानवीय प्रथा घोसित करना शुरू किया।
पहले उन्होंने शिल्पकार और वाणिज्यिक समुदायों को आर्थिक रूप से विनष्ट किया फिर आने वाले समयकाल में अनेको कारणों से चार वर्ण वाले हिन्दू समाज को 2000 से अधिक जातियों में वैधानिक रूप से चिन्हित किया।
मेरी पुस्तक में आपको यह देखने को मिलेगा कि किस तरह ईसाई मिशनरी एम ए शेररिंग ( 1872) ने कास्ट के लिए ब्रमांहणो को गन्दी गन्दी गालियां दी है। वह काम आज भी जारी है। लेकिन पूरी स्किप्ट उसी की लिखी हुई है। भाषा बदल सकती है लेकिन स्क्रिप्ट वही है।
1901 के जनगणना कमिश्नर रिसले और मैक्समुलर में अच्छी सांठ गांठ थी।
1901 में रिसले ने मैक्समुलर के #आर्यन_अफवाह से निर्मित तथाकथित सवर्णो को ऊंची जाति घोसित किया बाकी अन्य समुदायों को नीची जाति।
2378 जातियां।
एक आधुनिक लेखक निकोलस बी डर्क लिखता है:
“ रिसले के द्वारा तैयार किए गए सिस्टम की बुद्धिमत्ता का सबसे बड़ा प्रमाण इस बात से सिद्ध होता है कि इसके कारण बहुत लोगों ने बहुत सारे मुकदमों और प्रतिनिधित्व (memorials) अङ्ग्रेज़ी सरकार के पास भेजे । इसके पूर्व भी जनगणना अधिकारियों के पास शिकायते दर्ज हुयी थे , लेकिन रिसले द्वारा ये घोषणा होने के बाद कि जनगणना को सामाजिक तरजीह का आधार माना जाएगा ; जनगणना को एक ऐसा अभूतपूर्व राजनैतिक हनथियार बना दिया”।
(निकोलस बी दर्क्स ; कास्ट ऑफ minds पेज- 221 )
“1911 के जनगणना कमिश्नर ने अपनी रिपोर्ट इस शिकायत के साथ शुरुवात की –‘ जनगणना की किसी भी अन्य मुद्दे ने इतनी उत्तेजना पैदा नहीं किया है जितना कि कास्ट की वापसी ने। बंगाल के लोगों को ऐसा लगता है कि जातिगत जनगणना उस कास्ट के लोगों की संख्या जानने के लिए नहीं बल्कि उनको उनकी सामाजिक हैसियत बताने के लिए की जा रही है ....लोगों की इस भावना का कारण पिछली जनगणना रिपोर्ट मे लोगों की सामाजिक हैसियत तय किए जाने के कारण है’।
कमिश्नर ने बताया कि विभिन्न कास्ट संस्थाओं से सैकड़ो मुकदमे दाखिल किए गए हैं, कि उनका वजन ही यदि तौला जाय तो डेढ़ मोन्द (120 पाउंड ) निकलेगा, जिनकी मांग है कि उनका नामकरण बदला जाय और सामाजिक तरजीह मे उनको ऊपर रखा जाय, और उनको तीन द्विज वर्ण मे रखा जाय । शेखर उपद्ध्याय ने नोट किया –‘ लोकल स्तर पर इन नीची (घोसित) जातियाँ का आंदोलन कभी कभी ऊंची जातियों के खिलाफ दुश्मनी पैदा कर रहा है, और कभी कभी नीची जातियों के हरकतों से ऊंची जतियों मे गुस्सा और विरोध देखने को मिल रहा है ?”
(निकोलस बी दर्क्स ; कास्ट ऑफ minds पेज- 223 )
1921 और 1931 मे भी जातिगत जनगणना होते है लेकिन 1941 मे जातिगत जनगणना बंद कर दी जाते है उसका कारण बताया गया कि दूसरे विश्व युद्ध के कारण जनगणना अधिकारियों की कमी आ गयी थी।
लेकिन शेखर उपदध्याय का नोट इस बात को प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त है कि भारत मे 1857 के बाद हिंदुओं द्वारा उठ रहे विरोध के खिलाफ उनको बांटने की कूटनीति मे अंग्रेज़ सफल हो गए । हिंदुओं को एक दूसरे के सम्मुख खडा करके वे अपने विरोध खड़े हो रहे जन आंदोलन को खत्म करने की कूटनीतिक काट तैयार करने मे सफल हो रहे थे । अब उनको अपना एक नायक चुनना था जो मैकाले की शिक्षा नीति से निकला हुआ शक्ल से भारतीय परंतु अक्ल से अंग्रेज़ हो या उनकी शाजिश को भारत के लोगों की आकांक्षा के रूप प्रस्तुत करने को उद्धत हो। और आने वाले दिनों मे वे उसे खोज भी लेंगे।
पहला काम लेकिन ये होगा कि 1906 मे मुस्लिम लीग के नाम पर एक सहयोगी पार्टी तुरंत खोज लिया जाय ।
ब्रिटिश दस्युयों के विरुद्ध 1857 में मुश्लमान और हिन्दू एक साथ लड़े थे।
50 वर्षो में वे हिन्दू और मुसलमानों को आमने सामने खड़ा करने में सफल रहे। नीति यही थी कि एक समुदाय को सरकारी संरक्षण देकर दूसरे समुदाय को चिढाना और प्रताड़ित करना।
अगले 20 - 25 वर्षो में हिंदुओं को बांटने की योजना बनाएंगे और जनगणना को हन्थियार की तरह प्रयुक्त करते हुए विकृत इतिहास की मदद से हिंदुओं को बांटेंगे और उनके नायक चुनेंगे जिनको सरकारी प्रश्रय देकर स्थापित नायक बनाया जाएगा।
इनके ऐतिहासिक नायक भी चुने जाएंगे #एकलव्य_और_शम्बूक के नाम से।
और वर्तमान नायक भी।
वे शक्ल से भारतीय और अक्ल से अंग्रेज होंगे।
"एलियंस एंड स्टूपिड प्रोटागोनिस्ट" - मैकाले के शब्दों में।
साधो यह मुर्दों का देश।
#एकलव्य_और_शम्बूक का भारतीय इतिहास में औचित्य:
क्यों इन हजारों वर्ष पूर्व के चरित्रों को पिछले 100 वर्षों में हिन्दुओ के एक वर्ग द्वारा दूसरे वर्ग के उत्पीड़न के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया गया?
किसने किया और क्यों किया ?
मैंने एक पोस्ट लिखी थी कि त्रेता और द्वापर के इन चरित्रों का ब्रिटिश दस्युवों ने, हिंदुओं का हिंदुओं के द्वारा ही उत्पीड़न के एक प्रतीक के रूप में उपयोग क्यों किया?
प्रायः होता यह है कि आप इन चरित्रों की प्रामाणिकता को सत्य सिद्ध करने के लिए अनेक स्थापनाएं देने लगते हैं। यथा एकलव्य जरासंध के सेनापति का पुत्र था और जरासंध कृष्ण के दुश्मन थे। ऐसी स्थिति में आप वही भूल करने लगते हैं जो डॉ आंबेडकर ने किया था। ब्रिटिश दस्युवो के अफवाह को खण्डित करने के लिए आप संस्कृत ग्रंथो को पढ़ने लगते हैं यह निरी मूर्खता के अतिरिक्त कुछ भी नही है।
- रोमेश दत्त की पुस्तक Economic History of British India जो 1902 में प्रकाशित हुई है। इसके समस्त डेटा 1800 और 1814 के बीच भारत का, ईस्ट इंडिया कंपनी के फ्रांसिस हैमिलटन बुचनान द्वारा किये गए एकोनिमिक सर्वे से उद्धरित हैं।
1800 से 1807 के बीच बुचनान दक्षिण भारत का सर्वे करता है, और उसके बाद उत्तर भारत का सर्वे करता है। उसके सर्वेक्षण को 1500 पेज की तीन वॉल्यूम की पुस्तक के रूप में प्रकाशित। यह पुस्तक मेरे पास है, इसमें अछूत शब्द पूरी तरह विलुप्त है? क्यों ? अंधा था वह क्या?
अंधा नही था वह। अछूत थे ही नहीं।
उत्तर भारत का सर्वे करने का खर्च आया है 30,000 पौंड, यह रोमेश दत्त लिख रहे हैं।
कृषि शिल्प और वाणिज्य पर आधारित भारत की जीडीपी 0 AD से 1750 तक पूरी दुनिया की जीडीपी का 24% था जबकि ब्रिटेन और अमेरिका की जीडीपी उस समय मात्र 2% थी। यह बात अब आप समझ सकते हैं।
विल दुरंत लिखता है कि ऐसा कोई भी बहुमूल्य उत्पाद जिससे विश्व परिचित था वह सबके सब भारत मे तब तक निर्मित होते आये थे, जब समुद्री डाकुओं ने भारत की भूमि पर पैर रखा था।
अब रोमेश दत्त मात्र एक शिल्प का बिहार के एक जिले पटना का व्योरा लिख रहे हैं 1800 के आस पास का, जब भारत विश्व की लगभग 20% जीडीपी का उत्पादक बचा था।
" स्पिनिंग और बुनकरी भारत का राष्ट्रीय उद्योग है। इस जिले में बुचनान के अनुसार 330,426 स्पिनर थे, जो सबकी सब महिलाएं थी। और वह भी दोपहर के बाद कुछ घण्टों के लिए ही स्पिनिंग करती थीं। कुल 2,367,277 रुपये के धागे काते जाते थे, जिनमे यदि कच्चा माल का मूल्य 1,286,272 रुपये घटा दिया जाय तो 1,081,005 रुपये का कुल लाभ होता था जिसमे प्रति महिला को 3.25 रुपये वार्षिक आय होती थी। चूंकि अच्छे गुणवत्ता के सामानों की मांग पिछले कुछ वर्षों में घटी है इसलिए महिलाएं काफी मुश्किलों से गुजर रही हैं।
बुनकरों की संख्या बहुत अधिक है। लूम्स की कुल संख्या 750 है जिनसे 540,000 मूल्य का वार्षिक उत्पाद निर्मित किया जाता है। यदि उसमे सूत का मूल्य घटा दिया जाय तो कुल लाभ 81,400 रूपये का होता है- प्रति लूम 108 रुपये जो तीन बुनकरों द्वारा चलाया जाता है। प्रति व्यक्ति 36 सालाना। देशी उपयोग के लिए निर्मित करने वाले बुनकरों की आय 28 रुपये है।"
( रेफ - Economic History of British India - Ramesh dutt vol i p. 233 - 234)
पटना में कितने गाँव होंगे?
जोड़ लीजिये।
लगभग प्रति गांव में एक लूम।
इसको पूरे भारत का एक पायलट प्रोजेक्ट समझकर अध्ययन कीजिये। क्योंकि कमोवेश हर जिले का ऐसा ही मॉडल था। और यह सिर्फ वस्त्र उद्योग का मॉडल है। ऐसे सैकङो अन्य उद्योग भी थे, जिनका वर्णन इस पोस्ट में संभव नही है।
आने वाले 100 वर्षो में भारत कृषि शिल्प वाणिज्य को पूरी तरह नष्ट किया जाएगा। उषा पटनायक के अनुसार कुल 45 ट्रिलियन पौंड लूटकर ले जाया जाएगा। करोड़ो लोग बेरोजगार होंगे जिनमे से चार से पांच करोड़ भारतीय भुखमरी और संक्रामक रोगों से मौत के मुंह मे समायेंगे। इएलिये नहीं कि अन्न की कमी होगी। वरन इसलिए कि इनके जेब मे अन्न खरीदकर अपना पेट पालने का पैसा नही होगा।
इन घटनाओं को भारत के इतिहास और समाजशास्त्र से पूरी तरह गायब कर दिया जाएगा।
क्यों ?
सोचिये वे ऐसा क्यों करेंगे?
कोई अपने अपराधों को स्वीकार करता है?
चिदम्बरम जैसे काले अंग्रेज तक 21 बार जमानत ले लेते हैं तो वह तो गोरे अंग्रेज थे। इनके माई बाप।
विलियम जोंस और मैक्समुलर के #फेकन्यूज़_फैक्ट्री से निकले अफवाह साहित्य को विश्व साहित्य का हिस्सा बनाया जाएगा। यह अफवाह गढ़ी जाएगी कि आर्यन ( सवर्ण) बाहर से आये और भारत के शूद्र/ अतिशूद्र/ द्रविड़ो को गुलाम बनाया। उनकी स्त्रियों को गुलाम और वेश्या बनाकर उनसे बच्चे पैदा किये जिससे हिंदूइस्म का सबसे घृणित व्यवस्था #कास्ट_सिस्टम का जन्म हुआ।
यह कथा आप जानते हैं।
भारत के शिल्पियों और कृषकों के इस दुर्दशा भूंखमरी और मौत के लिए हिंदूइस्म और ब्रम्हानिस्म को गाली दिया जाएगा।
#आर्यन अफवाह को गजेटियर ऑफ इंडिया में 1882 में दर्ज करके वैधानिक बनाया गया और सत्य की तरह प्रसारित किया गया।
अब एक तीर से कई शिकार किये जाएंगे - अपने अपराधों पर पर्दा डाला जाएगा, फेक न्यूज़ के माध्यम से, हिन्दुओ को बांटा जाएगा, उनको खण्डित करने के लिए झूंठे साहित्य का गठन किया जाएगा, जिससे ईसाइयत में धर्म परिवर्तन का आधार बनाया जा सके। यह स्थापित किया जाएगा कि इनको हजारों साल से प्रताड़ित किया जा रहा है। ऐसे में एकलव्य और शम्बूक जैसे प्रतीकों की आवश्यकता पड़ेगी इस झूंठ को सत्य की तरह स्थापित करने के लिए।
यह काम जनगणना के माध्यम से किया जाएगा।
1901 में जनगणना कमिश्नर H H रिसले ने कल्पित आर्यन अर्थात सवर्णो को तीन ऊंची कास्ट घोसित किया और बाकी हिन्दू समुदायों को निम्न कास्ट घोसित करके भारतीय वर्ण व्यवस्था को वैधानिक रूप से नष्ट किया इस तरह फारवर्ड कास्ट और बैकवर्ड कास्ट की नींव रखी गयी।
1911 की जनगणना में यह स्थापित किया गया कि पहाड़ो और वनों में निवास करने वाले हिन्दू, हिन्दू नही है वे #animist हैं। अब इसका जो भी अर्थ होता हो।
इनके नायक के रूप में वनवासी #एकलव्य के प्रतीक को स्थापित किया गया जिसको गुरु द्रोण ने शिक्षा न देने के बाद भी अंगूठा दान में मांग लिया। इनको 1936 गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 के तहत scheduled Tribe घोसित किया जाएगा।
1917 में इन्ही बेरोजगार और मौत के मुंह मे धकेले गए हिन्दुओ के लिए, शिक्षा के नाम पर उन्हें हिन्दुओ से अलग चिन्हित करने के लिए एक शब्द गढ़ा गया - डिप्रेस्ड क्लास।
1921 में डिप्रेस्ड क्लास को जनगणना का अंग बनाकर उसे वैधानिक बनाया गया।
1931 में इनको एक्सटीरियर कास्ट का भी नाम दिया गया।
1928 में साइमन से मिलने के बाद डॉ आंबेडकर नग्रेजो को एक एफीडेविट देते है जिसको लोथियन समिति के नाम से जाना जाता है। उन्होंने लिखकर दिया कि डिप्रेस्ड क्लास ही अछूत हैं। और अछूतपन हिन्दू धर्म एक अविभाज्य अंग है। उनसे बड़ा हिन्दू धर्म का ज्ञाता उस समय कौन था।
1932 में मुसलमानों की तरह ही इन्ही वैधानिक घोसित अछूतों को हिन्दू की मुख्य शाखा से अलग करने हेतु seperate एलेक्टरेट दिया गया। उसके बाद 1936 में इन्हें भी गोवर्नमेंट एक्ट ऑफ इंडिया के तहत इनको scheduled Caste की उपाधि दी गयी। अब इस शब्द का जो भी अर्थ होता हो। इनके उत्पीड़न के प्रतीक के रूप में त्रेता युग के शम्बूक नामक चरित्र को स्थापित किया गया।
बाकी की कथा से आप लोग परिचित ही हैं।
इसके प्रमाण के रूप में आप चेक कीजिये कि पिछले 72 वर्षो में ईसाइयत में सर्वाधिक धर्मांतरण किस हिन्दू समुदाय करने में वे सफल रहे - द्रविड़ स्कीडुलेड ट्राइब और शेड्यूल्ड कास्ट, इन्ही का सर्वाधिक धर्मांतरण किया गया है।
N. B. जिसने भी #मंडल_कमीशन की रिपोर्ट ध्यान से पढ़ी होगी उसको पता होगा कि 1989 में ओबीसी के आरक्षण सुझाव देते समय बी पी मंडल ने उनके सामाजिक पिछले पन का आधार निर्धारित करते हुए इन दो ऐतिहासिक चरित्रों को एक प्रतीक उद्धरण की तरह प्रस्तुत किया है।
क्या आप समझ सकते हैं कि हमारे नीति नियामक किस स्तर के "एलियंस और स्टुपिड प्रोटागोनिस्ट" हैं ?
