_Dr.Vasishth's U-CAP_
*बहु-ग्रन्थिज बीजकोषीय विकृति की आयुर्वैदिक चिकित्सा*
*Ayurvedic Treatment of PCOD / PCOS*
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*डाॅ.बृजबाला वसिष्ठ*
_MD (Ayurveda)_
वर्तमान समय में बहु-ग्रन्थिज बीजकोषीय विकृति (PCOD / PCOS) का प्रचलन बहुत अधिक बढ़ गया है, जिससे अनेकों महिलाओं को कई प्रकार के कष्ट हो रहे हैं। इसे देखते हुए, यह ज़रूरी हो जाता है कि हम वैद्य, आयुर्वेद में इस विकराल समस्या का कोई समुचित समाधान निकालें, ताकि इससे होने वाले शारीरिक, मानसिक, व सामाजिक कष्ट कम हो सकें।
*निदान-सम्प्राप्ति (Etio-pathogenesis)*
बहु-ग्रन्थिज बीजकोषीय विकृति (PCOD / PCOS) का आरम्भ, आमतौर पर मिथ्या आहार-विहार-आचार से प्राण-वात (Higher brain centers) में होता है, जिससे कि उदान-वात (Hypothalamus-pituitary gland) की दुष्टि होती है। फिर, उदान-वात (Hypothalamus-pituiatry gland) बाकी के तीन वात-भेदों - समान-वात (Neuro-endocrine system that regulates metabolism - Thyroid, Insulin etc.), व्यान-वात (Neuro-endocrine system that regulates circulation), व अपान-वात (Neuro-endocrine system that regulates excretion - renin, and reproduction - estrogen-progesterone, etc) को दुष्ट करता है। इसके, फलस्वरूप बहु-ग्रन्थिज बीजकोषीय विकृति (PCOD / PCOS) व उससे होने वाली नाना प्रकार की विकृतियाँ होने लगती हैं।
*चिकित्सा (Management)*
इस मूलभूत सम्प्राप्ति को दृष्टिगत रखते हुए, बहु-ग्रन्थिज बीजकोषीय विकृति (PCOD / PCOS) होने पर निम्न चिकित्सा का उपयोग किया जा सकता है -
_1. बीजोत्सर्ग-कारक औषधियाँ (Drugs to induce ovulation):_
बहु-ग्रन्थिज बीजकोषीय विकृति (PCOD / PCOS) में बीज (Ovum) का विकास (Maturation) तो हो जाता है, परन्तु बीज-पुटक (Ovarian follicle) का विदारण (Rupture) नहीं हो पाता। इसके परिणामस्वरूप, बीज का उत्सर्ग (Ovulation) नहीं होता व वह भीतर ही पड़ा रहता है, जिससे न केवल ग्रन्थि (Cyst) का निर्माण हो जाता है, अपितु, आर्तवस्राव (Menstruation) व गर्भाधान (Conception) में भी रुकावट आती, तथा महिला को कई प्रकार के कष्ट भी होने लगते हैं, यथा - स्थौल्य, चेहरे पर अप्राकृति बाल, पुरुषों की भाँति सिर के बाल पतले/कम/गंजापन, मधुमेह (Insulin resistance) होना, इत्यादि ।
ऐसे में बीज का उत्सर्ग (Ovulation) कराने वाली औषधियों का उपयोग किया जाना चाहिए। बीज का उत्सर्ग कराने वाली मुख्य औषधियाँ हैं -
• शतावरी, पुत्रञ्जीव, शिलाजतु, व त्रिवंग (Fertie-F / फ़र्टी-एॅफ़)। इन औषधियों अथवा इनसे बनी फ़र्टी-एॅफ़ टैब्लॅट का उचित मात्रा (दिन में 2 गोली तीन बार) में उपयोग करते रहने से अधिकांश महिलाओं को 6 माह से 1 वर्ष के भीतर बीज का उत्सर्ग (Ovulation) होने लगता है। इसके फलस्वरूप धीरे-धीरे आर्तवस्राव (Menstruation) भी नियमित रूप से होने लगता है।
www.drvasishths.com/fertie-f
अच्छी बात यह है कि, बीज का उत्सर्ग (Ovulation) कराने के साथ-साथ शतावरी, पुत्रञ्जीव, शिलाजतु, व त्रिवंग (Fertie-F / फ़र्टी-एॅफ़) गर्भाधान में भी सहायक सिद्ध होती हैं।
हाँ, आर्तवस्राव (Menstruation) के दिनों में इन औषधियों / फ़र्टी-एॅफ़ टैब्लॅट को बन्द कर दें व इनके स्थान पर आर्तवजनन (Emmenagogue) औषधियों का उपयोग करना चाहिए। मुख्य् आर्तवजनन औषधियाँ हैं -
• उलटकम्बल, हीराबोल, घृतकुमारी (Mensiflo / मैन्सीफ़्लो)। आर्तवस्राव के दिनों में इन औषधियों का उपयोग करने से गर्भाशय का उचित शोधन होने के साथ-साथ, श्रोणिगत अंगावयवों में रक्त-संचय कम होता है, जिससे कि उनकी क्रियाएँ स्वाभाविक (Physilogical activities) रूप से चलने लगती हैं।
www.drvasishths.com/mensiflo
_2. बीजोत्सर्ग में सहायक औषधियाँ (Drugs to promote ovulation):_
देखा गया है कि बीज का उत्सर्ग (Ovulation) कराने वाली औषधियों के साथ-साथ कुछ अन्य औषधियों का भी उपयोग किया जा सकता है जो बीज का उत्सर्ग (Ovulation) कराने में सहायता करती हैं । इन औषधियों में मुख्य हैं -
• मामज्जक, मेषशृंगी, लताकरञज, कटुकी, पिप्पली, रक्तमरिच, व इन्द्रवारुणी (Glycie / ग्लायसी)। ये औषधियाँ कई प्रकार से कार्य करते हुए, पहले तो बीज के उत्सर्ग (Ovulation) में व बाद में गर्भाधान (Conception) में सहायता करती हैं। इन औषधियों को शतावरी, पुत्रञ्जीव, शिलाजतु, व त्रिवंग (Fertie-F / फ़र्टी-एॅफ़) के साथ-साथ शुरु से ही देना चाहिए, ताकि परिणाम अधिक से अधिक, व शीघ्र से शीघ्र मिलें ।
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संयोगवश, मधुमेहहर (Antidiabetic) अधिकांश औषधियों में यह गुण पाया जाता है।
_3. गर्भाशय-बल्य (Uterine tonic) औषधियाँ:_
तीन-चार माह तक उपर चर्चित चिकित्सा करने के बावजूद यदि सुधार आता दिखाई न दे तो गर्भाशय को बल देने वाली औषधियों को साथ-साथ देना उचित रहता है। गर्भाशय को बल देने वाली मुख्य औषधियाँ हैं -
• अशोक, लोध्र, लज्जालु (Gynorm / गायनाॅर्म)। इन औषधियों का मुख्य कार्य, अपान-वात (Estrogen-Progesterone) को साम्यावस्था में लाते हुए, अन्तःगर्भाशय (Endometrium) का सम्यक् रूप से उपचय (Proliferation) कराना, सम्यक् आर्तवस्राव (Menstruation) कराना रहता है। साथ ही, ये औषधियाँ बीज का उत्सर्ग (Ovulation) कराने व गर्भाधान (Conception) कराने में भी प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से सहायक सिद्ध होती हैं।
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_4. समान-वात-बल्य (Thyro-stimulant) औषधियाँ:_
समान-वात की विकृति होने पर यदि महिला को बहु-ग्रन्थिज बीजकोषीय विकृति (PCOD / PCOS) के साथ-साथ समान-वात-क्षय (Hypothyroidism) भी हो गया है तो, ऐसे में समान-वात बल्य औषधियों (Thyro-stimulant) का उपयोग करना आवश्यक होता है। समान-वात को बल देने वाली मुख्य औषधियाँ हैं -
• गुग्गुलु, ब्राह्मी, गण्डीर, पिप्पली, व रक्तमरिच (Thyrin / थायरिन)। इन औषधियों का मुख्य कार्य, समान-वात (Thyroid hormones) को बढ़ा कर, अप्रत्यक्ष रूप से बीज का उत्सर्ग (Ovulation) कराना व गर्भाधान (Conception) कराना होता है।
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हाँ, ऐसी स्थिति में बीज का उत्सर्ग कराने वाली सहायक औषधियाँ - मामज्जक, मेषशृंगी, लताकरञज, कटुकी, पिप्पली, रक्तमरिच, व इन्द्रवारुणी, देने की आवश्यकता कम अथवा नहीं होती है।
_5. रसायन (General tonic) औषधियाँ:_
बहु-ग्रन्थिज बीजकोषीय विकृति (PCOD / PCOS) से पीड़ित अनेकों महिलाएँ यद्यपि हृष्ट-पुष्ट दीख पड़ती हैं, तो भी उनके भीतर ओजःक्षयः (Low immunity) रहती ही है। ऐसे में यदि उन्हें ओजःवर्धक व रसायन औषधियाँ (Antioxidants, Immuno-modulators, vitamins, minerals, and tonics) औषधियों सेवन कराया जाए तो परिणाम और अधिक उत्साहवर्धक हो सकते हैं । मुख्य रसायन व ओजःवर्धक औषधियाँ हैं -
• सामान्य रसायन औषधियाँ - शिलाजतु, आमलकी, मुक्ताशुक्ति, स्वर्णमाक्षिक, अभ्रक, यशद (Minovit tablet);
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• कैल्सियम की आपूर्ति करने वाली रसायन औषधियाँ - मुक्ताशुक्ति, आमलकी, अभ्रक, यशद (Ossie tablet);
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• यकृत् की क्रिया (Liver functions) सुधारने वाली औषधियाँ - भूम्यामलकी (Phylocil tablet), काकमाची, शरपुंखा (Livie tablet);
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• लौह के योग।
_6. मेध्य रसायन (Nootropic) औषधियाँ:_
मानसिक तनाव / चिन्ता तथा मनो-अवसाद से अनेकों रोग पैदा हो सकते हैं, जिनमें बहु-ग्रन्थिज बीजकोषीय विकृति (PCOD / PCOS) भी शामिल है। ऐसे में निम्न प्रकार की मेध्य रसायन औषधियों का प्रयोग करना लाभकारी होता है, यथा -
• मानसिक तनाव / चिन्ता (Mental stress / anxiety) होने पर मन को शान्त करने वाली औषधियाँ - ब्राह्मी, तगर (Mentocalm tablet);
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• मनो-अवसाद (Mental depression) होने पर मन को बल देने वाली औषधियाँ - ज्योतिष्मती, अकरकरा, वचा, गण्डीर (Eleva tablet)।
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अ॑ग्रेजी के "C" से हुआ सिरदर्द
😊😊😂😂😂
गांव की नयी नवेली दुल्हनअपने पति से अंग्रेजी भाषा सीख रही थी,
लेकिन अभी तक वो "C" अक्षर पर ही अटकी हुई है।
क्योंकि, उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि
"C" को कभी "च" तो
कभी "क" तो
कभी "स" क्यूं बोला जाता है।
एक दिन वो अपने पति से बोली, आपको पता है,
"चलचत्ता के चुली भी च्रिचेट खेलते हैं"
पति ने यह सुनकर उसे प्यार से समझाया
, यहां "C" को "च" नहीं "क" बोलेंगे।
इसे ऐसे कहेंगे, "कलकत्ता के कुली भी क्रिकेट खेलते हैं।
"पत्नी पुनः बोली "वह कुन्नीलाल कोपड़ा तो केयरमैन है न ?
"पति उसे फिर से समझाते हुए बोला, "यहां "C" को "क" नहीं "च" बोलेंगे।
जैसे, चुन्नी लाल चोपड़ा तो चेयरमैन है न
थोड़ी देर मौन रहने के बाद पत्नी फिर बोली,"आपका चोट, चैप दोनों चाटन का है न ?
"पति अब थोड़ा झुंझलाते हुए तेज आवाज में बोला,
अरे तुम समझती क्यूं नहीं, यहां"C" को "च" नहीं "क" बोलेंगे
ऐसे, आपका कोट, कैप दोनों कॉटन का है न
पत्नी फिर बोली - अच्छा बताओ, "कंडीगढ़ में कंबल किनारे कर्क है ?
"अब पति को गुस्सा आ गया और वो बोला, "बेवकुफ, यहां "C" को "क" नहीं "च" बोलेंगे।
जैसे - चंडीगढ़ में चंबल किनारे चर्च है न
पत्नीसहमते हुए धीमे स्वर में बोली,"
और वो चरंट लगने से चंडक्टर और च्लर्क मर गए क्या ?
"पति अपना बाल नोचते हुए बोला," अरी मूरख, यहां
"C" को "च" नहीं "क" कहेंगे...
करंट लगने से कंडक्टर और क्लर्क मर गए क्या?
इस पर पत्नी धीमे से बोली," अजी आप गुस्सा क्यों हो रहे हो... इधर टीवी पर देखो-देखो...
"केंटीमिटर का केल और किमेंट कितना मजबूत है
"पति अपना पेशेंस खोते हुए जोर से बोला, "अब तुम आगे कुछ और बोलना बंद करो वरना मैं पगला जाऊंगा।"
ये अभी जो तुम बोली यहां "C" को "क" नहीं "स" कहेंगे -
सेंटीमीटर, सेल और सीमेंट
हां जी पत्नी बड़बड़ाते बोली,
"इस "C" से मेरा भी सिर दर्दकरने लगा है।
और अब मैं जाकर चेक खाऊंगी,
उसके बाद चोक पियूँगी फिर
चाफी के साथ
चैप्सूल खाकर सोऊंगी
तब जाकर चैन आएगा।
उधर जाते-जाते पति भी बड़बड़ाता हुआ बाहर निकला..
तुम केक खाओ,
पर मेरा सिर न खाओ..
तुम कोक पियो या
कॉफी, पर मेरा खून न पिओ..
तुम कैप्सूल निगलो,
पर मेरा चैन न निगलो..
सिर के बाल पकड़ पति ने निर्णय कर लिया कि अंग्रेजी में बहुत कमियां हैं ये निहायत मूर्खो की भाषा है और ये सिर्फ हिन्दुस्तानियो को मूर्ख व बेवकूफ बनाने के लिए बनाई है !
हमारी मातृभाषा हिंदी है जय हिंद
😀😀😀😀😀😀🤣🤣🤣😋😋😁😁😁
और अधिक जानकारी के लिए -
1. साथ भेजा जा रहा ऑडियो सुनें; व
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https://youtu.be/bXrqoOl5HJI (English)
https://youtu.be/GsGs4WJxmnk (हिन्दी)
https://youtu.be/AMbfvGATa9I
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*डाॅ.वसिष्ठ*
_मो._ 9419205439
_ईमेल:_ ayurem@gmail.com
_वैबसाइट:_ www.drvasishths.com
_नोटः प्रस्तुत लेख केवल आयुष चिकित्सकों की जानकारी के लिए अभिप्रेत है। इसके आधार पर स्वचिकित्सा / पर-चिकित्सा न करें।_
*मूत्र रोग संक्रमण*
*कारण :मूत्र विकार का सबसे बड़ा कारण बैक्टीरिया, कवक है। इनके कारण मूत्र पथ के अन्य अंगों जैसे किडनी, यूरेटर और प्रोस्टेट ग्रंथि और योनि में भी इसका संक्रमण का असर देखने को मिलता है।*
*मूत्र विकार के लक्षण:-*
*मूत्र रोग के कई लक्षण हैं जैसे तीव्र गंध वाला पेशाब होना, पेशाब का रंग बदल जाना, मूत्र त्यागने में जलन और दर्द का अनुभव होना, कमज़ोरी महसूस होना, पेट में पीड़ा और शरीर में बुखार की हरारत बने रहना है। इसके अलावा हर समय मूत्र त्यागने की इच्छा बनी रहती है। मूत्र पथ में जलन बनी रहती है। मूत्राषय में सूजन आ जाती है।*
*यह रोग पुरुषों की तुलना में स्त्रियों में ज़्यादा पाया जाता है। गर्भवती स्त्रियां और सेक्स-सक्रिय औरतों में मूत्राषय प्रदाह रोग अधिक पाया जाता है।*
*आयुर्वेदिक उपचार :*
*पहला प्रयोगः केले की जड़ के 20 से 50 मि.ली. रस को 30 से 50 मि.ली. “गौझरण” के साथ 100 मि.ली.पानी मिलाकर सेवन करने से तथा जड़ पीसकर उसका पेडू पर लेप करने से पेशाब खुलकर आता है।*
*दूसरा प्रयोगः आधा से 2 ग्राम शुद्ध “शिलाजीत “, कपूर और 5 ग्राम मिश्री मिलाकर लेने से अथवा पाव तोला (3 ग्राम) कलमी शोरा उतनी ही मिश्री के साथ लेने से लाभ होता है।*
*तीसरा प्रयोगः एक भाग चावल को चौदह भाग पानी में पकाकर उन चावलों का मांड पीने से मूत्ररोग में लाभ होता है। कमर तक गर्म पानी में बैठने से भी मूत्र की रूकावट दूर होती है।*
*चौथा प्रयोगः उबाले हुए दूध में मिश्री तथा थोड़ा घी डालकर पीने से जलन के साथ आती पेशाब की रूकावट दूर होती है। यह प्रयोग बुखार में न करें।*
*पाँचवाँ प्रयोगः 50-60 ग्राम करेले के पत्तों के रस चुटकी भर हींग मिलाकर देने से पेशाब बहुतायत से होता है और पेशाब की रूकावट की तकलीफ दूर होती है अथवा 100 ग्राम बकरी का कच्चा दूध 1 लीटर पानी और शक्कर मिलाकर पियें।*
*छठा प्रयोगः मूत्ररोग सम्बन्धी रोगों में शहद व “ त्रिफला” लेने से अत्यंत लाभ होता है। यह प्रयोग बुखार में न करें।*
*विशेष : पुनर्नवा टेबलेट या सिरप या का सेवन मूत्ररोग में लाभकारी होता है।*
*अन्य घरेलू उपचार:*
*1. खीरा ककड़ी:-मूत्र रोग में खीरा ककड़ी का रस बहुत फ़ायदेमंद है। अगर रोगी को 200 मिली ककड़ी के रस में एक बडा चम्मच नींबू का रस और एक चम्मच शहद मिलाकर हर तीन घंटे के अंतर पर दिया जाए तो रोगी को बहुत आराम मिलता है।*
*2. तरल पदार्थ:-पानी और अन्य तरल पदार्थों का प्रचुर मात्रा में सेवन 15 – 15 मिनट के अंतर पर कराने से रोगी को बहुत आराम मिलता है।*
*3. मूली के पत्तों का रस:-मूत्र विकार में रोगी को मूली के पत्तों का 100 मिली रस दिन में 3 बार सेवन कराएं। यह एक रामबाण औषधि की तरह काम करता है।*
*4. नींबू:-नींबू स्वाद में थोड़ा खट्टा तथा थोड़ा क्षारीय होने के साथ साथ एक गुणकारी औषधि है। नींबू का रस मूत्राषय में उपस्थित जीवाणुओं को नष्ट कर देता है तथा मूत्र में रक्त आने की स्थिति में भी लाभ पहुँचाता है।*
*5. पालक:-पालक का रस 125 मिली, इसमें नारियल का पानी मिलाकर रोगी को पिलाने से पेशाब की जलन में तुरंत फ़ायदा प्राप्त होगा।*
*6. गाजर:-मूत्र की जलन में राहत प्राप्त करने के लिए दिन में दो बार आधा गिलास गाजर के रस में आधा गिलास पानी मिलाकर पीने से फ़ायदा प्राप्त होता है।*
*7. मट्ठा:-आधा गिलास मट्ठा में आधा गिलास जौ का मांड मिलाएं और इसमें नींबू का रस 5 मिलि मिलाकर पी जाएं। इससे मूत्र-पथ के रोग नष्ट हो जाते है*
*8. भिंडी:- फ्रेश भिंडी को बारीक़ काटकर दो गुने जल में उबाल लें। बाद इसे छानकर यह काढ़ा दिन में दो बार पीने से मूत्राषय प्रदाह की वजह से होने वाले पेट दर्द में राहत मिलती है।*
*9. सौंफ:- सौंफ के पानी को उबाल कर ठंडा कर लें और दिन में 3 बार इसे थोड़ा थोड़ा पीने से मूत्र रोग में राहत मिलती है।*
*विशेष चिकित्सीय सलाह हेतु आप व्यक्तिगत रात्रि 9 बजे के बाद सम्पर्क कर सकते हैं*
*Homoeo Trang: 🌹🌹डॉ. वेद प्रकाश,नवादा( बिहार)🌹8051556455🌹*
*निरोगी रहने हेतु महामन्त्र*
*मन्त्र 1 :-*
*• भोजन व पानी के सेवन प्राकृतिक नियमानुसार करें*
*• रिफाइन्ड नमक,रिफाइन्ड तेल,रिफाइन्ड शक्कर (चीनी) व रिफाइन्ड आटा ( मैदा ) का सेवन न करें*
*• विकारों को पनपने न दें (काम,क्रोध, लोभ,मोह,इर्ष्या,)*
*• वेगो को न रोकें ( मल,मुत्र,प्यास,जंभाई, हंसी,अश्रु,वीर्य,अपानवायु, भूख,छींक,डकार,वमन,नींद,)*
*• एल्मुनियम बर्तन का उपयोग न करें ( मिट्टी के सर्वोत्तम)*
*• मोटे अनाज व छिलके वाली दालों का अत्यद्धिक सेवन करें*
*• भगवान में श्रद्धा व विश्वास रखें*
*मन्त्र 2 :-*
*• पथ्य भोजन ही करें ( जंक फूड न खाएं)*
*• भोजन को पचने दें ( भोजन करते समय पानी न पीयें एक या दो घुट भोजन के बाद जरूर पिये व डेढ़ घण्टे बाद पानी जरूर पिये)*
*• सुबह उठेते ही 2 से 3 गिलास गुनगुने पानी का सेवन कर शौच क्रिया को जाये*
*• ठंडा पानी बर्फ के पानी का सेवन न करें*
*• पानी हमेशा बैठ कर घुट घुट कर पिये*
*• बार बार भोजन न करें आर्थत एक भोजन पूर्णतः पचने के बाद ही दूसरा भोजन करें*
*भाई राजीव दीक्षित जी के सपने स्वस्थ भारत समृद्ध भारत और स्वदेशी भारत स्वावलंबी भारत स्वाभिमानी भारत के निर्माण में एक पहल आप सब भी अपने जीवन मे भाई राजीव दीक्षित जी को अवश्य सुनें*
*स्वदेशीमय भारत ही हमारा अंतिम लक्ष्य है :- भाई राजीव दीक्षित जी*
*मैं भारत को भारतीयता के मान्यता के आधार पर फिर से खड़ा करना चाहता हूँ उस काम मे लगा हुआ हूँ*
*ज्योति ओमप्रकाश गुप्ता वन्देमातरम जय हिंद*
*चिकित्सा शास्त्र में गाय के दूध का महत्व :*
*(शुद्ध जल की तुलना किस से की जाए अर्थात शुद्ध जल कैसा होता है या होना चाहिए तो एक जबाब देशी गौमाता के दूध जैसा अर्थात सम्पूर्ण ब्रह्मांड में शुद्ध जल की परिभाषा है भारतीय देशी गौमाता का दूध)*
*(नवजात शिशु को किसी कारणवश मातृदुध नहीं मिल पाता है तो उसका सर्वोत्तम विकल्प एक मात्र है देशी गौमाता का दूध)*
*भारतवर्ष में गाय के दूध का औषधीय गुण अति प्राचीनतम काल से जाना जाता है। चिकित्सकीय दृष्टिकोण से दूध बहुत महत्त्वपूर्ण है।*
*यह शरीरके लिये उच्च श्रेणीका खाद्य पदार्थ है।*
*भोज्य पदार्थ के रूप में दूध एक महत्त्वपूर्ण आहार का विलक्षण समुच्चय है। दूध प्रोटीन, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट्स, खनिज, वसा, इन्जाइम तथा आयरन से युक्त होता है। दूध में प्रोटीन और कैल्सियम तत्त्वों का प्रसार होने से यह (दूधिया) अद्वितीय, अपारदर्शी होता है। मानव-जाति के लिये यह सम्पूर्ण भोजन है। चिकित्सक सभी आयु-वर्ग के लिये इसे पौष्टिक भोजन के रूपमें निम्न कारणों से सेवन करनेका सुझाव देते हैं –*
*१- प्रकृति में उपलब्ध द्रव्यों-पदार्थों में केवल दूध में शुगर लैक्टोज (दुग्ध-शर्करा) निहित होता है।*
*२- प्राणियों में नाडी-मण्डल एवं बुद्धि के विकास के लिये दुग्ध-शर्करा बहुत आवश्यक है।*
*३- ऊर्जस्वी गतिशील शारीरिक क्रिया-कलापों के लिये कार्बोहाइड्रेट आवश्यक होता है।*
*४- शरीर में लाल रक्त कोशिकाके संश्लेषण (समन्वय) एवं शारीरिक शक्ति के सुधारके लिये आयरन (लौह तत्त्व) आवश्यक होता है।*
*५- कैल्सियम और फॉस्फोरस दाँतों और अस्थियों को मजबूत रखने में सहायक होते हैं।*
*६- विटामिन ‘ए’ आँख की रोशनी और त्वचा को स्वस्थ रखता है एवं कम्पन-रोग को हटाता है।*
*७- विटामिन ‘बी’ नाडी-मण्डल एवं शरीर के विकास के लिये आवश्यक है।*
*८- विटामिन ‘सी’ शारीरिक रोगों के प्रति प्रतिरोधक शक्ति पैदा करता है।*
*९- विटामिन ‘डी’ सुखण्डी-रोग से सुरक्षा प्रदान करता है।*
*१0- रात्रि में सोने से पहले एक कप दूध का सेवन रक्त के नव-निर्माण में सहायक होता है एवं विषैले पदार्थों को निष्क्रिय करता है।*
*११- प्रात:काल हलके गरम दूध का सेवन पाचन क्रिया को संयोजित करने में सहायता करता है।*
*१२- गरम दूध में मिस्री और काली मिर्च मिलाकर लेनेसे सर्दी-जुकाम ठीक हो जाता है।*
*१३- दूध में सबसे कम कोलेस्ट्रॉल (१४ मि०ग्रा०/ १०० ग्रा०) होनेके कारण मधुमेह के रोगियों को वसा रहित दूध-सेवन की सलाह दी जाती है।*
*१४- उच्च रक्तचाप से पीडित व्यक्ति को प्रतिदिन २०० मि०ली० दूध (सिर्फ द्रव्य, पेय के रूप में) पीने की सलाह दी जाती है।*
*१५- अग्निवर्धक व्रण (Peptic Ulcer)-के रोगियों के लिये दूध एक आदर्श आहार है। ५० मि०ली० ठंडे दूध में एक चम्मच चने का सत्तू दो-दो घंटे पर देनेसे अल्सर में शीघ्र ही लाभ हो जाता है।*
*१६- दुग्ध-सेवन से सात्त्विक विचार, मानसिक शुद्धि एवं बौद्धिक विकास होता है।*
*ज्योतिर्मय गौमृत संस्थान*
*(केंसर पीडितो को समर्पित)*
*अधिक जानकारी के लिए -7568538194-7737366279*
*जय गौमाता वंदेमातरम जयहिंद*
*मुनक्का(छोटे अंगूर को सुखाकर किशमिश बनायी जाती है जबकि बड़े और पके हुए अंगूरों को सुखाने पर मुनक्का बनती है।)*
*ये ना केवल मिठास से भरपूर और स्वादिष्ट होती है बल्कि व्यंजनों का स्वाद भी बढ़ा देती हैं और सेहत को सुधारने और दुरुस्त करने में भी इनकी खास भूमिका होती है।*
*मुनक्का और किशमिश में अंतर*
*मुनक्का यानि बड़ी दाख को आयुर्वेद में एक औषधि माना गया है। इसमें ग्लूकोज, गोंद, स्टार्च, टार्टरिक और रेशेमिक एसिड पाया जाता है। इसमें सोडियम, पोटेशियम, कैल्शियम, मैग्नेशियम, फास्फोरस और आयरन जैसे तत्व मिलते हैं जो बहुत स्वास्थ्यवर्धक और ऊर्जा प्रदान करने वाले होते हैं।*
*मुनक्का शब्द की शुरुआत पुराने फ्रेंच भाषा के शब्द लोनवर्ड यानी ऋणी से हुयी है जबकि किशमिश शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द रेसमस से हुयी है जिसका अर्थ अंगूर या जामुन का गुच्छा होता है।*
*मुनक्का और किशमिश अंगूर से ही बनते हैं लेकिन इनमें कुछ अंतर भी होता है जैसे किशमिश का आकार मुनक्का से छोटा होता है और रंग मुनक्का की तुलना में कम गहरा होता है।*
*किशमिश में बीज बहुत कम मात्रा में होते हैं जबकि मुनक्का में दो-तीन मोटे बीज होते हैं।*
*मुनक्का और किशमिश से मिलने वाले पौष्टिक तत्व लगभग एक समान ही होते हैं लेकिन किशमिश में थोड़ी खटास पायी जाती है जो एसिडिटी की समस्या कर सकती है जबकि मुनक्का खाने पर ऐसा नहीं होता और मुनक्का में आयरन और मैग्नीशियम होने की वजह से ये ज्यादा एनर्जी प्रदान करने वाली भी होती है।*
*स्वभाव: मुनक्का खाने में गर्म और तर प्रकृति का होता है। सर्दी के मौसम में मुनक्का का रोजाना सेवन करना लाभदायक होता है।*
*गुण: इसका प्रयोग करने से प्यास शांत हो जाती है। यह गर्मी व पित्त को ठीक करता है।इसके उपयोग से हृदय, आंतों और खून के विकार दूर हो जाते हैं। यह कब्जनाशकहै।*
*विभिन्न रोगों में सहायक:*
*1. रक्त (खून) व धातु को बढ़ाने वाला (वीर्यवर्धक): 60 ग्राम मुनक्का को धोकर भिगो दें। 12 घंटे के बाद भीगे हुए मुनक्के खाने से पेट के रोग दूर जाते हैं और खून तथा वीर्य में वृद्धि होती है। मुनक्का की मात्रा धीरे-धीरे बढ़ाकर 200 ग्राम तक सेवन करने से लाभ मिलता है।*
*2. भूख: मुनक्का, नमक, कालीमिर्च इन सबको गर्म करके खाने से भूख बढ़ती है। पुराने बुखार में जब भूख नहीं लगती हो तो यह प्रयोग लाभदायक रहता है।*
*3. चक्कर आना:20 ग्राम मुनक्का को घी में सेंककर सेंधानमक डालकर खाने से चक्कर आने बंद हो जाते हैं। लगभग 4-5 मुनक्का को पानी में भिगोकर खाने से चक्कर आने बंद हो जाते हैं।*
*4. खून की बीमारी: 20 ग्राम मुनक्का को रात को पानी में भिगो दें और सुबह के समय पीसकर 1 कप पानी में घोलकर रोजाना सेवन करने से खून साफ होता है।*
*5. चेचक: चेचक के रोगी को दिन में कई बार 2-2 मुनक्का या किशमिश खिलाने से लाभ होता है।*
*6. आंत्रिक बुखार (टायफाइड): मुनक्का को बीच में से चीरकर उसमें काला नमक लगाकर, हल्का सा सेंककर खाने से बहुत जल्दी आराम आता है। आधुनिक वैज्ञानिकों के अनुसार मुनक्का से आंत्रिक ज्वर के जीवाणु भी नष्ट होते हैं। अधिक मात्रा में मुनक्का नही खिलाएं, क्योंकि ज्यादा मुनक्का खाने से अतिसार (दस्त) हो सकता है।*
*3-3 ग्राम मुनक्का, वासा, हरड़ बराबर मात्रा में लेकर 300 मिलीलीटर पानी में डालकर उसका काढ़ा बना लें। इस काढ़े में शहद और मिश्री मिलाकर रोगी को पिलाने से आंत्रिक ज्वर (टाइफाइड) में आराम आता है।*
*इस ज्वर में मुनक्का का दूध पिलाकर ऊपर से नारंगी का रस पिलाने से आंत्रिक ज्वर, गर्मी और बैचेनी दूर होती है।*
*7. सन्निपात ज्वर: 7 बीज निकले मुनक्का, कालीमिर्च के 7 पीस, 7 बादाम, छोटी इलायची के 7 पीस, कासनी 5 ग्राम व सौंफ 5 ग्राम को पानी में पीसकर 100 मिलीलीटर पानी में डालकर इसमें 1 चम्मच खांड मिलाकर सुबह-शाम पिलाने से लाभ होता है।*
*8. फेफड़ों के रोग: मुनक्का के ताजे और साफ 15 दानों को, पानी में साफ करके रात में 150 मिलीलीटर पानी में भिगों दें। सुबह बीज निकालकर उन्हें 1-1 करके खूब चबा-चबाकर खा लें। बचे हुए पानी में थोड़ी सी चीनी मिलाकर या बिना चीनी मिलाएं ही पी लें। इसे लगतार एक महीने तक सेवन करने से फेफड़ों की कमजोरी और विषैले मवाद नष्ट हो जाते हैं। इसके फलस्वरूप दमा के दौरे भी बंद हो जाते हैं। इससे पुरानी खांसी, नजला और पेट की खराबियां दूर हो जाती हैं। यह प्रयोग कब्ज, बवासीर, नकसीर तथा मुंह के छालों के लिए भी बहुत लाभकारी है। इसके सेवन से पेशाब खुलकर आता है तथा रक्त (खून) में लाल कणों की मात्रा बढ़ जाती है। खून की शुद्धि होती है तथा खून की वृद्धि होकर बलवीर्य की वृद्धि होती है।*
*9. गीली खांसी: मुनक्का के बीज निकालकर इसमें कालीमिर्च रखकर चबाना चाहिए और मुंह में रखकर सो जाना चाहिए। ऐसा करने से 6-7 दिनों में ही खांसी में लाभ होता है।*
*10. खांसी:खांसी में मुनक्का बहुत लाभकारी होता है। खांसी में अगर जुकाम बार-बार लगता हो ठीक न होता हो तो 10 मुनक्का, 10 कालीमिर्च, 5 बादाम, को भिगोकर छील लें। फिर इन सभी को पीसकर 25 ग्राम मक्खन में मिलाकर रात को सोते समय खाएं। सुबह दूध में पीपल, कालीमिर्च, सोंठ, डालकर उबला हुआ दूध पियें। यह प्रयोग कई महीने तक करने से जुकाम पूरी तरह से ठीक हो जाएगा।*