इस विषय को क्या राष्ट्रव्यापी बहस का मुद्दा नहीं बनाया जा सकता?
बनाया जा सकता है।
बशर्ते कि आपके अंदर इन अफवाह आधारित साहित्य के खण्डन करने की क्षमता हो तो।
©डॉ त्रिभुवन सिंह
ॐ
#भारत_जहाँ_रथ_हाँकने_वाला_इतना_जानता_था
पहले बात करते हैं बोड्स लॉ(Bode's Law) की, इसने पृथ्वी से ग्रहों की दूरी का एक समानुपातिक गणित दिया और बताया कि प्रत्येक ग्रह दूनी दूनी दूरी पर स्थित है। Titius ने सन् 1766 में Bode को लिखा था और सन् 1772 में यह प्रचारित हुआ। इसके बाद ही सन् 1801 में मंगल तथा बृहस्पति के मध्य Ceres को खोजा गया था। Titius-Bode से भी पहले Gregory ने 1702 में इसे लिखा था। कुछ अन्य सन्दर्भ भी मिलते हैं कि योरुप में यह बात कुछ अन्य लोग भी लिख पढ़ रहे थे। इस प्रकार Bode's Law को अब Gregory-Wolff-Titius-Bode Law भी कहा जाने लगा है।
ग्रहों की अवस्थिति तथा दूरी के समानुपात की अवधारणा या सूत्र वस्तुतः अत्यन्त प्राचीन है और भारतीय पुराणों में ही इसका सर्वप्रथम उल्लेख प्राप्त होता है।
महाभारत युद्ध का हाल जब संजय धृतराष्ट्र को सुनाने पहुँचता है तब आरम्भ में भूमि के वर्णन के साथ ही सौरमण्डल का वर्णन भी है क्योंकि पृथ्वी सौरमण्डल के अन्तर्गत है और उसी पृथ्वी पर ही युद्ध हुआ था।
धृतराष्ट्र बोले- संजय! तुमने यहाँ #जम्बूखण्ड का यथावत् वर्णन किया है। अब तुम इसके विस्तार और परिमाण को ठीक-ठीक बताओ। संजय! समुद्र के सम्पूर्ण परिमाण को भी अच्छी तरह समझा कर कहो। इसके बाद मुझसे #शाकद्वीप और #कुशद्वीप का वर्णन करो। संजय! इसी प्रकार #शाल्मलिद्वीप, #क्रौंचद्वीप तथा सूर्य, चन्द्रमा एवं राहु से सम्बन्ध रखने वाली सब बातों का यथार्थ रूप से वर्णन करो।
संजय बोले- राजन्! बहुत-से द्वीप हैं, जिनसे सम्पूर्ण जगत् परिपूर्ण है। अब मैं आपकी आज्ञा के अनुसार सात द्वीपों का तथा चन्द्रमा, सूर्य और राहु का भी वर्णन करूंगा। राजन्! जम्बूद्वीप का विस्तार पूरे 18600 योजन है। इसके चारों ओर जो खारे पानी का समुद्र है, उसका विस्तार जम्बूद्वीप की अपेक्षा दूना माना गया है। लवणसमुद्र सब ओर से मण्डलाकार है। राजन्! अब मैं शाकद्वीप का यथावत् वर्णन आरम्भ करता हूँ। कुरुनन्दन! मेरे इस न्यायोचित कथन को आप ध्यान देकर सुनें।
महाराज! नरेश्वर! वह द्वीप विस्तार की दृष्टि से जम्बूद्वीप के परिमाण से दूना है। भरतश्रेष्ठ! उसका समुद्र भी विभागपूर्वक उससे दूना ही है। भरतश्रेष्ठ! उस समुद्र का नाम क्षीरसागर है, जिसने उक्त द्वीप को सब ओर से घेर रखा है।
संजय बोले- महाराज! कुरुनन्दन! इसके बाद वाले द्वीपों के विषय में जो बातें सुनी जाती हैं, वे इस प्रकार हैं; उन्हें आप मुझसे सुनिये। #क्षीरोद समुद्र के बाद #घृतोद समुद्र है। फिर #दधिमण्डोदक समुद्र है। इनके बाद #सुरोद समुद्र है, फिर #मीठे पानी का सागर है। महाराज! इन समुद्रों से घिरे हुए सभी द्वीप और पर्वत उत्तरोत्तर #दुगुने विस्तार वाले हैं।
धृतराष्ट्र बोले- संजय! तुमने द्वीपों की स्थिति के विषय में तो बड़े विस्तार के साथ वर्णन किया है। अब जो अन्तिम विषय- सूर्य, चन्द्रमा तथा राहु का प्रमाण बताना शेष रह गया है, उसका वर्णन करो। संजय बोले- महाराज! मैंने द्वीपों का वर्णन तो कर दिया। अब ग्रहों का यथार्थ वर्णन सुनिये। कौरवश्रेष्ठ! राहु की जितनी बड़ी लंबाई-चौड़ाई सुनने में आती है, वह आपको बताता हूँ। महाराज! सुना है कि राहु ग्रह मण्डलाकार है। निष्पाप नरेश! राहु ग्रह का व्यासगत विचार बारह हजार योजन है और उसकी परिधि का विस्तार छत्तीस हजार योजन है। पौराणिक विद्वान् उसकी विपुलता (मोटाई) छ: हजार योजन की बताते हैं। राजन्! चन्द्रमा का व्यास ग्यारह हजार योजन है।
कुरूश्रेष्ठ! उनकी परिधि या मण्डल का विस्तार तैंतीस हजार योजन बताया गया है और महामना शीतरश्मि चन्द्रमा का वैपुल्यगत विस्तार (मोटाई) उनसठ सौ योजन हैं। कुरुनन्दन! सूर्य का व्यासगत विस्तार दस हजार योजन है और उनकी परिधि या मण्डल का विस्तार तीस हजार योजन है तथा उनकी विपुलता अट्ठावन सौ योजन की है।
अनघ! इस प्रकार शीघ्रगामी परम उदार भगवान् सूर्य के त्रिविध विस्तार का वर्णन सुना जाता है। भारत! यहाँ सूर्य का प्रमाण बताया गया, इन दोनों से अधिक विस्तार रखने के कारण राहु यथासमय इन सूर्य और चन्द्रमा को आच्छादित कर लेता है।
✍🏼अत्रि विक्रमार्क अन्तर्वेदी
🎋"भूतपूर्व वैयाकरणज्ञ 🔥भव्य-भारत"🎋
एक समय था, जब भारत सम्पूर्ण विश्व में प्रत्येक क्षेत्र सबसे आगे था । प्राचीन काल में सभी भारतीय बहुश्रुत,वेद-वेदाङ्गज्ञ थे । राजा भोज को तो एक साधारण लकडहारे ने भी व्याकरण में छक्के छुडा दिए थे ।व्याकरण शास्त्र की इतनी प्रतिष्ठा थी की व्याकरण ज्ञान शून्य को कोई अपनी लड़की तक नही देता था ,यथा :- "अचीकमत यो न जानाति,यो न जानाति वर्वरी।अजर्घा यो न जानाति,तस्मै कन्यां न दीयते"
यह तत्कालीन लोक में ख्यात व्याकरणशास्त्रीय उक्ति है 'अचीकमत, बर्बरी एवं अजर्घा इन पदों की सिद्धि में जो सुधी असमर्थ हो उसे कन्या न दी जाये" प्रायः प्रत्येक व्यक्ति व्याकरणज्ञ हो यही अपेक्षा होती थी ताकि वह स्वयं शब्द के साधुत्व-असाधुत्व का विवेकी हो,स्वयं वेदार्थ परिज्ञान में समर्थ हो, इतना सम्भव न भी हो तो कम से कम इतने संस्कृत ज्ञान की अपेक्षा रखी ही जाती थी जिससे वह शब्दों का यथाशक्य शुद्ध व पूर्ण उच्चारण करे :-
यद्यपि बहु नाधीषे तथापि पठ पुत्र व्याकरणम्।
स्वजनो श्वजनो माऽभूत्सकलं शकलं सकृत्शकृत्॥
अर्थ : " पुत्र! यदि तुम बहुत विद्वान नहीं बन पाते हो तो भी व्याकरण (अवश्य) पढ़ो ताकि 'स्वजन' 'श्वजन' (कुत्ता) न बने और 'सकल' (सम्पूर्ण) 'शकल' (टूटा हुआ) न बने तथा 'सकृत्' (किसी समय) 'शकृत्' (गोबर का घूरा) न बन जाय। "
भारत का जन जन की व्याकरणज्ञता सम्बंधित प्रसंग "वैदिक संस्कृत" पेज के महानुभव ने भी आज ही उद्धृत की है जो महाभाष्य ८.३.९७ में स्वयं पतञ्जलि महाभाग ने भी उद्धृत की हैं ।
सारथि के लिए उस समय कई शब्द प्रयोग में आते थे । जैसे---सूत, सारथि, प्राजिता और प्रवेता ।
आज हम आपको प्राजिता और प्रवेता की सिद्धि के बारे में बतायेंगे और साथ ही इसके सम्बन्ध में रोचक प्रसंग भी बतायेंगे ।
रथ को हाँकने वाले को "सारथि" कहा जाता है । सारथि रथ में बाई ओर बैठता था, इसी कारण उसे "सव्येष्ठा" भी कहलाता थाः----देखिए,महाभाष्य---८.३.९७
सारथि को सूत भी कहा जाता था , जिसका अर्थ था----अच्छी प्रकार हाँकने वाला । इसी अर्थ में प्रवेता और प्राजिता शब्द भी बनते थे । इसमें प्रवेता व्यकारण की दृष्टि से शुद्ध था , किन्तु लोक में विशेषतः सारथियों में "प्राजिता" शब्द का प्रचलन था ।
भाष्यकार ने गत्यर्थक "अज्" को "वी" आदेश करने के प्रसंग में "प्राजिता" शब्द की निष्पत्ति पर एक मनोरंजक प्रसंग दिया है । उन्होंने "प्राजिता" शब्द का उल्लेख कर प्रश्न किया है कि क्या यह प्रयोग उचित है ? इसके उत्तर में हाँ कहा है ।
कोई वैयाकरण किसी रथ को देखकर बोला, "इस रथ का प्रवेता (सारथि) कौन है ?"
सूत ने उत्तर दिया, "आयुष्मन्, इस रथ का प्राजिता मैं हूँ ।"
वैयाकरण ने कहा, "प्राजिता तो अपशब्द है ।"
सूत बोला, देवों के प्रिय आप व्याकरण को जानने वाले से निष्पन्न होने वाले केवल शब्दों की ही जानकारी रखते हैं, किन्तु व्यवहार में कौन-सा शब्द इष्ट है, वह नहीं जानते । "प्राजिता" प्रयोग शास्त्रकारों को मान्य है ।"
इस पर वैयाकरण चिढकर बोला, "यह दुरुत (दुष्ट सारथि) तो मुझे पीडा पहुँचा रहा है ।"
सूत ने शान्त भाव से उत्तर दिया, "महोदय ! मैं सूत हूँ । सूत शब्द "वेञ्" धातु के आगे क्त प्रत्यय और पहले प्रशंसार्थक "सु" उपसर्ग लगाकर नहीं बनता, जो आपने प्रशंसार्थक "सूत" निकालकर कुत्सार्थक "दुर्" उपसर्ग लगाकर "दुरुत" शब्द बना लिया । सूत तो "सूञ्" धातु (प्रेरणार्थक) से बनता है और यदि आप मेरे लिए कुत्सार्थक प्रयोग करना चाहते हैं, तो आपको मुझे "दुःसूत" कहना चाहिए, "दुरुत" नहीं ।
उपर्युक्त उद्धरण से यह स्पष्ट है कि सारथि, सूत और प्राजिता तीनों शब्दों का प्रचलन हाँकने वाले के लिए था । व्याकरण की दृष्टि से प्रवेता शब्द शुद्ध माना जाता था । इसी प्रकार "सूत" के विषय में भी वैयाकरणों में मतभेद था ।
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इत्यलयम् 🌺 संलग्न कथानक के लिये "वैदिक संस्कृत" पृष्ठ के प्रति कृतज्ञ हूँ।💐
जैसे नदी की धारा की लम्बाई जब गंगा, सतलज, कावेरी जैसी नदियों से बढ़कर ब्रह्मपुत्र के आकार की होने लगे तो उसे नदी नहीं, नद् कहा जाने लगता है, कुछ उसी तरह जब वाक्य में प्रयुक्त शब्दों की गणना बढ़ जाए तो वो नयी वाली हिंदी से बदलकर पुरानी वाली हिंदी हो जाएगी। समय के साथ पुरानी देवनागरी की वर्तनी भी बदलती रही है, यथा अनुस्वार का प्रयोग अब बढ़ता जा रहा है तथा गंगा को गङ्गा लिखना भी लोग भूल चले हैं।
कुछ दशक पहले छपाई के शुरू होने पर अक्षर बदले और तब की बम्बई, और आज की मुंबई की ओर से आने वाले अ, ण, जैसे अक्षर हम आज प्रयोग करते हैं, पुराने वाले भुला दिए गए। लिपियों का अध्ययन करने वाले इसे ‘परिवर्तन’ में गिनते हैं या ‘विकास’ मानते हैं, पता नहीं, बल्कि भाषाविज्ञान में देवनागरी का कितना अध्ययन किया जाता है ये भी ज्ञात नहीं। जब शब्दों से हटकर व्याकरण की बात होती है तो हमें कोई हिंदी लेखक नहीं, भारतीय मूल के एक अंग्रेजी लेखक की याद आती है।
सर वी.एस. नैपौल की एक किताब के सम्पादक ने जब कई जगह उनके लिखे को बदल डाला तो उन्होंने प्रकाशन को पत्र लिखकर उन्हें वापस अंग्रेजी पढ़ा डाली थी। उन्होंने अंग्रेजी के बारे में कहा था कि ये भाषा इसलिए चलती है क्योंकि इसे विशेषज्ञ नहीं, आम जनता चला रही होती है। वो ऑक्सफ़ोर्ड में अंग्रेजी के ही छात्र थे और उन्होंने अपनी पढ़ाई के जमाने की याद दिलाते हुए कहा था कि अंग्रेजी भाषा में प्रयुक्त व्याकरण तो पुराने फ़्रांसिसी दरबार में अंग्रेजी के प्रयोग का तरीका भर है, तो जिस भाषा का व्याकरण है ही नहीं, वो व्याकरण मुझे सिखाने की कोशिश क्यों की जा रही है?