*मुनक्के के दानों को धोकर शाम को पानी में भिगो दें। सुबह तक ये फूल जाएंगे। दिनभर रोगी को भूख लगने पर यही मुनक्के खाने को देना चाहिए। इससे दमा और पुरानी खांसी दूर हो जाती है।*
*3-4 मुनक्के लेकर उसके बीजों को निकालकर तवे पर भून लें, फिर उसमें कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर खाएं।*
*मुनक्का के बीजों को निकालकर इसके साथ कालीमिर्च को मिलाकर चबाएं और मुंह में रखकर सो जाएं। इससे 1 सप्ताह में सूखी खांसी में आराम मिल जाता है।*
*11. कब्ज:रोजाना 10 मुनक्का को गर्म दूध में उबालकर सेवन करने से लाभ मिलता है।*
*3 पीस मुनक्का, 20 ग्राम किशमिश और एक अंजीर को शाम के समय 250 मिलीलीटर पानी में भिगो दें। सुबह उठकर इन सभी को मसलकर उसमें थोड़ा पानी मिलाकर छान लें। बाद में इसमें एक नींबू का रस निचोंड़ दें और 2 चम्मच शहद मिलाकर पीयें। इससे कुछ ही दिनों कब्ज में लाभ मिलता है।*
*मुनक्का का ताजा रस 28 से 56 मिलीलीटर चीनी या सेंधानमक के साथ मिलाकर पीने से कब्ज दूर हो जाती है।*
*मुनक्का को रात को सोने से पहले गर्म दूध के साथ पीने से कब्ज दूर हो जाती है।*
*12. स्तनों में दूध की पर्याप्त मात्रा में वृद्धि: 10-12 मुनक्के लेकर दूध में उबाल लें। इसे प्रसूता स्त्री को प्रसव के बाद दिन में 2 बार सेवन कराने से स्त्री के स्तनों में दूध की वृद्धि होती है।*
*13. पेट की गैस बनना: भूने हुए मुनक्के में लहसुन मिलाकर सेवन करने से पेट में रुकी हुई वायु (गैस) बाहर निकल जाती है और कमर के दर्द में लाभ होता है।*
*14. मुंह के छाले: पानी में मुनक्का के 8 से 10 दाने रात को भिगोकर रख दें। सुबह मुनक्का फूल जाने पर इसे चबा-चबाकर खायें। रोज सुबह इसको खाने से मुंह के छाले व जख्म ठीक हो जाते हैं।*
*15. जुकाम:10 मुनक्का, 10 कालीमिर्च और 5 बादाम को पानी में भिगोकर छील लें। फिर इन सबको एक साथ पीसकर 25 ग्राम मक्खन में मिलाकर रात को सोते समय खा लें। सुबह उठने पर दूध में पीपल, कालीमिर्च और सौंठ को डालकर उबालकर दूध को पी लें। ऐसा लगातार काफी समय तक करने से जुकाम पूरी तरह से ठीक हो जाता है।*
*मुनक्के को गर्म पानी के साथ खाने से जुकाम में आराम हो जाता है।*
*6 मुनक्का, 6 बादाम, 6 पिस्ता, 1 लौंग, 1 इलायची और 2 चम्मच खसखस को सुबह इतने पानी में डालकर भिगो दें कि ये सारी चीजें पूरी तरह से उसके अन्दर डूबी रहें। शाम को मुनक्का के बीज निकाल लें और बादाम को छील लें। इन सबको एक साथ पीसकर किसी गीले मोटे कपड़े में पोटली बनाकर तवे पर रखकर सेंक लें। रात को सोते समय इसे खा लें पर इसका पानी नही पियें। इससे जुकाम पूरी तरह से ठीक हो जाता है।*
*16. नपुंसकता: नपुंसक व्यक्ति को मुनक्का खाना चाहिए, इससे वीर्य की वृद्धि होती है।*
*17. मुंह की दुर्गन्ध: 10 मुनक्का रोजाना 15 दिनों तक खाने से मुंह की दुर्गन्ध ठीक हो जाती है। इससे कब्ज और दांतों से आने वाली बदबू भी खत्म हो जाती है।*
*18. हिचकी का रोग:240 मिलीग्राम हींग, मुनक्का में लपेटकर खिलाने से हिचकी आना बंद हो जाती है।*
*मुनक्का, पीपल और नागरमोथा का चूर्ण शहद के साथ चाटने से हिचकी में लाभ होता है।*
*19. संग्रहणी: बड़ी हरड़, मुनक्का, सौंफ और गुलाब के फूलों को एक साथ लेकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को पीने से संग्रहणी अतिसार (दस्त का बार-बार आना) के रोगी का रोग दूर हो जाता है।*
*20. कमजोरी: मुनक्का का सेवन करने से कमजोरी मिट जाती है। इससे मल-मूत्र भी साफ हो जाता है।*
*21. प्यास अधिक लगना: थोड़ी-थोड़ी देर पर प्यास लगने व पानी पीने के बाद भी प्यास लगे। तो इस प्रकार के प्यास (तृष्णा) में बिना बीज के 4 मुनक्का मिश्री के साथ दिन में 2 से 3 बार लें।*
*22. पित्त बढ़ने पर: पित्त के बढ़ने पर मुनक्का खाना फायदेमंद होता है। इससे पित्त से भरी जलन भी दूर होती है।*
*23. रक्तपित्त: मुनक्का खाने से रक्तपित्त में काफी फायदा मिलता है।*
*24. प्लेग रोग: मुनक्का, सौंफ, पीपल, अनन्तमूल और रेणुका बराबर मात्रा में लेकर 8 गुना पानी में डालकर उबालें। चौथाई पानी शेष रहने पर उतार लें और छानकर गुड़ व शहद मिलाकर रोजाना सेवन करें। इससे प्लेग के रोगी का रोग दूर हो जाता है।*
*25. वीर्य रोग: 250 मिलीलीटर दूध में 10 मुनक्का उबालें फिर दूध में एक चम्मच घी व खांड मिलाकर सुबह पीएं। इससे वीर्य के विकार दूर होते हैं।*
*26. नाक के रोग: 5 मुनक्के के दाने (बिना बीज के), 4 ग्राम खसखस, 6 ग्राम पद्माख और 5 ग्राम सूखे आंवला को एक साथ मिलाकर पीस लें। रात को इसको 250 मिलीलीटर पानी में डालकर किसी मिट्टी के बर्तन में भिगोकर रख दें। सुबह उठने पर इसको पानी में ही अच्छी तरह से मसलकर छान लें। इसमें 10 ग्राम मिश्री को मिलाकर रोगी को पिलाने से नकसीर (नाक से खून बहना) रुक जाती है।*
*27. गुल्म (वायु का गोला): मुनक्का 14 से 28 मिलीलीटर को दिन में 3 बार 5 से 10 ग्राम गुड़ के साथ लेने से लाभ होता है।*
*28. वीर्य की कमी में: रोजाना मुनक्का खाने से वीर्य की वृद्धि होती है।*
*29. पेट में दर्द: मुनक्का के 2 पीस को थोड़ी-सी हींग में मिलाकर खायें।*
*30. बिस्तर पर पेशाब करना:2 मुनक्का के बीज निकालकर उसमें 1-1 कालीमिर्च डालकर बच्चों को 2 मुनक्के रात को सोने से पहले 2 हफ्तों तक लगातार खिलायें। इससे बच्चों की बिस्तर पर पेशाब करने की बीमारी दूर हो जाती है।*
*रोजाना 5 मुनक्का खिलाने से बच्चे का बिस्तर में पेशाब करने का रोग दूर होता है।*
*31. बुद्धिवैकल्प, बुद्धि का विकास कम होना: रोजाना 2 ग्राम मुनक्का (बीज रहित) और मिश्री को गर्म दूध के साथ खाने से बुद्धि का विकास तेजी से होता है।*
*32. हैजा: पानी में मुनक्के उबालकर खाने से हैजा के रोग में लाभ होता है।*
*33. हृदय की दुर्बलता:10 ग्राम हीरा हींग, बीज निकाले हुए 10 मुनक्के, 10 छुहारे, 10 ग्राम दालचीनी और 10 छोटी इलायची के दाने पीसकर एक शीशी में भर लें। एक चुटकी भर यह चूर्ण दिन में पांच बार लेने से हृदय की कमजोरी दूर हो जाती है।*
*बीज निकले 1 मुनक्के में लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग हींग भुनी पिसी डालकर पानी से सुबह निगल जायें। यह दिल में खिंचाव, बोझ, अधिक धड़कनों में बहुत अधिक लाभकारी है।*
*5 ग्राम मुनक्के, 2 चम्मच शहद तथा 1 छोटी डली मिश्री को पीसकर चटनी बना लें। यह चटनी सुबह के समय नाश्ते के बाद सेवन करें।*
*34. गुल्यवायु हिस्टीरिया: 6 दाने मुनक्का के दूध में उबालकर मिश्री के साथ मिलाकर रोगी युवती को खिलाने से या दूध पिलाने से हिस्टीरिया रोग ठीक हो जाता है।*
*35. यक्ष्मा (टी.बी):25 ग्राम बीज निकाले हुए मुनक्का, 25 ग्राम बादाम (भिगोकर छिलका उतारकर) और लहसुन की 3-4 कली लें। तीनों को एक साथ पानी के साथ पीसकर चटनी की तरह बना लें। फिर उसे लोहे की कढ़ाई में 25 ग्राम घी डालकर धीमी आंच पर पकायें, जब वह गाढ़ा हलुआ सा होने लगे, तब उसमें 12 ग्राम मिश्री का चूर्ण मिलाकर उतार लें। यह हलुआ नाश्ते के रूप में सेवन करना चाहिए। इसके सेवन से शारीरिक दूर्बलता दूर होकर टी.बी. के रोगी का वजन बढ़ने लगेगा।*
*मुनक्का, पीपल, देशी शक्कर बराबर मात्रा में लेकर अच्छी तरह से पीसकर रख लें, फिर 1 चम्मच सुबह-शाम खाने से टी.बी., दमा और खांसी में लाभ होता है।*
*36. छोटे बच्चों की खांसी: 30 ग्राम बड़ा मुनक्का, 6 ग्राम कालीमिर्च, 6 ग्राम पियाबांसा, 6 ग्राम भारंगी, 6 ग्राम नागरमोथा, 6 ग्राम अतीस, 4 ग्राम बच, 4 ग्राम खुरासानी अजवाइन को एक साथ मिलाकर पीस लें, फिर इसमें 5 ग्राम शहद मिलाकर मिश्रण तैयार कर लें। इस मिश्रण को लगभग 1 ग्राम के चौथे भाग से आधा ग्राम रोगी को रोजाना चटाने से खांसी के रोग में आराम आता है।*
*37. चेहरे की चमक का बढ़ना: अंगूर, किशमिश, मुनक्का में लौह तत्व (आयरन) की मात्रा ज्यादा होने के कारण ये खून में लाल कणों (हेमोग्लोबिन) को बढ़ाते हैं तथा रंग को निखारते हैं।*
*38. स्त्री रोग : मुनक्का (द्राक्षा) 50 ग्राम को पीसकर चूर्ण बना लें, फिर तज 3 ग्राम, तेजपात 3 ग्राम, नागरमोथा 3 ग्राम, सूखा पोदीना 3 ग्राम, पीपल 3 ग्राम, खुरासानी अजवायन 3 ग्राम, छोटी इलायची 3 ग्राम, तालीस के पत्ते 5 ग्राम, वंशलोचन 5 ग्राम, जावित्री 5 ग्राम, खेतचंदन 5 ग्राम, कालीमिर्च 5 ग्राम, जायफल 5 ग्राम, सफेद जीरा 7 ग्राम, बिनौला की गिरी 13 ग्राम, लौंग 13 ग्राम, सूखा धनिया 13 ग्राम, पीपल की जड़ 13 ग्राम, खिरनी के बीज 45 ग्राम, बादाम की गिरी 50 ग्राम, पिस्ता 50 ग्राम, सुपारी एक किलो, शहद और चीनी 1-1 किलो और गाय का देशी घी आधा किलो आदि को लेकर रख लें। इसके बाद 50 ग्राम पिसा हुआ मुनक्का और सुपारी चूर्ण को गाय के देशी घी में मिलाकर धीमी आग पर भूने, चीनी और शहद को छोड़कर सभी पदार्थो (द्रव्यों) को डाल दें, उसके बाद चीनी और शहद की चासनी बनाकर मिला दें, फिर उसके बाद सभी चीजों को अच्छी तरह पकाकर रख लें। इसे सुबह-शाम पिलाने से नारी के स्तनों की सौन्दर्यता बढ़ती है और योनि की बीमारियों का नाश होता है और योनि का ढीलापन दूर होता है।*
*39. शरीर को शक्तिशाली व ताकतवर बनाना: शाम को सोते समय लगभग 10 या 12 मुनक्का को धोकर पानी में भिगो दें। इसके बाद सुबह उठकर मुनक्का के बीजों को निकालकर इन मुनक्कों को अच्छी तरह से चबाकर खाने से शरीर में खून बढ़ता है। इसके अलावा मुनक्का खाने से खून साफ होता है और नाक से बहने वाला खून भी बंद हो जाता है। मुनक्का का सेवन 2 से 4 हफ्ते तक करना चाहिए।*
*दोस्तों, मुनक्का और किशमिश में कुछ अंतर जरूर होते हैं लेकिन इनके गुण और सेहत को मिलने वाले फायदे लगभग एक जैसे ही होते हैं इसलिए आप भी किशमिश और मुनक्का को अपने शरीर की जरुरत के अनुसार डाइट में शामिल कर लीजिये और स्वस्थ बने रहिये।*
*निरोगी रहने हेतु महामन्त्र*
*मन्त्र 1 :-*
*• भोजन व पानी के सेवन प्राकृतिक नियमानुसार करें*
*• रिफाइन्ड नमक,रिफाइन्ड तेल,रिफाइन्ड शक्कर (चीनी) व रिफाइन्ड आटा ( मैदा ) का सेवन न करें*
*• विकारों को पनपने न दें (काम,क्रोध, लोभ,मोह,इर्ष्या,)*
*• वेगो को न रोकें ( मल,मुत्र,प्यास,जंभाई, हंसी,अश्रु,वीर्य,अपानवायु, भूख,छींक,डकार,वमन,नींद,)*
*• एल्मुनियम बर्तन का उपयोग न करें ( मिट्टी के सर्वोत्तम)*
*• मोटे अनाज व छिलके वाली दालों का अत्यद्धिक सेवन करें*
*• भगवान में श्रद्धा व विश्वास रखें*
*मन्त्र 2 :-*
*• पथ्य भोजन ही करें ( जंक फूड न खाएं)*
*• भोजन को पचने दें ( भोजन करते समय पानी न पीयें एक या दो घुट भोजन के बाद जरूर पिये व डेढ़ घण्टे बाद पानी जरूर पिये)*
*• सुबह उठेते ही 2 से 3 गिलास गुनगुने पानी का सेवन कर शौच क्रिया को जाये*
*• ठंडा पानी बर्फ के पानी का सेवन न करें*
*• पानी हमेशा बैठ कर घुट घुट कर पिये*
*• बार बार भोजन न करें आर्थत एक भोजन पूर्णतः पचने के बाद ही दूसरा भोजन करें*
*भाई राजीव दीक्षित जी के सपने स्वस्थ भारत समृद्ध भारत और स्वदेशी भारत स्वावलंबी भारत स्वाभिमानी भारत के निर्माण में एक पहल आप सब भी अपने जीवन मे भाई राजीव दीक्षित जी को अवश्य सुनें*
*स्वदेशीमय भारत ही हमारा अंतिम लक्ष्य है :- भाई राजीव दीक्षित जी*
*मैं भारत को भारतीयता के मान्यता के आधार पर फिर से खड़ा करना चाहता हूँ उस काम मे लगा हुआ हूँ*
*ज्योति ओमप्रकाश गुप्ता वन्देमातरम जय हिंद*
_Dr.Vasishth's U-CAP_
*8 USES OF BHUMI-AMALAKI (PHYLOCIL Tablet)*
*भूम्यामलकी (फाइलोसिल टैब्लॅट) के 8 मुख्य उपयोग*
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_*Dr. Brijbala Vasishth*_MD (Ay-Kayachikitsa)_
_*Dr. Sunil Vasishth*_ _MD (Ay-Kayachikitsa) PhD (Hridroga)_
भूम्यामलकी को आम भाषा में भुईं आमला कहते हैं। इसका बाॅटैनिकल नाम है फ़ाइलैन्थस निर्युरि (Phyllanthus niruri), और मार्किट में यह फ़ाइलोसिल टैब्लॅट (Phylocil Tablet) नाम से मिलती है।
भूम्यामलकी _(फ़ाइलोसिल टैब्लॅट)_ आयुर्वेद की एक महत्वपूर्ण औषधि है, जिसे अनेकों रोगों की चिकित्सा के लिए प्रयोग में लाया जाता है। तो भी, इसके 8 प्रयोग सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं, और अभी मैं उन्हीं की चर्चा करने जा रहा हूँ।
यह चर्चा भूम्यामलकी _(फ़ाइलोसिल टैब्लॅट)_ पर पिछले सौ वर्षों की हुई रिसर्च, तथा हमारे तीस वर्षों से अधिक के क्लिनिकल इक्स्पीरियन्सस पर आधारित है, तथा यह लेख विशेष रूप से युवा आयुर्वेद चिकित्सकों के लिए तैयार किया गया है।
1. *आमविषजन्य रोग (Auto-immune disorders)*
भूम्यामलकी _(फ़ाइलोसिल टैब्लॅट)_ एक प्रभावशाली रसायन (Immunomodulator) है, तथा शरीर के किसी भी अंगावयव या स्रोतस् में आमविषजन्य रोग (Auto-immune disorder) होने पर इसका उपयोग किया जा सकता है, जैसे - आमवात (RA), साम-विषज सन्धिशोथ (Ankylosing spondylitis), किटिभ (Psoriasis), चर्म-कुष्ठ (Lichen planus), आमविषज रक्तदुष्टि (SLE), सामविषज ग्रहणी (Inflammatory Bowel Disease), मधुमेह (Diabetes mellitus), इत्यादि।
2. *विषाणुज संक्रमण (Viral infections)*
विषाणुहर (Antiviral) होने के कारण भूम्यामलकी _(फ़ाइलोसिल टैब्लॅट)_ विषाणुओं की वृद्धि को रोकती है, व ओजस् बढ़ाते हुए शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) को मज़बूत बनाती है। शरीर में किसी भी प्रकार का विषाणुज संक्रमण (Viral infection) होने पर भूम्यामलकी _(फ़ाइलोसिल टैब्लॅट)_ का उपयोग किया जा सकता है, जैसे - विषम ज्वर (Viral fevers), विसर्प / कक्षा (Herpes zoster), विस्फोट (Herpes simplex), विषाणुज यकृत्शोथ (Viral hepatitis), टाॅर्च (TORCH infections), विषाणुज सन्धिशोथ (Viral arthritis), इत्यादि।
3. *यकृत् रोग (Liver disorders)*
भूम्यामलकी _(फ़ाइलोसिल टैब्लॅट)_ यकृत् रोगों की चिकित्सा के लिए एक श्रेष्ठतम औषध विकल्प (Drug of Choice) के रूप में उभर के आई है। यह कई प्रकार से कार्य करते हुए यकृत्-गत रोगों को दूर करती है, यकृत् को बलवान बनाती है, तथा विष-द्रव्यों से इसकी रक्षा करती है, जैसे - कामला (Jaundice), विषाणुज यकृत्शोथ (Viral hepatitis), विषज यकृत्शोथ (Toxic hepatitis), यकृत्-दुष्टि (Abnormal liver enzynes), यकृत्-गत मेदो-संचय (Fatty infiltration of the liver), पित्ताशय शोथ (Cholecystitis), पित्ताशय शर्करा (Sludge), साध्य-यकृत्-क्षयः (Early cirrhosis of liver), इत्यादि।
4. *वृक्क एवं मूत्र रोग (Kidney & Urinary disorders)*
यकृत् रोगों की ही भाँति, भूम्यामलकी _(फ़ाइलोसिल टैब्लॅट)_ को कई प्रकार के वृक्क एवं मूत्रगत रोगों (Kidney & Urinary disorders) में भी काफ़ी प्रभावशाली पाया गया है। यह कई प्रकार से कार्य करते वृक्क-गत रोगों को दूर करती है, वृक्क को बलवान बनाती है, तथा विष-द्रव्यों से इसकी रक्षा करती है, मूत्र की उत्पत्ति बढ़ाती है, तथा मूत्राश्मरी को घोल/तोड़ कर बाहर निकालने में सहायता करती है। जैसे - साध्य वृक्क-अक्षमता (Reversible renal failure) जिसमें ब्लड यूरिआ व सीरम क्रिएटिनीन बढ़ने लगते हैं, कफज शोथ (Nephrotic syndrome / Renal edema), कफज उदर रोग / जलोदर (Nephrotic syndrome / Renal ascites), इत्यादि।
5. *मेदो-दुष्टि (Dyslipidemias)*
भूम्यामलकी _(फ़ाइलोसिल टैब्लॅट)_ मुख्य रूप से यकृत् की क्रिया में सुधार लाते हुए बढी हुई साम मेदस् (Total / LDL VLDL Cholesterol) व ट्राइ-ग्लिस्राइडस् (Triglycerides) को कम करती है, व निराम मेदस् (HDL Cholesterol) को बढ़ने में सहायता करती है। अतः इसका उपयोग, बढी हुई साम मेदस् (Total / LDL VLDL Cholesterol) व ट्राइ-ग्लिस्राइडस् (Triglycerides) को कम करने, व कम हुई निराम मेदस् (HDL Cholesterol) को बढ़ाने के लिए किया जाता है। इसके साथ-साथ, इसका उपयोग स्थौल्य (Obesity), धमनीप्रतिचयः (Atherosclerosis), हृद्-धमनी-रोग (CAD), शिरो-धमनी-रोग (CVA), इत्यादि।
6. *मधुमेह (Diabetes mellitus)*
भूम्यामलकी _(फ़ाइलोसिल टैब्लॅट)_ कई प्रकार से कार्य करते हुए, बढ़ी हुई रक्त-शर्करा (Blood sugar) कम करती है। साथ ही, यह बढ़ी हुई साम मेदस् (Total / LDL VLDL Cholesterol) व ट्राइ-ग्लिस्राइडस् (Triglycerides) को कम करके, व निराम मेदस् (HDL Cholesterol) को बढ़ा कर इस रोग की चिकित्सा में सहायता करती है। यही नहीं, यह रक्त को पतला करती है, व इस प्रकार से रक्त-स्कन्दन (Thrombus formation) को रोकती है। इन सब कर्मों को देखते हुए, भूम्यामलकी _(फ़ाइलोसिल टैब्लॅट)_ का मधुमेह व उससे होने वाले कई प्रकार के उपद्रवों की चिकित्सा के लिए उपयोग में लाया जाता है।
7. *उच्च रक्तचाप (Hypertension)*
भूम्यामलकी _(फ़ाइलोसिल टैब्लॅट)_ कई प्रकार से कार्य करते हुए, बढ़ा हुई रक्त-चाप (High BP) कम करती है। यह धमनी-विस्फारण (Vasodilation) करती है, बढ़ी हुई साम मेदस् (Total / LDL VLDL Cholesterol) व ट्राइ-ग्लिस्राइडस् (Triglycerides) को कम करती है, रक्त को पतला करती है, वृक्क-यकृत्-थायरायड की विकृतियों को दूर करती है। इसी आधार पर भूम्यामलकी _(फ़ाइलोसिल टैब्लॅट)_ का उच्च रक्तचाप व उससे पैदा होने वाले उपद्रवों की चिकित्सा में किया जाता है।
8. *वातरक्त (Raised serum uric acid / Gout)*
भूम्यामलकी _(फ़ाइलोसिल टैब्लॅट)_ कई प्रकार से कार्य करते हुए, बढ़े हुए रक्त-गत यूरिक एॅसिड को कम करती है। यह यूरिक एॅसिड का बनना कम करती है, बने हुए को वृक्कों के माध्यम से निकालती है, वृक्कों की विष द्रव्यों (Toxins) से रक्षा करती है। इसी आधार पर भूम्यामलकी _(फ़ाइलोसिल टैब्लॅट)_ का उपयोग वातरक्त में किया जाता है।
*उपलब्धता (Availability)*
मार्किट में भूम्यामलकी *फ़ाइलोसिल टैब्लॅट (Phylocil Tablet)* नाम से उपलब्ध है, जिसमें 500 मि.ग्रा. (10:1) भूम्यामलकी का इक्स्ट्रैक्ट डाला गया है, जो 5 ग्राम भूम्यामलकी चूर्ण के बराबर है। फ़ाइलोसिल टैब्लॅट (Phylocil Tablet) को 1-2 टैब्लॅट, दिन में तीन बार नियमित रूप से, भोजन के तत्काल बाद देना चाहिए। वाँछित परिणाम मिलने पर इसकी मात्रा को धीरे-धीरे कम करते जाना चाहिए। बच्चों में फ़ाइलोसिल टैब्लॅट (Phylocil Tablet) को वयस्कों से चौथाई से आधी मात्रा में युक्तिपूर्वक देना चाहिए।
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*Dr.Vasishth*
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किसी संजीवनी से कम नहीं है ° एलोवेरा °
एलोवेरा में संजीवनी बूटी के सभी गुण मौजूद हैं।
खून की कमी पूरा कर रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढाये।
एंटीबायोटिक और एंटीसेप्टिक के रूप में काम करता है। एलोवेरा का जूस त्वचा की नमी को बनाए रखता है।
औषधी की दुनिया में एलोवेरा किसी चमत्कार से कम नहीं। एलोवेरा एक संजीवनी है यानी इसमें संजीवनी बूटी के सभी गुण मौजूद हैं। एलोवेरा से तमाम रोग दूर किए जा सकते हैं। एलोवेरा औषधीय गुणों से परिपूर्ण है। एलोवेरा के जूस और एलोवेरा युक्त उत्पाद के सेवन और इस्तेमाल से फिट रहा जा सकता है। आइए जानें आखिर एलोवेरा है क्या।
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एलोवेरा एक ऐसा पौधा है जिसमें अन्य सभी जड़ी-बूटियों के मुकाबले अधिक गुण है। यानी व्यक्ति को फिट रखने में एलोवेरा महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता हैं। एलोवेरा के पौधे को कई नाम हैं, जैसे संजीवनी बूटी, साइलेंट हीलर, चमत्कारी औषधि। इसे कई अन्यो नामों ग्वारपाठा, क्वारगंदल, घृतकुमारी, कुमारी, घी-ग्वार इत्यादि से पुकारा जाता है। एलोवेरा का उपयोग अनेक प्रकार की आयुर्वेदिक औषधि बनाने में किया जाता है। एलोवेरा के पौधे में वो सारे गुण समाहित है जिसे संजीवनी बूटी कह सकते है। कब्ज से लेकर कैंसर तक के मरीजों के लिए एक अत्यंत लाभकारी औषधि है।
रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाये
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एलोवेरा में वो औषधीय तत्व हैं जो शरीर में नहीं बनते बल्कि एलोवेरा से ही प्राप्त होते हैं जैसे– कुछ मिनरल और अमीनो एसिड। इन तत्वों को निरंतर शरीर की जरूरत रहती है जिसे पूरी करना भी जरूरी है। और जो खून की कमी को दूर कर रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढाते हैं।
शक्ति तथा स्फूर्ति का अहसास
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एलोवेरा बढि़या एंटीबायोटिक और एंटीसेप्टिक के रूप में काम करता है। एलोवेरा में शरीर की अंदरूनी सफाई करने और शरीर को रोगाणु रहित रखने के गुण भी मौजूद है। यह हमारे शरीर की छोटी बड़ी नस, ना़डि़यों की सफाई करता है उनमें नवीन शक्ति तथा स्फूर्ति भरता है।
त्वचा और बालों के लाभकारी
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त्वचा की देखभाल और बालों की मजबूती व बालों की समस्या से निजात पाने के लिए एलोवेरा एक संजीवनी का काम करती है। एलोवेरा का जूस त्वचा की नमी को बनाए रखता है जिससे त्वचा स्वस्थ दिखती है। यह स्किन के कोलाजन और लचीलेपन को बढाकर स्किन को जवान और खूबसूरत बनाता है। एलोवेरा का जूस पीने से त्वचा की खराबी, मुहांसे, रूखी त्वचा, धूप से झुलसी त्वचा, झुर्रियां, चेहरे के दाग धब्बों, आंखों के काले घेरों को दूर किया जा सकता है।
हीमोग्लोबिन की कमी पूरा करें
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एलोवेरा औषधी हर उम्र के लोग इस्तेमाल कर सकते है और यह शरीर में जाकर खराब सिस्टम को ठीक करता है। इसका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होता। साथ ही एलोवेरा का जूस ब्लड को प्यूरीफाई करता है और हीमोग्लोबिन की कमी को पूरा करता है। इसके अलावा यह *शरीर में व्हाईट ब्लड सेल्स की संख्या को बढाता है।*
बीमारियों को दूर करें
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शरीर में मौजूद हृदय विकार, जोड़ों के दर्द, मधुमेह, यूरीनरी प्रॉब्ल्म्स, शरीर में जमा विषैले पदार्थ इत्यादि को नष्ट करने में मददगार है। एलोवेरा के जूस का हर रोज सेवन करने से शरीर के जोडों के दर्द को कम किया जा सकता है।
बच्चे से लेकर वरिष्ठ लोगों तक सभी के लिए एलोवेरा किफायती है। इसके प्रयोग से बीमारियों से मुक्त रहकर लंबी उम्र तक स्वस्थ और फिट रहा जा सकता है।
*कटती गाय करे पुकार अब तो निकलो घर से बाहर*
*गाय ठाकुर जी की, व्यवस्था भी ठाकुर जी ही करेंगे।* मेरे सभी धर्मप्रेमी भाई लगभग यही जवाब देते हैं। भाईयों आप मुझे ये बताओ कि अगर आप के बीबी बच्चों को आंतकवादी किडनैप कर ले। और फिरौती में आप से धन की मांग करे *तो आप धन दोगे या नहीं? अगर आप कहेंगे नहीं तो मै उन लोगों की बात नहीं कर रहा हूं और जो लोग ये कहेंगे कि ठाकुर जी बचायेगे तो मैं उन लोगों की भी बात नहीं कर रहा हूँ। मैं उन लोगों की बात कर रहा हूंं। जो लोग ये सोचते हैं कि मेरे इतने से धन से अगर किसी की जान बचती हैं। तो इससे अच्छी ओर क्या बात होगी।*
मैं आप सभी धर्म प्रेमियों से हाथ जोड़ विनती करता हूँ। कि बंगाल बाडर पर जो 15000गायें हमारे सैनिकों ने गौतस्करो से पकडी है। *उन गायों को जल्द से जल्द यहां गौशाला में नहीं लाया गया तो स्थिति बड़ी गंभीर हो जायेगी।* आगे से कभी भी जान पर खेलकर हमारे सैनिक गाय नहीं पकडेगे और ना ही कैंपस में रख पायेगे। स्थिति बड़ी गंभीर है। *एक गाय का राजस्थान लाने का खर्च भी 5000/रूपये से ऊपर आ रहा है। फिर चारे पानी का खर्च हमारा विचार है कि दान दाताओं के सहयोग से राजस्थान में लगभग 5000हजार गोंवश तो लाया जाये।* लगभग एक एक गौशाला में तीस या चालीस गोंवश दिये जायें। अगर सभी राज्य वाले लोग सामने आयेगें तब तो गोंवश बच सकता है अन्यथा बहुत मुश्किल होगा। *अब जो धर्मप्रेमी इस विषय में कुछ जानना चाहते हैं तो इन नम्बर 9460145689 पर बात करें और जो धर्मप्रेमी अपनी स्वेच्छा अनुसार सहयोग करना चाहें वे लोग। गोपेश कृष्ण दास जी बाबा के नम्बर पर सम्पर्क करें। 9636355278 आप संस्था के अकाउंट में भी सीधे पैसे भी जमा करा सकते हैं।* कृपया अकाउंट में जमा करवावे तब पूरी डिटेल लिखे नाम पता वगैरा जरूर लिखें।HDFC Bank A/c No. 00921000102439 Name: Dhyan Foundation IFSC Code: HDFC0000092
Place - GK-1 New Delhi
BSF कैंपस का विडियो भी भेज रहा हूँ डाउनलोड कर देख लें कैसी स्थिति है हमारी गायों की 🙏🙏🙏
अंडकोष की सूजन दूर करने के 30 रामबाण घरेलु उपचार |
परिचय :
यह रोग ताकत से ज्यादा व्यायाम करने, अधिक उछलने, साइकिल चलाने, तेज दौड़ने, घुड़सवारी करने और अण्डकोषों पर किसी कारण चोट लग जाने पर सूजन उत्पन्न हो जाती है। अधिक तैरने तथा पानी में कमर तक खड़े होकर काम करने से भी अण्डकोषों में सूजन हो जाती है। अण्डकोष में पानी भर जाने की बीमारी को हाइड्रोसील कहा जाता है। अण्डकोष की श्लैष्मिक कला में रक्त का पानी एकत्र हो जाने से बीमारी होती है। कई बार शिशु के अण्डकोषों में पानी भर जाता है। अण्डकोष की प्रारंभिक अवस्था में पानी संचय नही होता, लेकिन अण्डकोष में सूजन होने से तेज दर्द होता है। आंत्रों में मल के शुष्क और कठोर होने पर दूषित वायु आवेग के कारण अण्डकोष में सूजन उत्पन्न हो जाती है.