हिंदी के बारे में आज ऐसा कहना विवादों को जन्म दे सकता है किन्तु सत्य तो यही है कि ये भाषा कल तक उर्दू जैसी लिपि में लिखी जाती थी और महामना मदन मोहन मालवीय ने करीब-करीब बनारस के हिन्दू विश्वविद्यालय वाले अभियान के समय ही हिंदी की लिपि देवनागरी करने का अभियान भी छेड़ रखा था। व्याकरण के मामले में एक किसी ज्ञानी का प्रश्न था कि संस्कृत में तो ‘रामः गच्छति’ और ‘सीता गच्छति’ होता है, उस से निकले हिंदी व्याकरण में फिर ‘राम जाता है’ और ‘सीता जाती है’ क्यों हो जाता?
तत्सम और तद्भव शब्दों का प्रयोग, सीधा दूसरी भाषाओँ से आने वाले शब्दों का प्रयोग, यहाँ तक कि व्याकरण भी हिंदी में कई दिशाओं से प्रभावित होता रहता है। किसी के लिए बिहार में बोली जाने वाली हिंदी के व्याकरण में हर चीज़ का पुल्लिंग हो जाना अजीब होगा तो किसी का बंगाल और उस से आगे के पूर्वोत्तर में ‘ट्रेन-बस में उठना’ और पीने की चीज़ों को खाना कहना, वहीँ कुछ दूसरे लोग दिल्ली और उसके आस पास की विकृत हिंदी पर भी सर धुन सकते हैं। शब्दों-वाक्यों के अर्थ भी यहाँ बदलते रहते हैं इसलिए पश्चिम की ‘बाई जी’ पूरब में आते आते कुछ और ही हो जाती है।
इन सभी बातों के बीच ये भी सोचना होगा कि मानक क्या है जिसके आधार पर अच्छी-बुरी, परिष्कृत या अशुद्ध हिंदी की पहचान की जाये? मानक हिंदी के लिए कामताप्रसाद गुरु के व्याकरण को कई लोग अच्छा मानते हैं। करीब पांच सौ पन्ने की इस मोटी सी किताब के बाद भी हिंदी व्याकरण पर कुछ बच्चों के लायक किताबें लिखी गयी होंगी, थोड़ी पूछताछ से शायद उनका भी पता चल जाएगा। हाँ इन सभी बातों के बीच ये ध्यान रखियेगा कि विकृत को ही सौन्दर्य घोषित करने का रोग कुछ आयातित विचारधाराओं के साथ आ जाता है।
जैसा किसी भी उत्पाद के साथ होता है, वैसे ही भाषा के सौन्दर्य को बनाए रखना उस भाषा को इस्तेमाल करने वालों का काम है न कि उसे बेचकर खाने वालों का। जैसे बाजार से निकलते वक्त किसी परिचित सेठ जी से पूछ लें कि धंधा कैसा चल रहा है तो वो ग्राहकों की कमी, करों के बढ़ने और पड़ोसी दुकानदार के चोर होने से लेकर अच्छे कामगार न मिलने तक दर्जन भर रोने की वजहें गिनवाते हैं वैसे ही हिंदी बेचने वाले पाठकों की कमी, प्रकाशकों के कामचोर होने से लेकर दूसरे लेखकों के चोर होने तक दर्जन भर दुखांत कहानियां सुना देंगे।
बाकी परिस्थितियां इतनी बुरी होतीं तो बाजार में नित नए प्रकाशक क्यों कूद रहे हैं, या स्थापित अंग्रेजी प्रकाशक भी हिंदी में किताबें क्यों छापने लगे हैं, ये भी सोचने लायक मुद्दा है। सोचकर देखिये तो पता चलेगा कि ज्यादातर लोग हिंदी में ही सोच पाते हैं, अंग्रेजी जैसी किसी और भाषा में क्यों नहीं सोचते?
✍🏼आनन्द कुमार
पोथी, पुुंथी, चौपड़ी, पुस्तक, ग्रन्थ
उन सभी को नमन और प्रणाम जिन्होंने पुस्तक के महत्व को बरकरार रखा है, जिनके घरों को दीवारें नहीं, पुस्तकें शोभायमान करती है और जिनके हाथों को पुस्तक रत्न की तरह आभरणमय करती हैं।
बधाई कि पुस्तकों के प्रति आदर अब भी हमारे कहीं न कहीं बना हुआ है। पुस्तक कहीं पोथी, कहीं पुंथी, कहीं चौपड़ी तो कहीं ग्रन्थम् नाम से जानी जाती है। नई पीढ़ी बुक कहती है...। सब शब्दों की अपनी अपनी परिभाषाएं हैं। असुर बेनीपाल ने तो पूरा पुस्तकालय ही बनवाकर दुनिया को एक परम्परा दे दी थी।
क्या ये मालूम है कि पुस्तक भारतीय शब्द नहीं है, जबकि यह हमें संस्कृत का शब्द लगता है। संस्कृत वालों ने तो वीणा च पुस्तकं कह कर इसे सरस्वती का करचिह्न भी बताया है। हमारे यहां पुस्तक शब्द बहुत काल से व्यवहार में आ रहा है। पुस्तक लेखन, पुस्तक दान के महत्व कई पुराणों में आया है। अग्निपुराण और उससे पूर्व शिवधर्मोत्तर पुराण में तो पुस्तक की यात्राएं आयोजित करने का भी वर्णन मिलता है। उसका पूरा विधान भी लिखा गया है कि नन्दी नागरी अक्षरों में लिखी गई पुस्तक को सिंहासन पर विराजित कर नगर में उसकी परिक्रमा करवाई जाए..।
नारदपुराण में विविध पुस्तकों को लिखवार दान करने के कई पुण्य फलों को लिखा गया है। वैसे यह प्रसंग लगभग प्रत्येक पुराण के अन्त में मिल ही जाता है।... तो पुस्तक शब्द अरब के रास्ते भारत में आया। पुस्त माने हाथ। हाथ में रखने के कारण यह पुस्तक है। इस स्वरूप ने मूर्तिकारों को बहुत प्रभावित किया और पुस्तक जो रेयल पर रखकर पढी जाती थी, वह हाथों की शोभा होकर ब्रह्मा, सरस्वती आदि की मूर्तियों के करकमल में आयुध-स्वरूप स्थान पा गई। यह शब्द पांचवीं सदी तक तो व्यवहार में आ ही चुका था क्योंकि बाद में हर्ष के दरबारी बाण ने इसे प्रयुक्त किया है।
हमारे यहां तो ग्रंथ कहा जाता था। ग्रंथ से आशय जिसको ग्रंथित या गांठ लगाकर रखा जाए। पुरानी जितनी पोथियां हैं, उन सबमें कागज अलग-अलग होते थे और उनको क्रम लगाते हुए क्रमश: रखा जाता। उनके ऊपर और नीचे लकड़ी के पट्टियों को कागज के ही आकार में जमाया जाता था। उसको लाल, पीले कपड़े या खलीते में बांधकर डोरी की गांठ लगा दी जाती थी। गांठ के कारण ही ये पोथियां ग्रंथ कही जाती... दुनियाभर के प्राचीन पुस्तकालयों में पांडुलिपियां इसी सूरत में मिलती हैं। ग्रंथ शब्द आज भी व्यवहार में है और बहुत सम्मान का स्थान रखता है। हर किताब को ग्रंथ नहीं कहा जाता क्यों...।
पट्टी या तख्ती
#Slate_for_writing
लिखने के लिए कभी तख्ती काम में आती थी। इसे पाटी कहा जाता। पट्टी भी इसी का नाम है। पट्टी पढ़ाना, पट्टी लिखना, पट्टी पहाड़े.. कई मुहावरों से इसके मायने समझे जा सकते हैं। मगर, आज यह चलन के बाहर हो गई है। स्कूलों से पट्टी का प्रयोग बाहर होता जा रहा है।
कई प्रकार की पट्टियां बनती थी। काष्ठ फलक की बनी पट्टी, मिट्टी की पट्टी, श्लिष्ट पाषाण की पट्टी और गत्ते पर कालिख चढ़ाकर तैयार की गई पट्टी। हर्ष के दरबार में लिखने के लिए पट्टिकाओं के निर्माण का संदर्भ बाणभट्ट भी देता है। बहुत पहले कागज को बचाने के लिए ग्रंथकार पट्टियों पर ही श्लोक की रचना करते थे ताकि गलती होने पर तत्काल सुधार हो जाए। बाद में अच्छी लिखावट वाला उसको बहुत मनोयोग से कागज या भुर्जपत्र पर लिखता। इसलिए कई ग्रंथों की मूल प्रति या पहली पांडुलिपि नहीं मिलती है।
काष्ठफलक की पट्टियां तो अब देखने को भी नहीं मिलती जो एक हाथ लंबी, आधे हाथ चौड़ी और लगभग 5 यव मोटी होती थी। विद्यार्थियों के लिए पट्टीदान का महत्व भी मिलता है। पूर्व में पट्टिकाओं पर रमणियों को अपने मन के उद्गार लिखते हुए मंदिरों पर दिखाया जाता था। आज केवल उनकी स्मृतियां ही रह गई हैं। संत ज्ञानेश्वर फिल्म के एक गीत : पट्टी लिखना, पोथी भी पढ़ना, सारे जग में चम चम चमकना... में वह पट्टी दिखाई देती है।
सोचिये, वह भी क्या दौर था जब पट्टी पर गणित के सवाल होते। तब गणित को भी पाटीगणित के नाम से ही जाना जाता था। श्रीपति, श्रीधर, आर्यभट, भास्कराचार्य आदि ने इस शब्द का प्रयोग किया है, हालांकि टीकाकारों ने क्रमपद्धति के रूप में इस शब्द का अर्थ लिया है मगर, यह पाटी पर होने के अर्थ में अधिक व्यावहारिक थी... आज कहां गया वह दौर...।
✍🏼श्रीकृष्ण जुगनू
भूर्जपत्र - ओढ़ने बिछाने से लेकर लिखने तक के काम आने वाली जलरोधी वस्तु।
चर्चित बख्शाली मेनसक्रिप्ट भोजपत्र पर ही लिखी हुई है। चीन में ६००ई.पू. के खरोष्ठी गान्धारी लिपि में लिखित सैकड़ों पत्र रखे हुये हैं। समय के साथ "लिखित" की प्रतिलिपि तैयार करनी ही पड़ती है और लिपि परिवर्तित होती चली जाती है।
भारत में इन पत्रों पर लेखन स्थायी स्याही से किया जाता रहा जिसे बनाने की भी विशेष विधि होती है। पानी से धुलती नहीं।
प्रस्तुत चित्र शारदा लिपि में लिखे एक भोजपत्र का स्कैन है। किसी प्राचीन लेख में कोई सामग्री जोड़े जाने हेतु प्रथम आवश्यकता उस पत्र में अतिरिक्त लेखन हेतु 'अवकाश' की है, द्वितीय आवश्यकता इस बात की होती है कि आप उस भाषा व लिपि के पूर्ण जानकार हों और पुराने हस्तलेख की नकल 'नटवरलाल' के जैसे कर सकें। यदि नकल करने की आपमें जन्मजात प्रतिभा हो तो भी किसी अप्रचलित प्राचीन लिपि के लेखन कर पाने के लिये बहुत कुछ सीखना व अभ्यास करना पड़ेगा।
तब भी स्मरण रखिये "नकल हमेशा होती है पर बराबरी कभी नहीं" ऐसे ही नहीं कहा जाता है।
जब कभी पत्रों का निरीक्षण विशेषज्ञों द्वारा किया जायेगा आपकी फोर्जरी पकड़ में आ जायेगी। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि किसी 'कृति' की अनेक अनुकृतियाँ कई स्थानों पर होती हैं , यदि किसी एक स्थान की प्रति में कोई गड़बड़ी हो भी या की जाये तो शेष प्रतियाँ अपरिवर्तित ही रहेंगी।
अँगरेजों के पूर्वाग्रहों और दुराग्रहों का पालन आज भी पूर्ण श्रद्धा एवं भक्ति से हो रहा है।
लगध के याजुष् ज्योतिष की एक प्रति को छोड़ किसी में भी गणित शब्द नहीं है, षड् वेदाङ्गों में भी 'गणित' नहीं है फिर भी बड़ी ही ढिठाई से वह श्लोक लगातार "कोट" होता है।
कल्प तथा ज्योतिष वेदाङ्गों में गणित अनुप्रयुक्त होता ही है।
Mathematics is the queen of Science
पुराने मठों में भोजपत्रों पर लिखित ग्रन्थों का संग्रह आज भी है।
ब्रिटेन ने एसिआ में प्राप्त प्राचीन हस्तलिखित सामग्री जितनी उनको प्राप्त हो सकी उसको अपने अधिकार में कर अपने देश ढोकर ले गये। अब वे भी इनके संरक्षण के उपाय खोज रहे हैं और प्रतिलिपियाँ तैयार करवाने में जुटे हैं
"द हिन्दू" में प्रकाशित वर्ष 2011ई. की वार्ता पढ़ी जा सकती है।
✍🏼अत्रि विक्रमार्क अन्तर्वेदी
*कुछ 100 जानकारी जिसका ज्ञान सबको होना चाहिए*
1.योग,भोग और रोग ये तीन अवस्थाएं है।
2. *लकवा* - सोडियम की कमी के कारण होता है ।
3. *हाई वी पी में* - स्नान व सोने से पूर्व एक गिलास जल का सेवन करें तथा स्नान करते समय थोड़ा सा नमक पानी मे डालकर स्नान करे ।
4. *लो बी पी* - सेंधा नमक डालकर पानी पीयें ।
5. *कूबड़ निकलना*- फास्फोरस की कमी ।
6. *कफ* - फास्फोरस की कमी से कफ बिगड़ता है , फास्फोरस की पूर्ति हेतु आर्सेनिक की उपस्थिति जरुरी है । गुड व शहद खाएं
7. *दमा, अस्थमा* - सल्फर की कमी ।
8. *सिजेरियन आपरेशन* - आयरन , कैल्शियम की कमी ।
9. *सभी क्षारीय वस्तुएं दिन डूबने के बाद खायें* ।
10. *अम्लीय वस्तुएं व फल दिन डूबने से पहले खायें* ।
11. *जम्भाई*- शरीर में आक्सीजन की कमी ।
12. *जुकाम* - जो प्रातः काल जूस पीते हैं वो उस में काला नमक व अदरक डालकर पियें ।
13. *ताम्बे का पानी* - प्रातः खड़े होकर नंगे पाँव पानी ना पियें ।
14. *किडनी* - भूलकर भी खड़े होकर गिलास का पानी ना पिये ।
15. *गिलास* एक रेखीय होता है तथा इसका सर्फेसटेन्स अधिक होता है । गिलास अंग्रेजो ( पुर्तगाल) की सभ्यता से आयी है अतः लोटे का पानी पियें, लोटे का कम सर्फेसटेन्स होता है ।
16. *अस्थमा , मधुमेह , कैंसर* से गहरे रंग की वनस्पतियाँ बचाती हैं ।
17. *वास्तु* के अनुसार जिस घर में जितना खुला स्थान होगा उस घर के लोगों का दिमाग व हृदय भी उतना ही खुला होगा ।
18. *परम्परायें* वहीँ विकसित होगीं जहाँ जलवायु के अनुसार व्यवस्थायें विकसित होगीं ।
19. *पथरी* - अर्जुन की छाल से पथरी की समस्यायें ना के बराबर है ।
20. *RO* का पानी कभी ना पियें यह गुणवत्ता को स्थिर नहीं रखता । कुएँ का पानी पियें । बारिस का पानी सबसे अच्छा , पानी की सफाई के लिए *सहिजन* की फली सबसे बेहतर है ।
21. *सोकर उठते समय* हमेशा दायीं करवट से उठें या जिधर का *स्वर* चल रहा हो उधर करवट लेकर उठें ।
22. *पेट के बल सोने से* हर्निया, प्रोस्टेट, एपेंडिक्स की समस्या आती है ।
23. *भोजन* के लिए पूर्व दिशा , *पढाई* के लिए उत्तर दिशा बेहतर है ।
24. *HDL* बढ़ने से मोटापा कम होगा LDL व VLDL कम होगा ।
25. *गैस की समस्या* होने पर भोजन में अजवाइन मिलाना शुरू कर दें ।
26. *चीनी* के अन्दर सल्फर होता जो कि पटाखों में प्रयोग होता है , यह शरीर में जाने के बाद बाहर नहीं निकलता है। चीनी खाने से *पित्त* बढ़ता है ।
27. *शुक्रोज* हजम नहीं होता है *फ्रेक्टोज* हजम होता है और भगवान् की हर मीठी चीज में फ्रेक्टोज है ।
28. *वात* के असर में नींद कम आती है ।
29. *कफ* के प्रभाव में व्यक्ति प्रेम अधिक करता है ।
30. *कफ* के असर में पढाई कम होती है ।
31. *पित्त* के असर में पढाई अधिक होती है ।
33. *आँखों के रोग* - कैट्रेक्टस, मोतियाविन्द, ग्लूकोमा , आँखों का लाल होना आदि ज्यादातर रोग कफ के कारण होता है ।
34. *शाम को वात*-नाशक चीजें खानी चाहिए ।
35. *प्रातः 4 बजे जाग जाना चाहिए* ।
36. *सोते समय* रक्त दवाव सामान्य या सामान्य से कम होता है ।
37. *व्यायाम* - *वात रोगियों* के लिए मालिश के बाद व्यायाम , *पित्त वालों* को व्यायाम के बाद मालिश करनी चाहिए । *कफ के लोगों* को स्नान के बाद मालिश करनी चाहिए ।
38. *भारत की जलवायु* वात प्रकृति की है , दौड़ की बजाय सूर्य नमस्कार करना चाहिए ।
39. *जो माताएं* घरेलू कार्य करती हैं उनके लिए व्यायाम जरुरी नहीं ।
40. *निद्रा* से *पित्त* शांत होता है , मालिश से *वायु* शांति होती है , उल्टी से *कफ* शांत होता है तथा *उपवास* ( लंघन ) से बुखार शांत होता है ।
41. *भारी वस्तुयें* शरीर का रक्तदाब बढाती है , क्योंकि उनका गुरुत्व अधिक होता है ।
42. *दुनियां के महान* वैज्ञानिक का स्कूली शिक्षा का सफ़र अच्छा नहीं रहा, चाहे वह 8 वीं फेल न्यूटन हों या 9 वीं फेल आइस्टीन हों ,
43. *माँस खाने वालों* के शरीर से अम्ल-स्राव करने वाली ग्रंथियाँ प्रभावित होती हैं ।
44. *तेल हमेशा* गाढ़ा खाना चाहिएं सिर्फ लकडी वाली घाणी का , दूध हमेशा पतला पीना चाहिए ।
45. *छिलके वाली दाल-सब्जियों से कोलेस्ट्रोल हमेशा घटता है ।*
46. *कोलेस्ट्रोल की बढ़ी* हुई स्थिति में इन्सुलिन खून में नहीं जा पाता है । ब्लड शुगर का सम्बन्ध ग्लूकोस के साथ नहीं अपितु कोलेस्ट्रोल के साथ है ।
47. *मिर्गी दौरे* में अमोनिया या चूने की गंध सूँघानी चाहिए ।
48. *सिरदर्द* में एक चुटकी नौसादर व अदरक का रस रोगी को सुंघायें ।
49. *भोजन के पहले* मीठा खाने से बाद में खट्टा खाने से शुगर नहीं होता है ।
50. *भोजन* के आधे घंटे पहले सलाद खाएं उसके बाद भोजन करें ।
51. *अवसाद* में आयरन , कैल्शियम , फास्फोरस की कमी हो जाती है । फास्फोरस गुड और अमरुद में अधिक है
52. *पीले केले* में आयरन कम और कैल्शियम अधिक होता है । हरे केले में कैल्शियम थोडा कम लेकिन फास्फोरस ज्यादा होता है तथा लाल केले में कैल्शियम कम आयरन ज्यादा होता है । हर हरी चीज में भरपूर फास्फोरस होती है, वही हरी चीज पकने के बाद पीली हो जाती है जिसमे कैल्शियम अधिक होता है ।
53. *छोटे केले* में बड़े केले से ज्यादा कैल्शियम होता है ।
54. *रसौली* की गलाने वाली सारी दवाएँ चूने से बनती हैं ।
55. हेपेटाइट्स A से E तक के लिए चूना बेहतर है ।
56. *एंटी टिटनेस* के लिए हाईपेरियम 200 की दो-दो बूंद 10-10 मिनट पर तीन बार दे ।
57. *ऐसी चोट* जिसमे खून जम गया हो उसके लिए नैट्रमसल्फ दो-दो बूंद 10-10 मिनट पर तीन बार दें । बच्चो को एक बूंद पानी में डालकर दें ।
58. *मोटे लोगों में कैल्शियम* की कमी होती है अतः त्रिफला दें । त्रिकूट ( सोंठ+कालीमिर्च+ मघा पीपली ) भी दे सकते हैं ।
59. *अस्थमा में नारियल दें ।* नारियल फल होते हुए भी क्षारीय है ।दालचीनी + गुड + नारियल दें ।
60. *चूना* बालों को मजबूत करता है तथा आँखों की रोशनी बढाता है ।
61. *दूध* का सर्फेसटेंसेज कम होने से त्वचा का कचरा बाहर निकाल देता है ।
62. *गाय की घी सबसे अधिक पित्तनाशक फिर कफ व वायुनाशक है ।*
63. *जिस भोजन* में सूर्य का प्रकाश व हवा का स्पर्श ना हो उसे नहीं खाना चाहिए
64. *गौ-मूत्र अर्क आँखों में ना डालें ।*
65. *गाय के दूध* में घी मिलाकर देने से कफ की संभावना कम होती है लेकिन चीनी मिलाकर देने से कफ बढ़ता है ।
66. *मासिक के दौरान* वायु बढ़ जाता है , 3-4 दिन स्त्रियों को उल्टा सोना चाहिए इससे गर्भाशय फैलने का खतरा नहीं रहता है । दर्द की स्थति में गर्म पानी में देशी घी दो चम्मच डालकर पियें ।
67. *रात* में आलू खाने से वजन बढ़ता है ।
68. *भोजन के* बाद बज्रासन में बैठने से *वात* नियंत्रित होता है ।
69. *भोजन* के बाद कंघी करें कंघी करते समय आपके बालों में कंघी के दांत चुभने चाहिए । बाल जल्द सफ़ेद नहीं होगा ।
70. *अजवाईन* अपान वायु को बढ़ा देता है जिससे पेट की समस्यायें कम होती है
71. *अगर पेट* में मल बंध गया है तो अदरक का रस या सोंठ का प्रयोग करें
72. *कब्ज* होने की अवस्था में सुबह पानी पीकर कुछ देर एडियों के बल चलना चाहिए ।
73. *रास्ता चलने*, श्रम कार्य के बाद थकने पर या धातु गर्म होने पर दायीं करवट लेटना चाहिए ।
74. *जो दिन मे दायीं करवट लेता है तथा रात्रि में बायीं करवट लेता है उसे थकान व शारीरिक पीड़ा कम होती है ।*
75. *बिना कैल्शियम* की उपस्थिति के कोई भी विटामिन व पोषक तत्व पूर्ण कार्य नहीं करते है ।
76. *स्वस्थ्य व्यक्ति* सिर्फ 5 मिनट शौच में लगाता है ।
77. *भोजन* करते समय डकार आपके भोजन को पूर्ण और हाजमे को संतुष्टि का संकेत है ।
78. *सुबह के नाश्ते* में फल , *दोपहर को दही* व *रात्रि को दूध* का सेवन करना चाहिए ।
79. *रात्रि* को कभी भी अधिक प्रोटीन वाली वस्तुयें नहीं खानी चाहिए । जैसे - दाल , पनीर , राजमा , लोबिया आदि ।
80. *शौच और भोजन* के समय मुंह बंद रखें , भोजन के समय टी वी ना देखें ।
81. *मासिक चक्र* के दौरान स्त्री को ठंडे पानी से स्नान , व आग से दूर रहना चाहिए ।
82. *जो बीमारी जितनी देर से आती है , वह उतनी देर से जाती भी है ।*
83. *जो बीमारी अंदर से आती है , उसका समाधान भी अंदर से ही होना चाहिए ।*
84. *एलोपैथी* ने एक ही चीज दी है , दर्द से राहत । आज एलोपैथी की दवाओं के कारण ही लोगों की किडनी , लीवर , आतें , हृदय ख़राब हो रहे हैं । एलोपैथी एक बिमारी खत्म करती है तो दस बिमारी देकर भी जाती है ।
85. *खाने* की वस्तु में कभी भी ऊपर से नमक नहीं डालना चाहिए , ब्लड-प्रेशर बढ़ता है ।
86 . *रंगों द्वारा* चिकित्सा करने के लिए इंद्रधनुष को समझ लें , पहले जामुनी , फिर नीला ..... अंत में लाल रंग ।
87 . *छोटे* बच्चों को सबसे अधिक सोना चाहिए , क्योंकि उनमें वह कफ प्रवृति होती है , स्त्री को भी पुरुष से अधिक विश्राम करना चाहिए
88. *जो सूर्य निकलने* के बाद उठते हैं , उन्हें पेट की भयंकर बीमारियां होती है , क्योंकि बड़ी आँत मल को चूसने लगती है ।
89. *बिना शरीर की गंदगी* निकाले स्वास्थ्य शरीर की कल्पना निरर्थक है , मल-मूत्र से 5% , कार्बन डाई ऑक्साइड छोड़ने से 22 %, तथा पसीना निकलने लगभग 70 % शरीर से विजातीय तत्व निकलते हैं ।
90. *चिंता , क्रोध , ईर्ष्या करने से गलत हार्मोन्स का निर्माण होता है जिससे कब्ज , बबासीर , अजीर्ण , अपच , रक्तचाप , थायरायड की समस्या उतपन्न होती है ।*
91. *गर्मियों में बेल , गुलकंद , तरबूजा , खरबूजा व सर्दियों में सफ़ेद मूसली , सोंठ का प्रयोग करें ।*
92. *प्रसव* के बाद माँ का पीला दूध बच्चे की प्रतिरोधक क्षमता को 10 गुना बढ़ा देता है । बच्चो को टीके लगाने की आवश्यकता नहीं होती है ।
93. *रात को सोते समय* सर्दियों में देशी मधु लगाकर सोयें त्वचा में निखार आएगा
94. *दुनिया में कोई चीज व्यर्थ नहीं , हमें उपयोग करना आना चाहिए*।
95. *जो अपने दुखों* को दूर करके दूसरों के भी दुःखों को दूर करता है , वही मोक्ष का अधिकारी है ।
96. *सोने से* आधे घंटे पूर्व जल का सेवन करने से वायु नियंत्रित होती है , लकवा , हार्ट-अटैक का खतरा कम होता है ।
97. *स्नान से पूर्व और भोजन के बाद पेशाब जाने से रक्तचाप नियंत्रित होता है*।
98 . *तेज धूप* में चलने के बाद , शारीरिक श्रम करने के बाद , शौच से आने के तुरंत बाद जल का सेवन निषिद्ध है
99. *त्रिफला अमृत है* जिससे *वात, पित्त , कफ* तीनो शांत होते हैं । इसके अतिरिक्त भोजन के बाद पान व चूना । देशी गाय का घी , गौ-मूत्र भी त्रिदोष नाशक है ।
100. इस विश्व की सबसे मँहगी *दवा। लार* है , जो प्रकृति ने तुम्हें अनमोल दी है ,इसे ना थूके ।
_*जनजागृति हेतु लेख को पढ़ने के बाद साझा अवश्य करें*।🌷☘🌺 ☘ 🌺 🌷
महर्षि वाग्भट के अष्टांगहृदयम में दातून के बारे में बताया गया है। वे कहते हैं कि दातुन कीजिये | दातुन कैसा ? तो जो स्वाद में कसाय हो। कसाय मतलब कड़वा और नीम का दातुन कड़वा ही होता है और इसीलिए उन्होंने नीम के दातुन की बड़ाई (प्रसंशा) की है। उन्होंने नीम से भी अच्छा एक दूसरा दातुन बताया है, वो है मदार का, उसके बाद अन्य दातुन के बारे में उन्होंने बताया है जिसमे बबूल , अर्जुन, आम , अमरुद जामुन,महुआ,करंज,बरगद,अपामार्ग,बेर,शीशम,बांस इत्यादि है। ऐसे 12 वृक्षों का नाम उन्होंने बताया है जिनके दातुन आप कर सकते हैं। चैत्र माह से शुरू कर के गर्मी भर नीम, मदार या बबूल का दातुन करने के लिए उन्होंने बताया है, सर्दियों में उन्होंने अमरुद या जामुन का दातुन करने को बताया है, बरसात के लिए उन्होंने आम या अर्जुन का दातुन करने को बताया है। आप चाहें तो साल भर नीम का दातुन इस्तेमाल कर सकते हैं लेकिन उसमे ध्यान इस बात का रखे कि तीन महीने लगातार करने के बाद इस नीम के दातुन को कुछ दिन का विश्राम दें। इस अवधि में मंजन कर ले। दन्त मंजन बनाने की आसान विधि उन्होंने बताई है। वे कहते हैं कि आपके स्थान पर उपलब्ध खाने का तेल (सरसों का तेल. नारियल का तेल, या जो भी तेल आप खाने में इस्तेमाल करते हों, रिफाइन छोड़ कर), उपलब्ध लवण मतलब नमक और हल्दी मिलाकर आप मंजन बनाये और उसका प्रयोग करें।
दातून (Teeth cleaning twig) किसी उपयुक्त वृक्ष की पतली टहनी से बना लगभग १५-२० सेमी लम्बा दाँत साफ करने वाला परम्परागत बुरुश है। इसके लिये बहुत से पेड़ों की टहनियाँ उपयुक्त होती हैं किन्तु नीम, मिसवाक आदि की टहनिया विशेष रूप से लोकप्रिय हैं। कृत्रिम बुरुश की अपेक्षा दातून के कई लाभ हैं, जैसे कम लागत, अधिक पर्यावरणहितैषी आदि।
आपने कभी सोचा है कि पहले जमाने में दांतों की समस्या बहुत कम लोगों को होती थी, क्या आपने कभी सोचा है क्यों? पहले लोग ब्रश-पेस्ट का इस्तेमाल नहीं करते थे, बल्कि दातुन से मुंह धोते थे। न उनके दांतो में सेंसिटिविटी की समस्या थी, न ही पीले दांतों की, और न ही सांसो में बदबू की। और सबसे आश्चर्य की बात यह है कि आज बड़ी-बड़ी कंपनियाँ इन्हीं नैचुरल चीजों को मिलाकर टूथपेस्ट बनाकर मार्केट में लाती है लोग पागलों की तरह उनको खरीदते हैं, चाहे वह कितने ही महंगे क्यों न हो।
रोगों के अनुसार दातुन करिए और स्वस्थ रहिए
शरीर का प्रमुख अंग मुंह को माना जाता है, क्योंकि इसी के माध्यम स शरीर को आहार पहुंचाया जाता है।...