विभिन्न औषधियों से उपचार-
1. तिल : 25 ग्राम काले तिल में 25 ग्राम एरण्ड के बीजों की गिरी को एक साथ पीसकर अण्डाकोष(andkosh) पर एरण्ड के पत्तों के साथ बांधने से सूजन जल्दी मिट जाती है।
2. तंबाकू :
<> तंबाकू के पत्तों पर थोड़ा-सा तिल का तेल लगाकर हल्का सा गर्म करके अण्डाकोषों पर बांधने से अण्डकोषों के सूजन(andkosh ki sujan )में काफी लाभ होता है।
<> तंबाकू के पत्तों पर सरसों या तिल का तेल लगाकर हल्का-सा सेंककर अण्डकोषों पर बांधने से उनकी सूजन मिट जाती है।
3. इन्द्रायण :
<> इन्द्रायण की जड़ और पुष्करमूल को तेल में पीसकर गाय के दूध के साथ सेवन करने से कुछ दिनों में अण्डकोष का बढ़ना समाप्त हो जाता है।
<> इन्द्रायण की जड़ को बरीक कूट-पीसकर, कपडे़ द्वारा छानकर एरण्ड के तेल में मिलाकर अण्डकोषों पर लेप करने से अण्डकोष सूजन की बीमारी मिट जाती है।
4. बच : 10 ग्राम बच और 10 ग्राम सरसों को पानी के साथ पीसकर रोजाना अण्डकोष पर लेप करने से सूजन मिट जाती है।
5. करंज : करंज की मींगी को एंरड के तेल में घोटकर उसे तंबाकू के पत्ते पर लपेटकर अण्डकोषों पर लेप करने से अण्डकोष की सूजन समाप्त हो जाती है।
6. त्रिफला (हरड़, बहेड़ा आंवला) :
<> 10-10 ग्राम त्रिफला, अरलू की जड़, एरण्ड की जड़, सभी को एक साथ लेकर कांजी में पीसकर लेप करने से सूजन और दर्द दूर हो जाते हैं।
<> लगभग 1 चौथाई ग्राम त्रिफला के काढ़े को लगभग 1 चौथाई ग्राम गाय के मूत्र के साथ दिन में 2 बार सेवन करने से अण्डकोष की सूजन कम हो जाती है।
7. बैंगन : बैंगन की जड़ को पानी में मिलाकर अण्डकोषों पर कुछ दिनों तक लेप करने से अण्डकोषों की सूजन और वृद्धि में लाभ होता है।
8. पलाश : पलाश की छाल का चूर्ण बनाकर 5 ग्राम पानी के साथ सेवन करने से अण्डकोषों की वृद्धि में लाभ होता है।
9. गुड़मार : 2 ग्राम की मात्रा में गुड़मार के पत्तों का रस शहद में मिलाकर कुछ दिनों तक पीने से अण्डवृद्धि यानी अण्डकोष का बढ़ना समाप्त हो जाता है।
10. बिनौले : 10-10 बिनौले और सोंठ को लेकर कूट-पीसकर पानी के साथ लेप बनाकर हल्का-सा सेंकने अण्डकोषों पर बांधने से लाभ होता है।
11. जीरा : 10-10 ग्राम जीरा और कालीमिर्च पीसकर पानी में उबालकर उस पानी से अण्डकोषों को धोने से सूजन मिट जाती है।
12. छोटी अरनी : छोटी अरनी के पत्तों को पीसकर हल्का-सा गर्म करके बांधने से अण्डकोष का बढ़ना मिट जाता है।
13. कटेरी : कटेरी की जड़ की छाल का 10 ग्राम चूर्ण, 5 ग्राम कालीमिर्च के चूर्ण के साथ पानी में पीसकर फिर पानी में मिला दें। इस मिश्रण को छानकर कुछ दिनों तक वह पानी पीने से अण्डवृद्धि मिट जाती है।
14. भिलावे : 10 ग्राम भिलावे के पत्ते, 5 ग्राम हल्दी पानी के साथ पीसकर हल्का-सा सेंककर अण्डकोषों पर लेप करने से उसकी सूजन(andkosh ki sujan ) को कम करने में लाभ होता है।
15. धतूरा : धतूरे के पत्ते पर तेल लगाकर अण्डकोषों पर बांधने से अण्डवृद्धि जल्द मिट जाती है।
16. कनेर : सफेद कनेर के पत्ते कांजी के साथ पीसकर हल्का-सा गर्म करके बांधने से अण्डकोष की वृद्धि से लाभ होता है।
17. माजूफल : 10-10 ग्राम माजूफल और असगंध लेकर पानी के साथ पीसकर थोड़ा-सा गर्म करके बांधने से अण्डकोष की सूजन मिट जाती है।
18. अमलतास : 20 ग्राम अमलतास के गूदे को 100 मिलीलीटर पानी में उबाल लें, 50 मिलीलीटर पानी शेष रह जाने पर 25 ग्राम घी में मिलाकर पीने से अण्डकोष की सूजन कम हो जाती है।
19. आम :
<> आम के पेड़ की गांठ को गाय के दूध में पीसकर लेप करने से अण्डकोष की सूजन कम हो जाती है।
<> आम के पेड़ की गांठ को गाय के दूध में पीसकर लेप करने से अण्डकोष की सूजन कम हो जाती है।
<> 25 ग्राम की मात्रा में आम के कोमल पत्तों को पीसकर उसमें 10 ग्राम सेंधा नमक मिलाकर हल्का-सा गर्म करके अण्डकोष पर लेप करने से अण्डकोष की सूजन मिट जाती है।
20. कचूर : 20 ग्राम कचूर के चूर्ण में पानी मिलाकर लेप बनायें। इस लेप को हल्का सा गर्म करके अण्डकोष पर लेप करने से शीत ऋतु के कारण उत्पन्न अण्डकोष की सूजन से आराम मिलता है।
21. गुग्गल : 2-4 ग्राम शुद्ध गुग्गल, 7-14 मिलीलीटर गाय के मूत्र के साथ सुबह-शाम सेवन करने से अण्डकोष की सूजन कम हो जाती है।
22. दशमूल : 14-28 मिलीलीटर दशमूल के काढ़े में 7-14 मिलीलीटर एरण्ड के तेल को मिलाकर सुबह सेवन करने से अण्डकोष की सूजन कम हो जाती है।
23. सेंधानमक : 1 ग्राम सेंधा नमक को 7-14 मिलीलीटर एरण्ड के तेल के साथ 1-3 ग्राम गाय के मूत्र में उबली हुई, हरीतकी के साथ सुबह-शाम सेवन करने से अण्डकोष की सूजन मिट जाती है।
24. हरीतकी : 6-12 ग्राम की मात्रा में हरीतकी फल मज्जा का मिश्रण, 7-14 मिलीलीटर एरण्ड के तेल में तलकर पिप्पली और सेंधा की 1-1 ग्राम की मात्रा के साथ सुबह-शाम सेवन करने से अण्डकोष की सूजन से राहत मिलती है।
25. मकोय : मकोय के पत्ते गर्म करके दर्द वाले स्थान पर शोथयुक्त अण्डकोषों और हाथ-पैरों की सूजन पर लगाने से लाभ होता है।
26. आक :
<> 8-10 ग्राम आक की छाया में सुखाई छाल को कांजी के साथ पीसकर लेप करने से पैरों और फोतों की गजचर्म के समान मोटी पड़ी हुई चमड़ी पतली हो जाती है।
<> आक के 2-4 पत्तों को तिल्ली के तेल के साथ पत्थर पर पीसकर मलहम सा बना फोड़े, अण्डकोष के दर्द में चुपड कर लंगोट कस देने से शीघ्र आराम होता है।
<> आक के पत्तों पर एंरड तेल को चुपडकर अण्डकोषों पर बांधने से पित्त के कारण उत्पन्न शोथ मिटता है।
27. अदरक : अदरक के पांच ग्राम रस में मधु मिलाकर तीन-चार सप्ताह प्रतिदिन सेवन करने से बहुत लाभ होता है।
28. भांग :
<> पानी में भांग को थोड़ी देर भिगोंकर रखते हैं, फिर उस पानी से सूजन अण्डकोषों को धोने से तथा फोम को अण्डकोषों पर बांधने से अण्डकोषों की सूजन मिट जाती है।
<> भांग के गीले पत्तों की पुल्टिश बनाकर अण्डकोषों की सूजन पर बांधना चाहिए। और सूखी भांग को पानी में उबालकर बफारा देने से अण्डकोंषों की सूजन उतर जाती है।
29. सिरस : सिरस की छाल को पीसकर लेप करने से अण्डकोषों की सूजन समाप्त हो जाती है।
30. टमाटर : 100 ग्राम लाल टमाटर पर सेंधानमक और अदरक मिलाकर भोजन से पहले सेवन करने से लाभ होता है।
*हाइपर थाइरोइड और हाइपो थाइरोइड का घरेलु और सफल उपचार*
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आज कल की भाग दौड़ भरी ज़िन्दगी में ये समस्या आम सी हो गयी हैं, और अलोपथी में इसका कोई इलाज भी नहीं हैं, बस जीवन भर दवाई लेते रहो, और आराम कोई नहीं।
थायराइड मानव शरीर मे पाए जाने वाले एंडोक्राइन ग्लैंड में से एक है।* थायरायड ग्रंथि गर्दन में श्वास नली के ऊपर एवं स्वर यन्त्र के दोनों ओर दो भागों में बनी होती है। इसका आकार तितली जैसा होता है। यह थाइराक्सिन नामक हार्मोन बनाती है जिससे शरीर के ऊर्जा क्षय, प्रोटीन उत्पादन एवं अन्य हार्मोन के प्रति होने वाली संवेदनशीलता नियंत्रित होती है।
यह ग्रंथि शरीर के मेटाबॉल्जिम को नियंत्रण करती है यानि जो भोजन हम खाते हैं यह उसे उर्जा में बदलने का काम करती है।
इसके अलावा यह हृदय, मांसपेशियों, हड्डियों व कोलेस्ट्रोल को भी प्रभावित करती है।
आमतौर पर शुरुआती दौर में थायराइड के किसी भी लक्षण का पता आसानी से नहीं चल पाता, क्योंकि गर्दन में छोटी सी गांठ सामान्य ही मान ली जाती है। और जब तक इसे गंभीरता से लिया जाता है, तब तक यह भयानक रूप ले लेता है।
आखिर क्या कारण हो सकते है जिनसे थायराइड होता है।
*थायरायडिस-* यह सिर्फ एक बढ़ा हुआ थायराइड ग्रंथि (घेंघा) है, जिसमें थायराइड हार्मोन बनाने की क्षमता कम हो जाती है।
इसोफ्लावोन गहन सोया प्रोटीन, कैप्सूल, और पाउडर के रूप में सोया उत्पादों का जरूरत से ज्यादा प्रयोग भी थायराइड होने के कारण हो सकते है।
कई बार कुछ दवाओं के प्रतिकूल प्रभाव भी थायराइड की वजह होते हैं।
थायराइट की समस्या पिट्यूटरी ग्रंथि के कारण भी होती है क्यों कि यह थायरायड ग्रंथि हार्मोन को उत्पादन करने के संकेत नहीं दे पाती।*
भोजन में आयोडीन की कमी या ज्यादा इस्तेमाल भी थायराइड की समस्या पैदा करता है।
सिर, गर्दन और चेस्ट की विकिरण थैरेपी के कारण या टोंसिल्स, लिम्फ नोड्स, थाइमस ग्रंथि की समस्या या मुंहासे के लिए विकिरण उपचार के कारण।
जब तनाव का स्तर बढ़ता है तो इसका सबसे ज्यादा असर हमारी थायरायड ग्रंथि पर पड़ता है। यह ग्रंथि हार्मोन के स्राव को बढ़ा देती है।
यदि आप के परिवार में किसी को थायराइड की समस्या है तो आपको थायराइड होने की संभावना ज्यादा रहती है। यह थायराइड का सबसे अहम कारण है।
ग्रेव्स रोग थायराइड का सबसे बड़ा कारण है। इसमें थायरायड ग्रंथि से थायरायड हार्मोन का स्राव बहुत अधिक बढ़ जाता है। ग्रेव्स रोग ज्यादातर 20 और 40 की उम्र के बीच की महिलाओं को प्रभावित करता है, क्योंकि ग्रेव्स रोग आनुवंशिक कारकों से संबंधित वंशानुगत विकार है, इसलिए थाइराइड रोग एक ही परिवार में कई लोगों को प्रभावित कर सकता है।
थायराइड का अगला कारण है गर्भावस्था, जिसमें प्रसवोत्तर अवधि भी शामिल है। गर्भावस्था एक स्त्री के जीवन में ऐसा समय होता है जब उसके पूरे शरीर में बड़े पैमाने पर परिवर्तन होता है, और वह तनाव ग्रस्त रहती है।
रजोनिवृत्ति भी थायराइड का कारण है क्योंकि रजोनिवृत्ति के समय एक महिला में कई प्रकार के हार्मोनल परिवर्तन होते है। जो कई बार थायराइड की वजह बनती है।
*थायराइड के लक्षण:-*
*कब्ज-* थाइराइड होने पर कब्ज की समस्या शुरू हो जाती है। खाना पचाने में दिक्कत होती है। साथ ही खाना आसानी से गले से नीचे नहीं उतरता। शरीर के वजन पर भी असर पड़तापैर ठंडे रहना- थाइराइड होने पर आदमी के हाथ पैर हमेशा ठंडे रहते है। मानव शरीर का तापमान सामान्य यानी 98.4 डिग्री फॉरनहाइट (37 डिग्री सेल्सियस) होता है, लेकिन फिर भी उसका शरीर और हाथ-पैर ठंडे रहते हैं।
*प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होना-* थाइराइड होने पर शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता कम़जोर हो जाती है। इम्यून सिस्टम कमजोर होने के चलते उसे कई बीमारियां लगी रहती हैं।
*थकान–* थाइराइड की समस्या से ग्रस्त आदमी को जल्द थकान होने लगती है। उसका शरीर सुस्त रहता है। वह आलसी हो जाता है और शरीर की ऊर्जा समाप्त होने लगती है।
*त्वचा का सूखना या ड्राई होना–* थाइराइड से ग्रस्त व्यक्ति की त्वचा सूखने लगती है। त्वचा में रूखापन आ जाता है। त्वचा के ऊपरी हिस्से के सेल्स की क्षति होने लगती है जिसकी वजह से त्वचा रूखी-रूखी हो जाती है।
*जुकाम होना–* थाइराइड होने पर आदमी को जुकाम होने लगता है। यह नार्मल जुकाम से अलग होता है और ठीक नहीं होता है।
*डिप्रेशन-* थाइराइड की समस्या होने पर आदमी हमेशा डिप्रेशन में रहने लगता है। उसका किसी भी काम में मन नहीं लगता है, दिमाग की सोचने और समझने की शक्ति कमजोर हो जाती है। याद्दाश्त भी कमजोर हो जाती है।
*बाल झड़ना-* थाइराइड होने पर आदमी के बाल झड़ने लगते हैं तथा गंजापन होने लगता है। साथ ही साथ उसके भौहों के बाल भी झड़ने लगते है।
*थायरायड की प्राकृतिक चिकित्सा*
थायरायड के लिए हरे पत्ते वाले धनिये की ताजा चटनी बना कर एकबडा चम्मच एक गिलास पानी में घोल कर पीए रोजाना.... एक दम ठीकहो जाएगा (बस धनिया देसी हो उसकी सुगन्ध अच्छी हो)
*आहार चिकित्सा*
सादा सुपाच्य भोजन, मट्ठा, दही, नारियल का पानी, मौसमी फल,ताजी हरी साग सब्जियां, अंकुरित गेंहूँ, चोकर सहित आटे की रोटीको अपने भोजन में शामिल करें।
*परहेज :*
मिर्च-मसाला, तेल, अधिक नमक, चीनी, खटाई, चावल, मैदा, चाय,काफी, नशीली वस्तुओं, तली-भुनी चीजों, रबड़ी, मलाई, मांस, अंडाजैसे खाद्यों से परहेज रखें। अगर आप सफ़ेद नमक (समुन्द्री नमक) खाते है तो उसे तुरन्त बंद कर दे और
सैंधा नमक ही खाने में प्रयोग करे, सिर्फ़ सैंधा नमक ही खाए सब जगह
गले की गर्म-ठंडी सेंक
*साधन :–*
गर्म पानी की रबड़ की थैली, गर्म पानी, एक छोटा तौलिया,
एक भगौने में ठण्डा पानी।
पथरी का कारण लक्षण व सबसे प्रभावशाली आयुर्वेदिक उपचार
★ गुर्दे की पथरी भी पित्ताशय (वह स्थान जहां पित्त एकत्रित होती है) की पथरी के तरह बनती है।
★ जब कभी गुर्दे में कैल्शियम, फास्फेट व कार्बोनेट आदि तत्त्व इकट्ठा हो जाते हैं तो वह धीरे-धीरे पथरी का रूप धारण कर लेती है।
★ जब तक शरीर के सभी गंदे तत्त्व मूत्र के साथ सामान्य रूप से निकलते रहते हैं तब तक सब कुछ ठीक रहता है लेकिन जब किसी कारण से मूत्र के साथ ये सभी तत्व नहीं निकलने पाते हैं तो ये सभी तत्व गुर्दे में एकत्रित होकर पथरी का निर्माण करने लगते हैं।
★ गुर्दे की पथरी बनने पर पेशाब करते समय तेज जलन व दर्द होता है।
पथरी होने का कारण :
★ जो स्त्री-पुरुष खान-पान में सावधानी नहीं रखते हैं उन्हें यह रोग होता है।
★ अधिक खट्ठे-मीठे, तेल के पदार्थ, गर्म मिर्च-मसाले आदि खाने के कारण गुर्दे की पथरी बनती है।
★ जो लोग इस तरह के खान पान हमेशा करते हैं उनके गुर्दो में क्षारीय तत्त्व बढ़ जाते हैं और उनमें सूजन आ जाती है।
★ कभी-कभी मौसम के विरुद्ध आहार खा लेने से भी गुर्दे की पथरी बन जाती है।
★ शुरू में यह पथरी छोटी होती है और बाद में धीरे-धीरे बड़ी हो जाती है।
पथरी होने के लक्षण :
★ पथरी बनने के पश्चात मूत्र त्याग के समय जलन होती है।
★ कभी-कभी पेशाब करते समय इतना दर्द होता है कि रोगी बेचैन हो जाता है।
★ गुर्दे की पथरी नीचे की ओर चलती है और मूत्रनली में आती रहती है जिससे रोगी को बहुत दर्द होता है
पथरी का आयुर्वेदिक घरेलु उपचार :
1. कुल्थी : 250 ग्राम कुल्थी को साफ करके रात को 3 लीटर पानी में भिगो दें। सुबह फुली हुई कुल्थी को उसी पानी के साथ धीमी आग पर लगभग 4 घंटे तक पकाएं और जब 1 लीटर पानी रह जाए तो उतारकर इसमें 50 ग्राम देशी घी, सेंधानमक, कालीमिर्च, जीरा व हल्दी का छोंका लगाएं। यह भोजन के बाद सेवन करने से गुर्दे की पथरी गलकर निकल जाती है।
2. लहसुन : लहसुन की पुती के साथ 2 ग्राम जवाखार पीसकर रोगी को सुबह-शाम देने से गुर्दे की पथरी बाहर निकल जाती है।
3. पपीता : 6 ग्राम पपीते की जड़ को पीसकर 50 मिलीलीटर पानी में मिलाकर 21 दिन तक सुबह-शाम पीने से पथरी गल जाती है।
4. मेंहदी : 6 ग्राम मेंहदी के पत्तों को 500 मिलीलीटर पानी में डालकर उबालें। जब 150 मिलीलीटर पानी रह जाए तो छानकर 2-3 दिन पीने से गुर्दे का दर्द ठीक होता है।
5. मूली : मूली का 100 मिलीलीटर रस मिश्री मिलाकर सुबह खाली पेट सेवन करने से कुछ दिनों में ही गुर्दे की पथरी गलकर निकल जाती है और दर्द शान्त होता है।
6. मक्का : मक्के के भुट्टे के 20 ग्राम बालों को 200 मिलीलीटर पानी में उबालें और जब पानी केवल 100 मिलीलीटर बच जाए तो छानकर पीएं। इससे गुर्दे की पथरी का दर्द ठीक होता है।
7. तुलसी : 20 ग्राम तुलसी के सूखे पत्ते, 20 ग्राम अजवायन और 10 ग्राम सेंधानमक लेकर पॉउड़र बनाकर रख लें। यह 3 ग्राम चूर्ण गुनगुने पानी के साथ प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करने से गुर्दे का तेज दर्द दूर होता है।
8. दालचीनी : दालचीनी का चूर्ण बनाकर 1 ग्राम पाउड़र पानी के साथ खाने से गुर्दे का दर्द दूर होता है।
9. खरबूजे : खरबूजे के बीजों को छीलकर पीसकर पानी में मिलाकर हल्का सा गर्म करके पीने से गुर्दो का दर्द खत्म होता है।
10. अजवायन : अजवायन का चूर्ण 3 ग्राम मात्रा में पानी के साथ खाने से पथरी गलकर बाहर निकल जाती है।
11. चौलाई : प्रतिदिन चौलाई का साग बनाकर खाने से पथरी गलकर निकल जाती है।
12. करेला : करेले के 20 मिलीलीटर रस में शहद मिलाकर प्रतिदिन पीने से पथरी खत्म होकर पेशाब के रास्ते निकल जाती है। करेले की सब्जी बनाकर रोज खाने से पथरी खत्म होती है।
13. खीरा : खीरे का रस 150 मिलीलीटर प्रतिदिन 2-3 बार पीने से गुर्दे की पथरी खत्म होती है।
14. जामुन : प्रतिदिन जामुन खाने से गुर्दे की पथरी धीरे-धीरे खत्म होती है।
15. सहजन : सहजन की सब्जी रोजाना खाने से गुर्दे की पथरी धीरे-धीरे पेशाब के रास्ते निकल जाती है और दर्द ठीक होता है।
16. जवाखार :
गाय के दूध के लगभग 250 मिलीलीटर मट्ठे में 5 ग्राम जवाखार मिलाकर सुबह-शाम पीने से गुर्दे की पथरी खत्म होती है।
जवाखार और चीनी 2-2 ग्राम की मात्रा में लेकर पीसकर पानी के साथ खाने से पथरी टूट-टूटकर पेशाब के साथ निकल जाती है। इस मिश्रण को रोज सुबह-शाम खाने से आराम मिलता है।
17. पालक :
100 मिलीलीटर नारियल का पानी लेकर, उसमें 10 मिलीलीटर पालक का रस मिलाकर पीने से 14 दिनों में पथरी खत्म हो जाती है।
पालक के साग का रस 20 से 40 मिलीलीटर की मात्रा में प्रतिदिन सुबह-शाम खाने से पथरी में लाभ मिलता है
18. अजमोद : अजमोद के फल का चूर्ण 1 से 4 ग्राम सुबह-शाम सेवन करने से पथरी रोग में लाभ होता है। ध्यान रहे कि मिर्गी के रोगी और गर्भिणी को यह औषधि न दें।
19. पाठा : पाठा के जड़ के बारीक चूर्ण को गर्म पानी से छानकर रख लें। इस छाने हुए पानी को सुबह-शाम पीने से पूरा लाभ मिलता है।
20. चिरचिरी : चिरचिरी की जड़ 5 से 10 ग्राम या काढ़ा 1 से 50 मिलीलीटर सुबह-शाम मुलेठी, गोखरू और पाठा के साथ खाने से गुर्दे की पथरी खत्म होती है। इसकी क्षार अगर भेड़ के मूत्र के साथ खाए तो पथरी रोग में ज्यादा लाभ मिलता है।
21. गोक्षुर : गोक्षुर के बीजों का चूर्ण 3 से 6 ग्राम बकरी के दूध के साथ प्रतिदिन 2 बार खाने से पथरी खत्म होती है।
22. लकजन : लकजन की जड़ का काढ़ा 20 से 40 मिलीलीटर सुबह-शाम खाने से पेशाब की पथरी में लाभ मिलता है।
23. बड़ी इलायची : लगभग आधा ग्राम बड़ी इलायची को खरबूजे के बीज के साथ पीसकर पानी में घोटकर सुबह-शाम पीने से पथरी गलकर निकल जाती है।
24. नारियल : नारियल की जड़ का काढ़ा 40 मिलीलीटर दिन में तीन बार पीने से पथरी व दर्द ठीक होता है।
25. बिजौरा नींबू : बिजौरा नींबू की जड़ 10 ग्राम को पीसकर प्रतिदिन सुबह-शाम पिलाने से पेशाब की पथरी खत्म होती है।
26. गुलदाउदी : 10 ग्राम सफेद गुलदाउदी को पीसकर मिश्री मिलाकर पीने से गुर्दे की पथरी का दर्द दूर होता है।
27. सुहागा : भुना सुहागा, नौसादर और कलमीशोरा 1-1 ग्राम पीसकर दर्द के समय आधा ग्राम की मात्रा में नींबू के 2-3 चम्मच रस के साथ रोगी को देने से दर्द ठीक होता है
28. फिटकरी : भुनी हुई फिटकरी 1-1 ग्राम दिन में 3 बार रोगी को पानी के साथ सेवन कराने से रोग ठीक होता है।
29. अदरक : अदरक का रस 10 मिलीलीटर और भुनी हींग 120 ग्राम पीसकर नमक मिलाकर पीने से लाभ मिलता है।
30. अजमोद : 25 ग्राम अजमोद को 500 मिलीलीटर पानी में उबालें और आधा रह जाने पर ठंड़ा करके आधा या 2 कप 3-3 घंटे के अन्तर पर रोगी को पिलाएं। इससे दर्द तुरन्त समाप्त हो जाता है।
31. कमलीशोरा : कमलीशोरा, गंधक और आमलासार 10-10 ग्राम अलग-अलग पीसकर मिला लें और हल्की आग पर गर्म करने के 1-1 ग्राम का आधा कप मूली के रस के साथ सुबह-शाम लेने से गुर्दे की पथरी में लाभ मिलता है।
32. काला जीरा : काला जीरा 20 ग्राम, अजवायन 10 ग्राम और काला नमक 5 ग्राम को एक साथ पीसकर सिरके में मिलाकर 3-3 ग्राम सुबह-शाम लेने से आराम मिलता है।
33. आलू : एक या दोनों गुर्दो में पथरी होने पर केवल आलू खाते रहने पर बहुत लाभ होता है। पथरी के रोगी को केवल आलू खिलाकर और बार-बार अधिक मात्रा में पानी पिलाते रहने से गुर्दे की पथरियां और रेत आसानी से निकल जाती हैं। आलू में मैग्नीशियम पाया जाता है जो पथरी को निकालता है तथा पथरी बनने से रोकता है।
34. अनन्नास : अनन्नास खाने व रस पीने से पथरी रोग में बहुत लाभ होता है।
पथरी बन्ने के कारण व उससे छुटकारा पाने के असरकारक प्रयोग
शरीर में अम्लता बढने से लवण जमा होने लगते है और जम कर पथरी बन जाते है . शुरुवात में कई दिनों तक मूत्र में जलन आदि होती है , जिस पर ध्यान ना देने से स्थिति बिगड़जाती है .