शरीर का प्रमुख अंग मुंह को माना जाता है, क्योंकि इसी के माध्यम स शरीर को आहार पहुंचाया जाता है। मुंह के अन्दर निवास करने वाले दांत खाये जाने वाले पदार्थों को पीसने का काम करते हैं ताकि मुंह में डाले गये भोज्य पदार्थ आसानी से गले के रास्ते होकर पेट तक पहुंच जायें।
हमारे देश में प्राचीन काल से ही दांतों को साफ करने के लिए अनेक प्रकार के वृक्षों की हटनियों को दातुन के रूप में प्रयोग किया जाता है। दातुन करने के माध्यम से हम उस वृक्ष विशेष के रसों को अपने दांतों, मसूड़ों और जीभ के सम्पर्क में ले जाते हैं। वृक्ष विशेष के रस न सिर्फ हमारे दांतों और मसूड़ों को ही स्वस्थ रखते हैं बल्कि शरीर के अनेक रोग भी शान्त होते हैं। इस प्रकरण में अनेक प्रकार के दातुनों का प्रयोग कर अलग-अलग रोगों को रोकथाम के बारे में बताया जा रहा है।
नीम की दातुन : नीम की छाल में निम्बीन या मार्गोसीन नामक तिक्त रालमय सत्व तथा निम्बोस्टेरोल एवं एक प्रकार के उड़नशील तेल के साथ ही छह प्रतिशत टैनिक पाया जाता है। इसका दातुन सभी दातुनों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। इसकी टहनी से प्राप्त रस से मसूड़ंों की सूजन, पायरिया (खून निकलना), दांतों में कीड़ा लगना, पीप आना, दाह (जलन), दांतों का टेढ़ा होना आदि रोगों का नाश होता है।
'गर्भवती औरत अगर अपने गर्भकाल के समस्त दिनों में नीम की ताजी टहनियों की दातुन सुबह-शाम नियमित रूप से करती है तो उसका गर्भस्थ शिशु सम्पूर्ण निरोग होकर जन्म लेता है तथा उसे किसी भी प्रकार के रोग निरोधी टीकों को लगाने की आवश्यकता ही नहीं होती।
बबूल की दातुन : आयुर्वेद के मतानुसार बबूल कफनाशक, पित्तनाशक, व्रणरोषण, स्तम्भन, संकोचक, रक्तरोधक, कफध्न, गर्भाशयशोथहर, गर्भाशय स्रावहर तथा विषघ्न माना गया है। बबूल के अन्दर एक गोंद होता है। बबूल के अन्दर पाये जाने वाले रस में श्वेतप्रदर, शुक्र रोग, अतिसार, फुफ्फुसत्रण, उराक्षत, प्रवाहिका आदि जटिल रोगों के साथ ही दांतों को असमय ही न गिरने देने का, हिलने न देने का, मसूड़ों से खून न निकलने देने का मुंह के छालों का रोकने का भी गुण होता है। ब्रह्मलीन पं. तृप्तिनारायण झा शास्त्री के अनुसार लगातार बबूल के दातुन को करते रहने से बांझपन एवं गर्भपात होने का डर नहीं रहता।
अर्जुन का दातुन : हरीतक्यादि कुल का अर्जुन क्रिस्टलाइन तत्व, अर्जुनेटिन, लेक्टोन था टैनिक से युक्त होता है। यह रक्त स्तम्भक, हृदय रोगों में लाभप्रद, रक्तपित्तशामक, प्रमेहनाशक तथा शारीरिक सुन्दरता को बढ़ाने वाला होता है। इसकी ताजी टहनी से दातुन करने से उच्च रक्तचाप, एन्जाइना, मधुमेह, राजयक्ष्मा आदि अनेक बीमारियां नष्ट हो जाती हैं। अर्जुन की दातुन करने से वक्षस्थल सुडौल होते हैं तथा कमर पतली होती है।
महुआ की दातुन : मधूक या महुआ के रसायनिक संगठनों में माउरिनग्लाइाोसाइडल सैपोनिन तत्व पाया जाता है। जिसका प्रभाव विषैला होताहै परन्तु इसकी टहनी में यह तत्व अतिकम पाया जाता है जो वातपित्तशामक, नाड़ीबल्य, कफनिस्सारक, मूत्रल, दाहप्रशमन, कुष्ठघ्न आदि प्रभाव वाला होता है। साथ ही दांतों का हिलना, दांतों से रक्त आना, मुंह की कड़वाहट, मुंह और गला सूखने की परेशानियों से बचाती है। महुआ दातुन को नियमपूर्वक करने से स्वप्नदोष, शीघ्रपतन, मूत्रप्रदाह आदि बीमारियां भी शान्त होती है।
बरगद की दातुन : बरगद की छाल में दस प्रतिशत टैनिक पाया जाता है। वेदनाहर, वणरोपण, शोथहर, आंखों को ज्योति देने वाला, रक्तरतम्भक, रक्तपित्तहार, गर्भाशयथहर, शुक्रस्तम्भक, गर्भस्थापक, रक्तप्रदर एवं श्वेतप्रदर रोगों में इसका रस उपयोगी होता है। दातुन के माध्यम से चूसा जाने वाला रस मुख को सभी प्रकार से सुरक्षित रखता है। ब्रह्मलीन पं. तृपिनारायण झा शास्त्री के अनुसार बरगद की टहनियों को लगातार दातुन करने से लगातार पुत्रियों का होना रूक जाता है और पुत्र की प्राप्ति होती है।
अपामार्ग की दातुन : अपामार्ग को हिन्दी में चिरचिटा (चिड़चिड़) बंगला में अपाड़, महाराष्ट्र में घाड़ा, अंग्रेजी में प्रिकली चैफ फ्लावर के नामों से जाना जाता है। यह एकपौधीय पौधा होता है। इसके रस में क्षारीय गुण होता है। यह मूत्रल, अश्मरी (पथरी), श्वास रोग, पसीनाजन्य रोग, विषाघ्न, अम्लतनाशक, रक्तवर्ध्दक, शोथहर आदि रोगों का नाश करता है। जो व्यक्ति विवाहोपरान्त प्रतिदिन नियमित रूप से जड़युक्त अपामार्ग का दातुन करता है वह केवल पुत्र को ही जन्म देता है अर्थात् उसे पुत्री नही नहीं होती।
करंज की दातुन : करंज की दातुन बवासीर संग्रहणी, मंदाग्नि जसे पेट के रोग, पेट के कीड़े आदि रोगों में लाभप्रद होती है। बेर के दातुन से गला बैठना, स्वरभेद, गले की खराश, प्रदर रोग, अधिक मासिक स्राव आदि बीमारियां नष्ट होती हैं खैर (खादिर) के दातुन से दांत के कीड़े, रक्त विकार, खांसी मुंह की बदबू आदि बीमारियां दूर हो जाती है।
दातुन लगभग 6-8 इंच लम्बी होनी चाहिए तथा खूब महीन कूची बनाकर ही करनी चाहिए। जितना सम्मत हो, दातुन हमेशा ताजी तोड़ कर ही करनी चाहिए।
प्रातः काल दातुन करने से रातभर की गंदगी निकल जाकी हैं तथा रात में भोजन के बाद दातुन करने से भोजन के फंसे अंश निकल जाते हैं। दातुन करने से पूर्व इन बातों पर भी ध्यान देना आवश्यक होता है।
दातुन खड़े-खड़े या टहल कर नहीं करना चाहिए।
दातुन करने के बाद हमेशा ताजे पानी से ही कुल्ला करना चाहिए।
पांवों के बल उकड़ू बैठकर दातुन करने से दातुन का लाभ सभी अंग प्राप्त कर सकते हैं।
दातुन को बीचों-बीच चीर कर, आपस में रगड़ कर जीभ का साफ करना चाहिए।
चलिये जानते हैं कि क्यों महंगे टूथपेस्ट और ब्रश के जगह पर नीम के दातुन दांतों और ओरल हेल्थ के लिये नीम की दातुन अन्य दातुन से भी अच्छी होती है क्योंकि इसका रासायनिक संगठन नीमबीन नीमबीडीन (nimbin nimbidin) और मारगोडीन (margodin) नामक रासायनिक संगठन से बनता है जो अपने औषधिय गुणों के कारण ओरल हेल्थ के लिए बहुत अच्छा होता है।
आज भी गांवों में लोग व्रत या पूजा में ब्रश का इस्तेमाल करने के जगह पर दातुन का इस्तेमाल करते हैं क्योंकि यह जूठी नहीं होती है। यानि बार-बार का इसका इस्तेमाल नहीं होता है, ताजा तोड़कर इस्तेमाल करने के कारण यह शुद्ध और पवित्र होता है। एक बात का ध्यान रखें कि नीम का दातुन सूखा नहीं होना चाहिए, क्योंकि इससे रस नहीं निकल पाता है जो दांत के साथ पेट और चेहरा के लिए भी अच्छा होता है। चलिये इसके फायदों के बारे में जानते हैं-
• दांतों में कीड़ों से बचाव- बच्चों को दांतों में कीड़ा होने की समस्या तो आम हैं। चॉकलेट खाते रहते हैं और दांत दर्द से रोते रहते हैं। अगर आप नियमित रूप से नीम के दातुन से दांतों को साफ करेंगे तो कभी भी कीड़े की समस्या नहीं होगी, क्योंकि यह किटाणुनाशक होता है।
• मुँह में बदबू, पस और सड़न से राहत दिलाता है-आयुर्वेद के अनुसार यह लघु कषाय कटु एवम् शीत होने के कारण दांतों में सड़न, मुँह में बदबू, पस आदि को होने से रोकती है।
• मुँह के छालों को जल्दी ठीक करता है- नीम के दातुन का एन्टी-माइक्रोबायल गुण मुँह के छालों को जल्दी ठीक होने में बहुत मदद करता है और उनका बार-बार आना कम करता है।
• दांतों के दर्द में असरदार रूप से काम करता है- नीम के दातुन को अच्छी तरह से धोकर धीरे-धीरे चबाना चाहिए, उससे जो रस निकलता है वह दांतो के दर्द को दूर करता है क्योंकि इसका एन्टी-बैक्टिरीयल, एन्टी-फंगल और एन्टी-वायरल गुण इस क्षेत्र में बहुत काम करता है। साथ ही मसूड़े मजबूत होते हैं जिसके कारण बुढ़ापे में भी दांतों की कोई समस्या नहीं होती है।
• दांतो का पीलापन दूर करता है- आजकल तरह-तरह के जंक फूड खाने के वजह से दांतों में पीलेपन की समस्या हो गई है। नीम के दातुन से जो रस निकलता है वह दातों के पीलेपन को साफ करके उन्हें सफेद, स्वस्थ और चमकदार बनाता है।
• फेसलुक को बेहतर बनाता है – कहते हैं कि दातुन को चबाने से जो चेहरे का व्यायाम होता है उससे फेस पर एक स्लिक लुक आ जाता है।
ध्यान देने की बात यह है कि नीम का दातुन कड़वा होने के कारण गर्भवती महिलाएं और बच्चे न ही इस्तेमाल करें तो अच्छा है, हो सकता है कड़वेपन के कारण उन्हें जी मिचलाने या उल्टी होने की समस्या हो। नीम के दातुन से दांतों को रगड़ना नहीं चाहिए बल्कि पहले धीरे-धीरे चबाना चाहिए फिर जब वह ब्रश की तरह मुलायम हो जाय तब धीरे-धीरे दांत को इससे साफ करना चाहिए। यहाँ तक इसको चबाने से जीभ भी साफ हो जाता है। इसलिए टूथब्रश और पेस्ट छोड़े और नीम का दातुन अपनायें-फिर अपने दांतों में आए फर्क को देखें।
ज्योति ओमप्रकाश गुप्ता
वंदेमातरम
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ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
*🔆🔅करेला🌱*
वर्षा ऋतु ⛈🌧में करेले बहुतायत में पाये जाते हैं। मधुमेह, बुखार, आमवात एवं यकृत के मरीजों के लिए अत्यंत उपयोगी करेला, एक लोकप्रिय सब्जी है।
*आयुर्वेद के मतानुसार करेले पचने में हलके, रुक्ष, स्वाद में कच्चे, पकने पर तीखे एवं उष्णवीर्य होते हैं। करेला रुचिककर, भूखवर्धक, पाचक, पित्तसारक, मूत्रल, कृमिहर, उत्तेजक, ज्वरनाशक, पाचक, रक्तशोधक, सूजन मिटाने वाला, व्रण मिटाने वाला, दाहनाशक, आँखों के लिए हितकर, वेदना मिटाने वाला, मासिकधर्म का उत्पत्तिकर्ता, दूध शुद्ध करने वाला, मेद, गुल्म (गाँठ), प्लीहा (तिल्ली), शूल, प्रमेह, पांडु, पित्तदोष एवं रक्तविकार को मिटाने वाला है।* करेले कफ प्रकृतिवालों के लिए अधिक गुणकारी है तथा खाँसी, श्वास एवं पीलिया में भी लाभदायक है। करेले के पत्तों का ज्यादा मात्रा में लिया गया रस वमन-विरेचन करवाता है, जिससे पित्त का नाश होता है।
बुखार, सूजन, आमवात, वातरक्त, यकृत या प्लीहावृद्धि एवं त्वचा के रोगों में करेले की सब्जी लाभदायक होती है। *🔅चेचक-खसरे के प्रभाव से बचने के लिए भी प्रतिदिन करेले की सब्जी का सेवन करना लाभप्रद है। इसके अलावा अजीर्ण, मधुप्रमेह, शूल, कर्णरोग, शिरोरोग एवं कफ के रोगों आदि में मरीज की प्रकृति क अनुसार एवं दोष का विचार करके करेले की सब्जी देना लाभप्रद है।*
🔅आमतौर पर करेले की सब्जी बनाते समय उसके ऊपरी हरे छिलके उतार लिये जाते हैं ताकि कड़वाहट कम हो जाय। फिर उसे काटकर, उसमें नमक मिलाकर, उसे निचोड़कर उसका कड़वा रस निकाल लिया जाता है और तब उसकी सब्जी बनायी जाती है। ऐसा करने से करेले के गुण बहुत कम हो जाते हैं। इसकी अपेक्षा कड़वाहट निकाले बिना, पानी डाले बिना, मात्र तेल में छाँककर (तड़का देकर अथवा बघार कर) बनायी गयी करेले की सब्जी परम पथ्य है। करेले के मौसम में इनका अधिक से अधिक उपयोग करके आरोग्य की रक्षा करनी चाहिए।
✅विशेषः करेले अधिक खाने से यदि उलटी या दस्त हुए हों तो उसके इलाज के तौर पर घी-भात-मिश्री खानी चाहिए। करेले का रस पीने की मात्रा 10 से 20 ग्राम है। उलटी करने के लिए रस पीने की मात्रा 100 ग्राम तक की है। करेले की सब्जी 50 से 150 ग्राम तक की मात्रा में खायी जा सकती है। करेले के फल, पत्ते, जड़ आदि सभी भाग औषधि के रुप में उपयोगी हैं।
🚫सावधानीः जिन्हें आँव की तकलीफ हो, पाचनशक्ति कमजोर दुर्बल प्रकृति के हों, उन्हें करेले का सेवन नहीं करना चाहिए। ग्रीष्म ऋतु में, पित्तप्रकोप की ऋतु कार्तिक मास में करेले का सेवन नहीं करना चाहिए।
*🔆🔅औषधि-प्रयोगः*
🔅मलेरियाः करेले के 3-4 पत्तों को काली मिर्च के 3 दानों के साथ पीसकर दें तथा पत्तों का रस शरीर पर लगायें। इससे लाभ होता है।
🔅बालक की उलटीः करेले के 1 से 3 बीजों को एक दो काली मिर्च के साथ पीसकर बालक को पिलाने से उलटी बंद होती है।
*🔅✅मधुप्रमेहः कोमल करेले के टुकड़े काटकर, उन्हें छाया में सुखाकर बारीक पीसकर उनमें दसवाँ भाग काली मिर्च मिलाकर सुबह शाम पानी के साथ 5 से 10 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन लेने से मूत्रमार्ग से जाने वाली शक्कर में लाभ होता है। कोमल करेले का रस भी लाभकारक है।*
*🔅यकृतवृद्धि(लीवर): 20 ग्राम करेले का रस, 5 ग्राम राई का चूर्ण, 3 ग्राम सेंधा नमक इन सबको मिलाकर सुबह खाली पेट पीने से यकृतवृद्धि, अपचन एवं बारंबार शौच की प्रवृत्ति में लाभ होता है।*
🔅तलवों में जलनः पैर के तलवों में होने वाली जलन में करेले का रस घिसने से लाभ होता है।
🔅बालकों का अफराः बच्चों के अफरे में करेले के पत्तों के आधा चम्मच रस में चुटकी भेर हल्दी का चूर्ण मिलाकर पिलाने से बालक को उलटी हो जायेगी एवं पेट की वायु तथा अफरे में लाभ होगा।
*🔅✅बवासीरः करेले के 10 से 20 ग्राम रस में 5 से 10 ग्राम मिश्री मिलाकर रोज पिलाने से लाभ होता है।*
🔅मूत्राल्पताः जिनको पेशाब खुलकर न आता हो, उन्हें करेले अथवा उनके पत्तों के 30 से 50 ग्राम रस में दही का 15 ग्राम पानी मिलाकर पिलाना चाहिए। उसके बाद 50 से 60 ग्राम छाछ पिलायें। ऐसा 3 दिन करें। फिर तीन दिन यह प्रयोग बंद कर दें एवं फिर से दूसरे 6 दिन तक लगातार करें तो लाभ होता है।
इस प्रयोग के दौरान छाछ एवं खिचड़ी ही खायें।
*🔅अम्लपित्तः करेले एवं उसके पत्ते के 5 से 10 ग्राम चूर्ण में मिश्री मिलाकर घी अथवा पानी के साथ लेने से लाभ होता है।*
*🔅वीर्यदोषः 50 ग्राम करेले का रस, 25 ग्राम नागरबेल के पत्तों का रस, 10 ग्राम चंदन का चूर्ण, 10 ग्राम गिलोय का चूर्ण, 10 ग्राम असगंध (अश्वगंधा) का चूर्ण, 10 ग्राम शतावरी का चूर्ण, 10 ग्राम गोखरू का चूर्ण एवं 100 ग्राम मिश्री लें। पहले करेले एवं नागरबेल के पत्तों के रस को गर्म करें। फिर बाकी की सभी दवाओं के चूर्ण में उन्हें डालकर घिस लें एवं आधे-आधे ग्राम की गोलियाँ बनायें। सुबह दूध पीते समय खाली पेट पाँच गोलियाँ लें। 21 दिन के इस प्रयोग से पुरुष की वीर्यधातु में वृद्धि होती है एवं शरीर में ताकत बढ़ती है।*
*🔅सूजनः करेले को पीसकर सूजव वाले अंग पर उसका लेप करने से सूजन उतर जाती है। गले की सूजन में करेले की लुगदी को गरम करके लेप करें।*
*🔅कृमिः पेट में कृमि हो जाने पर करेले के रस में चुटकीभर हींग डालकर पीने से लाभ होता है।*
🔅जलने परः आग से जले हुए घाव पर करेले का रस लगाने से लाभ होता है।
🔅रतौंधीः करेले के पत्तों के रस में लेंडीपीपर घिसकर आँखों में आँजने से लाभ होता है।
पांडुरोग (रक्ताल्पता)- करेले के पत्तों का 2-2 चम्मच रस सुबह-शाम देने से पांडुरोग में लाभ होता है।
आरोग्य निधि 🔆🔅
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**नेत्र रोग नाशक नुस्खे*
*नेत्र रोग के कारण :खुले स्थान में अधिक देर तक स्नान करना, सूक्ष्म और दूर की वस्तु को बहुत देर तक देखना, रात में जागना और दिन में सोना, आँखों में धूल, धुआँ और मिट्टी पड़ जाना, धूप में गरम हुए पानी से मुँह धोना, पौष्टिक खाद्य का अभाव, चाय और वनस्पति-घी का उपयोग अधिक करना आदि कारणों से नेत्रों के रोग उत्पन्न होते हैं।*
*नेत्र-रोगों से बचने के सामान्य उपाय :*
💐💐💐 *जो मनुष्य नियमित जीवंत सुबह उठते ही बासी थूक(लार) नयन में काजल की तरह लगाते हैं उन्हें जीवंत नयन रोग नहीं होता है व नयन रोग से ग्रसित है तो पूर्णतः ठीक हो जाता है* 💐💐💐
*(1) धूल या मिट्टी आँख में पड़ जाए तो आँखों को मसलना नहीं चाहिए। धीरे-धीरे आँखें खोलने और बन्द करने से या ठण्डे पानी के छींटे देने से धूल के कण आसानी से निकल जाते हैं।*
*(2) पढ़ते-लिखते समय प्रकाश हमेशा उचित मात्रा में, पीछे या बायीं तरफ से आना चाहिए, सामने से प्रकाश आने से आँखें बहुत जल्दी थक जाती हैं।*
*(3) कापी या किताब 12 से 15 इञ्च की दूरी पर रखना चाहिएं।*
*(4) सुबह उठते ही प्रतिदिन ठण्डे पानी से आँखें धोनी चाहिएं।*
*(5) सरसों के तेल से बना काजल या गुलाबजल आँखों में प्रतिदिन डालना चाहिए।*
*(6) अधिक देर तक पढ़ते-लिखते समय आँखों की थकान दूर करने के लिए-बीच-बीच में अपनी हथेलियों को हल्के से आँखों पर रखें, जिससे बाहरी-प्रकाश आँखों पर न पड़े।*
*(7) हरे शाक-सब्जी, दूध आदि के प्रयोग से आँखों की शक्ति बढ़ती है।*
*(8) आँखों को बार-बार ऊपर-नीचे, दाँए-बाँए, तिरछा और गोल-गोल घुमाकर आँखों का व्यायाम करें। फिर थोड़ी देर के लिए आँखें बन्द कर लें ।*
*(9) प्रतिदिन घी का अधिक से अधिक उपयोग करने से आँखों की शक्ति बढ़ती है।*
*(10) अन्य व्यक्ति का रूमाल, तौलिया या अँगोछे का उपयोग नहीं करना चाहिए।*
*नेत्र-रोगों से रक्षा के उपाय :*
*(1) तिल के ताजे 5 फूल प्रातःकाल (अप्रेल में ही) निगलें, तो पूरे वर्ष आँखें नहीं दुखेंगी।*
*(2) चैत्र के महीने में प्रतिवर्ष ‘गोरखमुण्डी’ के 5 या 7 ताजे फूल चबाकर पानी के साथ खाने से आँखों की ज्योति बढ़ती है ।*
*(3) एक सप्ताह के बच्चे को बेलगिरी के बीच की मिंगी शहद में मिलाकर चटाने से जीवनभर आँखें नहीं दुखतीं ।*
*(4) नींबू का एक बूंद रस महीने में एक बार आँखों में डालने से कभी आँखें नहीं दुखतीं।*
*नेत्र रोग नाशक घरेलु इलाज :*
*(1) पुनर्नवा के अर्क की 2-3 बूंदें आँखों में टपकाने से आँखों के सभी रोग दूर होते हैं।*
*(2) तिल के फूलों पर, जो ओस इकट्ठी होती है, उसे इंजेक्शन के द्वारा एकत्रित करके साफ शीशी में रख लें, इसे आँखों में डालने से नेत्रों के सभी विकार दूर होते हैं।*
*(3) नीम के हरे पत्तों को साफ करके एक सम्पुट में रख दें, ऊपर से एक कपड़ा ढंककर मिट्टी लगा दें तथा आग पर रख दें। जब पत्तियाँ बिल्कुल राख हो जायें, तब उन्हें निकालकर, नीबू के रस में मिलाकर आँखों में लगाने से खुजली, जलन आदि दूर होती है।*
*(4) एक भाग पीपल और दो भाग बड़ी हरड़ को पानी में घिसकर बत्ती बनाकर, आँखों में लगाने से सभी रोग दूर होते हैं।*
*(5) गोरखमुण्डी की जड़ को छाया में सुखाकर पीस लें, उसी मात्रा में शक्कर मिलाकर 7 माशा गाय के दूध के साथ पीने से आँखों के अनेक विकार दूर होते हैं।*
*(6) त्रिफला को 4 घण्टे पानी में भिगो दें और छानकर वही पानी आँखों में डालने से व त्रिफला की टिकिया बाँधने से त्रिदोष से उतपन्न आँखों के सभी रोग दूर होते हैं।*
*(7) सोंठ और नीम के पत्तों को पीसकर गरम कर लें और सेंधा नमक मिलाकर टिकिया बना लें फिर आँखों के ऊपर रखकर पट्टी बाँधने से कई रोगों में आराम मिलता है।*
*(8) हरड़, सेंधा नमक, गेरू और रसौत को पानी में पीसकर पलकों पर लगाने से सभी रोग दूर होते हैं।*
*(9) सात माशे फिटकरी को ग्वारपाठे के रस में घोंटकर, काँसे की थाली में बीच में रख दें, ऊपर से काँसे की कटोरी ढक दें। थाली के नीचे हल्की आँच जलाएं, फिटकरी के फूल उचटकर ऊपर ढकी हुई कटोरी में चिपक जायेंगे, इन फूलों में शुद्ध शोरा मिलाकर- आँखों में लगाने से फूला, जाला आदि रोग दूर होते हैं।*
*(10) ढाक की जड़ का स्वरस या भाप के द्वारा निकाला गया अर्क आँखों में डालने से- रतौंधी और आँखों से पानी बहना आदि रोग दूर हो जाते हैं।*
*(11) देवदारु के चूर्ण को बकरी के मूत्र की भावना देकर, घी के साथ लेने से आँखों के सभी रोग दूर होते हैं।*
*(12) देशी गाय के ताजा गौमूत्र को 16 तह सूती कपड़े से छानकर सुबह शाम एक एक बूंद आँखों मे डालने से नयन के सभी रोग नस्ट होते हैं*
*निरोगी रहने हेतु महामन्त्र*
*मन्त्र 1 :-*
*• भोजन व पानी के सेवन प्राकृतिक नियमानुसार करें*
*• रिफाइन्ड नमक,रिफाइन्ड तेल,रिफाइन्ड शक्कर (चीनी) व रिफाइन्ड आटा ( मैदा ) का सेवन न करें*
*• विकारों को पनपने न दें (काम,क्रोध, लोभ,मोह,इर्ष्या,)*
*• वेगो को न रोकें ( मल,मुत्र,प्यास,जंभाई, हंसी,अश्रु,वीर्य,अपानवायु, भूख,छींक,डकार,वमन,नींद,)*
*• एल्मुनियम बर्तन का उपयोग न करें ( मिट्टी के सर्वोत्तम)*
*• मोटे अनाज व छिलके वाली दालों का अत्यद्धिक सेवन करें*
किडनी के रोगियों के लिए 3 रामबाण प्रयोग
किडनी के रोगी चाहे उनका डायलासिस चल रहा हो या अभी शुरू होने वाला हो, चाहे उनका क्रिएटिनिन या यूरिया कितना भी बढ़ा हो, और अगर डॉक्टर्स ने भी उनको किडनी ट्रांसप्लांट के लिए बोल दिया हो, ऐसे में उन रोगियों के लिए विशेष 3 रामबाण प्रयोग हैं, जो उनको इस प्राणघातक रोग से छुटकारा दिला सकते हैं
1. नीम और पीपल की छाल का काढ़ा
आवश्यक सामग्री।
नीम की छाल – 10 ग्राम
पीपल की छाल – 10 ग्राम
3 गिलास पानी में 10 ग्राम नीम की छाल और 10 ग्राम पीपल की छाल लेकर आधा रहने तक उबाल कर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को दिन में 3-4 भाग में बाँट कर सेवन करते रहें। इस प्रयोग से मात्र सात दिन क्रिएटिनिन का स्तर व्यवस्थित हो सकता है या प्रयाप्त लेवल तक आ सकता है।
2. गेंहू के जवारो और गिलोय का रस
गेंहू के जवारे (गेंहू घास) का रस
गिलोय(अमृता) का रस।
गेंहू की घास को धरती की संजीवनी के समान कहा गया है, जिसे नियमित रूप से पीने से मरणासन्न अवस्था में पड़ा हुआ रोगी भी स्वस्थ हो जाता है। और इसमें अगर गिलोय(अमृता) का रस मिला दिया जाए तो ये मिश्रण अमृत बन जाता है। गिलोय अक्सर पार्क में या खेतो में लगी हुयी मिल जाती है।
गेंहू के जवारों का रस 50 ग्राम और गिलोय (अमृता की एक फ़ीट लम्बी व् एक अंगुली मोटी डंडी) का रस निकालकर – दोनों का मिश्रण दिन में एक बार रोज़ाना सुबह खाली पेट निरंतर लेते रहने से डायलिसिस द्वारा रक्त चढ़ाये जाने की अवस्था में आशातीत लाभ होता है।
इसके निरंतर सेवन से कई प्रकार के कैंसर से भी मुक्ति मिलती है। रक्त में हीमोग्लोबिन और प्लेटलेट्स की मात्रा तेज़ी से बढ़ने लगती है। रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत बढ़ जाती है। रक्त में तुरंत श्वेत कोशिकाएं (W.B.C.) बढ़ने लगती हैं। और रक्तगत बिमारियों में आशातीत सुधार होता है। तीन मास तक इस अमृतपेय को निरंतर लेते रहने से कई असाध्य बीमारियां ठीक हो जाती हैं।
इस मिश्रण को रोज़ाना ताज़ा सुबह खाली पेट थोड़ा थोड़ा घूँट घूँट करके पीना है। इसको लेने के बाद कम से कम एक घंटे तक कुछ नहीं खाएं।
उदयपुर के पास के गाँव में एक वैद श्री पालीवाल जी का अनुभव है के नीम गिलोय की तीन अंगुली जितनी डंठल को पानी में उबालकर, मसल छानकर पीते रहने से डायलिसिस वाले रोगी को बहुत लाभ मिलता है।
3. गोखरू काँटा काढ़ा
250 ग्राम गोखरू कांटा (ये आपको पंसारी से मिल जायेगा) लेकर 4 लीटर पानी मे उबालिए जब पानी एक लीटर रह जाए तो पानी छानकर एक बोतल मे रख लीजिए और गोखरू कांटा फेंक दीजिए। इस काढे को सुबह शाम खाली पेट हल्का सा गुनगुना करके 100 ग्राम के करीब पीजिए। शाम को खाली पेट का मतलब है दोपहर के भोजन के 5, 6 घंटे के बाद। काढ़ा पीने के एक घंटे के बाद ही कुछ खाइए और अपनी पहले की दवाई ख़ान पान का रोटिन पूर्ववत ही रखिए।
15 दिन के अंदर यदि आपके अंदर अभूतपूर्व परिवर्तन हो जाए तो डॉक्टर की सलाह लेकर दवा बंद कर दीजिए। जैसे जैसे आपके अंदर सुधार होगा काढे की मात्रा कम कर सकते है या दो बार की बजाए एक बार भी कर सकते है।
ज़रूरत के अनुसार ये प्रयोग एक हफ्ते से 3 महीने तक किया जा सकता है. मगर इसके रिजल्ट १५ दिन में ही मिलने लग जाते हैं. अगर कोई रिजल्ट ना आये तो बिना डॉक्टर या वैद की सलाह से इसको आगे ना बढ़ायें.