धूप में व तेज गर्मी में काम करने से व घूमने से उष्ण प्रकृति के पदार्थों के अति सेवन से मूत्राशय परगर्मी का प्रभाव हो जाता है, जिससे पेशाब में जलन होती है।
कभी-कभी जोर लगाने पर पेशाब होती है, पेशाब में भारी जलन होती है, ज्यादा जोर लगाने पर थोड़ी-थोड़ी मात्रा में पेशाब होती है। इस व्याधि को आयुर्वेद में मूत्र कृच्छ कहा जाता है। इसका उपचारहै-
उपचार : कलमी शोरा, बड़ी इलायची के दाने, मलाईरहित ठंडा दूध वपानी। कलमी शोरा व बड़ी इलायची के दाने महीन पीसकर दोनों चूर्ण समान मात्रा में लाकर मिलाकर शीशी में भर लें।एक भाग दूध व एक भाग ठंडा पानी मिलाकर फेंट लें, इसकी मात्रा 300 एमएल होनी चाहिए। एक चम्मच चूर्ण फांककर यह फेंटा हुआ दूध पी लें। यह पहली खुराक हुई। दूसरी खुराक दोपहर में व तीसरी खुराक शाम को लें।दोदिन तक यह प्रयोग करने से पेशाब की जलन दूर होती है व मुँह के छाले व पित्त सुधरता है। शीतकाल में दूध में कुनकुना पानी मिलाएँ।
– महर्षि सुश्रुत के अनुसार सात दिन तक गौदुग्ध के साथ गोक्षुर पंचांग का
सेवन कराने में पथरीटूट-टूट कर शरीर से बाहर चली जाती है । मूत्र के साथ यदि रक्त स्राव भी हो तो गोक्षुर चूर्ण को दूध में उबाल कर मिश्री के साथ पिलाते हैं ।
– गोमूत्र के सेवन से भी पथरी टूट कर निकल जाती है .
– पुनर्नवा अर्क या पुनर्नवा टेबलेट का प्रयोग
– मूत्र रोग संबंधी सभी शिकायतों यथा प्रोस्टेट ग्रंथि बढ़ने से पेशाब का रुक-रुक कर आना, पेशाब का अपने आप निकलना (युरीनरी इनकाण्टीनेन्स), नपुंसकता, मूत्राशय की पुरानी सूजन आदि में गोखरू 10 ग्राम, जल 150 ग्राम, दूध 250ग्राम को पकाकर आधा रह जाने पर छानकर नित्य पिलाने से मूत्र मार्ग की सारीविकृतियाँ दूर होती हैं ।
– गिलास अनन्नास का रस, १ चम्मच मिश्री डालकर भोजन से पूर्वलेने से पिशाब खुलकरआता है और पिशाब सम्बन्धी अन्य समस्याए दूर होती है
– खूब पानी पिए .– कपालभाती प्राणायाम करें .– हरी सब्जियां , टमाटर , काली चाय,चॉकलेट , अंगूर , बीन्स , नमक , एंटासिड , विटामिन डी सप्लीमेंट कम ले .– रोजाना विटामिन बी-६ (कम से कम १० मि.ग्रा. ) और मैग्नेशियम ले .– यवक्षार ( जौ की भस्म ) का सेवन करें .– मूली और उसकी हरी पत्तियों के साथ सब्जी का सुबह सेवन करें .– ६ ग्राम पपीते को जड़ को पीसकर ५० ग्राम पानी मिलकर २१दिन तक प्रातः और सायं पीने से पथरी गल जाती है।– मेहंदी की छाल को उबाल कर पीने से पथरी घुल जाती है .– नारियल का पानी पीने से पथरी में फायदा होता है। पथरीहोने पर नारियल का पानी पीना चाहिए।– 15 दाने बडी इलायची के एक चम्मच, खरबूजे के बीज की गिरी और दोचम्मच मिश्री, एक कप पानी में मिलाकर सुबह-शाम दो बार पीने से पथरी निकल जाती है।– पका हुआ जामुन पथरीसे निजात दिलाने मेंबहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पथरी होने पर पका हुआ जामुन खाना चाहिए।– बथुआ की सब्जी खाए .– आंवला भी पथरी में बहुत फायदा करता है।आंवला का चूर्ण मूलीके साथ खाने से मूत्राशय की पथरी निकल जाती है।– जीरे और चीनी को समान मात्रा में पीसकर एक-एक चम्मच ठंडे पानी से रोज तीन बार लेने से लाभ होता है और पथरी निकल जाती है।– सहजन की सब्जी खानेसे गुर्दे की पथरी टूटकर बाहर निकल जाती है। आम के पत्ते छांव में सुखाकर बहुत बारीक पीस लें और आठ ग्राम रोज पानी के साथ लीजिए, फायदा होगा ।
– मिश्री, सौंफ, सूखा धनिया लेकर 50-50 ग्राम मात्रा में लेकर डेढ लीटर पानी में रात को भिगोकर रख दीजिए। अगली शाम को इनको पानी से छानकर पीस लीजिए और पानी में मिलाकर एक घोल बना लीजिए, इस घोल को पीजिए। पथरीनिकल जाएगी।– चाय, कॉफी व अन्य पेय पदार्थ जिसमें कैफीन पाया जाता है, उन पेय पदार्थों का सेवन बिलकुल मत कीजिए।– तुलसी के बीज का हिमजीरा दानेदार शक्कर व दूध के साथ लेने से मूत्र पिंड में फ़ंसी पथरी निकल जाती है।– जीरे को मिश्री की चासनी अथवा शहद के साथ लेने पर पथरी घुलकर पेशाब के साथ निकल जाती है।– बेल पत्थर को पर जरा सा पानी मिलाकर घिस लें, इसमें एक साबुत काली मिर्च डालकर सुबह काली मिर्च खाएं। दूसरे दिन काली मिर्च दो कर दें और तीसरे दिन तीन ऐसे सात काली मिर्च तक पहुंचे।आठवें दिन से काली मिर्च की संख्या घटानी शुरू कर दें और फिर एक तक आ जाएं। दो सप्ताह के इस प्रयोग से पथरी समाप्त हो जातीहै। याद रखें एक बेल पत्थर दो से तीन दिन तक चलेगा
पथरी के लिए..
अकरकरा ,संभालू के बीज, गोखरू चूर्ण, तुलसी के पत्ते, पाषाण भेद ,पिपली, मुलेठी, कास (कासला) का जड़, लौंग, सोंठ सब बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर रख ले।
1गिलास पानी मे 12 से 15 ग्राम चूर्ण डालकर काढ़ा बना ले ।काढ़ा बनाते समय 1 ,2 इलायची का चूर्ण भी मिलाये। सुबह दोपहर शाम दे।
गुलहड़ (उड़हुल) के फूल का पाउडर 1 चम्मच सुबह शाम सादे पानी से ले इसके लेने पर पेट मे दर्द होगा वो दर्द पथरी के टूटने के कारण होता है पानी का सेवन अत्यधिक मात्रा में करें
कुल्थी के दाल का पानी पिये व इसकी दाल बनाकर खाये
छुई-मुई की 10 मिलीलीटर जड़ का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पीने से पथरी गलकर निकल जाती है।लाजवन्ती (छुई-मुई) के पंचांग का काढ़ा बनाकर प्रतिदिन सुबह-शाम पीयें। इसके काढ़े से पथरी घुलकर निकल जाती है।
पाषाण भेद का काढ़ा पिये दिन में 3 बार 15 से 30 दिन।
या
होमेओपेथी की berveriss velgeriss Q की 10 10 बूंद चौथाई कप पानी मे दिन में 3 बार पिये 30 से 45 दिन
पथरी निकल जाने के बाद भविष्य में पथरी न हो इसके लिए होमेओपेथी की Chinia 1000 की 2 2 बूंद स
इस ईलाज से दो-तीन महीने में पित्त की पथरी गल जाती है
अमर शहीद राष्ट्रगुरु, आयुर्वेदज्ञाता, होमियोपैथी ज्ञाता स्वर्गीय भाई राजीव दीक्षित जी के सपनो (स्वस्थ व समृद्ध भारत) को पूरा करने हेतु अपना समय दान दें
मेरी दिल की तम्मना है हर इंसान का स्वस्थ स्वास्थ्य के हेतु समृद्धि का नाश न हो इसलिये इन ज्ञान को अपनाकर अपना व औरो का स्वस्थ व समृद्धि बचाये। ज्यादा से ज्यादा शेयर करें और जो भाई बहन इन सामाजिक मीडिया से दूर हैं उन्हें आप व्यक्तिगत रूप से ज्ञान दें।
*विधि :—* सर्वप्रथम रबड़ की थैली में गर्म पानी भर लें। ठण्डे पानी केभगौने में छोटा तौलिया डाल लें। गर्म सेंक बोतल से एवं ठण्डी सेंक तौलिया को ठण्डे पानी में भिगोकर , निचोड़कर निम्न क्रम से गले केऊपर गर्म-ठण्डी सेंक करें -
3 मिनट गर्म ——————– 1 मिनट ठण्डी
3 मिनट गर्म ——————– 1 मिनट ठण्डी
3 मिनट गर्म ——————– 1 मिनट ठण्डी
3 मिनट गर्म ——————– 1 मिनट ठण्डी
इस प्रकार कुल 18 मिनट तक यह उपचार करें।
इसे दिन में दो बार – प्रातः– सांय कर सकते हैं।
*पित्त की पथरी क्या है :*
*किसी कारणवश पित्त (Bile) में बाधा पड़ने पर यह रोग उत्पन्न हो जाता है। जो लोग शारीरिक परिश्रम न कर मानसिक परिश्रम अधिक करते हैं अथवा बैठे-बैठे दिन व्यतीत करते है तथा नाइट्रोजन और चर्बी वाले खाद्य पदार्थ अधिक मात्रा में खाते हैं, उन मनुष्यों को ही इस रोग से आक्रान्त होने की अधिक सम्भावना रहती है। सौ में से दस रोगियों को 40 से 50 वर्ष की आयु के बाद और अधिकतर स्त्रियों को यह रोग हुआ करता है। आइये जाने क्यों होती है पित्त पथरी |*
*पित्त पथरी के कारण :1) आधुनिक वैज्ञानिकों का मत है कि कुछ रोगों के कीटाणु (जैसे-टायफायड के कीटाणु) पित्ताशय में सूजन उत्तपन्न कर देते हैं जिस कारण पथरी बन जाती है।*
*2) बी-कोलाई (B-Coli) नामक कीटाणु इस रोग का मुख्य कारण माना जाता है। पथरी पित्ताशय में साधारण रेत के कणों (1 से 100 तक) से लेकर दो इन्च लम्बी और एक इन्च तक चौड़ी होती है।*
*पित्त पथरी के लक्षण :*
*1) पथरी जब तक पित्ताशय में रुकी रहती है तब तक रोगी को किसी भी तरह की कोई तकलीफ महसूस नहीं होती है। कभी-कभी पेट में दर्द मालूम होता है। किन्तु जब यह पथरी पित्ताशय से निकलकर पित्त-वाहिनी नली में पहुँचती है, तब पेट में एक तरह का असहनीय दर्द पैदा होकर रोगी को व्याकुल कर देता है। इस भयानक दर्द को पित्तशूल कहते है।*
*2) यह शूल दाहिनी कोख से शुरू होकर चारों ओर (दाहिने कन्धे और पीठ तक) फैल जाता है।*
*3) दर्द के साथ अक्सर कै (वमन) ठण्डा पसीना, नाड़ी कमजोर, हिंमांग (Callapse) कामला, साँस में कष्ट, मूच्छ आदि के लक्षण दिखलायी देते हैं। यह दर्द कई धन्टों से लेकर कई सप्ताह तक रह सकता है और जब पथरी आँत के अन्दर आ जाती हैं तब रोगी की तकलीफ दूर हो जाती है। और रोगी सो जाता है। जब तक पथरी स्थिर भाव में रहती है तब तक तकलीफ घट जाती है और जब पथरी हिलती-डुलती है उसी समय तकलीफ पुनः बढ़ जाया करती है। इस प्रकार पथरी के हिलने-डुलने से तकलीफ बढ़ती-घटती रहती है। यह क्रम कई घन्टों से लेकर कई सप्ताह तक चल सकता है।*
*4) पित्ताशय शूल के लक्षण स्पष्ट होने पर पित्त पथरी का ज्ञान हो जाता है। यदि वैद्य(चिकित्सक) को निदान में सन्देह हो तो तुरन्त X-Ray करा लेना चाहिए।*
*पित्त पथरी का घरेलू इलाज :*
*1) प्याज को कतरकर जल से धोकर उसका 20 ग्राम रस निकाल कर उसमें 50 ग्राम मिश्री मिलाकर पिलाने से पथरी टूट कर पेशाब के द्वारा बाहर निकल जाती है।*
*2) नीबू का रस 6 ग्राम, कलमी शोरा 4 रत्ती, पिसे तिल 1 ग्राम (यह खुराक की मात्रा है) शीतल जल के साथ दिन में 1 या 2 बार 21 दिन तक सेवन कराने से पथरी गल जाती है।*
*3) मूली में गड्ढा खोद उसमें शलगम के बीज डालकर गूंथा हुआ आटा ऊपर से लपेट कर आग में सेकें। जब भरता हो जाये या पक जाये तब आग से निकालकर आटे को अलग कर खावें । पथरी टुकड़े-टुकड़े होकर निकल जाती है*
*4) पपीते की जड़ ताजी 6 ग्राम को जल 60 ग्राम में पीस छानकर 21 दिन तक पिलाने से पथरी गलकर निकल जाती है*
*5) केले के खम्भे के रस या नारियल के 3-4 औंस जल में शोरा 1-1 ग्राम मिलाकर दिन में दो बार देते रहने से पथरी कण निकल जाते हैं और पेशाब साफ आ जाता है।*
*6) अशोक बीज 6 ग्राम को पानी के साथ सिल पर महीन पीसकर थोड़े, से जल में घोलकर पीने से कुछ दिन में ही पथरी निर्मूल हो जाती है।*
*7) मूली का रस 25 ग्राम व यवक्षार 1 ग्राम दोनों को मिलाकर रोगी को पिलायें। पथरी गलकर निकल जायेगी।*
*8) टिंडे का रस 50 ग्राम, जवाखार 16 ग्रेन (1 ग्रेन=1 चावल भर) दोनों को मिलाकर पीने से पथरी रेत बनकर मूत्र मार्ग से बाहर निकल जाती है।*
*9) केले के तने का जल 30 ग्राम, कलमी शोरा 25 ग्राम दूध 250 ग्राम तीनों को मिलाकर दिन में दो बार पिलायें। दो सप्ताह सेवन करायें। पथरी गलकर निकल जाती है।*
*10) लाल रंग का कूष्मान्ड (कुम्हड़ा या कददू) खूब पका हुआ लेकर 250 ग्राम रस निकालें इसमें 3 ग्राम सेन्धा नमक मिलाकर पिला दें। प्रयोग दो सप्ताह । नियमित दिन में 2 बार करायें। पथरी गलकर मूत्र मार्ग से निकल जाती है।*
*पित्त पथरी का आयुर्वेदिक इलाज :*
*1) रस : त्रिविक्रम रस 250 मि.ग्रा. दिन में 2 बार मधु से सभी प्रकार की पथरी में दें । पाषाण वज्रक रस 500 मि.ग्रा. से 1 ग्राम तक दिन में 2-3 बार कुलुभी क्वाथ से दें। सभी प्रकार की पथरी में लाभप्रद है। अपूर्वमालिनी बसन्त 125 मि.ग्रा. तक दिन में 2-3 बार बिजौरा निम्बूरस से दें। क्रव्यादि रस 125-250 (मात्रा, अनुपान, लाभ, उपर्युक्त।*
*2) लौह : धात्री लौह व वरुणाद्य लौह 500 पि.ग्रा. दिन में 2 बार मधु से दें। समस्त अश्मरियों में लाभप्रद है।*
*3) भस्म : बदर पाषाण भस्म व वराटिका भस्म अनुपान नारिकेल जल से, पथरी भेदन हेतु वाटिका भस्म, पित्ताश्मरी में शूल शमनार्थ ।*
*4) गुग्गुल : गोक्षुरादि गुग्गुल 2 गोली दिन में 2-3 बार दुग्ध से दें वात श्लेष्म विकृति पर दें।*
*5) वटी : सर्वतो भद्रवटी 1 गोली दिन में 2 बार वह्वणादि क्वाथ से दें। लाभ व कार्य उपर्युक्त।*
*चन्द्रप्रभा वटी 1 गोली दिन में 2 बार मूलक स्वरस दें। (लाभ उपर्युक्त) वात श्लेष्म वकृति पर।शिवा वटी मात्रा 2 गोली दिन में 2-3 बार शर्बत बिजूरी से लाभ उपरोक्त ।*
*6) क्षार पर्पटी : श्वेत पर्पटी 500 मि.ग्रा. नारिकेल जल से दिन में 3 बार, यवक्षार 500 मि.ग्रा. से 1 ग्राम तक अविमूत्र से तथा तिलादि क्षार मात्रा उपर्युक्त जल से दें। पथरी भेदक, मूत्र कृच्छ हर है।*
*7) चूर्ण : गोक्षुर चूर्ण, 3 ग्राम दिन में 2-3 बार अविदुग्ध से तथा पाषाण भेदादि चूर्ण उपयुक्त मात्रा में गौमूत्र से पथरी भेदक तथा मूत्र कृच्छहर उत्तम चूर्ण है।*
*8) आसव : चन्दासव पित्तानुबन्ध होने पर, पुनर्नवासव वातानुबन्ध होने पर, 15 से 25 मि.ली. समान जल मिलाकर भोजनोत्तर।*
*9) घृत : वरुणादि घृत, पाषाण भेदादि घृत, कुशादि घृत, कुलत्यादि घृत 5 से 10 ग्राम दिन में 2 बार गौ दुग्ध से सब प्रकार की अश्मरियों में कुछ समय लेने पर लाभदायक है।*
*10) अवलेह पाक : कुशावलेह पाषाण भेदक पाक 5 से 10 ग्राम दिन में 2 बार गोदुग्ध से लाभ उपर्युक्त ।*
*11) क्वाथ : वीरतर्वादि क्वाथ कफज में, पाषाण भेदादि क्वाथ वातज में, एलादि क्वाथ पित्तज में 20 मि.ली. दिन में दो बार ।*
*त्रिकंटकादि क्वाथ 40 मि.ली. दिन में 2 बार 250 से 500 मि.ग्रा. शिलाजी मिलाकर-सभी प्रकार की अश्मरियों में लाभप्रद है।*
*पित्त पथरी का प्राकृतिक इलाज :*
*1)दर्द की अवस्था में रोगी को गरम पानी में रखना चाहिए । पानी रोगी को सहने योग्य गरम होना चाहिए। कमरे में वायु के प्रवेश का अच्छा प्रबन्ध होना चाहिए। रोगी के सिर पर ठण्डे पानी से भीगी तौलिया रखना नहीं भूलना चाहिए। रोगी को गरम पानी में आवश्यकतानुसार आधे घण्टे तक रखा जा सकता है जिसे हृदय, यकृत अथवा धमनी का भी रोग हो या जो वृद्ध या कमजोर हो, उसके लिए यह उपचार ठीक न होगा। ऐसे रोगी के लिए गर्म सेंक उपयुक्त सिद्ध होगा ।*
*2) कोई मोटा कपड़ा गरम पानी में निचोड़कर पित्ताशय के सामने वाले भाग अर्थात् नीचे की पसलियों और उदर के ऊपर वाले पूरे भाग पर रखना चाहिए तथा उसकी गर्मी बनाए रखने के लिए ऊपर ऊनी कपड़ा लपेट देना चाहिए। इस पट्टी को थोड़ी-थोड़ी देर के अन्तर से बदलते रहना चाहिए। इस प्रकार ताप का प्रयोग करने से शरीर के तन्तु ढीले पड़ जाते हैं । कष्ट कम हो जाता है। तथा पथरी निकलने में भी सहायता मिलती है।*
*3) रोगी को जिस अवस्था में आराम मिले, उसी अवस्था में लिटाकर पूर्ण विश्राम देना चाहिए। दर्द का दौरा होने के पूर्व लक्षण प्रकट होते ही गरम पानी का एनिमा देकर एक गरम जल का कटिस्नान दे देने से राहत मिलती है ।*
*4) स्थायी लाभ के लिए रोग की प्रबलता के अनुसार 2 से 4 दिनों का उपवास करना चाहिए । उपवास के दिनों में सिर्फ ठण्डा अथवा गरम जल नीबू के रस के साथ लेना चाहिए और सुबह-शाम गुनगुने पानी का एनिमा लेना चाहिए। एनिमा प्रातःसमय शौच के बाद शाम के समय सोने से कुछ पहले लेना चाहिए। इसके बाद 3 दिन तक केवल रसदार फलों का प्रयोग करना चाहिए । प्रातः समय और रात को सोने से पहले एक गिलास गरम जल में 1 नीबू का रस डालकर प्रतिदिन सेवन करना चाहिए।*
*तदुपरान्त तीन दिनों तक फलाहार के साथ धारोष्ण दूध, मठा अथवा दही का घोल लेना चाहिए। अन्त में कुछ दिनों तक निम्नांकित चिकित्सा-क्रम चलाना चाहिए, फिर दर्द के दौरे का भय नहीं रहेगा। ।*
*5) सुबह के समय उठकर एक गिलास गरम जल में एक कागजी नीबू का रस निचोड़कर पीना चाहिए । फिर दैनिकक्रिया, प्रातःकालीन भ्रमण से लौटकर विश्राम तदुपरान्त हिपबाथ उसके डेढ़ घण्टे के बाद रसदार फल का जलपान, 1 घण्टे के बाद 1 गिलास ठण्डे जल में 1 कागजी नीबू का रस निचोड़कर पीना, दिन के भोजन में-भाजी, सलाद, मठा और उबली हुई तरकारी । सन्ध्या के समय यकृत और पेडू पर गीली पट्टी आधा घण्टा तक फिर टहलना और सायंकालीन भोजन में-ताजे फल, किशमिश, मूंग की अँकुरी और दूध, तथा सूर्यास्त से पहले रात को कमर की गीली पट्टी की लपेट दें । जब तक पेट खूब अच्छी तरह ठीक न हो जाए तब तक दिन और रात के भोजन में अन्न के स्थान पर रामदाना, मखाना या थोड़ा-सा चोकर जोड़ा जा सकता है। उसके बाद दिन में थोड़ा-सा चावल अथवा 1-2 चोकरयुक्त आटे की रोटी मिला सकते हैं। बीच-बीच में एक दिन का उपवास करके 2 दिनों का फलाहार करना चाहिए तथा प्रतिमाह 2 बार पूरे शरीर का भापस्नान भी लेना चाहिए।*
*पित्त की पथरी के लिए अन्य असरकारी घरेलू उपचार*
*परिचय :पित्ताशय में कोई पदार्थ जब जमकर पथरी का रूप धारण कर लेती है तो उसे ही पित्त की पथरी कहते हैं। ये पथरी जब एक पित्ताशय में होती है। तब तक तो यह कोई दर्द नहीं करती मगर जब यह पित्त नली से निकलने लगती है तब यह बहुत दर्द करता है*
*कारण :जब ज्यादा वसा से भरा पदार्थ यानी घी, मक्खन, तेल वगैरह से बने पदार्थ का सेवन करते हैं तो शरीर में कोलेस्ट्रोल, कैल्शियम कार्बोनेट और कैल्शियम फांस्फेट के अधिक बनने से पित्ताशय में पथरी का निर्माण होता है। रक्त विकृति के कारण छोटे बच्चों के शरीर में भी पथरी बन सकती है। पित्ताशय में पथरी की बीमारी से स्त्रियों को ज्यादा कष्ट होता है। 30 वर्ष से ज्यादा की स्त्रियां गर्भधारण के बाद पित्ताशय की पथरी से अधिक ग्रस्त होती हैं। कुछ स्त्रियों में पित्ताशय की पथरी का रोग वंशानुगत भी होता है। खून में कोलेस्ट्रोल की मात्रा ज्यादा होने पर कैल्शियम के मिलने से पथरी बनने लगती है।*
*लक्षण :पेट के ऊपरी भाग में दायीं ओर बहुत ही तेज दर्द होता है और बाद में पूरे पेट में फैल जाता है। लीवर स्थान बड़ा और कड़ा और दर्द से भरा होता है। नाड़ी की गति धीमी हो जाती है। शरीर ठंड़ा हो जाता है, मिचली और उल्टी के रोग, कमजोरी (दुर्बलता), भूख की कमी और पीलिया रोग के भी लक्षण होते हैं। इसका दर्द भोजन के 2 घण्टे बाद होता है इसमें रोगी बहुत छटपटाता है।*
*भोजन तथा परहेज :*
*पित्त पथरी में क्या खाये :*
*खट्टे रसदार फल, ताजे शाक, मक्खन, मठा, जैतून का तेल, सोते समय तरबूजा, खीरा आदि इस रोग में लाभ करते हैं।*
*पित्त पथरी में क्या नहीं खाना चाहिए :*
*श्वेतसार (स्टार्च) )और चर्बी वाले खाद्य पदार्थ जैसे-घी, दूध, केला आदि गूदेदार फल, सूखे मेवे, आलू आदि जमीन के नीचे पैदा होने वाली तरकारियाँ (मूली, गाजर, शलजम को छोड़कर) चीनी, मैदे की चीजें तली चीजें तथा नशीली चीजें इस रोग में हानिकारक है।*
*गाय का दूध, जौ, गेहूं, मूली, करेला, अंजीर्ण, तोरई, मुनक्का, परवल, पके पपीता का रस, कम खाना, फल ज्यादा खाना और कुछ दिनों तक रस आदि का प्रयोग करें।*
*चीनी और मिठाइयां, वसा और कार्बोहाइड्रेट वाली चीजें- इस रोग में कदापि सेवन न करें। तेल, मांस, अण्डा, लाल मिर्च, हींग, उड़द, मछली और चटपटे मसालेदार चीजें, गुड़, चाय, श्वेतसार और चर्बीयुक्त चीजें, खटाई, धूम्रपान, ज्यादा मेहनत और क्रोध आदि से परहेज करें।*
*विभिन्न औषधियों से उपचार-*
*जैतून का तेल :- पित्त पथरी होने पर 2 से 3 दिनों तक जैतून का तेल सेवन करना चाहिए। जैतून का तेल सेवन करने के तुरंत बाद रोगी को नींबू का रस पिलाना चाहिए। इसके बाद 3-4 मिनट बाद फिर थोड़ा सा तेल पिलाकर उसके ऊपर नींबू का रस पिलाएं। इस तरह जैतून का तेल पिलाने के बाद नींबू का रस पिलाने से उल्टी नहीं आती। इस तरह जैतून का तेल पीने से 2 से 3 दिनों में पित की पथरी समाप्त हो जाती है।(एक से दो चम्मच तेल व 5 से 7 बून्द निम्बू रस)*
*1. अजमोदा : पित्त की पथरी ( pitt ki pathri ) में अजमोदा फल का चूर्ण 1 ग्राम से 4 ग्राम सुबह-शाम देने से फायदा होता है। मगर यह मिर्गी और गर्भवती महिला को नहीं देना चाहिए*
*2. पथरचूर :<> पथरचूर का रस चौथाई से 5 मिलीलीटर सुबह-शाम खाने से धीरे-धीरे पथरी खत्म हो जाती है* *होमेओपेथी में इसकी बेरवेरिस भलगेरिस के नाम से दवा मिलती है* *(पथरी के साथ साथ किडनी रोग व मूत्र रोग हेतु उत्तम)*
*<> पाथरचूर का रस 5 से 6 बूंद शर्करा के साथ खाने से पथरी में लाभ होता ह*
*<> पथरचूर का रस 5 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह-शाम खाने से धीरे-धीरे पथरी खत्म हो जाती है।*
*3. मजीठा : मजीठा को कपड़े से छानकर 1 ग्राम को रोज 3 बार खाने से सभी तरह की पथरियां गलकर मूत्र के द्वारा बाहर निकल जाती हैं। इससे फायदा न होने पर ऑपरेशन क्रिया की राय ले सकते हैं।*
*4. छोटा गोखरू : छोटा गोखरू का चूर्ण 3 ग्राम से 6 ग्राम सुबह-शाम शहद के साथ खाने से और ऊपर से बकरी का दूध सिर्फ 7 दिनों तक पीने से ही पथरी दूर हो जाती है।*
*5. गोखरू :<> गोखरू के काढ़े में, कलमीसोरा लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से 1.20 ग्राम सुबह-शाम पिलाने से पथरी रोग में लाभ होता है।*
*<> गोखरू के बीजों के चूर्ण को शहद के साथ भेड़ के दूध में मिलाकर पिलाने से पथरी खत्म होकर निकल जाती है।*
*6. बड़ी इलायची : बड़ी इलायची लगभग आधा ग्राम को खरबूजे के बीज के साथ पीसकर खाने से पथरी रोग में फायदा होता है।*
*7. भटकटैया : भटकटैया, रेंगनीकांट की जड़ बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण करके 2 ग्राम सुबह-शाम मीठे दही के साथ मात्र 7 दिनों तक पीने से पथरी रोग में फायदा होता है।*
*8. धतूरे : धतूरे के बीज 0.06 से 0.12 ग्राम दही के साथ खाने से दर्द कम हो जाता है और उल्टी भी नहीं होती है। इसके प्रयोग से पहले धतूरे के बीज को 12 घंटे तक गाय के मूत्र में या दूध में उबालकर शोंधन कर लें। इससे पथरी में लाभ होगा।*
*9. सहजना : सहजना की जड़ की छाल का काढ़ा और हींग को सेंधानमक में मिलाकर सुबह-शाम खाने से पित्तपथरी ( pitt ki pathri )में फायदा होता है।*
*10. अपामार्ग चिड़चिड़ी : पित्त की पथरी में अपामार्ग की जड़ 5 से 10 ग्राम कालीमिर्च के साथ या जड़ का काढ़ा कालीमिर्च के साथ 15 से 50 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह-शाम लेने से पथरी में लाभ होता है। काढ़ा अगर गरम-गरम ही लें तो लाभ होगा।* *इससे नियमित दातुन करते हुए रर्स को पीना भी उत्तम है*
*11. नारियल : नारियल के जड़ का काढ़ा 40 मिलीलीटर सुबह-शाम सेवन करने से पित्त की पथरी या किसी भी तरह की पथरी में लाभ होता है*
*12. पालक : पालक के साग का रस 10 से 20 मिलीलीटर तक खाने से पित्त की पथरी या किसी भी तरह की पथरी खत्म हो जाती है।*
*13. मूली : पित्त की पथरी के रोगी को सुबह-शाम मूली के पत्तों का रस 20 से 40 मिलीलीटर सेवन करने से लाभ होता है*
*14. गाजर : गाजर का रस पीने से पथरी टूटकर निकल जाती है।*
*15. नींबू : गर्म पानी में नींबू निचोड़कर पीने से पथरी में आराम मिलता है।*
*16. सेब का सिरका : सेब का सिरका यानि ACV यानि apple cider vinegar में अम्लीय गुण पाए जाते हैं जो की लीवर को कोलेस्ट्रॉल बनाने से रोकते हैं| साथ ही यह सिरका पथरी को घोलने में मदद करता है और पथरी के दर्द से भी राहत दिलवाता है|*
*पथरी को घोलने के लिए और दर्द से छुटकारा पाने का एक आसान नुस्खा ये है के एक गिलास गुनगुने पानी में एक चम्मच निम्बू का रस और 2 चम्मच सेब का सिरका मिलाकर रोजाना सुबह खली पेट पीयें|*
*17. सोंठ :<> 6 ग्राम पिसी हुई सोंठ में 1 ग्राम नमक को मिलाकर गर्म पानी से फंकी लेने से पथरी में लाभ होगा*
*<> सोंठ, वरूण की छाल, रेड़ के पत्ते और गोखरू का काढ़ा बनाकर सुबह खाने से पथरी जल्दी खत्म हो जाती है।*
*18. वरूण :<> वरूण के पेड़ की छाल का काढ़ा पिलाने से पित्ताशय की पथरी ( pitt ki pathri ) खत्म होकर निकल जाती है।*
*<> वरूण की छाल, सोंठ और गोखरू का काढ़ा बनाकर पीने से पथरी खत्म होती है।*
*19. इन्द्रायण : इन्द्रायण की जड़ और कुलथी का काढ़ा बनाकर पीने से पथरी के रोग में बहुत लाभ होता है।* *(मधुमेह रोगियों के लिए भी मधुमेह नाशक)*
*20. सोडा वाटर : एक कप सोडा वाटर के पानी में 2 चम्मच ग्लिसरीन डालकर रोज दोपहर और शाम को कुछ दिनों तक खाने से पथरी में लाभ होगा।*
*21. इमली : लगभग आधा से एक ग्राम इमली रस सुबह-शाम यवक्षार से घुले ताजे पानी के साथ लेने से पथरी खत्म हो जाती है। यह अजीर्ण और पेशाब की परेशानी को भी दूर करता है।*
*22. कदली (केला) : कदली क्षार और तिल क्षार प्रत्येक को 0.24 ग्राम से 1.08 ग्राम शहद में मिलाकर रोज 3 से 4 बार खाने से सब तरह की पथरी खत्म होती है।*
*23. केला :<> केले के पेड़ के तने के रस में थोड़ी-सी मिश्री को मिलाकर पीने से कुछ दिनों में ही पथरी खत्म होकर निकल जाती है।*
*<> केले के तने का रस 30 मिलीलीटर, कलमी शोरा 25 मिलीलीटर दूध में मिलाकर पिलाने से पथरी खत्म हो जाती है*
*24. कड़वी तुंबी : कड़वी तुंबी का रस और यवक्षार मिलाकर मिश्री डालकर पीने से पथरी खत्म होती है।*
*25. अंगूर का रस : रोज 200 मिलीलीटर अंगूर का रस पीने या अंगूर खाने से पित्ताशय की पथरी ( pitt ki pathri )में बहुत ही फायदा होता है।*
*26. सीताफल : सीताफल के 25 ग्राम रस में सेंधानमक मिलाकर रोज पिलाने से पथरी खत्म होकर निकल जाती है।*
*27. अरहर : अरहर के पत्ते 6 ग्राम और संगेयहूद 0.48 ग्राम को बारीक पीसकर पानी में मिलाकर पीने से पथरी में बहुत ही फायदा होता है।*
*28. प्याज : प्याज, लहसुन, सरसों, महुआ और सहजन की छाल को पानी के साथ पीसकर, पित्ताशय के ऊपर लेप करने से सूजन और दर्द दूर होता है और इससे पथरी में लाभ होगा।*
*हर प्रकार पथरी के लिए..*
*अकरकरा ,संभालू के बीज, गोखरू चूर्ण, तुलसी के पत्ते, पाषाण भेद ,पिपली, मुलेठी, कास (कासला) का जड़, लौंग, सोंठ सब बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर रख ले।*
*1गिलास पानी मे 12 से 15 ग्राम चूर्ण डालकर काढ़ा बना ले ।काढ़ा बनाते समय 1 ,2 इलायची का चूर्ण भी मिलाये। सुबह दोपहर शाम दे।*
*गुलहड़ (उड़हुल) के फूल कापाउडर 1 चम्मच सुबह शाम सादे पानी से लें इसके लेने पर पेट मे दर्द होगा वो दर्द पथरी के टूटने के कारण होता है पानी का सेवन अत्यधिक मात्रा में करें*
*कुल्थी के दाल का पानी पिये व इसकी दाल बनाकर खाये*
*छुई-मुई की 10 मिलीलीटर जड़ का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पीने से पथरी गलकर निकल जाती है।लाजवन्ती (छुई-मुई) के पंचांग का काढ़ा बनाकर प्रतिदिन सुबह-शाम पीयें। इसके काढ़े से पथरी घुलकर निकल जाती है।*
*DR VED PRSKASH JI 8709871868 के ज्ञानानुसार*
*पित्त की थैली की पथरी (Gall Bladder Stone) होम्योपैथिक मेडिसिन*
(1) Chelidonium Q
(2) Berberis Vulgaris Q
(3) Fabriana ImbricataQ
(4) Luffa BindalQ
इन चारों दवाओं को 10-10 ml लेकर आपस में मिक्स करके कांच की शीशी में रख लें और 20-20 बूँद दवा दिन में तीन बार आधा कप पानी में घोलकर ले
(5) Calculi bilari 30 इसकी चार चार बूंदे दिन में तीन बार पानी में मिक्स करके लें
(6) Cholesterinum 30 इसकी चार चार बूंदे दिन में तीन बार पानी में
*मिक्स करके लें सब दवाएं अच्छी प्रतिष्ठित कंपनी की लें*
*दवाई के आधे घंटे आगे पीछे कुछ न खाए कच्चा प्याज लहसुन इलायची flavored milk आदि सुगन्धित खाद्य पदार्थों का सेवन न करे ये होम्योपैथिक दवा की कार्य प्रणाली में बाधा पहुचाते है*
*दवा मिक्स करके रखने के लिए बड़ी शीशी होमियोपैथी स्टोर पर ही मिलती है घरेलु शीशियों का प्रयोग न करें वह सुविधाजनक नहीं होती दवाई waste हो जाती है*
*इस ईलाज से दो-तीन महीने में पित्त की पथरी गल जाती है*
*अमर शहीद राष्ट्रगुरु, आयुर्वेदज्ञाता, होमियोपैथी ज्ञाता स्वर्गीय भाई राजीव दीक्षित जी के सपनो (स्वस्थ व समृद्ध भारत) को पूरा करने हेतु अपना समय दान दें*
*मेरी दिल की तम्मना है हर इंसान का स्वस्थ स्वास्थ्य के हेतु समृद्धि का नाश न हो इसलिये इन ज्ञान को अपनाकर अपना व औरो का स्वस्थ व समृद्धि बचाये। ज्यादा से ज्यादा शेयर करें और जो भाई बहन इन सामाजिक मीडिया से दूर हैं उन्हें आप व्यक्तिगत रूप से ज्ञान दें।*
मुनक्का
1) कब्ज के रोगियों को रात्रि में मुनक्का और सौंफ खाकर सोना चाहिए। कब्ज दूर करने की यह रामबाण औषधि है।
2) भूने हुए मुनक्के में लहसुन मिलाकर सेवन करने से पेट में रुकी हुई वायु (गैस) बाहर निकल जाती है और कमर के दर्द में लाभ होता है।
3) यदि किसी को कब्ज़ की समस्या है तो उसके लिए शाम के समय 10 मुनक्कों को साफ़ धोकर एक गिलास दूध में उबाल लें फिर रात को सोते समय इसके बीज निकल दें और मुनक्के खा लें तथा ऊपर से गर्म दूध पी लें , १इस प्रयोग को नियमित करने से लाभ स्वयं महसूस करें | इस प्रयोग से यदि किसी को दस्त होने लगें तो मुनक्के लेना बंद कर दें |
4) पुराने बुखार के बाद जब भूख लगनी बंद हो जाए तब 10 -12 मुनक्के भून कर सेंधा नमक व कालीमिर्च मिलाकर खाने से भूख बढ़ती है |
5) बच्चे यदि बिस्तर में पेशाब करते हों तो उन्हें 2 मुनक्के बीज निकालकर व उसमें एक-एक काली मिर्च डालकर रात को सोने से पहले खिला दें , यह प्रयोग लगातार दो हफ़्तों तक करें , लाभ होगा |
6) मुनक्के के सेवन से कमजोरी मिट जाती है और शरीर पुष्ट हो जाता है |
7) मुनक्के में लौह तत्व Iron की मात्रा अधिक होने के कारण यह Haemoglobin खून के लाल कण को बढ़ाता हैै |
8) 4-5 मुनक्के पानी में भिगोकर खाने से चक्कर आने बंद हो जाते हैं |
9) 10 -12 मुनक्के धोकर रात को पानी में भिगो दें | सुबह को इनके बीज निकालकर खूब चबा -चबाकर खाएं , तीन हफ़्तों तक यह प्रयोग करने से खून साफ़ होता है तथा नकसीर में भी लाभ होता है |
10) 5 मुनक्के लेकर उसके बीज निकल लें , अब इन्हें तवे पर भून लें तथा उसमें कालीमिर्च का चूर्ण मिला लें | इन्हें कुछ देर चूस कर चबा लें ,खांसी में लाभ होगा |
चने के फायदे
1) चने के सेवन से सुंदरता बढ़ती है साथ ही दिमाग भी तेज हो जाता है।
2) मोटापा घटाने के लिए रोजाना नाश्ते में चना लें।
3) अंकुरित चना 3 साल तक खाते रहने से कुष्ट रोग में लाभ होता है। गर्भवती को उल्टी हो तो भुने हुए चने का सत्तू पिलाएं।
4) चना पाचन शक्ति को संतुलित और दिमागी शक्ति को भी बढ़ाता है। चने से खून साफ होता है जिससे त्वचा निखरती है।
5) सर्दियों में चने के आटे का हलवा कुछ दिनों तक नियमित रूप से सेवन करना चाहिए। यह हलवा वात से होने वाले रोगों में व अस्थमा में फायदेमंद होता है।
6) रात को चने की दाल भिगों दें सुबह पीसकर चीनी व पानी मिलाकर पीएं। इससे मानसिक तनाव व उन्माद की स्थिति में राहत मिलती है। 50 ग्राम चने उबालकर मसल लें। यह जल गर्म-गर्म लगभग एक महीने तक सेवन करने से जलोदर रोग दूर हो जाता है।
7) चने के आटे की की नमक रहित रोटी 40 से 60 दिनों तक खाने से त्वचा संबंधित बीमारियां जैसे-दाद, खाज, खुजली आदि नहीं होती हैं। भुने हुए चने रात में सोते समय चबाकर गर्म दूध पीने से सांस नली के अनेक रोग व कफ दूर हो जाता हैं।
8) 25 ग्राम काले चने रात में भिगोकर सुबह खाली पेट सेवन करने से डायबिटीज दूर हो जाती है। यदि समान मात्रा में जौ चने की रोटी भी दोनों समय खाई जाए तो जल्दी फायदा होगा।
दूध सर्वोत्तम पोष्टिकयुक्त एक संपूर्ण आहार है।
माँ का दूध:-जीवन हेतु, शारीरिक विकास हेतु, वात पित शमन हेतु, नेत्र रोगों में सर्वोत्तम औषधी
इसके लिये एक वाक्य इस कहावत से समझे
"अगर अपनी माँ का दूध पिया है तो सामने आ"
देशी गाय का दूध:-इसके बारे में एक वाक्य
जिस प्रकार नवजात शिशु हेतु माँ का दूध
उसी प्रकार माँ के दूध के बाद गौमाता का दूध।
भैस का दूध:-शुक्र बढ़ाने हेतू, अनिद्रा का नाश , कफकारी,भूख को खत्म करने हेतु जिसकी जठराग्नि तीव्र हो उसके लिये सर्वोत्तम
बकरी का दूध:-रक्तपित्त, ज्वर,आतिसर, स्वास कास, शोष व क्षय रोग हेतु
भेड़ का दूध:- वात रोग व पथरी रोग हेतु हितकर
घोड़ी गदही का दूध:-बलकारक,दृढ़ताकारक,शोष नाशक,वात नाशक
हथनी का दूध:- नेत्र रोग, पुष्टिकारक, वृष्य , बलकारक,दृढ़ता उत्पन्न करने सर्वोत्तम
ऊंटनी का दूध:-वात रोग,कफ रोग,पेट फूलना/अफरा, उदर रोग,कृमि रोग,अर्श रोग,शोथ ,कुष्ट रोग , मधुमेह,थैलेसेमिया, टयूमर विरोधी कर्क व एड्स रोग हेतु सर्वोत्तम
सोयाबीन का दूध:- मस्तिष्क, स्नायु,स्मरण,मिर्गी,हिस्टीरिया, फेफड़ो के रोग,कील मुहासे,काले चकते,मधुमेह,रक्तहीनता, जिगर की खराबी,अम्लता बढ़ने से रोग,वात रोग व गुर्दे के रोग हेतु
सूरजमुखी का दूध:- विटामीन D प्रधान, हड्डियों व पौरुष शक्ति हेतु
खरबूजे का दूध:- हड्डियों, दिमाग को तरोताजा व ऊर्जा हेतु
सफेद तिल का दूध:- हड्डी,मस्तिष्क, दाँत, स्त्रियों में रजोरोध, त्वचा रोग व कामशक्ति हेतु
प्राकृतिक दूधो में सिर्फ तिल का दूध ही त्रिदोषनाशक है।
मूंगफली का दूध:- मस्तिष्क व शारिरिक दुर्बलता हेतु
बादाम का दूध:- मानसिक श्रमिको हेतु
काजू का दूध:- मधुमेह रोगियों हेतु
नारियल का दूध:- कब्ज,आंतरिक सूजन हेतु
मेवों का दूध :- वजन,बल,मर्दाना शक्ति हेतु
प्राकृतिक वस्तुओं का दूध बनाने की विधि:-
जिसका भी दूध बनाना चाहते हैं उसे 12 घंटे पानी मे भिगो दें उसके बाद उसका छिलका उतारकर लुगदी बना ले व इसके मात्रा के 8 या 6 गुना पानी मिलाकर छान लें दूध तैयार अब आप इस दूध की दही, पनीर भी बना सकते हैं।
आज की मॉडर्न युग मे शुद्ध दूध नही मिलता है तो आप निराश न होकर उपयुर्क्त पद्धति द्वारा शुद्ध दूध तैयार कर अपने परिवार को स्वस्थ व समृद्व बनायें।
आपका अनुज
गोविन्द शरण प्रसाद
9958148111
उपर्योक्त जानकारी डॉ अरविंद सेठ(एम. डी.)
लिखित पुस्तक काला दूध ( प्रथम संस्करण जनवरी 2016) से मिले ज्ञान के आधार
*बवासीर*
*बवासीर(पाइल्स) का कारण*
★ यह रोग अधिकतर उन युवकों को जो अक्सर बैठे रहते हैं। जिन्हें पुराना कब्ज हो, और जो अधिक मदिरापान करते हो जाता है | तथा बूढों को यह रोग प्रोस्टेट ग्रन्थि के बढ़ जाने के कारण और मूत्राशय में पथरी बन जाने से हो जाता है। (स्त्रियों को कम होता है)
★ इस रोग की उत्पत्ति कटु, अम्ल, लवण, विदाही, तीक्ष्ण एवं उष्ण पदार्थों के सेवन, मन्दाग्नि, बार-बार रेचक़ औषधियों के सेवन, शौचक्रिया के समय अधिक जोर लगाने तथा निरन्तर सवारी करना, विषम या कठिन आसन लगाने, लगातार बैठकर काम करने की प्रवृत्ति तथा व्यायाम का अभाव, शीतल स्थान पर अधिकतर बैठना, गुदा की शिराओं पर अधिक दबाव डालने के कारण (यथा-सगर्भता, उदर-श्रोणिगत अर्बुद, गर्भच्युति, विषम-प्रसूति आदि) वायु,. मल-मूत्र आदि के अधारणीय वेगों को रोकना अथवा बिना प्रवृत्ति के ही उन्हें त्यागने की कोशिश करना, यकृत की खराबी व अधिक मदिरापान से भी यह रोग हो जाता है।
*बवासीर के लक्षण :*
★ इस रोग में गुदाद्वार पर मस्से फूल जाते है। मलद्वार की नसें फूल जाने से वहाँ की त्वचा फूल कर सख्त हो जाती है और अंगूर की भाँति एक दूसरे से जुड़े हुए गुच्छे से उभर आते हैं। जिनमें रक्त भी बहता है, उसे खूनी बवासीर के नाम से जाना जाता है और जिसमें रक्त नहीं बहता, उसे बादी बबासीर के नाम से जाना जाता है।
*खूनी बवासीर के लक्षण*
★ रक्तार्श में जलन, टपकन, अकड़न और काटकर फेंकने जैसा दर्द होता है।
★ रोगी को बैठने में तकलीफ होती है। रोगी कब्ज के कारण दुःखी रहता है, उसको पतले दस्त नहीं आते तथा उसके मल में प्रायः रक्त आया करता है।
★ मल त्याग करते समय अत्यन्त पीड़ा होती है जो पाखाना करने के बाद भी कुछ देर तक होती रहती है।
★ गुदा के चारों तरफ लाली हो जाती है। गुदा में दर्द, जलन, खुजली होती रहती है। रोगी का चेहरा तथा पूरा शरीर नीला पड़ जाया करता है।
*बादी बवासीर के लक्षण :*
★ बादी बवासीर में गन्दी हवा (वायु) निकला करती है। है, रोगी के जोड़ों में टूटने जैसा दर्द होता है, उठते बैठते उसके जोड़ चटका करते है तथा रोगी को भू
ख कम लगती है इसके साथ ही उसकी जाँघों में भी पीडा बनी रहती है।
★ रोग प्रतिदिन कमजोर होता चला जाता है।
*बवासीर में क्या खाएं क्या ना खाएं :*
अर्श की चिकित्सा में कब्ज कतई न रहने दें। रोगी को ऐसा भोजन दिया जाना चाहिए जिसंसे मल साफ आये अन्यथा उसे एनीमा दें। मिश्री मक्खन के साथ छिलका उतरे हुए तिल या भीगा हुआ चना रोज सवेरे देने से कब्ज दूर होगी सवेरे उठने पर तथा रात्रि को सोते समय एक गिलास गर्म पानी देने से भी कब्ज दूर होता है। मन पसन्द हल्का-फुल्का व्यायाम, प्रातः सायं नित्य करने का रोगी को निर्देश दें। शोथ की अवस्था में पूर्ण विश्राम की सलाह दें
★ जिमीकन्द, पपीता, मक्खन, पिस्ता, बादाम, नाशपाती, सेब, पुराने चावल का भात, पका कोहडा, मट्ठा, दुध विशेषतः बकरी का, मिश्री व कच्ची मूली दें।
*अपथ्य (इनके सेवन से बचें)*
★ चाय, काफी, रूखी चीजें, भुनी और उत्तेजक चीजें, मादक वस्तुएँ, धूप या आग तापना, लहसुन, प्याज, मछली, माँस, उड़द की दाल, लाल मिर्च आदि खाना निषेध करा दें तथा टेढ़े होकर बैठना, घोडे और ऊँट की सवारी करना, मल-मूत्र के वेगों को रोकना, मैथुन करना, उपवास करना, कठोर श्रम |
आइये जाने बवासीर का अचूक इलाज ,बवासीर का आयुर्वेदिक इलाज हिंदी में |
*बवासीर का घरेलू उपाय / उपचार :*
(1) आँवला 15 ग्राम और 15 ग्राम मेंहदी के पत्तों को डेढ़पाँव पानी में रातभर भीगने दें | सुबह उसका पानी पीने से बवासीर मिट जाती है |
(2) गुड़ और हरड़ के चूर्ण की गोली बनाकर खाने से अर्श-रोग में लाभ होता है।
(3) गोरखमुण्डी की छाल का चूर्ण छाछ में मिलाकर पीने से अर्श ठीक हो जाता है।
(4) गोरखमुण्डी का चूर्ण गाय के दूध या दही के साथ खाने से बवासीर में लाभ होता है।
(5) इन्द्रायण की जड़ का चूर्ण 2 रत्ती(364 mg), कालीमिर्च चूर्ण पाव तोला के साथ खाने से बवासीर में लाभ होता है।
(6) रसौत का चूर्ण 2 ग्राम और कालीमिर्च एक नग दही या मट्ठे के साथ दिन । में तीन बार खाने से बवासीर मिट जाता है।
(7) जमीकन्द का भुर्ता बनाकर प्रतिदिन खाने से बवासीर ठीक हो जाता है।
(8) कालीमिर्च 2 ग्राम , जीरा 1 ग्राम और शक्कर साढ़े सात ग्राम मिलाकर एक चम्मच पानी के साथ लेने से बवासीर मिट जाता है।
(9) सुबह 3 बजे से 5 बजे के बीच उठकर श्रृंग-भस्म या लौह-भस्म मक्खन के साथ खाकर पुनः सो जाने से बवासीर में लाभ होता है।
(10) निम्बोली, बकायन, इन्द्र-जौ, गूगल, एलुआ और छोटी हरड.1-1 तोला और कपूर 6 ग्राम की गोंद के रस में गोलियाँ बनाकर खाने से अर्श मिट जाता है।
(11) जायफल और सौठ डेढ़-डेढ़ तोला तथा अनार का छिलका 5 तोला को पीसकर दही के साथ खाने से बवासीर में लाभ होता हैं।
(12) तीस ग्राम हुलहुल के पत्ते पीसकर टिकिया बनाकर बवासीर के मस्सों पर रखकर ऊपर से लँगोट पहन लें। तीन दिन इस प्रकार करने से मस्से ठीक हो जायेंगे।
(13) खट्टी करतूत और गूगल 1-1 ग्राम पीसकर गोलियाँ बनाकर सुबह-शाम खाने से बवासीर में लाभ होता है। यही दवा बवासीर पर लेप करनी चाहिए।
(14) ठण्डे पानी के साथ काले तिल (कच्चे) खाने से अर्श-रोग ठीक हो जाता है।
(15) आक, बेर, जिनजिनी और गूगल की जड़ का चूर्ण बनाकर 1 रत्ती(182 mg ) दवा केले के साथ खाने से बवासीर मिट जाता है।
(16) त्रिफला और मिश्री बराबर मात्रा में लेकर गुलाबजल में घोटकर सात ग्राम की मात्रा में खाने से अर्श-रोग में लाभ होता है।
(17) जिमीकन्द के टुकड़े छाया में सुखाकर चूर्ण बनाकर 10 ग्राम हर रोज सुबह 20 दिन लेने से बवासीर दूर हो जाता है।
(18) जिमीकन्द के ऊपर मिट्टी लगाकर कपड़ा लगा दें और उसे आग में डाल दें। जब मिट्टी लाल हो जाए, तब उसे मिट्टी से अलग करके नमक और तेल मिलाकर खाने से बवासीर में लाभ होता है।
(19) 2 ग्राम हरड़ का चूर्ण ईसबगोल की भूसी के साथ रात में खाने से बवासीर मस्सा मिट जाता है।
(20) 3 ग्राम अजवायन और 3 ग्राम रसौत खाने से अर्श-रोग में लाभ होता है।
(21) सात ग्राम गन्धक-बिरोजा को पानी के साथ लेने से बवासीर दूर होता है।
(22) लवण-भास्कर का चूर्ण भोजन के बाद खाने से दस्त लगकर बवासीर ठीक हो जाता है।
(23) दही का तोड़ पीने से बवासीर में आराम मिलता है।
(24) शक्कर या रसकपूर के साथ गोरखमुण्डी लगाने से बवासीर के मस्से ठीक हो जाते हैं।
(25) इन्द्रायण की जड़ 750 ग्राम में 100 ग्राम जीरा डालकर घोट लें। 5-5 टङ्क की टिकिया बनाकर बाँधने से बवासीर मिट जाती हैं।
(26) दस वर्ष पुराना घी लगाने से बबासीर के मस्से मिट जाते हैं।
(27) गरम-गरम कण्डों की राख लगाने से मस्से मिट जाते हैं।
(28) अखरोट के तेल में कपड़ा भिगोकर बाँधने से बवासीर के मस्सों में लाभ होता है।
(29) अनार के पत्ता पीसकर टिकिया बना लें। इसे घी में भूनकर गुदा पर बाँधने से मस्सों की जलन, दर्द और सूजन मिट जाती है।
(30) इन्द्रायण के बीज और गुड़ पीसकर लुगदी बनाकर गुदा पर बाँधने से मस्सों में लाभ होता है।
(31) काले साँप की केंचुली जलाकर सरसों के तेल में मिलाकर गुदा पर चुपड़ने से मस्सा कट जाता है।
(32) थूहर का दूध लगाने से मस्से और त्वचा के फोड़ों में लाभ होता है।
(33) सूरजमुखी के पत्तों का साग दही के साथ खाने से मस्से मिट जाते है।
(34) काले जीरे की पुल्टिस बाँधने से बाहर लटके हुए मस्से बैठ जाते है।
(35) खैर, मोम और अफीम मिलाकर पीसकर लगाने से मस्से सिमट जाते हैं।
(36) अजवायन और पुराना गुड़ कूटकर 4 ग्राम सुबह गरम पानी के साथ खाने से सूखे मस्सों और कमर के दर्द में लाभ होता है।
(37) अरणी से पत्ते पीसकर पुल्टिस बनाकर बाँधने से बवासीर की सूजन और पीड़ा मिट जाती है।
(38) अडूसे के पत्ते पीसकर नमक मिलाकर बाँधने से बवासीर और भगन्दर में लाभ होता है ।
(39) दस ग्राम भाँग के हरे पत्ते और 3 ग्राम अफीम घोटकर एक टिकिया बना लें और तबे पर गरम करके गुदा पर बाधेने से बवासीर मस्से मिट जाते हैं।
(40) दस ग्राम फिटकरी को बारीक पीसकर 20 ग्राम मक्खन में मिलाकर लगाने से मस्से सूखकर गिर जाते हैं।
(41) कुचला और अफीम को पानी में घिसकर मस्सों पर लगाने से मस्से सूख जाते हैं।
(42) बनगोभी के पत्तों को कूटकर उनका रस निकाल लें। इस रस को दिन में तीन-चार बार मस्सों पर लगायें। एक सप्ताह में मस्से ठीक हो जायेंगे।
(43) मूली का रस 125 ग्राम और जलेबी 100 ग्राम । जलेबी को मूली के रस में एक घण्टे तक भीगने दें। इसके बाद जलेबी खाकर रस पीलें । एक सप्ताह यह प्रयोग करने से बवासीर मिट जाती हैं।
(44) चार प्यालों में धारोष्ण गाय का दूध आधा भरें, इनमें आधा-आधा नीबू का रस निचोड़ कर पीते जायें। याह 5-6 दिन तक पीने से बवासीर मिट जाती है।
(45) पाँच ग्राम कचूर का चूर्ण सुबह पानी के साथ खाने से दो सप्ताह में बवासीर ठीक हो जाती है।
(46) नागकेसर और सफेद सुर्मा बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। आधा ग्राम दवा को 6 ग्राम शहद में मिलाकर चाटने से सभी प्रकार की बवासीर में लाभ होता है।
(47) तीन ग्राम कच्चे अनार के छिलके के चूर्ण में 100 ग्राम दही मिलाकर खाने से बवासीर मिट जाता है।
(48) छः ग्राम चिरिचिटा के पत्ते और 5 ग्राम कालीमिर्च को ठण्डाई की तरह घोटकर पीने से अर्श-रोग में लाभ होता है।
(49) कड़वी तोरई के बीज पानी में पीसकर लगाने से बवासीर मिट जाती है।
(50) अजवायन देशी, अजवायन जङ्गली और अजवायन खुरासानी को समभाग लेकर महीन पीसकर मक्खन में मिलाकर मस्सों पर लगाने से कुछ दिन में मस्से सूख जाते हैं।
(51) आम के पत्तों का रस लगाने से मस्से सूख जाते हैं।
(52) नीम और पीपल के पत्ते घोट-पीसकर मस्सों पर लेप करने से मस्से सूख जाते हैं।
(53) चने के दाने के बराबर फिटकिरी पाउडर नियमित सुबह शाम पानी में घोलकर पिने से ठीक हो जाता है
(54) दो चुटकी फिटकरी पावडर एक अमरूद में अंदर भर दे,आग पे भुने ,फिर चबा चबाकर चूसते हुए रस पिये व ठोस पदार्थ फेंकते जाए,तीन दिन तक करे
(55) नियमित एक चौथाई चम्मच कुकरौंधा के पत्ते का रस पीने से 7 से 10 दिन में बवासीर ठीक होता है
(56) शीशम के पत्ते की चटनी एक चम्मच एक गिलास पानी मे घोलकर या उबालकर पीने से या इसके पत्ते चबाकर रस पिने से खूनी बवासीर में खून आना बंद हो जाता है
*विशेष चिकित्सीय सलाह हेतु आप व्यक्तिगत रात्रि 9 बजे के बाद सम्पर्क कर सकते हैं*
*Homoeo Trang: 🌹🌹डॉ. वेद प्रकाश,नवादा( बिहार)🌹8051556455🌹*
*निरोगी रहने हेतु महामन्त्र*
*मन्त्र 1 :-*
*• भोजन व पानी के सेवन प्राकृतिक नियमानुसार करें*
*• रिफाइन्ड नमक,रिफाइन्ड तेल,रिफाइन्ड शक्कर (चीनी) व रिफाइन्ड आटा ( मैदा ) का सेवन न करें*
*• विकारों को पनपने न दें (काम,क्रोध, लोभ,मोह,इर्ष्या,)*
*• वेगो को न रोकें ( मल,मुत्र,प्यास,जंभाई, हंसी,अश्रु,वीर्य,अपानवायु, भूख,छींक,डकार,वमन,नींद,)*
*• एल्मुनियम बर्तन का उपयोग न करें ( मिट्टी के सर्वोत्तम)*
*• मोटे अनाज व छिलके वाली दालों का अत्यद्धिक सेवन करें*
*• भगवान में श्रद्धा व विश्वास रखें*
*मन्त्र 2 :-*
*• पथ्य भोजन ही करें ( जंक फूड न खाएं)*
*• भोजन को पचने दें ( भोजन करते समय पानी न पीयें एक या दो घुट भोजन के बाद जरूर पिये व डेढ़ घण्टे बाद पानी जरूर पिये)*
*• सुबह उठेते ही 2 से 3 गिलास गुनगुने पानी का सेवन कर शौच क्रिया को जाये*
*• ठंडा पानी बर्फ के पानी का सेवन न करें*
*• पानी हमेशा बैठ कर घुट घुट कर पिये*
*• बार बार भोजन न करें आर्थत एक भोजन पूर्णतः पचने के बाद ही दूसरा भोजन करें*
*भाई राजीव दीक्षित जी के सपने स्वस्थ भारत समृद्ध भारत और स्वदेशी भारत स्वावलंबी भारत स्वाभिमानी भारत के निर्माण में एक पहल आप सब भी अपने जीवन मे भाई राजीव दीक्षित जी को अवश्य सुनें*
*स्वदेशीमय भारत ही हमारा अंतिम लक्ष्य है :- भाई राजीव दीक्षित जी*
*मैं भारत को भारतीयता के मान्यता के आधार पर फिर से खड़ा करना चाहता हूँ उस काम मे लगा हुआ हूँ*
🍀🍀छोटी-मोटी परेशानियों के लिए घरेलू नुस्खे🍀🍀
* कांच या कंकर खाने में आने पर ईसबगोल भूसी गरम दूध के साथ तीन समय सेवन करें!
* घाव न पके, इसलिए गरम मलाई (जितनी गरम सहन कर सकें) बांधें!
* तुतलापन दूर करने के लिए रात को सोने से पांच मिनट पूर्व दो ग्राम भुनी फिटकरी मुंह में रखें!
* बच्चों का पेट दर्द होने पर अदरक का रस, पांच ग्राम तुलसी पत्र घोटकर, औटाकर बच्चों को तीन बार पिलाएं!
* सर्दियों में बच्चों की सेहत के लिए तुलसी के चार पत्ते पीसकर 50 ग्राम पानी में मिलाएं! सुबह पिलाएं!
* आमाशय का दर्द तुलसी पत्र को चाय की तरह औटाकर सुबह-सुबह लेना लाभदायक!
* सीने में जलन हो तो पावभर ठंडे जल में नीबू निचोड़कर सेवन करें!
* शराब ज्यादा पी ली हो तो छह माशा फिटकरी को पानी/दूध में मिलाकर पिला दें या दो सेबों का रस पिला दें!
* अरहर के पत्तों का रस पिलाने से अफीम का नशा कम हो जाता है!
* आधी छटांक अरहर दाल पानी में उबालकर उसका पानी पिलाने से भांग का नशा कम हो जाता है!
* केला हजम करने के लिए दो छोटी इलायची काफी होती है!
* आम ज्यादा खा लिए हों तो हजम करने के लिए थोड़ा सा नमक सेवन कीजिए!
* मुंह से बदबू आने पर मोटे अनार का छिलका पानी में उबालकर कुल्ले करें!
* मछली का कांटा यदि गले में फंस जाए तो केला खाएं!
* हिचकी आने पर पोदीने के पत्ते या नीबू चूस लें!
* वजन घटाने हेतु गरम जल में शहद व नीबू मिलाकर सेवन करें!