*रीढ़ की हड्डी का दर्द*
*नई तकनीकी खोजों , शारीरिक व्यायाम की कमी और आरामदायक जीवन - शैली ने सिरदर्द , चक्कर आना और पीठ दर्द जैसी कई परेशानियाँ पैदा कर दी हैं । ज्यादातर ऑफिस जाने वाले लोग घंटों कुर्सी पर बैठ कर काम करते हैं वे अपने शरीर को ज्यादा कष्ट नहीं देना चाहते । वहीं दूसरी ओर महिलाएं घरेलू कामकाज के लिए मिक्सर , ग्राइंडर और वाशिंग मशीन जैसे उपकरणों का इस्तेमाल करती हैं । इन सब वजह से किसी न किसी प्रकार से दर्द झेलना पड़ता है । हमारी पीठ की इंजिनियरी जबरदस्त है , इसमें लोच है , इसके बोझा उठाने वाले बिंदु सदा सक्रिय रहते हैं । और हमारे पोस्चर को ठीक रखते हैं । परंतु अचानक झटका लगने , भारी सामान उठाने , अचानक झुकने या मुड़ने के कारण पीठ में दर्द हो सकता है ।एक बार मे एक ही काम करना चाहिए । अक्सर लोग हड़बड़ाहट में यह दोनों एक साथ कर बैठते हैं । और दर्द झेलना पड़ता है । वैसे ज्यादातर मामलों में गर्दन व पीठ का दर्द अपने आप ही मिट जाता है और कोई बड़ी समस्या नहीं बन पाता । । अपने आप रोग पहचाने : अगर आप किसी आदमकद शीशे के सामने खड़े हो कर नीचे लिखे प्रश्नों का उत्तर दें तो अपनी रीढ़ की सही हालत का अंदाजा अपने आप लगा सकते हैं : ( १ ) क्या आपके सिर का झुकाव एक ओर रहता है ? ( २ ) क्या गर्दन के बीचों - बीच बल पड़ता है ? ( ३ ) क्या एक कंधा दूसरे कंधे से ऊँचा है ? ( ४ ) क्या एक नितंब दूसरे नितंब से ऊँचा है ?( ५ ) क्या एक नितंब दूसरे नितंब की तुलना में उभरा हुआ । ( ६ ) क्या आपको अपना सिर , आगे - पीछे और दाएं - बाएँ घुमाने में कठिनाई होती है ? ( ७ ) क्या आपको आगे और पीछे की ओर मुड़ने में तकलीफ होती है ? ( ८ ) क्या आपकी खड़ी हुई मुद्रा , एक ओर को झुकी दिखाई देती है ?*
*अगर आपने इनमें से किसी एक भी प्रश्न का उत्तर ' हाँ ' में दिया है तो इसका अर्थ होगा कि आपकी रीढ़ सही आकार में नहीं है जो अलग अलग अंगों में दर्द पैदा करने की वजह बन सकती है ।*
*( १ ) सर्वाइकल क्षेत्र में दर्द*
*( अ ) सर्वाइकल स्पांडिलायसिस - चालीस साल की उम्र के बाद सर्वाइकल स्पाइन में आने वाले डिजेनेरेटिव बदलाव सवाईकल । स्पांडिलायसिस कहलाते हैं । 65 वर्ष के बाद ये बदलाव सभी व्यक्तियों में पाए जाते हैं । यही गर्दन तथा कंधों में दर्द का सबसे बड़ा कारण होता है । इन बदलावों के कारण गर्दन में दर्द हो सकता है , हिलाने में दिक्कत हो सकती है । या मांसपेशियाँ कमजोर पड़ सकती है । कभी कभी किसी एक ही व्यक्ति में एक या एक से अधिक लक्षण पाए जाते हैं । कई बार इसका संबंध व्यवसाय की प्रकृति से भी होता है , जैसे एक कार के ड्राइवर को लगातार अपनी गर्दन इधर - उधर मोड़नी पड़ती है और ऊबड़ - खाबड़ सड़कों पर सहने पड़ते हैं । इससे उसकी डिस्क के अंदरूनी*हिस्से पर चोट पहुँचती है और उसे सहारा देने वाला पदार्थ कम हो जाता है । तनाव , आरामदायक जीवन - शैली और कसरत की कमी से मांसपेशियाँ ढीली पड़ जाती हैं । और मेरुदंड को नुकसान झेलना पड़ता है । निम्न कारणों से भी गर्दन में दर्द पैदा हो सकता है : जोड़ों के क्षतिग्रस्त लिगामेंट । लिगामेंट के ज्यादा खिंचाव से गर्दन अकड़ जाती है । ऑस्टियोफाइटस भी स्नायु पर दबाव डालते हैं । कई बार यह दर्द स्नायु से फैल कर दूसरे अंगों में भी पहुँच जाता है । अक्सर मरीज गर्दन व कंधे के साथ - साथ छाती की मांसपेशियों में तकलीफ की शिकायत भी करते हैं । नस पर किस जगह से दबाव पड़ रहा है , यह जान कर*
*इलाज किया जा सकता है । इसके कारण अंगों में झनझनाहट या सुन्न होने की स्थिति भी हो सकती है । * अगर सर्वाइकल स्पांडिलायसिस गंभीर रूप ले ले तो यह पीछे की ओर जा कर मेरुदंड रज्जु पर दबाव डाल सकता है । जिससे शरीर के पूरी निचले भाग में कमजोरी या बोध की कमी हो सकती है । कभी - कभी डिस्क दो कशेरुकों के बीच से खिसक कर नाड़ी पर दबाव डालती है जिससे दर्द होने लगता है । एम . आर . आई . और सी . टी . स्केन जैसे टेस्टों से ऐसी हालत का पता लगा कर इलाज किया जा सकता है । डिस्क के आगे की ओर उभरने वाली गंभीर स्थितियों में इसे शल्य क्रिया द्वारा हटाया जा सकता है । ताकि स्नायु पर पड़ने वाला दबा कम हो जाए*
*( ब ) सिरदर्द - जब सर्वाइकल वर्टिबरे में से होकर गुजरने वाली नाड़ियाँ उत्तेजित हो जाती हैं तो गर्दन में जकड़न और शरीर के ऊपरी अंगों के सुन्न होने की शिकायत हो सकती है । यह सिर दर्द का प्रमुख कारण होता है । वैसे तो अधेड़ उम्र में सिरदर्द की ज्यादा शिकायत होती है । लेकिन आजकल बच्चों में भी यह समस्या पाई जाने लगी है । अनेक ऐसे मामले भी देखे गए हैं जहाँ युवाओं में सिर दर्द व चक्कर आने की शिकायत पाई जाती है । उनके एक्स - रे से भी कुछ पता नहीं चलता । ऐसे में रोगी को मनोरोगी मान कर मनोचिकित्सक के पास भेज दिया जाता है । वह भी रोग का कोई मानसिक कारण नहीं खोज पाता जबकि यह मेरुदंड में होने वाली उत्तेजना की वजह से होता है । कीरोप्रक्टिक पद्धति से इस रोग का इलाज में किया जा सकता है । ब्रेन ट्यूमर , अपच , मानसिक कारणों , दाँत में इंफेक्शन या दिमाग पर असर डालने वाले दूसरे रोगों के कारण भी सिरदर्द हो सकता है ।*
*( स ) चक्कर आना - सर्वाइकल क्षेत्र से निकलने वाली नाड़ियों की उत्तेजना के कारण ही चक्कर आते हैं । इसका इलाज दवाओं से किया जाए तो रक्त के प्रवाह में सुधार होता है , अस्थायी आराम मिलता है परंतु रोग जड़ से नहीं जाता ।*
*( द ) माइग्रेन : माइग्रेन में रोगी को अचानक तेज सिरदर्द का दौरा पड़ता है । उसे उल्टी करने इच्छा होती है या उल्टी आ जाती है । यह दर्द इतना तेज होता है*
*रोगी जरा सा भड़काने पर उत्तेजित हो जाता है और बाहरी दुनिया से बच कर अपने खोल में छिप जाता है । यह दौरा कुछ घंटों से लेकर कुछ दिन तक का हो सकता है । माइग्रेन का दवाओं से किया जाने वाला इलाज अधूरा और असंतोषजनक है । क्योंकि इसमें नाड़ियों की उत्तेजना शांत कराने का उपाय नहीं किया जाता जो कि इस रोग की जड़ है ।*
*( 2 ) थोरेसिक ( छाती ) क्षेत्र में दर्द होना : इंटरकोस्टल नसों पर दबाव पड़ने से छाती में तेज दर्द होता है । इसे डॉक्टरी भाषा में इंटरकोस्टल न्यूरोलाजिया ( Intercostal neuralgia ) कहते हैं । मेरुदंड रज्जु और पसलियों के बीच निकलने वाली तंत्रिकाओं में उत्तेजना की वजह से ऐसा होता ऐसी हालत में मरीजों को दर्द निवारक दवायाँ लेने की सलाह दी जाती है , जिनसे थोड़ी देर के लिए दर्द घटता है और दवा का असर मिटते ही हालत वैसी ही हो जाती है । कई बार इसे गलती से हृदय रोग मान कर उसी तरह इलाज कर दिया जाता है । कशेरुकों को सही स्थान पर बिठाने से यह दर्द ठीक हो सकता है । वैसे इस क्षेत्र से जुड़ी तकलीफें कम ही देखने में आती हैं ।*
*( ३ ) लम्बर ( कमर ) क्षेत्र में दर्द होना : कई बार हम पीठ दर्द की वजह आस्टियोआर्थराइटिस , स्लिप डिस्क या मेरुदंड को बैठाते हैं जबकि कारण कुछ और ही होता है । यह दर्द अनेक जटिल कारणों से टो सकता है क्योंकि पीठ में अनेक हड्डियाँ , लिगामेंट , मांसपेशियाँ नाडियाँ और रक्त नलिकाएँ हैं जो*सलाह भी दी जाती है । कभी - कभी गंभीर मामलों में रोगी को पैर का लकवा भी मार सकता है जिससे वह न तो पैर उठा पाता है । और न ही चल पाता है । हालांकि ऐसे मामले बहुत कम होते हैं ।*
*( ४ ) प्रोलैप्स्ड डिस्क ( prolapsed disc ) के कारण दर्द होनाः जब भी मरीजों की पीठ में असहनीय दर्द होता है तो वे इसे ' स्लिप डिस्क का नाम दे देते हैं । यह एक गलतफहमी है । डिस्क नहीं खिसकती । दबाव पड़ने या झटका लगने के कारण यह एक बिंदु पर बाहर की ओर उभर आती है । यदि आम भाषा में कहें तो यह कमजोर मांसपेशियों के कारण आगे चल कर खिसक सकती है । अचानक झटका लगने के कारण के केंद्र में भरा नरम जैली जैसा पदार्थ*अचानक झटका लगने के कारण डिस्क के केंद्र में भरा नरम जैली जैसा पदार्थ ( न्यूक्लियस पलपोसस ) बाहरी घेरे को तोड़ कर बाहर आ जाता है जिससे तंत्रिका तंत्र पर दबाव पड़ने लगता है । और तेज दर्द होने लगता है । डिस्क एक नरम और भंगुर पदार्थ है जो शरीर में शॉक एब्जावर ( shock absorber ) का काम करती है । चौबीस हड्डियों के ढांचे में डिस्क के 23 सैट होते हैं । केवल भारी सामान उठाने से ही यह तकलीफ नहीं होती । कभी - कभी छोटी सी वजह भी प्रोलैप्स डिस्क का कारण बन जाती है । जमीन से हल्का सा भार उठान , कार से सामान उतारने या तेजी से व्यायाम करने से भी डिस्क में दरार पड़ सकती है । कई बार सट किया लम्बे समय तक ( वर्षों तक ) चल * अगर दर्द बना रहता है ।*यहाँ तक कि एक स्वस्थ व्यक्ति भी इस तरह के दर्द का शिकार हो सकता है । इस समय उसे डॉक्टर , कीरोप्रेक्टर या फिजियोथैरेपिस्ट की मदद लेनी चाहिए ।*
*( ५ ) शियाटिका : अधेड़ उम्र में अक्सर जाँघों व टाँगों में सनसनाहट महसूस होती है । इसे ' शियाटिका ' कहते हैं । शियाटिका इस बात का लक्षण है । कि शरीर के किसी अंग के ठीक काम न करने या चोट लगने की वजह से तंत्रिका तंत्र पर दबाव पड़ रहा है या उत्तेजना पैदा हो रही है । शियाटिका स्नायु शरीर में सबसे लंबे और बड़े होते है जो कि नितंबों की दाईं ओर से ले कर , जाँघों के पीछे , पाँवों तक फैले होते हैं । शियाटिका का असर इसकी लम्बाई पर निर्भर करता है वैसे ज्यादातर मामलों में यह जाँघ के पीछे दर्द जलन या झनझनाहट के रूप में महसूस होता है । यह पीठ - दर्द के साथ भी उभर सकता है । । जब कोई व्यक्ति लगातार झुक कर काम करता है तो हालत और भी बदतर हो जाती है । यहाँ तक कि खाँसने और छींकने से भी तेज दर्द होता है । गठिया , चोट लगना , कूल्हे का कोई रोग , गर्भधारण के दौरान दबाव पड़ना , सिफलिस , सर्दी लगना व मदिरापान आदि शियाटिका के मुख्य कारण हो सकते हैं । शियाटिका स्नायु पर दबाव पड़ने या चोट लगने से जलन महसूस हो सकती है ।*
*इन सभी रोगों का इलाज कैसे हो ?*