* कान/दांत दर्द, खांसी व अपचन में जीरा व हींग 1/1-2 मात्रा में सेवन करें!
* जख्मों पर पड़े कीड़ों का नाश करने के लिए हींग पावडर बुरक दें!
* दाढ़ दर्द के लिए हींग रूई के फाहे में लपेटकर दर्द की जगह रखें!
* शीत ज्वर में ककड़ी खाकर छाछ सेवन करें! शराब की बेहोशी में ककड़ी सेवन कराएं!
* वजन घटाने हेतु गरम जल में शहद व नीबू मिलाकर सेवन करें!
* कान/दांत दर्द, खांसी व अपचन में जीरा व हींग 1/1-2 मात्रा में सेवन करें!
*🌵एलोविराके लाभ🌵*
*एलोविरा का सेवन: -* अपने चेहरे को दाग धब्बे से मुक्त, पिंपल, कील मुंहासे से दूर, गोरा और खूबसूरत बनाए रखने के लिए कई तरह के ब्यूटी प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करते रहते हैं जबकि कुछ घरेलू नुस्खे और उपाय ऐसे भी हैं जिसके इस्तेमाल से हम अपनी खूबसूरती में चार चांद लगा सकते हैं. अपने चेहरे को बेदाग और आकर्षक बना सकते हैं.
एलोवेरा एक ऐसा औषधि है जो हमारे सभी तरह के स्वास्थ की काफी बेहतर तरीके से देखरेख करता है.
एलोवेरा का सेवन करने से पेट से जुड़ी सारी समस्या खत्म हो जाती है. ये बालों के लिए भी रामबाण का काम करता है. साथ ही आपके चेहरे को बेदागनुमा खूबसूरती प्रदान करने में अमृत का काम करता है.
एलोवेरा जेल को अपने चेहरे पर लगाकर आप अपनी त्वचा को गोरा और स्वस्थ बना सकते हैं. इसके फायदे अनेक हैं और इसे लगाने का तरीका भी बहुत ही ज्यादा आसान है.
1. एलोवेरा आपके स्किन के लिए नेचुरल स्किन मॉश्चराइजर का काम करता है. इसे त्वचा पर लगाने से त्वचा में नमी आती है साथ ही त्वचा को पोषण भी मिलता है. अगर आपको किसी तरह की एलर्जी नहीं है तो आप किसी भी तरह के स्किन टाइप पर एलोवेरा जेल का इस्तेमाल कर सकते हैं.
2. अपनी त्वचा में निखार लाना चाहते हैं तो इसके लिए एलोवेरा जेल का उपयोग प्रकृति का सबसे बेहतर तोहफा है. ये आपके चेहरे से धूल-मिट्टी, डेड स्किन और गंदगी को साफ करने में काफी मददगार होता है. इससे आपका स्किन ग्लो करने लगता है और आकर्षक दिखता है.
3. एंटी एजिंग गुण से भरपूर एलोवेरा में एंटीआक्सीडेंट की मात्रा भी मौजूद होती है जो आपके चेहरे से झुर्रियों को हटाने में काफी मददगार होता है. एलोवेरा जेल के नित्य इस्तेमाल से आप लंबे समय तक जवान और खूबसूरत दिख सकते हैं.
4. त्वचा से सनबर्न की समस्या से छुटकारा दिलाने में भी एलोवेरा जेल काफी महत्वपूर्ण योगदान निभाता है.
5. चेहरे को पिंपल मुक्त और बेदाग बनाने में एलोवेरा रामबाण का काम करता है.
6. चेहरे से मेकअप हटाने के लिए एलोवेरा जेल का इस्तेमाल काफी अच्छा होता है. इससे स्किन को किसी तरह का कोई नुकसान नहीं होता.
7. शरीर के स्ट्रेच मार्क्स को हटाने के लिए भी एलोवेरा जेल काफी हद तक मददगार होता है. इसके लिए एलोवेरा जेल में गुलाब जल मिलाकर इस्तेमाल करना फायदेमंद होता है.
8. घाव या फिर चोट के निशान या छोटे-मोटे कट हो जाए तो उसे ठीक करने में भी एलोवेरा जेल काफी असरदार होता है.
9. फटी हुई बदसूरत एड़ियों को एलोवेरा जेल मुलायम और खूबसूरत बनाने में रामबाण का काम करता है.
10. होठों को मुलायम और गुलाब जैसा खूबसूरत बनाने में भी एलोवेरा जेल काफी असरदार होता है.
चेहरे पर कैसे लगाएं एलोवेरा जेल -
1. चेहरे पर अगर मुंहासे के निशान या फिर तिल के निशान हैं तो उसके लिए नीम के पेड़ की छाल के रस में एलोवेरा जेल को मिलाकर अप्लाई करें सारे दाग मिट जाएंगे.
2. फेस को चमकदार बनाए रखने के लिए 1 चम्मच शहद, 1 चम्मच दूध और थोड़ा सा गुलाब जल के साथ चुटकी भर हल्दी मिलाकर पैक बना लें और इसमें एलोवेरा जेल मिलाकर चेहरे पर अप्लाई करें सूख जाने पर साफ पानी से धो लें.
3. चेहरे को गोरा बनाने के लिए अजवाइन, तुलसी के पत्ते और शहद के साथ एलोवेरा जेल मिलाकर चेहरे पर अप्लाई करें.
4. त्वचा से झाइयां मिटाने के लिए नींबू के छिलके को पीसकर एलोवेरा जेल मिलाकर चेहरे पर लगाएं.
5. स्किन से चकत्ते और दाग को साफ करने के लिए एलोवेरा जेल में टमाटर मिलाकर इस पैक को लगाने से काफी फायदा मिलता है.
6. ऑयली स्किन से निजात पाने के लिए एलोवेरा जेल में बेसन मिलाकर चुटकी भर हल्दी मिलाएं और इसे थोड़ा गर्म कर चेहरे पर अप्लाई करें. सूख जाने पर साफ पानी से धो लें.
एलोवेरा का सेवन - स्किन से जुड़ी कोई भी समस्या हो एलोवेरा जेल हमेशा रामबाण का काम करता है. बस जरूरत है उसे सही तरीके से इस्तेमाल करने की. उपर बताए तरीकों के अनुसार अगर आप एलोवेरा जेल का उपयोग करते हैं तो आपकी त्वचा निश्चित रूप से बेदाग खूबसूरती के साथ बेहद आकर्षक बन जाएगी और आप लंबे समय तक जवान बने रहेंगे.
वन्देमातरम !
*पुनर्नवा जो बनाये आपके शरीर को नया*
पुनर्नवा जो बनाये आपके शरीर को नया
शरीर पुनर्नवं करोति इति
पुनर्नवा ।
जो अपने रक्तवर्धक एवं रसायन गुणों द्वारा सम्पूर्ण शरीर को अभिनव स्वरूप प्रदान करे, वह है ‘पुनर्नवा’ ।
यह हिन्दी में साटी, साँठ, गदहपुरना, विषखपरा, गुजराती में साटोड़ी, मराठी में घेटुली तथा अंग्रेजी में ‘हॉगवीड’ नाम से जानी जाती है ।
मूँग या चने की दाल मिलाकर इसकी बढ़िया सब्जी बनती है, जो शरीर की सूजन, मूत्ररोगों (विशेषकर मूत्राल्पता), हृदयरोगों, दमा, शरीरदर्द, मंदाग्नि, उलटी, पीलिया, रक्ताल्पता, यकृत व प्लीहा के विकारों आदि में फायदेमंद है । इसके ताजे पत्तों के 15-20 मि.ली. रस में चुटकी भर काली मिर्च व थोड़ा-सा शहद मिलाकर पीना भी हितावह है । भारत में यह सब्जी सर्वत्र पायी जाती है ।
पुनर्नवा का शरीर पर होनेवाला रसायन कार्यः
दूध, अश्वगंधा आदि रसायन द्रव्य रक्त-मांसादि को बढ़ाकर शरीर का बलवर्धन करते हैं परंतु पुनर्नवा शरीर में संचित मलों को मल-मूत्रादि द्वारा बाहर निकालकर शरीर के पोषण का मार्ग खुला कर देती है ।
बुढ़ापे में शरीर में संचित मलों का उत्सर्जन यथोचित नहीं होता । पुनर्नवा अवरूद्ध मल को हटाकर हृदय, नाभि, सिर, स्नायु, आँतों व रक्तवाहिनियों को शुद्ध करती है, जिससे मधुमेह, हृदयरोग, दमा, उच्च रक्तदाब आदि बुढ़ापे में होनेवाले कष्टदायक रोग उत्पन्न नहीं होते ।
यह हृदय की क्रिया में सुधार लाकर हृदय का बल बढ़ाती है । पाचकाग्नि को बढ़ाकर रक्तवृद्धि करती है । विरूद्ध आहार व अंग्रेजी दवाओं के अतिशय सेवन से शरीर में संचित हुए विषैले द्रव्यों का निष्कासन कर रोगों से रक्षा करती है ।
बालरोगों में लाभकारी पुनर्नवा शरबतः पुनर्नवा के पत्तों के 100 ग्राम स्वरस में मिश्री चूर्ण 200 ग्राम व पिप्पली (पीपर) चूर्ण 12 ग्राम मिलाकर पकायें तथा चाशनी गाढ़ी हो जाने पर उसको उतार के छानकर शीशी में रख लें । इस शरबत को 4 से 10 बूँद की मात्रा में (आयु अनुसार) रोगी बालक को दिन में तीन-चार बार चटायें । खाँसी, श्वास, फेपडों के विकार, बहुत लार बहना, जिगर बढ़ जाना, सर्दी-जुकाम, हरे-पीले दस्त, उलटी तथा बच्चों की अन्य बीमारियों में बाल-विकारशामक औषधि कल्प के रूप में इसका उपयोग बहुत लाभप्रद है ।
औषधि- प्रयाग
1. (अ) नेत्रों की फूलीः पुनर्नवा की जड़ को घी में घिसकर आँखों में आँजें ।
(ब) नेत्रों की खुजलीः पुनर्नवा की जड़ को शहद या दूध में घिसकर आँख में आँजें ।
(स) नेत्रों से पानी गिरनाः पुनर्नवा की जड़ को शरहद में घिसकर आँखों में आँजें ।
2. पेट के रोगः गोमूत्र एवं पुनर्नवा का रस समान मात्रा में मिलाकर पीयें ।
3. गैसः 2 ग्राम पुनर्नवा के मूल का चूर्ण, आधा ग्राम हींग व 1 ग्राम काला नमक गर्म पानी से लें ।
4. मूत्रावरोधः पुनर्नवा का 40 मि.ली. रस अथवा उतना ही काढ़ा पीयें पुनर्नवा के पत्ते बाफकर पेडू पर बाँधें । 1 ग्राम पुनर्नवाक्षार (आयुर्वेदिक औषधियों की दुकान से मिलेगा) गर्म पानी के साथ पीने से तुरंत फायदा होता है ।
5. पथरीः पुनर्नवा की जड़ को दूध में उबालकर सुबह-शाम पीयें ।
6. सूजनः पुनर्नवा की जड़ का काढ़ा पिलाने एवं सूजन पर जड़ को पीसकर लेप करने से लाभ होता है ।
7. वषण शोथ (हाइड्रोसिल) : पुनर्नवा का मूल दूध में घिस के लेप करने से वृषण की सूजन मिटती है ।
8. पीलियाः पुनर्नवा के पंचांग (जड़, छाल, पत्ती, फूल और बीज) को शहद एवं मिश्री के साथ लें अथवा उसका रस या काढ़ा पीयें ।
9. पागल कुत्ते का विषः सफेद पुनर्नवा के मूल का 25 से 50 ग्राम घी में मिलाकर रोज पीयें ।
10. फोड़ाः पुनर्नवा के मूल का काढ़ा पीने से कच्चा अथवा पका हुआ फोड़ा भी मिट जाता है ।
11. अनिद्राः पुनर्नवा के मूल का 100 मि.ली. काढ़ा दिन में 2 बार पीयें ।
12. संधिवातः पुनर्नवा के पत्तों की सब्जी सोंठ डालकर खायें ।
13. एड़ी में वायुजन्य वेदना होती हो तो ‘पुनर्नवा तेल’ एड़ी पर घिसें व सेंक करें ।
14. योनिशूलः पुनर्नवा के हरे पत्तों को पीसकर बनायी गयी उँगली जैसे आकार की लंबी गोली को योनी में रखने से भयंकर योनिशूल भी मिटता है ।
15. खूनी बवासीरः पुनर्नवा के मूल को पीसकर फीकी छाछ (200 मि.ली.) या बकरी के दूध (200 मि.ली.) के साथ पीयें ।
16. हृदयरोगः हृदयरोग के कारण सर्वांग सूजन हो गयी तो पुनर्नवा के मूल का 10 ग्राम चूर्ण और अर्जुन की छाल का 10 ग्राम चूर्ण 200 मि.ली. पानी में काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पीयें ।
17. दमाः 10 ग्राम भारंगमूल चूर्ण और 10 ग्राम पुनर्नवा चूर्ण को 300 मि.ली. पानी में उबालकर काढ़ा बनायें । 50 मि.ली. बचे तब सुबह-शाम पीयें ।
18. हाथीपाँवः 50 मि.ली. पुनर्नवा का रस और उतना ही गोमूत्र मिलाकर सुबह-शाम पीयें ।
19. जलोदरः पुनर्नवा की जड़ के 2-3 ग्राम चूर्ण को शहद के साथ खायें ।
वन्देमातरम !
प्रत्येक घर में एक रसोई होती है, और इस रसोई में एक *डॉक्टर* छुपा बैठा होता है, बिना फीस वाला । आइए आज अपने उसी डॉक्टर से आपका परिचय करायें ।
💼 1- केवल सेंधा नमक का प्रयोग करने पर आप *थायराइड* और *ब्लडप्रेशर* से बचे रह सकते हैं, यही नहीं, आपका *पेट* भी ठीक रहेगा ।
💼 2- कोई भी रिफाइंड न खाकर तिल, सरसों, मूंगफली या नारियल के तेल का प्रयोग आपके शरीर को कई बीमारियों से बचायेगा, रिफाइंड में कई हानिकारक *कैमिकल* होते हैं ।
💼 3- सोयाबीन की बड़ी को दो घंटे भिगोकर मसलकर झाग निकालने के बाद ही प्रयोग करें, यह झाग *जहरीली* होती है ।
💼 4- रसोई में एग्जास्ट फैन अवश्य लगवायें, इससे *प्रदूषित* हवा बाहर निकलती रहेगी ।
💼 5- ज्यादा से ज्यादा मीठा नीम/कढ़ी पत्ता खाने की चीजों में डालें, सभी का *स्वास्थ्य* सही रहेगा ।
💼 6- भोजन का समय निश्चित करें, *पेट* ठीक रहेगा ।
💼 7- भोजन के बीच बात न करें, भोजन ज्यादा *पोषण* देगा ।
💼 8- भोजन से पहले पिया गया पानी *अमृत*, बीच का *सामान्य* और अंत में पिया गया पानी *ज़हर* के समान होता है ।
💼 9- बहुत ही आवश्यक हो तो भोजन के साथ गुनगुना पानी ही पियें, यह *निरापद* होता है ।
💼 10- सवेरे दही का प्रयोग *अमृत*, दोपहर में *सामान्य* व रात के खाने के साथ दही का प्रयोग *ज़हर* के समान होता है ।
💼 11- नाश्ते में *अंकुरित* अन्न शामिल करें, पोषण, विटामिन व फाईबर *मुफ्त* में प्राप्त होते रहेंगे ।
💼 12- चीनी कम-से-कम प्रयोग करें, ज्यादा उम्र में *हड्डियां* ठीक रहेंगी । भोजन में *गुड़* व * देशी शक्कर* का प्रयोग बढ़ायें ।
💼 13- छौंक में राई के साथ कलौंजी का प्रयोग भी करें, *फायदे* इतने कि लिखे नहीं जा सकते ।
💼 14- एक *डस्टबिन* रसोई के अंदर और एक बाहर रखें, *सोने से पहले* रसोई का कचरा बाहर के डस्टबिन में डालना न भूलें ।
💼 15- करेले, मेथी और मूली यानि कड़वी सब्जियां भी खाएं, *रक्त* शुद्ध होता रहेगा ।
💼 16- पानी मटके के पानी से अधिक ठंडा न पियें, *पाचन* व *दांत* ठीक रहेंगे ।
💼 17- पानी 250 टीडीएस से ऊपर हो तभी _*RO*_लगवायें । नहीं तो _*UV*_ वाला फ़िल्टर ही प्रयोग करें ।
💼 18- बिना कलौंजी वाला अचार न खायें, यह *हानिकारक* होता है ।
💼 19- माइक्रोवेव, ओवन का प्रयोग न करें, यह *कैंसर कारक* है ।
💼 20- खाने की ठंडी चीजें ( आइस क्रीम) कम से कम खायें, ये पेट की *पाचक अग्नि* कम करती हैं, *दांत* खराब करती हैं ।
🏌♂
_सब स्वस्थ, सुखी व नीरोग रहें,_
इसी *कामना* के साथ.
🌹 मंगलमय हो जीवन सबका 🌹
〰〰〰〰〰
वन्देमातरम !
🔆🔅🔆🔅🔆🔅🔆🔅🔆
*🔆घाव और छाले*
Arogyanidhi 🔆🔅
🔅पहला प्रयोगः तुलसी के पत्तों का चूर्ण भुरभुराने से अथवा बेल के पत्तों को पीसकर लगाने से लाभ होता है।
🔅दूसरा प्रयोगः मक्खन में कत्था घोंटकर लगाने से गंदा मवाद निकलकर घाव भरने लगता है।
🔅तीसरा प्रयोगः शस्त्र से घाव लगने पर तुरंत उस पर शुद्ध शहद की पट्टी बाँधें अथवा हरड़े या हल्दी या मुलहठी का चूर्ण या भूतभांगड़ा या हंसराज की पत्तियों को पीसकर उसका लेप घाव पर करने से रक्त तुरंत रुक जाता है व पकने की संभावना कम रहती है।
🔅चौथा प्रयोगः चोट लगकर खून निकलता हो तो हल्दी भुरभुराकर सर्वगुण तेल का पट्टा बाँधे। बाजारू पिसी हुई हल्दी में नमक होता है अतः दूध में हल्दी पीस लें।
*🙋वैसे भी शरीर पर किसी भी प्रकार से कटकर घाव पड़ जाने पर 24 घंटे तक कुछ नहीं खाने से घाव पकता नहीं।*
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
*🔆चेचक के घावः*
🔅पहला प्रयोगः हल्दी एवं कत्था एक साथ पीसकर लगाने से अथवा नीम के पत्तों को पीसकर लगाने से लाभ होता है।
🔅दूसरा प्रयोगः जब चेचक निकलने की शुरूआत हो तो बालक को दो-तीन निबौली (नाम के फ़ल का बीज) पानी के साथ पीसकर पिलाने से चेचक नहीं निकलती और निकले भी तो ज्यादा जोर नहीं करती।
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
*🔆🔅भीतरी (अंदरूनी) चोट*
*भीतरी चोट*
🔅पहला प्रयोगः 1 से 3 ग्राम हल्दी और शक्कर फाँकने और नारियल का पानी पीने से तथा खाने का चूना एवं पुराना गुड़ पीसकर एकरस करके लगाने से भीतरी चोट में तुरंत लाभ होता है।
🔅दूसरा प्रयोगः 2 कली लहसुन, 10 ग्राम शहद, 1 ग्राम लाख एवं 2 ग्राम मिश्री इन सबको चटनी जैसा पीसकर, घी डालकर देने से टूटी हुई अथवा उतरी हुई हड्डी जल्दी जुड़ जाती है।
🔅तीसरा प्रयोगः बबूल के बीजों का 1 से 2 ग्राम चूर्ण दिन शहद के साथ लेने से अस्थिभंग के कारण दूर हुई हड्डी वज्र जैसी मजबूत हो जाती है।
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
*मोच एवं सूजनः🔆🔅*
Arogyanidhi 🔆🔅
🔅पहला प्रयोगः लकड़ी-पत्थर आदि लगने से आयी सूजन पर हल्दी एवं खाने का चूना एक साथ पीसकर गर्म लेप करने से अथवा इमली के पत्तों को उबालकर बाँधने से सूजन उतर जाती है।
🔅दूसरा प्रयोगः अरनी के उबाले हुए पत्तों को किसी भी प्रकार की सूजन पर बाँधने से तथा 1 ग्राम हाथ की पीसी हुई हल्दी को सुबह पानी के साथ लेने से सूजन दूर होती है।
🔅तीसरा प्रयोगः मोच अथवा चोट के कारण खून जम जाने एवं गाँठ पड़ जाने पर बड़ के कोमल पत्तों पर शहद लगाकर बाँधने से लाभ होता है।
🔅चौथा प्रयोगः जामुन के वृक्ष की छाल के काढ़े से गरारे करने से गले की सूजन में फायदा होता है।
सूजन में करेले का साग लाभप्रद है।
आरोग्य निधि 🔆🔅
🔆🔅🔆🔅🔆🔅🔆🔅🔆
*🚩वैज्ञानिक : पिज्जा, बर्गर बीमारियां बढ़ाता है, भारतीय भोजन बीमारियां मिटाता है*
19 अप्रैल 2019
www.azaadbharat.org
*🚩जर्मनी के वैज्ञानिकों ने लंबी शोध के बाद निष्कर्ष निकाला कि विदेशी फास्टफूड बर्गर, पिज़ा आदि बीमारियों को बुलावा लाता है जबकि भारतीय भोजन दाल-चावल, सोयाबीन आदि बीमारियों को मिटाने का काम करता है।*
*🚩भारतीय लोग अपने आहार का महत्व नहीं समझकर विदेशी लोग का अंधानुकरण करके स्वाद के लिए पिज़ा, बर्गर, चिप्स आदि खाने लगे हैं जिसके कारण आज लगभग हर व्यक्ति को कुछ न कुछ बीमारी पकड़ लेती है फिर डॉक्टरों के पास चक्कर काटता रहता है पर बीमारी ठीक नहीं हो पाती है, अब हमें अपने भोजन का महत्व समझकर भोजन करना चाहिए और बीमारियों को बुलावा देने वाले फास्टफूड आदि का त्याग करना चाहिए।*
*🚩जर्मनी के वैज्ञानिकों ने बीमारी पर शोध किया:*
*जर्मनी के यूनिवर्सिटी ऑफ़ L .beck के हालिया अध्ययन में कहा गया है कि भारतीय आहार खराब डीएनए के कारण होने वाली बीमारी को मार सकता है। शोध में यह भी पाया गया कि डीएनए, न केवल डीएनए, बीमारियों का सबसे महत्वपूर्ण कारण है, बल्कि आहार भी सबसे महत्वपूर्ण है जो बीमारी का कारण बन सकता है और इस पर एक स्पंज डाल सकता है। विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रॉल्फ लुडविक के नेतृत्व में तीन वैज्ञानिकों द्वारा हाल ही में किए गए शोध प्रकाशित किए गए थे। तीन शोधकर्ताओं में डॉ. आर्टेम वोरोवैव, इज़राइल के डॉ. तान्या शेजीन और डॉ यास्का गुप्ता शामिल हैं। 2 वर्षों तक चूहों में किए गए शोध से पता चलता है कि पश्चिमी देश में उच्च कैलोरी आहार बीमारी को बढ़ाते हैं। जबकि भारत का कम कैलोरी वाला आहार बीमारियों से बचाता है।*
*🚩फास्ट फूड, जैसे पिज्जा, बर्गर, आनुवांशिक बीमारियों को बढ़ाता है ।*
*डॉ. गुप्ता ने जर्मनी से भास्कर को बताया कि अब तक सभी आनुवंशिक बीमारियां केवल डीएनए में दिखाई देती थीं। इस शोध में इसे आहार पर ध्यान केंद्रित करके मापा गया है। शोधकर्ताओं ने ल्यूपस नामक बीमारी से पीड़ित चूहों के एक समूह पर प्रयोग किया। ल्यूपस बीमारी सीधे डीएनए से संबंधित है। यह शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को कम करता है और विभिन्न अंगों और जोड़ों, गुर्दे, हृदय, फेफड़े, मस्तिष्क और रक्त कोशिकाओं को नष्ट करता है। डॉ. यास्का गुप्ता ने कहा कि इस शोध के परिणामों से पता चलता है कि पश्चिमी देशों में पिज्जा, बर्गर जैसे फास्ट फूड से भारत के शाकाहारी भोजन - चावल, सोयाबीन तेल, दाल, सब्जियां, विशेष रूप से जड़ी-बूटियों को बढ़ाने में मदद मिलती है - शरीर को इन बीमारियों से बचाता है। है। - स्त्रोत : भास्कर*
*🚩कौन से फास्ट से फूड क्या नुकसान होता है?*
*🚩पेस्ट्री*
*पेस्ट्री में अधिक मात्रा में शुगर, फेट और कैलोरी होती है। पेस्ट्री खाने की आदत आपका मोटापा बढ़ा सकती है। इसलिए थोड़ा ध्यान रखें क्योंकि पेस्ट्री शरीर को काफी नुकसान देती है।*
*🚩पिज्जा*
*पिज्जा की लत से आपको दिल संबंधी बीमारी हो सकती है। इसमें कोलेस्ट्रोल के कारण आपकी आर्ट्रीज बंद हो सकती हैं और इससे हार्ट अटैक भी आ सकता है।*
*🚩पाइज*
*पाइज खाने में स्वादिष्ट है लेकिन एक अध्ययन में पता चला है कि यह शरीर के लिए बेहद नुकसानदेह है। पाइज खाने से आगे चलकर शुगर लेवल बढ़ने और मधुमेह की समस्या आती है।*
*🚩बर्गर*
*बर्गर से वजन तो बढ़ता ही है साथ ही दिल की बीमारी भी हो सकती है। यह डाइटरी कोलेस्ट्रोल को तेजी से बढ़ाता है और बर्गर से हाइ ब्लड प्रेशर की भी परेशानी है।*
*🚩सैंडविच*
*सैंडविच खाने की आदत आपका मोटापा बढ़ा देगी।*
*🚩चिप्स*
*चिप्स खाने से शरीर को नुकसान होता है। चिप्स में कैलोरी ज्यादा होती है जिसके कारण फेट बढ़ता है। नियमित चिप्स खाने वालों को वजन बढ़ने की समस्या हो जाती है। चिप्स खाने से कोलेस्ट्रोल भी बढ़ता है। सोडियम ज्यादा मात्रा में होने के कारण हाई ब्लड प्रेशर भी हो जाता है।*
*🚩सॉफ्ट ड्रिंक्स*
*सॉफ्ट ड्रिंक्स भी लोग काफी पीते हैं और कई लोगों ने तो रोजाना सॉफ्ट ड्रिंक्स पीने की आदक डाल रखी है। मगर इससे समस्या भी उतनी ही है। सॉफ्ट ड्रिंक्स पीने वालों को दांतों में सड़न बहुत तेजी से हो सकती है। सॉफ्ट ड्रिंक्स पीने से मोटापा और छाती में जलन की परेशानी भी धीरे-धीरे गंभीर रूप ले सकती है। - स्त्रोत : अमर उजाला*
*🚩अब आपने देखा कि फास्टफूड शरीर को कितना नुकसान पहुँचता है अतः इससे बचने के लिए हमारा भारतीय भोजन करें। यह ध्यान रखें कि हमारा पेट गटर नहीं है इसलिए कोई भी बीमारी करे ऐसा भोजन नहीं करे।*
*🚩भारतीय लोग अपनी संस्कृति की महिमा खुद नहीं समझते, जबतक विदेश के कोई वैज्ञानिक नहीं बोल दें जबकि आज के वैज्ञानिक जो शोध कर रहे हैं वे शोध हमारे ऋषि-मुनि लाखों साल पहले बता चुके हैं पर भारतीय उनका आदर करे तब न, जब भारतीय लोग खुद की संस्कृति का आदर करने लगेंगे तब दुनिया भी भारतीय संस्कृति अपनाकर अपने को धन्य मानेंगी।*
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*बहु-ग्रन्थिज बीजकोषीय विकृति की आयुर्वैदिक चिकित्सा*
*Ayurvedic Treatment of PCOD / PCOS*
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*डाॅ.बृजबाला वसिष्ठ*
_MD (Ayurveda)_
वर्तमान समय में बहु-ग्रन्थिज बीजकोषीय विकृति (PCOD / PCOS) का प्रचलन बहुत अधिक बढ़ गया है, जिससे अनेकों महिलाओं को कई प्रकार के कष्ट हो रहे हैं। इसे देखते हुए, यह ज़रूरी हो जाता है कि हम वैद्य, आयुर्वेद में इस विकराल समस्या का कोई समुचित समाधान निकालें, ताकि इससे होने वाले शारीरिक, मानसिक, व सामाजिक कष्ट कम हो सकें।
*निदान-सम्प्राप्ति (Etio-pathogenesis)*
बहु-ग्रन्थिज बीजकोषीय विकृति (PCOD / PCOS) का आरम्भ, आमतौर पर मिथ्या आहार-विहार-आचार से प्राण-वात (Higher brain centers) में होता है, जिससे कि उदान-वात (Hypothalamus-pituitary gland) की दुष्टि होती है। फिर, उदान-वात (Hypothalamus-pituiatry gland) बाकी के तीन वात-भेदों - समान-वात (Neuro-endocrine system that regulates metabolism - Thyroid, Insulin etc.), व्यान-वात (Neuro-endocrine system that regulates circulation), व अपान-वात (Neuro-endocrine system that regulates excretion - renin, and reproduction - estrogen-progesterone, etc) को दुष्ट करता है। इसके, फलस्वरूप बहु-ग्रन्थिज बीजकोषीय विकृति (PCOD / PCOS) व उससे होने वाली नाना प्रकार की विकृतियाँ होने लगती हैं।
*चिकित्सा (Management)*
इस मूलभूत सम्प्राप्ति को दृष्टिगत रखते हुए, बहु-ग्रन्थिज बीजकोषीय विकृति (PCOD / PCOS) होने पर निम्न चिकित्सा का उपयोग किया जा सकता है -
_1. बीजोत्सर्ग-कारक औषधियाँ (Drugs to induce ovulation):_
बहु-ग्रन्थिज बीजकोषीय विकृति (PCOD / PCOS) में बीज (Ovum) का विकास (Maturation) तो हो जाता है, परन्तु बीज-पुटक (Ovarian follicle) का विदारण (Rupture) नहीं हो पाता। इसके परिणामस्वरूप, बीज का उत्सर्ग (Ovulation) नहीं होता व वह भीतर ही पड़ा रहता है, जिससे न केवल ग्रन्थि (Cyst) का निर्माण हो जाता है, अपितु, आर्तवस्राव (Menstruation) व गर्भाधान (Conception) में भी रुकावट आती, तथा महिला को कई प्रकार के कष्ट भी होने लगते हैं, यथा - स्थौल्य, चेहरे पर अप्राकृति बाल, पुरुषों की भाँति सिर के बाल पतले/कम/गंजापन, मधुमेह (Insulin resistance) होना, इत्यादि ।
ऐसे में बीज का उत्सर्ग (Ovulation) कराने वाली औषधियों का उपयोग किया जाना चाहिए। बीज का उत्सर्ग कराने वाली मुख्य औषधियाँ हैं -
• शतावरी, पुत्रञ्जीव, शिलाजतु, व त्रिवंग (Fertie-F / फ़र्टी-एॅफ़)। इन औषधियों अथवा इनसे बनी फ़र्टी-एॅफ़ टैब्लॅट का उचित मात्रा (दिन में 2 गोली तीन बार) में उपयोग करते रहने से अधिकांश महिलाओं को 6 माह से 1 वर्ष के भीतर बीज का उत्सर्ग (Ovulation) होने लगता है। इसके फलस्वरूप धीरे-धीरे आर्तवस्राव (Menstruation) भी नियमित रूप से होने लगता है।
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अच्छी बात यह है कि, बीज का उत्सर्ग (Ovulation) कराने के साथ-साथ शतावरी, पुत्रञ्जीव, शिलाजतु, व त्रिवंग (Fertie-F / फ़र्टी-एॅफ़) गर्भाधान में भी सहायक सिद्ध होती हैं।
हाँ, आर्तवस्राव (Menstruation) के दिनों में इन औषधियों / फ़र्टी-एॅफ़ टैब्लॅट को बन्द कर दें व इनके स्थान पर आर्तवजनन (Emmenagogue) औषधियों का उपयोग करना चाहिए। मुख्य् आर्तवजनन औषधियाँ हैं -
• उलटकम्बल, हीराबोल, घृतकुमारी (Mensiflo / मैन्सीफ़्लो)। आर्तवस्राव के दिनों में इन औषधियों का उपयोग करने से गर्भाशय का उचित शोधन होने के साथ-साथ, श्रोणिगत अंगावयवों में रक्त-संचय कम होता है, जिससे कि उनकी क्रियाएँ स्वाभाविक (Physilogical activities) रूप से चलने लगती हैं।
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_2. बीजोत्सर्ग में सहायक औषधियाँ (Drugs to promote ovulation):_
देखा गया है कि बीज का उत्सर्ग (Ovulation) कराने वाली औषधियों के साथ-साथ कुछ अन्य औषधियों का भी उपयोग किया जा सकता है जो बीज का उत्सर्ग (Ovulation) कराने में सहायता करती हैं । इन औषधियों में मुख्य हैं -
• मामज्जक, मेषशृंगी, लताकरञज, कटुकी, पिप्पली, रक्तमरिच, व इन्द्रवारुणी (Glycie / ग्लायसी)। ये औषधियाँ कई प्रकार से कार्य करते हुए, पहले तो बीज के उत्सर्ग (Ovulation) में व बाद में गर्भाधान (Conception) में सहायता करती हैं। इन औषधियों को शतावरी, पुत्रञ्जीव, शिलाजतु, व त्रिवंग (Fertie-F / फ़र्टी-एॅफ़) के साथ-साथ शुरु से ही देना चाहिए, ताकि परिणाम अधिक से अधिक, व शीघ्र से शीघ्र मिलें ।
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संयोगवश, मधुमेहहर (Antidiabetic) अधिकांश औषधियों में यह गुण पाया जाता है।
_3. गर्भाशय-बल्य (Uterine tonic) औषधियाँ:_
तीन-चार माह तक उपर चर्चित चिकित्सा करने के बावजूद यदि सुधार आता दिखाई न दे तो गर्भाशय को बल देने वाली औषधियों को साथ-साथ देना उचित रहता है। गर्भाशय को बल देने वाली मुख्य औषधियाँ हैं -
• अशोक, लोध्र, लज्जालु (Gynorm / गायनाॅर्म)। इन औषधियों का मुख्य कार्य, अपान-वात (Estrogen-Progesterone) को साम्यावस्था में लाते हुए, अन्तःगर्भाशय (Endometrium) का सम्यक् रूप से उपचय (Proliferation) कराना, सम्यक् आर्तवस्राव (Menstruation) कराना रहता है। साथ ही, ये औषधियाँ बीज का उत्सर्ग (Ovulation) कराने व गर्भाधान (Conception) कराने में भी प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से सहायक सिद्ध होती हैं।
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_4. समान-वात-बल्य (Thyro-stimulant) औषधियाँ:_
समान-वात की विकृति होने पर यदि महिला को बहु-ग्रन्थिज बीजकोषीय विकृति (PCOD / PCOS) के साथ-साथ समान-वात-क्षय (Hypothyroidism) भी हो गया है तो, ऐसे में समान-वात बल्य औषधियों (Thyro-stimulant) का उपयोग करना आवश्यक होता है। समान-वात को बल देने वाली मुख्य औषधियाँ हैं -
• गुग्गुलु, ब्राह्मी, गण्डीर, पिप्पली, व रक्तमरिच (Thyrin / थायरिन)। इन औषधियों का मुख्य कार्य, समान-वात (Thyroid hormones) को बढ़ा कर, अप्रत्यक्ष रूप से बीज का उत्सर्ग (Ovulation) कराना व गर्भाधान (Conception) कराना होता है।
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हाँ, ऐसी स्थिति में बीज का उत्सर्ग कराने वाली सहायक औषधियाँ - मामज्जक, मेषशृंगी, लताकरञज, कटुकी, पिप्पली, रक्तमरिच, व इन्द्रवारुणी, देने की आवश्यकता कम अथवा नहीं होती है।
_5. रसायन (General tonic) औषधियाँ:_
बहु-ग्रन्थिज बीजकोषीय विकृति (PCOD / PCOS) से पीड़ित अनेकों महिलाएँ यद्यपि हृष्ट-पुष्ट दीख पड़ती हैं, तो भी उनके भीतर ओजःक्षयः (Low immunity) रहती ही है। ऐसे में यदि उन्हें ओजःवर्धक व रसायन औषधियाँ (Antioxidants, Immuno-modulators, vitamins, minerals, and tonics) औषधियों सेवन कराया जाए तो परिणाम और अधिक उत्साहवर्धक हो सकते हैं । मुख्य रसायन व ओजःवर्धक औषधियाँ हैं -
• सामान्य रसायन औषधियाँ - शिलाजतु, आमलकी, मुक्ताशुक्ति, स्वर्णमाक्षिक, अभ्रक, यशद (Minovit tablet);
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• कैल्सियम की आपूर्ति करने वाली रसायन औषधियाँ - मुक्ताशुक्ति, आमलकी, अभ्रक, यशद (Ossie tablet);
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• यकृत् की क्रिया (Liver functions) सुधारने वाली औषधियाँ - भूम्यामलकी (Phylocil tablet), काकमाची, शरपुंखा (Livie tablet);
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• लौह के योग।
_6. मेध्य रसायन (Nootropic) औषधियाँ:_
मानसिक तनाव / चिन्ता तथा मनो-अवसाद से अनेकों रोग पैदा हो सकते हैं, जिनमें बहु-ग्रन्थिज बीजकोषीय विकृति (PCOD / PCOS) भी शामिल है। ऐसे में निम्न प्रकार की मेध्य रसायन औषधियों का प्रयोग करना लाभकारी होता है, यथा -
• मानसिक तनाव / चिन्ता (Mental stress / anxiety) होने पर मन को शान्त करने वाली औषधियाँ - ब्राह्मी, तगर (Mentocalm tablet);
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• मनो-अवसाद (Mental depression) होने पर मन को बल देने वाली औषधियाँ - ज्योतिष्मती, अकरकरा, वचा, गण्डीर (Eleva tablet)।
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अ॑ग्रेजी के "C" से हुआ सिरदर्द
😊😊😂😂😂
गांव की नयी नवेली दुल्हनअपने पति से अंग्रेजी भाषा सीख रही थी,
लेकिन अभी तक वो "C" अक्षर पर ही अटकी हुई है।
क्योंकि, उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि
"C" को कभी "च" तो
कभी "क" तो
कभी "स" क्यूं बोला जाता है।
एक दिन वो अपने पति से बोली, आपको पता है,
"चलचत्ता के चुली भी च्रिचेट खेलते हैं"
पति ने यह सुनकर उसे प्यार से समझाया
, यहां "C" को "च" नहीं "क" बोलेंगे।
इसे ऐसे कहेंगे, "कलकत्ता के कुली भी क्रिकेट खेलते हैं।
"पत्नी पुनः बोली "वह कुन्नीलाल कोपड़ा तो केयरमैन है न ?
"पति उसे फिर से समझाते हुए बोला, "यहां "C" को "क" नहीं "च" बोलेंगे।
जैसे, चुन्नी लाल चोपड़ा तो चेयरमैन है न
थोड़ी देर मौन रहने के बाद पत्नी फिर बोली,"आपका चोट, चैप दोनों चाटन का है न ?
"पति अब थोड़ा झुंझलाते हुए तेज आवाज में बोला,
अरे तुम समझती क्यूं नहीं, यहां"C" को "च" नहीं "क" बोलेंगे
ऐसे, आपका कोट, कैप दोनों कॉटन का है न
पत्नी फिर बोली - अच्छा बताओ, "कंडीगढ़ में कंबल किनारे कर्क है ?
"अब पति को गुस्सा आ गया और वो बोला, "बेवकुफ, यहां "C" को "क" नहीं "च" बोलेंगे।
जैसे - चंडीगढ़ में चंबल किनारे चर्च है न
पत्नीसहमते हुए धीमे स्वर में बोली,"
और वो चरंट लगने से चंडक्टर और च्लर्क मर गए क्या ?
"पति अपना बाल नोचते हुए बोला," अरी मूरख, यहां
"C" को "च" नहीं "क" कहेंगे...
करंट लगने से कंडक्टर और क्लर्क मर गए क्या?
इस पर पत्नी धीमे से बोली," अजी आप गुस्सा क्यों हो रहे हो... इधर टीवी पर देखो-देखो...
"केंटीमिटर का केल और किमेंट कितना मजबूत है
"पति अपना पेशेंस खोते हुए जोर से बोला, "अब तुम आगे कुछ और बोलना बंद करो वरना मैं पगला जाऊंगा।"
ये अभी जो तुम बोली यहां "C" को "क" नहीं "स" कहेंगे -
सेंटीमीटर, सेल और सीमेंट
हां जी पत्नी बड़बड़ाते बोली,
"इस "C" से मेरा भी सिर दर्दकरने लगा है।
और अब मैं जाकर चेक खाऊंगी,
उसके बाद चोक पियूँगी फिर
चाफी के साथ
चैप्सूल खाकर सोऊंगी
तब जाकर चैन आएगा।
उधर जाते-जाते पति भी बड़बड़ाता हुआ बाहर निकला..
तुम केक खाओ,
पर मेरा सिर न खाओ..
तुम कोक पियो या
कॉफी, पर मेरा खून न पिओ..
तुम कैप्सूल निगलो,
पर मेरा चैन न निगलो..
सिर के बाल पकड़ पति ने निर्णय कर लिया कि अंग्रेजी में बहुत कमियां हैं ये निहायत मूर्खो की भाषा है और ये सिर्फ हिन्दुस्तानियो को मूर्ख व बेवकूफ बनाने के लिए बनाई है !
हमारी मातृभाषा हिंदी है जय हिंद
😀😀😀😀😀😀🤣🤣🤣😋😋😁😁😁
और अधिक जानकारी के लिए -
1. साथ भेजा जा रहा ऑडियो सुनें; व
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https://youtu.be/bXrqoOl5HJI (English)
https://youtu.be/GsGs4WJxmnk (हिन्दी)
https://youtu.be/AMbfvGATa9I
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*डाॅ.वसिष्ठ*
_मो._ 9419205439
_ईमेल:_ ayurem@gmail.com
_वैबसाइट:_ www.drvasishths.com
_नोटः प्रस्तुत लेख केवल आयुष चिकित्सकों की जानकारी के लिए अभिप्रेत है। इसके आधार पर स्वचिकित्सा / पर-चिकित्सा न करें।_
*मूत्र रोग संक्रमण*
*कारण :मूत्र विकार का सबसे बड़ा कारण बैक्टीरिया, कवक है। इनके कारण मूत्र पथ के अन्य अंगों जैसे किडनी, यूरेटर और प्रोस्टेट ग्रंथि और योनि में भी इसका संक्रमण का असर देखने को मिलता है।*
*मूत्र विकार के लक्षण:-*
*मूत्र रोग के कई लक्षण हैं जैसे तीव्र गंध वाला पेशाब होना, पेशाब का रंग बदल जाना, मूत्र त्यागने में जलन और दर्द का अनुभव होना, कमज़ोरी महसूस होना, पेट में पीड़ा और शरीर में बुखार की हरारत बने रहना है। इसके अलावा हर समय मूत्र त्यागने की इच्छा बनी रहती है। मूत्र पथ में जलन बनी रहती है। मूत्राषय में सूजन आ जाती है।*
*यह रोग पुरुषों की तुलना में स्त्रियों में ज़्यादा पाया जाता है। गर्भवती स्त्रियां और सेक्स-सक्रिय औरतों में मूत्राषय प्रदाह रोग अधिक पाया जाता है।*
*आयुर्वेदिक उपचार :*
*पहला प्रयोगः केले की जड़ के 20 से 50 मि.ली. रस को 30 से 50 मि.ली. “गौझरण” के साथ 100 मि.ली.पानी मिलाकर सेवन करने से तथा जड़ पीसकर उसका पेडू पर लेप करने से पेशाब खुलकर आता है।*
*दूसरा प्रयोगः आधा से 2 ग्राम शुद्ध “शिलाजीत “, कपूर और 5 ग्राम मिश्री मिलाकर लेने से अथवा पाव तोला (3 ग्राम) कलमी शोरा उतनी ही मिश्री के साथ लेने से लाभ होता है।*
*तीसरा प्रयोगः एक भाग चावल को चौदह भाग पानी में पकाकर उन चावलों का मांड पीने से मूत्ररोग में लाभ होता है। कमर तक गर्म पानी में बैठने से भी मूत्र की रूकावट दूर होती है।*
*चौथा प्रयोगः उबाले हुए दूध में मिश्री तथा थोड़ा घी डालकर पीने से जलन के साथ आती पेशाब की रूकावट दूर होती है। यह प्रयोग बुखार में न करें।*
*पाँचवाँ प्रयोगः 50-60 ग्राम करेले के पत्तों के रस चुटकी भर हींग मिलाकर देने से पेशाब बहुतायत से होता है और पेशाब की रूकावट की तकलीफ दूर होती है अथवा 100 ग्राम बकरी का कच्चा दूध 1 लीटर पानी और शक्कर मिलाकर पियें।*
*छठा प्रयोगः मूत्ररोग सम्बन्धी रोगों में शहद व “ त्रिफला” लेने से अत्यंत लाभ होता है। यह प्रयोग बुखार में न करें।*
*विशेष : पुनर्नवा टेबलेट या सिरप या का सेवन मूत्ररोग में लाभकारी होता है।*
*अन्य घरेलू उपचार:*
*1. खीरा ककड़ी:-मूत्र रोग में खीरा ककड़ी का रस बहुत फ़ायदेमंद है। अगर रोगी को 200 मिली ककड़ी के रस में एक बडा चम्मच नींबू का रस और एक चम्मच शहद मिलाकर हर तीन घंटे के अंतर पर दिया जाए तो रोगी को बहुत आराम मिलता है।*
*2. तरल पदार्थ:-पानी और अन्य तरल पदार्थों का प्रचुर मात्रा में सेवन 15 – 15 मिनट के अंतर पर कराने से रोगी को बहुत आराम मिलता है।*
*3. मूली के पत्तों का रस:-मूत्र विकार में रोगी को मूली के पत्तों का 100 मिली रस दिन में 3 बार सेवन कराएं। यह एक रामबाण औषधि की तरह काम करता है।*
*4. नींबू:-नींबू स्वाद में थोड़ा खट्टा तथा थोड़ा क्षारीय होने के साथ साथ एक गुणकारी औषधि है। नींबू का रस मूत्राषय में उपस्थित जीवाणुओं को नष्ट कर देता है तथा मूत्र में रक्त आने की स्थिति में भी लाभ पहुँचाता है।*
*5. पालक:-पालक का रस 125 मिली, इसमें नारियल का पानी मिलाकर रोगी को पिलाने से पेशाब की जलन में तुरंत फ़ायदा प्राप्त होगा।*
*6. गाजर:-मूत्र की जलन में राहत प्राप्त करने के लिए दिन में दो बार आधा गिलास गाजर के रस में आधा गिलास पानी मिलाकर पीने से फ़ायदा प्राप्त होता है।*
*7. मट्ठा:-आधा गिलास मट्ठा में आधा गिलास जौ का मांड मिलाएं और इसमें नींबू का रस 5 मिलि मिलाकर पी जाएं। इससे मूत्र-पथ के रोग नष्ट हो जाते है*
*8. भिंडी:- फ्रेश भिंडी को बारीक़ काटकर दो गुने जल में उबाल लें। बाद इसे छानकर यह काढ़ा दिन में दो बार पीने से मूत्राषय प्रदाह की वजह से होने वाले पेट दर्द में राहत मिलती है।*
*9. सौंफ:- सौंफ के पानी को उबाल कर ठंडा कर लें और दिन में 3 बार इसे थोड़ा थोड़ा पीने से मूत्र रोग में राहत मिलती है।*
*विशेष चिकित्सीय सलाह हेतु आप व्यक्तिगत रात्रि 9 बजे के बाद सम्पर्क कर सकते हैं*
*Homoeo Trang: 🌹🌹डॉ. वेद प्रकाश,नवादा( बिहार)🌹8051556455🌹*
*निरोगी रहने हेतु महामन्त्र*
*मन्त्र 1 :-*
*• भोजन व पानी के सेवन प्राकृतिक नियमानुसार करें*
*• रिफाइन्ड नमक,रिफाइन्ड तेल,रिफाइन्ड शक्कर (चीनी) व रिफाइन्ड आटा ( मैदा ) का सेवन न करें*
*• विकारों को पनपने न दें (काम,क्रोध, लोभ,मोह,इर्ष्या,)*
*• वेगो को न रोकें ( मल,मुत्र,प्यास,जंभाई, हंसी,अश्रु,वीर्य,अपानवायु, भूख,छींक,डकार,वमन,नींद,)*
*• एल्मुनियम बर्तन का उपयोग न करें ( मिट्टी के सर्वोत्तम)*
*• मोटे अनाज व छिलके वाली दालों का अत्यद्धिक सेवन करें*
*• भगवान में श्रद्धा व विश्वास रखें*
*मन्त्र 2 :-*
*• पथ्य भोजन ही करें ( जंक फूड न खाएं)*
*• भोजन को पचने दें ( भोजन करते समय पानी न पीयें एक या दो घुट भोजन के बाद जरूर पिये व डेढ़ घण्टे बाद पानी जरूर पिये)*
*• सुबह उठेते ही 2 से 3 गिलास गुनगुने पानी का सेवन कर शौच क्रिया को जाये*
*• ठंडा पानी बर्फ के पानी का सेवन न करें*
*• पानी हमेशा बैठ कर घुट घुट कर पिये*
*• बार बार भोजन न करें आर्थत एक भोजन पूर्णतः पचने के बाद ही दूसरा भोजन करें*
*भाई राजीव दीक्षित जी के सपने स्वस्थ भारत समृद्ध भारत और स्वदेशी भारत स्वावलंबी भारत स्वाभिमानी भारत के निर्माण में एक पहल आप सब भी अपने जीवन मे भाई राजीव दीक्षित जी को अवश्य सुनें*
*स्वदेशीमय भारत ही हमारा अंतिम लक्ष्य है :- भाई राजीव दीक्षित जी*
*मैं भारत को भारतीयता के मान्यता के आधार पर फिर से खड़ा करना चाहता हूँ उस काम मे लगा हुआ हूँ*
*ज्योति ओमप्रकाश गुप्ता वन्देमातरम जय हिंद*
*चिकित्सा शास्त्र में गाय के दूध का महत्व :*
*(शुद्ध जल की तुलना किस से की जाए अर्थात शुद्ध जल कैसा होता है या होना चाहिए तो एक जबाब देशी गौमाता के दूध जैसा अर्थात सम्पूर्ण ब्रह्मांड में शुद्ध जल की परिभाषा है भारतीय देशी गौमाता का दूध)*
*(नवजात शिशु को किसी कारणवश मातृदुध नहीं मिल पाता है तो उसका सर्वोत्तम विकल्प एक मात्र है देशी गौमाता का दूध)*
*भारतवर्ष में गाय के दूध का औषधीय गुण अति प्राचीनतम काल से जाना जाता है। चिकित्सकीय दृष्टिकोण से दूध बहुत महत्त्वपूर्ण है।*
*यह शरीरके लिये उच्च श्रेणीका खाद्य पदार्थ है।*
*भोज्य पदार्थ के रूप में दूध एक महत्त्वपूर्ण आहार का विलक्षण समुच्चय है। दूध प्रोटीन, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट्स, खनिज, वसा, इन्जाइम तथा आयरन से युक्त होता है। दूध में प्रोटीन और कैल्सियम तत्त्वों का प्रसार होने से यह (दूधिया) अद्वितीय, अपारदर्शी होता है। मानव-जाति के लिये यह सम्पूर्ण भोजन है। चिकित्सक सभी आयु-वर्ग के लिये इसे पौष्टिक भोजन के रूपमें निम्न कारणों से सेवन करनेका सुझाव देते हैं –*
*१- प्रकृति में उपलब्ध द्रव्यों-पदार्थों में केवल दूध में शुगर लैक्टोज (दुग्ध-शर्करा) निहित होता है।*
*२- प्राणियों में नाडी-मण्डल एवं बुद्धि के विकास के लिये दुग्ध-शर्करा बहुत आवश्यक है।*
*३- ऊर्जस्वी गतिशील शारीरिक क्रिया-कलापों के लिये कार्बोहाइड्रेट आवश्यक होता है।*
*४- शरीर में लाल रक्त कोशिकाके संश्लेषण (समन्वय) एवं शारीरिक शक्ति के सुधारके लिये आयरन (लौह तत्त्व) आवश्यक होता है।*
*५- कैल्सियम और फॉस्फोरस दाँतों और अस्थियों को मजबूत रखने में सहायक होते हैं।*
*६- विटामिन ‘ए’ आँख की रोशनी और त्वचा को स्वस्थ रखता है एवं कम्पन-रोग को हटाता है।*
*७- विटामिन ‘बी’ नाडी-मण्डल एवं शरीर के विकास के लिये आवश्यक है।*
*८- विटामिन ‘सी’ शारीरिक रोगों के प्रति प्रतिरोधक शक्ति पैदा करता है।*
*९- विटामिन ‘डी’ सुखण्डी-रोग से सुरक्षा प्रदान करता है।*
*१0- रात्रि में सोने से पहले एक कप दूध का सेवन रक्त के नव-निर्माण में सहायक होता है एवं विषैले पदार्थों को निष्क्रिय करता है।*
*११- प्रात:काल हलके गरम दूध का सेवन पाचन क्रिया को संयोजित करने में सहायता करता है।*
*१२- गरम दूध में मिस्री और काली मिर्च मिलाकर लेनेसे सर्दी-जुकाम ठीक हो जाता है।*
*१३- दूध में सबसे कम कोलेस्ट्रॉल (१४ मि०ग्रा०/ १०० ग्रा०) होनेके कारण मधुमेह के रोगियों को वसा रहित दूध-सेवन की सलाह दी जाती है।*
*१४- उच्च रक्तचाप से पीडित व्यक्ति को प्रतिदिन २०० मि०ली० दूध (सिर्फ द्रव्य, पेय के रूप में) पीने की सलाह दी जाती है।*
*१५- अग्निवर्धक व्रण (Peptic Ulcer)-के रोगियों के लिये दूध एक आदर्श आहार है। ५० मि०ली० ठंडे दूध में एक चम्मच चने का सत्तू दो-दो घंटे पर देनेसे अल्सर में शीघ्र ही लाभ हो जाता है।*
*१६- दुग्ध-सेवन से सात्त्विक विचार, मानसिक शुद्धि एवं बौद्धिक विकास होता है।*
*ज्योतिर्मय गौमृत संस्थान*
*(केंसर पीडितो को समर्पित)*
*अधिक जानकारी के लिए -7568538194-7737366279*
*जय गौमाता वंदेमातरम जयहिंद*
*मुनक्का(छोटे अंगूर को सुखाकर किशमिश बनायी जाती है जबकि बड़े और पके हुए अंगूरों को सुखाने पर मुनक्का बनती है।)*
*ये ना केवल मिठास से भरपूर और स्वादिष्ट होती है बल्कि व्यंजनों का स्वाद भी बढ़ा देती हैं और सेहत को सुधारने और दुरुस्त करने में भी इनकी खास भूमिका होती है।*
*मुनक्का और किशमिश में अंतर*
*मुनक्का यानि बड़ी दाख को आयुर्वेद में एक औषधि माना गया है। इसमें ग्लूकोज, गोंद, स्टार्च, टार्टरिक और रेशेमिक एसिड पाया जाता है। इसमें सोडियम, पोटेशियम, कैल्शियम, मैग्नेशियम, फास्फोरस और आयरन जैसे तत्व मिलते हैं जो बहुत स्वास्थ्यवर्धक और ऊर्जा प्रदान करने वाले होते हैं।*
*मुनक्का शब्द की शुरुआत पुराने फ्रेंच भाषा के शब्द लोनवर्ड यानी ऋणी से हुयी है जबकि किशमिश शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द रेसमस से हुयी है जिसका अर्थ अंगूर या जामुन का गुच्छा होता है।*
*मुनक्का और किशमिश अंगूर से ही बनते हैं लेकिन इनमें कुछ अंतर भी होता है जैसे किशमिश का आकार मुनक्का से छोटा होता है और रंग मुनक्का की तुलना में कम गहरा होता है।*
*किशमिश में बीज बहुत कम मात्रा में होते हैं जबकि मुनक्का में दो-तीन मोटे बीज होते हैं।*
*मुनक्का और किशमिश से मिलने वाले पौष्टिक तत्व लगभग एक समान ही होते हैं लेकिन किशमिश में थोड़ी खटास पायी जाती है जो एसिडिटी की समस्या कर सकती है जबकि मुनक्का खाने पर ऐसा नहीं होता और मुनक्का में आयरन और मैग्नीशियम होने की वजह से ये ज्यादा एनर्जी प्रदान करने वाली भी होती है।*
*स्वभाव: मुनक्का खाने में गर्म और तर प्रकृति का होता है। सर्दी के मौसम में मुनक्का का रोजाना सेवन करना लाभदायक होता है।*
*गुण: इसका प्रयोग करने से प्यास शांत हो जाती है। यह गर्मी व पित्त को ठीक करता है।इसके उपयोग से हृदय, आंतों और खून के विकार दूर हो जाते हैं। यह कब्जनाशकहै।*
*विभिन्न रोगों में सहायक:*
*1. रक्त (खून) व धातु को बढ़ाने वाला (वीर्यवर्धक): 60 ग्राम मुनक्का को धोकर भिगो दें। 12 घंटे के बाद भीगे हुए मुनक्के खाने से पेट के रोग दूर जाते हैं और खून तथा वीर्य में वृद्धि होती है। मुनक्का की मात्रा धीरे-धीरे बढ़ाकर 200 ग्राम तक सेवन करने से लाभ मिलता है।*
*2. भूख: मुनक्का, नमक, कालीमिर्च इन सबको गर्म करके खाने से भूख बढ़ती है। पुराने बुखार में जब भूख नहीं लगती हो तो यह प्रयोग लाभदायक रहता है।*
*3. चक्कर आना:20 ग्राम मुनक्का को घी में सेंककर सेंधानमक डालकर खाने से चक्कर आने बंद हो जाते हैं। लगभग 4-5 मुनक्का को पानी में भिगोकर खाने से चक्कर आने बंद हो जाते हैं।*
*4. खून की बीमारी: 20 ग्राम मुनक्का को रात को पानी में भिगो दें और सुबह के समय पीसकर 1 कप पानी में घोलकर रोजाना सेवन करने से खून साफ होता है।*
*5. चेचक: चेचक के रोगी को दिन में कई बार 2-2 मुनक्का या किशमिश खिलाने से लाभ होता है।*
*6. आंत्रिक बुखार (टायफाइड): मुनक्का को बीच में से चीरकर उसमें काला नमक लगाकर, हल्का सा सेंककर खाने से बहुत जल्दी आराम आता है। आधुनिक वैज्ञानिकों के अनुसार मुनक्का से आंत्रिक ज्वर के जीवाणु भी नष्ट होते हैं। अधिक मात्रा में मुनक्का नही खिलाएं, क्योंकि ज्यादा मुनक्का खाने से अतिसार (दस्त) हो सकता है।*
*3-3 ग्राम मुनक्का, वासा, हरड़ बराबर मात्रा में लेकर 300 मिलीलीटर पानी में डालकर उसका काढ़ा बना लें। इस काढ़े में शहद और मिश्री मिलाकर रोगी को पिलाने से आंत्रिक ज्वर (टाइफाइड) में आराम आता है।*
*इस ज्वर में मुनक्का का दूध पिलाकर ऊपर से नारंगी का रस पिलाने से आंत्रिक ज्वर, गर्मी और बैचेनी दूर होती है।*
*7. सन्निपात ज्वर: 7 बीज निकले मुनक्का, कालीमिर्च के 7 पीस, 7 बादाम, छोटी इलायची के 7 पीस, कासनी 5 ग्राम व सौंफ 5 ग्राम को पानी में पीसकर 100 मिलीलीटर पानी में डालकर इसमें 1 चम्मच खांड मिलाकर सुबह-शाम पिलाने से लाभ होता है।*
*8. फेफड़ों के रोग: मुनक्का के ताजे और साफ 15 दानों को, पानी में साफ करके रात में 150 मिलीलीटर पानी में भिगों दें। सुबह बीज निकालकर उन्हें 1-1 करके खूब चबा-चबाकर खा लें। बचे हुए पानी में थोड़ी सी चीनी मिलाकर या बिना चीनी मिलाएं ही पी लें। इसे लगतार एक महीने तक सेवन करने से फेफड़ों की कमजोरी और विषैले मवाद नष्ट हो जाते हैं। इसके फलस्वरूप दमा के दौरे भी बंद हो जाते हैं। इससे पुरानी खांसी, नजला और पेट की खराबियां दूर हो जाती हैं। यह प्रयोग कब्ज, बवासीर, नकसीर तथा मुंह के छालों के लिए भी बहुत लाभकारी है। इसके सेवन से पेशाब खुलकर आता है तथा रक्त (खून) में लाल कणों की मात्रा बढ़ जाती है। खून की शुद्धि होती है तथा खून की वृद्धि होकर बलवीर्य की वृद्धि होती है।*
*9. गीली खांसी: मुनक्का के बीज निकालकर इसमें कालीमिर्च रखकर चबाना चाहिए और मुंह में रखकर सो जाना चाहिए। ऐसा करने से 6-7 दिनों में ही खांसी में लाभ होता है।*
*10. खांसी:खांसी में मुनक्का बहुत लाभकारी होता है। खांसी में अगर जुकाम बार-बार लगता हो ठीक न होता हो तो 10 मुनक्का, 10 कालीमिर्च, 5 बादाम, को भिगोकर छील लें। फिर इन सभी को पीसकर 25 ग्राम मक्खन में मिलाकर रात को सोते समय खाएं। सुबह दूध में पीपल, कालीमिर्च, सोंठ, डालकर उबला हुआ दूध पियें। यह प्रयोग कई महीने तक करने से जुकाम पूरी तरह से ठीक हो जाएगा।*
*मुनक्के के दानों को धोकर शाम को पानी में भिगो दें। सुबह तक ये फूल जाएंगे। दिनभर रोगी को भूख लगने पर यही मुनक्के खाने को देना चाहिए। इससे दमा और पुरानी खांसी दूर हो जाती है।*
*3-4 मुनक्के लेकर उसके बीजों को निकालकर तवे पर भून लें, फिर उसमें कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर खाएं।*
*मुनक्का के बीजों को निकालकर इसके साथ कालीमिर्च को मिलाकर चबाएं और मुंह में रखकर सो जाएं। इससे 1 सप्ताह में सूखी खांसी में आराम मिल जाता है।*
*11. कब्ज:रोजाना 10 मुनक्का को गर्म दूध में उबालकर सेवन करने से लाभ मिलता है।*
*3 पीस मुनक्का, 20 ग्राम किशमिश और एक अंजीर को शाम के समय 250 मिलीलीटर पानी में भिगो दें। सुबह उठकर इन सभी को मसलकर उसमें थोड़ा पानी मिलाकर छान लें। बाद में इसमें एक नींबू का रस निचोंड़ दें और 2 चम्मच शहद मिलाकर पीयें। इससे कुछ ही दिनों कब्ज में लाभ मिलता है।*
*मुनक्का का ताजा रस 28 से 56 मिलीलीटर चीनी या सेंधानमक के साथ मिलाकर पीने से कब्ज दूर हो जाती है।*
*मुनक्का को रात को सोने से पहले गर्म दूध के साथ पीने से कब्ज दूर हो जाती है।*
*12. स्तनों में दूध की पर्याप्त मात्रा में वृद्धि: 10-12 मुनक्के लेकर दूध में उबाल लें। इसे प्रसूता स्त्री को प्रसव के बाद दिन में 2 बार सेवन कराने से स्त्री के स्तनों में दूध की वृद्धि होती है।*
*13. पेट की गैस बनना: भूने हुए मुनक्के में लहसुन मिलाकर सेवन करने से पेट में रुकी हुई वायु (गैस) बाहर निकल जाती है और कमर के दर्द में लाभ होता है।*
*14. मुंह के छाले: पानी में मुनक्का के 8 से 10 दाने रात को भिगोकर रख दें। सुबह मुनक्का फूल जाने पर इसे चबा-चबाकर खायें। रोज सुबह इसको खाने से मुंह के छाले व जख्म ठीक हो जाते हैं।*
*15. जुकाम:10 मुनक्का, 10 कालीमिर्च और 5 बादाम को पानी में भिगोकर छील लें। फिर इन सबको एक साथ पीसकर 25 ग्राम मक्खन में मिलाकर रात को सोते समय खा लें। सुबह उठने पर दूध में पीपल, कालीमिर्च और सौंठ को डालकर उबालकर दूध को पी लें। ऐसा लगातार काफी समय तक करने से जुकाम पूरी तरह से ठीक हो जाता है।*
*मुनक्के को गर्म पानी के साथ खाने से जुकाम में आराम हो जाता है।*
*6 मुनक्का, 6 बादाम, 6 पिस्ता, 1 लौंग, 1 इलायची और 2 चम्मच खसखस को सुबह इतने पानी में डालकर भिगो दें कि ये सारी चीजें पूरी तरह से उसके अन्दर डूबी रहें। शाम को मुनक्का के बीज निकाल लें और बादाम को छील लें। इन सबको एक साथ पीसकर किसी गीले मोटे कपड़े में पोटली बनाकर तवे पर रखकर सेंक लें। रात को सोते समय इसे खा लें पर इसका पानी नही पियें। इससे जुकाम पूरी तरह से ठीक हो जाता है।*
*16. नपुंसकता: नपुंसक व्यक्ति को मुनक्का खाना चाहिए, इससे वीर्य की वृद्धि होती है।*
*17. मुंह की दुर्गन्ध: 10 मुनक्का रोजाना 15 दिनों तक खाने से मुंह की दुर्गन्ध ठीक हो जाती है। इससे कब्ज और दांतों से आने वाली बदबू भी खत्म हो जाती है।*
*18. हिचकी का रोग:240 मिलीग्राम हींग, मुनक्का में लपेटकर खिलाने से हिचकी आना बंद हो जाती है।*
*मुनक्का, पीपल और नागरमोथा का चूर्ण शहद के साथ चाटने से हिचकी में लाभ होता है।*
*19. संग्रहणी: बड़ी हरड़, मुनक्का, सौंफ और गुलाब के फूलों को एक साथ लेकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को पीने से संग्रहणी अतिसार (दस्त का बार-बार आना) के रोगी का रोग दूर हो जाता है।*
*20. कमजोरी: मुनक्का का सेवन करने से कमजोरी मिट जाती है। इससे मल-मूत्र भी साफ हो जाता है।*
*21. प्यास अधिक लगना: थोड़ी-थोड़ी देर पर प्यास लगने व पानी पीने के बाद भी प्यास लगे। तो इस प्रकार के प्यास (तृष्णा) में बिना बीज के 4 मुनक्का मिश्री के साथ दिन में 2 से 3 बार लें।*
*22. पित्त बढ़ने पर: पित्त के बढ़ने पर मुनक्का खाना फायदेमंद होता है। इससे पित्त से भरी जलन भी दूर होती है।*
*23. रक्तपित्त: मुनक्का खाने से रक्तपित्त में काफी फायदा मिलता है।*
*24. प्लेग रोग: मुनक्का, सौंफ, पीपल, अनन्तमूल और रेणुका बराबर मात्रा में लेकर 8 गुना पानी में डालकर उबालें। चौथाई पानी शेष रहने पर उतार लें और छानकर गुड़ व शहद मिलाकर रोजाना सेवन करें। इससे प्लेग के रोगी का रोग दूर हो जाता है।*