*इतिहास : किसी भी रोग के सफल इलाज के लिए मरीज की केस हिस्टरी पता होना बहुत जरूरी है । यह जानना जरूरी होता के दर्द*कहाँ व किस हिस्से में है , कितने समय से है , दर्द गिरने की वजह से हुआ या किसी दुर्घटना की वजह से आदि । कई बार वजन बढ़ने या किसी तरह के संक्रमण ( इंफेक्शन ) के कारण भी दर्द हो सकता है । जांच - पड़ताल : डॉक्टर को देखना चाहिए कि रोगी दोनों ओर ठीक तरह से गर्दन हिला रहा है या नहीं । उसके ऊपरी अंगों में किसी तरह की जकड़न तो नहीं हैं । इस तरह पता चल जाएगा कि दर्द किस हिस्से में है ।*
*रीढ़ की हड्डी में दर्द का इलाज : दर्द किस हिस्से में है , कितने समय से हो रहा है , मांसपेशियों की दशा और लोच पर विचार करने के बाद ही इलाज शुरू किया*जाता है । कुछ इलाज नीचे बताए गए हैं ।*
*( १ ) कमर दर्द के लिए एक्यूपंचर एक बेजोड़ इलाज है । इस पद्धति मे मांसपेशियों को आराम देने के लिए कई तरह की । सुईयँ इस्तेमाल की जाती हैं । छोटे बच्चों के लिए एक्यूपंचर इस तरह होता है , जिससे उन्हें दर्द का एहसास न हो*
*( २ ) कई बार लोकल एनस्थीसिया जाइलोकेन ( 1 % ) देने से भी मांसपेशियों को आराम मिल जाता है । वैसे बिगड़े हुए मामलों में ही इसका प्रयोग होता है इस पद्धति को ' न्यूरल थैरेपी कहते है ।*
*( ३ ) गुनगुने आयुर्वेदिक तेल से की गई मालिश से भी शरीर खुलता है और दर्द भी नस्ट होता है*
*( ४ ) कीरोप्रेक्टर भी समस्या को हल कर सकता है बशर्ते अनाड़ी हाथों से न किया जाए । यह पद्धति ‘ आस्टियोपैथी कहलाती है ।*
*( ५ ) ओजोन थैरेपी में ओजोन का इंजेक्शन दिया जाता है । बहुत गंभीर मामलों में जब रोगी गर्दन हिलाने की हालत में न हो और कंधे की मांसपेशियाँ अकड़ कर दर्द करने लगे तो एक्यूपंचर , गर्म तेल की मालिश , लोकल एनस्थीसया और ओजोन थैरेपी को मिला कर इलाज करना पड़ता है । जब एक - दो दिन में मांसपेशियों को आराम आ जाए तो सभी जोड़ों को सही जगह आराम से बिठाना चाहिए । गलत तरीके से इलाज करने पर परेशानी बढ़ भी सकती है । रोगी को इलाज के लिए कितनी बार आना होगा यह उसके दर्द पर निर्भर करता है*इसके बाद रोगी को दोबारा डॉक्टर के पास दिखाने अवश्य जाना चाहिए और लगातार एक - दो सप्ताह तक गर्म आयुर्वेदिक तेल से हल्की मालिश करनी चाहिए ।*
* *रीढ़ की हड्डी में दर्द के घरेलू उपचार :-*
*1 - सोंठ - सोंठ का चूर्ण या अदरक का रस , 1 चम्मच नारियल के तेल में पकाकर फिर इसे ठंडा करके दर्द कमर पर लगभग 15 मिनट तक मालिश करें । इससे रीढ़ की हड्डी में दर्द , कमर दर्द में आराम मिलता है ।*
*सहजन - सहजन की फलियों की सब्जी खाने से रीढ़ की हड्डी में दर्द में फायदा होता है ।*
*3 - मेथी - मेथी दाने के लड्डू बनाकर 3 हफ्ते तक सुबह - शाम सेवन करने और मेथी के तेल को दर्द वाले अंग पर मलते रहने से पूर्ण आराम मिलता है ।*
*4 - अजवाइन - अजवाइन को 1 पोटली में । रखकर उसे तवे पर गर्म करें । फिर इस पोटली से कमर को सेंकें इससे आराम होगा*
*5 - छुहारा - सुबह - शाम 1 - 1 छुहारा खायें । इसके सेवन से रीढ़ की हड्डी में दर्द व कमर दर्द मिट जाता है ।*
*6 - असंगध - असगंध और सोंठ बालर मात्रा में लेकर इनका चूर्ण बना लें । इसमें आ चम्मच चूर्ण सुबह - शाम पानी के साथ सेवन से*
*7 - एलोवेरा - 10 ग्राम ग्वारपाठे का गूदा , 4 लौंग , 50 ग्राम नागौरी असगंध , 50 ग्राम सोंठ , इन सबको पीसकर चटनी बना लें । 4 ग्राम चटनी रोजाना सुबह सेवन करें । इससे कमर दर्द में आराम होगा ।*
*8 - गुग्गुल , गिलोय , हरड़ के बक्कल , बहेड़े के छिलके और गुठली सहित सूखे आंवले सबको 50 - 50 ग्राम लेकर चूर्ण बना लें । इस चूर्ण में से आधा चम्मच चूर्ण 1 चम्मच एरण्ड के तेल के साथ रोजाना सेवन करें । लगभग 20 दिन तक इस औषधि को लेने से रीढ़ हड्डी में दर्द व कमर दर्द सही हो जाता है ।*
*9 चुना- पथरी की शिकायत न हो तो इसके सेवन से वात व कफ के लगभग 70 रोगों का नाश होता है स्वस्थ इंसान एक ग्राम अस्वस्थ इंसान 2 ग्राम दूध छोड़कर किसी भी तरल पेय के साथ शाम से पहले*
*
*निरोगी रहने हेतु महामन्त्र*
*मन्त्र 1 :-*
*• भोजन व पानी के सेवन प्राकृतिक नियमानुसार करें*
*• रिफाइन्ड नमक,रिफाइन्ड तेल,रिफाइन्ड शक्कर (चीनी) व रिफाइन्ड आटा ( मैदा ) का सेवन न करें*
*• विकारों को पनपने न दें (काम,क्रोध, लोभ,मोह,इर्ष्या,)*
*• वेगो को न रोकें ( मल,मुत्र,प्यास,जंभाई, हंसी,अश्रु,वीर्य,अपानवायु, भूख,छींक,डकार,वमन,नींद,)*
*• एल्मुनियम बर्तन का उपयोग न करें ( मिट्टी के सर्वोत्तम)*
*• मोटे अनाज व छिलके वाली दालों का अत्यद्धिक सेवन करें*
*• भगवान में श्रद्धा व विश्वास रखें*
*मन्त्र 2 :-*
*• पथ्य भोजन ही करें ( जंक फूड न खाएं)*
*• भोजन को पचने दें ( भोजन करते समय पानी न पीयें एक या दो घुट भोजन के बाद जरूर पिये व डेढ़ घण्टे बाद पानी जरूर पिये)*
*• सुबह उठेते ही 2 से 3 गिलास गुनगुने पानी का सेवन कर शौच क्रिया को जाये*
*• ठंडा पानी बर्फ के पानी का सेवन न करें*
*• पानी हमेशा बैठ कर घुट घुट कर पिये*
*• बार बार भोजन न करें आर्थत एक भोजन पूणतः पचने के बाद ही दूसरा भोजन करें*
*भाई राजीव दीक्षित जी के सपने स्वस्थ भारत समृद्ध भारत और स्वदेशी भारत स्वावलंबी भारत स्वाभिमानी भारत के निर्माण में एक पहल*
*स्वदेशीमय भारत ही हमारा अंतिम लक्ष्य है :- भाई राजीव दीक्षित जी*
*मैं भारत को भारतीयता के मान्यता के आधार पर फिर से खड़ा करना चाहता हूँ उस काम मे लगा हुआ हूँ*
*आपका अनुज गोविन्द शरण प्रसाद वन्देमातरम जय हिंद*
*🦁 हिन्दू गर्जना ✊🚩*
_(२७ पो :०३)_
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*समस्त संसार हमारी महान मातृभूमि (भारत) का ऋणी है। किसी भी देश को ले लीजिए, इस जगत में एक भी जाति ऐसी नही है जिसका संसार उतना ऋणी हो, जितना की यहां के धैर्यशील और विनम्र हिन्दुओ का है!*
*स्वामी विवेकानन्द*
*………………ॐ………………*
*हिन्दू, पढ़ा हो या अनपढ़, गौतम बुद्ध का अपमान नहीं करता, गालियाँ नहीं निकालता, मूर्तियाँ नहीं तोड़ता। फिर ये भीमटे बौद्ध हिन्दू देवी देवताओं के लिए अपमानजनक शब्दों का प्रयोग क्यों करते हैं? उन्हें पता होना चाहिए की बामियान के विशाल बुद्ध मूर्ति को तालिबानी मुसलमानों ने खंडित किया ✍🏻*
*………………ॐ………………*
*हिंदुत्व दरिया है,* *मैं उसी का एक मोती हूँ..* *यह राम नाम का दीपक है,* *मैं उसी का ज्योति हूँ...* *राम का वरदान हूँ,* *अनंत विष्णु का गुणगान हूँ..* *वेदों का वर्णन हूँ, पुराण हूँ,* *कुरूक्षेत्र की गीता का ज्ञान हूँ..* *राम का भक्त हूँ,* *शत्रु का महाकाल हूँ.* *हाँ, मैं हिंदू हूँ🚩*
*जय हिंदुत्व.*
https://www.facebook.com/groups/374801939370368/
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👍देश को बचाना है तो देश के गद्दारों को जानो👍
विचार जरूर करें तथा सत्य को अब स्वीकार करें!
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👍जाति का मतलब क्या है ? इसे पहले जानो-- 👍
जाति का मतलब समाज द्वारा दिया गया रोजगार या दायित्व या सौंपा गया काम था महाभारत युद्ध एक विश्व युद्ध था उस युद्ध में ज्यादातर धर्मात्मा राजा व भारत की दोनों पक्षों के सैनिक भी मार दिये गये थे इस तरह से 5000 वर्ष पहले महाभारत के युद्ध से तबाह हुये भारत में अराजकता को देखकर स्वार्थी लोगों ने मौका पाकर अत्यचारियों ने सनातन संस्कृति को रौंदा तथा सनातन समाज के हिन्दुओं के पुस्तकालय और कई महाविद्यालय जलाये गये ग्रन्थों व पुस्तकों में सत्ता के बल पर गलत मिलावटी बातें लिखी गई जिसके बल पर सनातन समाज के हिन्दुओं को बांटा जा सके और इसीलिए धीरे धीरे नये नये परमात्मा बनाकर नये नये सामाज के धर्म इस्लाम और इसाइयों ने भी अत्याचार करके सनातन समाज की सही सांस्कृतिक विरासत का खात्मा कराया अब सनातन समाज के हिन्दुओं की संस्कृति की विरासत को झूठे इतिहास के बल पर व साबूत गढ़कर जातिवादी और झूठे धर्म वाले पतन कर रहे हैं। सोचो आज हमारे बुजुर्गों का योग व आयुर्वेदिक दवाओं को विश्व स्वीकार कर रहा है जागो सनातन समाज के हिन्दुओं जागो एक हो जाओ और अपनी संस्कृति विरासत को बचा लो तथा अपने देश को बचा लो !
हे सनातन समाज के हिन्दुओं बचना चाहते हो तो अब अपने बचाव में निर्णायक युद्ध लड़ो !
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अब * चीन * ने पाकिस्तान * का समर्थन किया है और हमारे देश में ब्रह्मपुत्र नदी का पानी पीना बंद कर दिया है * अब एक महीने में नवरात्रि और दिवाली आएगी। चीन 3,000 मिलियन डॉलर की आतिशबाजी बेचता है * किसी को भी नहीं खरीदना चाहिए !!! * विशेष चेतावनी * आज चीनी सामान पर * मेड इन चाइना * नहीं लिखा है। अब लिखा है * PRC * * * * * पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना * लोगों को संदेश दिया कि वे चीन में बनी चीजें न खरीदें। आपको यह संदेश 3 लोगों को भेजना चाहिए। 1 व्यक्ति से 3 लोग ।। ये 3 लोग अन्य 3 लोगों को संदेश देते हैं 3 × 3 = 9 ९ × ३ = २ 27 27 × 3 = 81 81 × 3 = 243 243 × 3 = 729 729 × 3 = 2187 2187 × 3 = 6561 6561 × 3 = 19683 19683 × 3 = 59049 59049 × 3 = 177147 177147 × 3 = 531441 531441 × 3 = 1594323 1594323 × 3 = 4782969 4782969 × 3 = 14348907 14348907 × 3 = 43046721 43046721 × 3 = 129140163 129140163 × 3 = 387420489 387420489 × 3 = 1,162,261,467 अगर आप शुरू करते हैं, तो पूरा देश जुड़ जाएगा ....।
आप से हाथ जोड़ कर निवेदन है
कम से कम 5 लोगो तक यह संदेश भेजे
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
Very good website, thank you.
जवाब देंहटाएंOdia Mela Book Sanischara Mela
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श्रीराम! सर्वं साधु।।
जवाब देंहटाएंउत्तम, जय जय श्री राम
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