*25. वीर्य रोग: 250 मिलीलीटर दूध में 10 मुनक्का उबालें फिर दूध में एक चम्मच घी व खांड मिलाकर सुबह पीएं। इससे वीर्य के विकार दूर होते हैं।*
*26. नाक के रोग: 5 मुनक्के के दाने (बिना बीज के), 4 ग्राम खसखस, 6 ग्राम पद्माख और 5 ग्राम सूखे आंवला को एक साथ मिलाकर पीस लें। रात को इसको 250 मिलीलीटर पानी में डालकर किसी मिट्टी के बर्तन में भिगोकर रख दें। सुबह उठने पर इसको पानी में ही अच्छी तरह से मसलकर छान लें। इसमें 10 ग्राम मिश्री को मिलाकर रोगी को पिलाने से नकसीर (नाक से खून बहना) रुक जाती है।*
*27. गुल्म (वायु का गोला): मुनक्का 14 से 28 मिलीलीटर को दिन में 3 बार 5 से 10 ग्राम गुड़ के साथ लेने से लाभ होता है।*
*28. वीर्य की कमी में: रोजाना मुनक्का खाने से वीर्य की वृद्धि होती है।*
*29. पेट में दर्द: मुनक्का के 2 पीस को थोड़ी-सी हींग में मिलाकर खायें।*
*30. बिस्तर पर पेशाब करना:2 मुनक्का के बीज निकालकर उसमें 1-1 कालीमिर्च डालकर बच्चों को 2 मुनक्के रात को सोने से पहले 2 हफ्तों तक लगातार खिलायें। इससे बच्चों की बिस्तर पर पेशाब करने की बीमारी दूर हो जाती है।*
*रोजाना 5 मुनक्का खिलाने से बच्चे का बिस्तर में पेशाब करने का रोग दूर होता है।*
*31. बुद्धिवैकल्प, बुद्धि का विकास कम होना: रोजाना 2 ग्राम मुनक्का (बीज रहित) और मिश्री को गर्म दूध के साथ खाने से बुद्धि का विकास तेजी से होता है।*
*32. हैजा: पानी में मुनक्के उबालकर खाने से हैजा के रोग में लाभ होता है।*
*33. हृदय की दुर्बलता:10 ग्राम हीरा हींग, बीज निकाले हुए 10 मुनक्के, 10 छुहारे, 10 ग्राम दालचीनी और 10 छोटी इलायची के दाने पीसकर एक शीशी में भर लें। एक चुटकी भर यह चूर्ण दिन में पांच बार लेने से हृदय की कमजोरी दूर हो जाती है।*
*बीज निकले 1 मुनक्के में लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग हींग भुनी पिसी डालकर पानी से सुबह निगल जायें। यह दिल में खिंचाव, बोझ, अधिक धड़कनों में बहुत अधिक लाभकारी है।*
*5 ग्राम मुनक्के, 2 चम्मच शहद तथा 1 छोटी डली मिश्री को पीसकर चटनी बना लें। यह चटनी सुबह के समय नाश्ते के बाद सेवन करें।*
*34. गुल्यवायु हिस्टीरिया: 6 दाने मुनक्का के दूध में उबालकर मिश्री के साथ मिलाकर रोगी युवती को खिलाने से या दूध पिलाने से हिस्टीरिया रोग ठीक हो जाता है।*
*35. यक्ष्मा (टी.बी):25 ग्राम बीज निकाले हुए मुनक्का, 25 ग्राम बादाम (भिगोकर छिलका उतारकर) और लहसुन की 3-4 कली लें। तीनों को एक साथ पानी के साथ पीसकर चटनी की तरह बना लें। फिर उसे लोहे की कढ़ाई में 25 ग्राम घी डालकर धीमी आंच पर पकायें, जब वह गाढ़ा हलुआ सा होने लगे, तब उसमें 12 ग्राम मिश्री का चूर्ण मिलाकर उतार लें। यह हलुआ नाश्ते के रूप में सेवन करना चाहिए। इसके सेवन से शारीरिक दूर्बलता दूर होकर टी.बी. के रोगी का वजन बढ़ने लगेगा।*
*मुनक्का, पीपल, देशी शक्कर बराबर मात्रा में लेकर अच्छी तरह से पीसकर रख लें, फिर 1 चम्मच सुबह-शाम खाने से टी.बी., दमा और खांसी में लाभ होता है।*
*36. छोटे बच्चों की खांसी: 30 ग्राम बड़ा मुनक्का, 6 ग्राम कालीमिर्च, 6 ग्राम पियाबांसा, 6 ग्राम भारंगी, 6 ग्राम नागरमोथा, 6 ग्राम अतीस, 4 ग्राम बच, 4 ग्राम खुरासानी अजवाइन को एक साथ मिलाकर पीस लें, फिर इसमें 5 ग्राम शहद मिलाकर मिश्रण तैयार कर लें। इस मिश्रण को लगभग 1 ग्राम के चौथे भाग से आधा ग्राम रोगी को रोजाना चटाने से खांसी के रोग में आराम आता है।*
*37. चेहरे की चमक का बढ़ना: अंगूर, किशमिश, मुनक्का में लौह तत्व (आयरन) की मात्रा ज्यादा होने के कारण ये खून में लाल कणों (हेमोग्लोबिन) को बढ़ाते हैं तथा रंग को निखारते हैं।*
*38. स्त्री रोग : मुनक्का (द्राक्षा) 50 ग्राम को पीसकर चूर्ण बना लें, फिर तज 3 ग्राम, तेजपात 3 ग्राम, नागरमोथा 3 ग्राम, सूखा पोदीना 3 ग्राम, पीपल 3 ग्राम, खुरासानी अजवायन 3 ग्राम, छोटी इलायची 3 ग्राम, तालीस के पत्ते 5 ग्राम, वंशलोचन 5 ग्राम, जावित्री 5 ग्राम, खेतचंदन 5 ग्राम, कालीमिर्च 5 ग्राम, जायफल 5 ग्राम, सफेद जीरा 7 ग्राम, बिनौला की गिरी 13 ग्राम, लौंग 13 ग्राम, सूखा धनिया 13 ग्राम, पीपल की जड़ 13 ग्राम, खिरनी के बीज 45 ग्राम, बादाम की गिरी 50 ग्राम, पिस्ता 50 ग्राम, सुपारी एक किलो, शहद और चीनी 1-1 किलो और गाय का देशी घी आधा किलो आदि को लेकर रख लें। इसके बाद 50 ग्राम पिसा हुआ मुनक्का और सुपारी चूर्ण को गाय के देशी घी में मिलाकर धीमी आग पर भूने, चीनी और शहद को छोड़कर सभी पदार्थो (द्रव्यों) को डाल दें, उसके बाद चीनी और शहद की चासनी बनाकर मिला दें, फिर उसके बाद सभी चीजों को अच्छी तरह पकाकर रख लें। इसे सुबह-शाम पिलाने से नारी के स्तनों की सौन्दर्यता बढ़ती है और योनि की बीमारियों का नाश होता है और योनि का ढीलापन दूर होता है।*
*39. शरीर को शक्तिशाली व ताकतवर बनाना: शाम को सोते समय लगभग 10 या 12 मुनक्का को धोकर पानी में भिगो दें। इसके बाद सुबह उठकर मुनक्का के बीजों को निकालकर इन मुनक्कों को अच्छी तरह से चबाकर खाने से शरीर में खून बढ़ता है। इसके अलावा मुनक्का खाने से खून साफ होता है और नाक से बहने वाला खून भी बंद हो जाता है। मुनक्का का सेवन 2 से 4 हफ्ते तक करना चाहिए।*
*दोस्तों, मुनक्का और किशमिश में कुछ अंतर जरूर होते हैं लेकिन इनके गुण और सेहत को मिलने वाले फायदे लगभग एक जैसे ही होते हैं इसलिए आप भी किशमिश और मुनक्का को अपने शरीर की जरुरत के अनुसार डाइट में शामिल कर लीजिये और स्वस्थ बने रहिये।*
*निरोगी रहने हेतु महामन्त्र*
*मन्त्र 1 :-*
*• भोजन व पानी के सेवन प्राकृतिक नियमानुसार करें*
*• रिफाइन्ड नमक,रिफाइन्ड तेल,रिफाइन्ड शक्कर (चीनी) व रिफाइन्ड आटा ( मैदा ) का सेवन न करें*
*• विकारों को पनपने न दें (काम,क्रोध, लोभ,मोह,इर्ष्या,)*
*• वेगो को न रोकें ( मल,मुत्र,प्यास,जंभाई, हंसी,अश्रु,वीर्य,अपानवायु, भूख,छींक,डकार,वमन,नींद,)*
*• एल्मुनियम बर्तन का उपयोग न करें ( मिट्टी के सर्वोत्तम)*
*• मोटे अनाज व छिलके वाली दालों का अत्यद्धिक सेवन करें*
*• भगवान में श्रद्धा व विश्वास रखें*
*मन्त्र 2 :-*
*• पथ्य भोजन ही करें ( जंक फूड न खाएं)*
*• भोजन को पचने दें ( भोजन करते समय पानी न पीयें एक या दो घुट भोजन के बाद जरूर पिये व डेढ़ घण्टे बाद पानी जरूर पिये)*
*• सुबह उठेते ही 2 से 3 गिलास गुनगुने पानी का सेवन कर शौच क्रिया को जाये*
*• ठंडा पानी बर्फ के पानी का सेवन न करें*
*• पानी हमेशा बैठ कर घुट घुट कर पिये*
*• बार बार भोजन न करें आर्थत एक भोजन पूर्णतः पचने के बाद ही दूसरा भोजन करें*
*भाई राजीव दीक्षित जी के सपने स्वस्थ भारत समृद्ध भारत और स्वदेशी भारत स्वावलंबी भारत स्वाभिमानी भारत के निर्माण में एक पहल आप सब भी अपने जीवन मे भाई राजीव दीक्षित जी को अवश्य सुनें*
*स्वदेशीमय भारत ही हमारा अंतिम लक्ष्य है :- भाई राजीव दीक्षित जी*
*मैं भारत को भारतीयता के मान्यता के आधार पर फिर से खड़ा करना चाहता हूँ उस काम मे लगा हुआ हूँ*
*ज्योति ओमप्रकाश गुप्ता वन्देमातरम जय हिंद*
_Dr.Vasishth's U-CAP_
*8 USES OF BHUMI-AMALAKI (PHYLOCIL Tablet)*
*भूम्यामलकी (फाइलोसिल टैब्लॅट) के 8 मुख्य उपयोग*
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_*Dr. Brijbala Vasishth*_MD (Ay-Kayachikitsa)_
_*Dr. Sunil Vasishth*_ _MD (Ay-Kayachikitsa) PhD (Hridroga)_
भूम्यामलकी को आम भाषा में भुईं आमला कहते हैं। इसका बाॅटैनिकल नाम है फ़ाइलैन्थस निर्युरि (Phyllanthus niruri), और मार्किट में यह फ़ाइलोसिल टैब्लॅट (Phylocil Tablet) नाम से मिलती है।
भूम्यामलकी _(फ़ाइलोसिल टैब्लॅट)_ आयुर्वेद की एक महत्वपूर्ण औषधि है, जिसे अनेकों रोगों की चिकित्सा के लिए प्रयोग में लाया जाता है। तो भी, इसके 8 प्रयोग सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं, और अभी मैं उन्हीं की चर्चा करने जा रहा हूँ।
यह चर्चा भूम्यामलकी _(फ़ाइलोसिल टैब्लॅट)_ पर पिछले सौ वर्षों की हुई रिसर्च, तथा हमारे तीस वर्षों से अधिक के क्लिनिकल इक्स्पीरियन्सस पर आधारित है, तथा यह लेख विशेष रूप से युवा आयुर्वेद चिकित्सकों के लिए तैयार किया गया है।
1. *आमविषजन्य रोग (Auto-immune disorders)*
भूम्यामलकी _(फ़ाइलोसिल टैब्लॅट)_ एक प्रभावशाली रसायन (Immunomodulator) है, तथा शरीर के किसी भी अंगावयव या स्रोतस् में आमविषजन्य रोग (Auto-immune disorder) होने पर इसका उपयोग किया जा सकता है, जैसे - आमवात (RA), साम-विषज सन्धिशोथ (Ankylosing spondylitis), किटिभ (Psoriasis), चर्म-कुष्ठ (Lichen planus), आमविषज रक्तदुष्टि (SLE), सामविषज ग्रहणी (Inflammatory Bowel Disease), मधुमेह (Diabetes mellitus), इत्यादि।
2. *विषाणुज संक्रमण (Viral infections)*
विषाणुहर (Antiviral) होने के कारण भूम्यामलकी _(फ़ाइलोसिल टैब्लॅट)_ विषाणुओं की वृद्धि को रोकती है, व ओजस् बढ़ाते हुए शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) को मज़बूत बनाती है। शरीर में किसी भी प्रकार का विषाणुज संक्रमण (Viral infection) होने पर भूम्यामलकी _(फ़ाइलोसिल टैब्लॅट)_ का उपयोग किया जा सकता है, जैसे - विषम ज्वर (Viral fevers), विसर्प / कक्षा (Herpes zoster), विस्फोट (Herpes simplex), विषाणुज यकृत्शोथ (Viral hepatitis), टाॅर्च (TORCH infections), विषाणुज सन्धिशोथ (Viral arthritis), इत्यादि।
3. *यकृत् रोग (Liver disorders)*
भूम्यामलकी _(फ़ाइलोसिल टैब्लॅट)_ यकृत् रोगों की चिकित्सा के लिए एक श्रेष्ठतम औषध विकल्प (Drug of Choice) के रूप में उभर के आई है। यह कई प्रकार से कार्य करते हुए यकृत्-गत रोगों को दूर करती है, यकृत् को बलवान बनाती है, तथा विष-द्रव्यों से इसकी रक्षा करती है, जैसे - कामला (Jaundice), विषाणुज यकृत्शोथ (Viral hepatitis), विषज यकृत्शोथ (Toxic hepatitis), यकृत्-दुष्टि (Abnormal liver enzynes), यकृत्-गत मेदो-संचय (Fatty infiltration of the liver), पित्ताशय शोथ (Cholecystitis), पित्ताशय शर्करा (Sludge), साध्य-यकृत्-क्षयः (Early cirrhosis of liver), इत्यादि।
4. *वृक्क एवं मूत्र रोग (Kidney & Urinary disorders)*
यकृत् रोगों की ही भाँति, भूम्यामलकी _(फ़ाइलोसिल टैब्लॅट)_ को कई प्रकार के वृक्क एवं मूत्रगत रोगों (Kidney & Urinary disorders) में भी काफ़ी प्रभावशाली पाया गया है। यह कई प्रकार से कार्य करते वृक्क-गत रोगों को दूर करती है, वृक्क को बलवान बनाती है, तथा विष-द्रव्यों से इसकी रक्षा करती है, मूत्र की उत्पत्ति बढ़ाती है, तथा मूत्राश्मरी को घोल/तोड़ कर बाहर निकालने में सहायता करती है। जैसे - साध्य वृक्क-अक्षमता (Reversible renal failure) जिसमें ब्लड यूरिआ व सीरम क्रिएटिनीन बढ़ने लगते हैं, कफज शोथ (Nephrotic syndrome / Renal edema), कफज उदर रोग / जलोदर (Nephrotic syndrome / Renal ascites), इत्यादि।
5. *मेदो-दुष्टि (Dyslipidemias)*
भूम्यामलकी _(फ़ाइलोसिल टैब्लॅट)_ मुख्य रूप से यकृत् की क्रिया में सुधार लाते हुए बढी हुई साम मेदस् (Total / LDL VLDL Cholesterol) व ट्राइ-ग्लिस्राइडस् (Triglycerides) को कम करती है, व निराम मेदस् (HDL Cholesterol) को बढ़ने में सहायता करती है। अतः इसका उपयोग, बढी हुई साम मेदस् (Total / LDL VLDL Cholesterol) व ट्राइ-ग्लिस्राइडस् (Triglycerides) को कम करने, व कम हुई निराम मेदस् (HDL Cholesterol) को बढ़ाने के लिए किया जाता है। इसके साथ-साथ, इसका उपयोग स्थौल्य (Obesity), धमनीप्रतिचयः (Atherosclerosis), हृद्-धमनी-रोग (CAD), शिरो-धमनी-रोग (CVA), इत्यादि।
6. *मधुमेह (Diabetes mellitus)*
भूम्यामलकी _(फ़ाइलोसिल टैब्लॅट)_ कई प्रकार से कार्य करते हुए, बढ़ी हुई रक्त-शर्करा (Blood sugar) कम करती है। साथ ही, यह बढ़ी हुई साम मेदस् (Total / LDL VLDL Cholesterol) व ट्राइ-ग्लिस्राइडस् (Triglycerides) को कम करके, व निराम मेदस् (HDL Cholesterol) को बढ़ा कर इस रोग की चिकित्सा में सहायता करती है। यही नहीं, यह रक्त को पतला करती है, व इस प्रकार से रक्त-स्कन्दन (Thrombus formation) को रोकती है। इन सब कर्मों को देखते हुए, भूम्यामलकी _(फ़ाइलोसिल टैब्लॅट)_ का मधुमेह व उससे होने वाले कई प्रकार के उपद्रवों की चिकित्सा के लिए उपयोग में लाया जाता है।
7. *उच्च रक्तचाप (Hypertension)*
भूम्यामलकी _(फ़ाइलोसिल टैब्लॅट)_ कई प्रकार से कार्य करते हुए, बढ़ा हुई रक्त-चाप (High BP) कम करती है। यह धमनी-विस्फारण (Vasodilation) करती है, बढ़ी हुई साम मेदस् (Total / LDL VLDL Cholesterol) व ट्राइ-ग्लिस्राइडस् (Triglycerides) को कम करती है, रक्त को पतला करती है, वृक्क-यकृत्-थायरायड की विकृतियों को दूर करती है। इसी आधार पर भूम्यामलकी _(फ़ाइलोसिल टैब्लॅट)_ का उच्च रक्तचाप व उससे पैदा होने वाले उपद्रवों की चिकित्सा में किया जाता है।
8. *वातरक्त (Raised serum uric acid / Gout)*
भूम्यामलकी _(फ़ाइलोसिल टैब्लॅट)_ कई प्रकार से कार्य करते हुए, बढ़े हुए रक्त-गत यूरिक एॅसिड को कम करती है। यह यूरिक एॅसिड का बनना कम करती है, बने हुए को वृक्कों के माध्यम से निकालती है, वृक्कों की विष द्रव्यों (Toxins) से रक्षा करती है। इसी आधार पर भूम्यामलकी _(फ़ाइलोसिल टैब्लॅट)_ का उपयोग वातरक्त में किया जाता है।
*उपलब्धता (Availability)*
मार्किट में भूम्यामलकी *फ़ाइलोसिल टैब्लॅट (Phylocil Tablet)* नाम से उपलब्ध है, जिसमें 500 मि.ग्रा. (10:1) भूम्यामलकी का इक्स्ट्रैक्ट डाला गया है, जो 5 ग्राम भूम्यामलकी चूर्ण के बराबर है। फ़ाइलोसिल टैब्लॅट (Phylocil Tablet) को 1-2 टैब्लॅट, दिन में तीन बार नियमित रूप से, भोजन के तत्काल बाद देना चाहिए। वाँछित परिणाम मिलने पर इसकी मात्रा को धीरे-धीरे कम करते जाना चाहिए। बच्चों में फ़ाइलोसिल टैब्लॅट (Phylocil Tablet) को वयस्कों से चौथाई से आधी मात्रा में युक्तिपूर्वक देना चाहिए।
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https://youtu.be/jto_wd_1n5Y (Secondary Uses - English)
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*Dr.Vasishth*
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किसी संजीवनी से कम नहीं है ° एलोवेरा °
एलोवेरा में संजीवनी बूटी के सभी गुण मौजूद हैं।
खून की कमी पूरा कर रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढाये।
एंटीबायोटिक और एंटीसेप्टिक के रूप में काम करता है। एलोवेरा का जूस त्वचा की नमी को बनाए रखता है।
औषधी की दुनिया में एलोवेरा किसी चमत्कार से कम नहीं। एलोवेरा एक संजीवनी है यानी इसमें संजीवनी बूटी के सभी गुण मौजूद हैं। एलोवेरा से तमाम रोग दूर किए जा सकते हैं। एलोवेरा औषधीय गुणों से परिपूर्ण है। एलोवेरा के जूस और एलोवेरा युक्त उत्पाद के सेवन और इस्तेमाल से फिट रहा जा सकता है। आइए जानें आखिर एलोवेरा है क्या।
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एलोवेरा एक ऐसा पौधा है जिसमें अन्य सभी जड़ी-बूटियों के मुकाबले अधिक गुण है। यानी व्यक्ति को फिट रखने में एलोवेरा महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता हैं। एलोवेरा के पौधे को कई नाम हैं, जैसे संजीवनी बूटी, साइलेंट हीलर, चमत्कारी औषधि। इसे कई अन्यो नामों ग्वारपाठा, क्वारगंदल, घृतकुमारी, कुमारी, घी-ग्वार इत्यादि से पुकारा जाता है। एलोवेरा का उपयोग अनेक प्रकार की आयुर्वेदिक औषधि बनाने में किया जाता है। एलोवेरा के पौधे में वो सारे गुण समाहित है जिसे संजीवनी बूटी कह सकते है। कब्ज से लेकर कैंसर तक के मरीजों के लिए एक अत्यंत लाभकारी औषधि है।
रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाये
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एलोवेरा में वो औषधीय तत्व हैं जो शरीर में नहीं बनते बल्कि एलोवेरा से ही प्राप्त होते हैं जैसे– कुछ मिनरल और अमीनो एसिड। इन तत्वों को निरंतर शरीर की जरूरत रहती है जिसे पूरी करना भी जरूरी है। और जो खून की कमी को दूर कर रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढाते हैं।
शक्ति तथा स्फूर्ति का अहसास
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एलोवेरा बढि़या एंटीबायोटिक और एंटीसेप्टिक के रूप में काम करता है। एलोवेरा में शरीर की अंदरूनी सफाई करने और शरीर को रोगाणु रहित रखने के गुण भी मौजूद है। यह हमारे शरीर की छोटी बड़ी नस, ना़डि़यों की सफाई करता है उनमें नवीन शक्ति तथा स्फूर्ति भरता है।
त्वचा और बालों के लाभकारी
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त्वचा की देखभाल और बालों की मजबूती व बालों की समस्या से निजात पाने के लिए एलोवेरा एक संजीवनी का काम करती है। एलोवेरा का जूस त्वचा की नमी को बनाए रखता है जिससे त्वचा स्वस्थ दिखती है। यह स्किन के कोलाजन और लचीलेपन को बढाकर स्किन को जवान और खूबसूरत बनाता है। एलोवेरा का जूस पीने से त्वचा की खराबी, मुहांसे, रूखी त्वचा, धूप से झुलसी त्वचा, झुर्रियां, चेहरे के दाग धब्बों, आंखों के काले घेरों को दूर किया जा सकता है।
हीमोग्लोबिन की कमी पूरा करें
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एलोवेरा औषधी हर उम्र के लोग इस्तेमाल कर सकते है और यह शरीर में जाकर खराब सिस्टम को ठीक करता है। इसका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होता। साथ ही एलोवेरा का जूस ब्लड को प्यूरीफाई करता है और हीमोग्लोबिन की कमी को पूरा करता है। इसके अलावा यह *शरीर में व्हाईट ब्लड सेल्स की संख्या को बढाता है।*
बीमारियों को दूर करें
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शरीर में मौजूद हृदय विकार, जोड़ों के दर्द, मधुमेह, यूरीनरी प्रॉब्ल्म्स, शरीर में जमा विषैले पदार्थ इत्यादि को नष्ट करने में मददगार है। एलोवेरा के जूस का हर रोज सेवन करने से शरीर के जोडों के दर्द को कम किया जा सकता है।
बच्चे से लेकर वरिष्ठ लोगों तक सभी के लिए एलोवेरा किफायती है। इसके प्रयोग से बीमारियों से मुक्त रहकर लंबी उम्र तक स्वस्थ और फिट रहा जा सकता है।
*कटती गाय करे पुकार अब तो निकलो घर से बाहर*
*गाय ठाकुर जी की, व्यवस्था भी ठाकुर जी ही करेंगे।* मेरे सभी धर्मप्रेमी भाई लगभग यही जवाब देते हैं। भाईयों आप मुझे ये बताओ कि अगर आप के बीबी बच्चों को आंतकवादी किडनैप कर ले। और फिरौती में आप से धन की मांग करे *तो आप धन दोगे या नहीं? अगर आप कहेंगे नहीं तो मै उन लोगों की बात नहीं कर रहा हूं और जो लोग ये कहेंगे कि ठाकुर जी बचायेगे तो मैं उन लोगों की भी बात नहीं कर रहा हूँ। मैं उन लोगों की बात कर रहा हूंं। जो लोग ये सोचते हैं कि मेरे इतने से धन से अगर किसी की जान बचती हैं। तो इससे अच्छी ओर क्या बात होगी।*
मैं आप सभी धर्म प्रेमियों से हाथ जोड़ विनती करता हूँ। कि बंगाल बाडर पर जो 15000गायें हमारे सैनिकों ने गौतस्करो से पकडी है। *उन गायों को जल्द से जल्द यहां गौशाला में नहीं लाया गया तो स्थिति बड़ी गंभीर हो जायेगी।* आगे से कभी भी जान पर खेलकर हमारे सैनिक गाय नहीं पकडेगे और ना ही कैंपस में रख पायेगे। स्थिति बड़ी गंभीर है। *एक गाय का राजस्थान लाने का खर्च भी 5000/रूपये से ऊपर आ रहा है। फिर चारे पानी का खर्च हमारा विचार है कि दान दाताओं के सहयोग से राजस्थान में लगभग 5000हजार गोंवश तो लाया जाये।* लगभग एक एक गौशाला में तीस या चालीस गोंवश दिये जायें। अगर सभी राज्य वाले लोग सामने आयेगें तब तो गोंवश बच सकता है अन्यथा बहुत मुश्किल होगा। *अब जो धर्मप्रेमी इस विषय में कुछ जानना चाहते हैं तो इन नम्बर 9460145689 पर बात करें और जो धर्मप्रेमी अपनी स्वेच्छा अनुसार सहयोग करना चाहें वे लोग। गोपेश कृष्ण दास जी बाबा के नम्बर पर सम्पर्क करें। 9636355278 आप संस्था के अकाउंट में भी सीधे पैसे भी जमा करा सकते हैं।* कृपया अकाउंट में जमा करवावे तब पूरी डिटेल लिखे नाम पता वगैरा जरूर लिखें।HDFC Bank A/c No. 00921000102439 Name: Dhyan Foundation IFSC Code: HDFC0000092
Place - GK-1 New Delhi
BSF कैंपस का विडियो भी भेज रहा हूँ डाउनलोड कर देख लें कैसी स्थिति है हमारी गायों की 🙏🙏🙏
अंडकोष की सूजन दूर करने के 30 रामबाण घरेलु उपचार |
परिचय :
यह रोग ताकत से ज्यादा व्यायाम करने, अधिक उछलने, साइकिल चलाने, तेज दौड़ने, घुड़सवारी करने और अण्डकोषों पर किसी कारण चोट लग जाने पर सूजन उत्पन्न हो जाती है। अधिक तैरने तथा पानी में कमर तक खड़े होकर काम करने से भी अण्डकोषों में सूजन हो जाती है। अण्डकोष में पानी भर जाने की बीमारी को हाइड्रोसील कहा जाता है। अण्डकोष की श्लैष्मिक कला में रक्त का पानी एकत्र हो जाने से बीमारी होती है। कई बार शिशु के अण्डकोषों में पानी भर जाता है। अण्डकोष की प्रारंभिक अवस्था में पानी संचय नही होता, लेकिन अण्डकोष में सूजन होने से तेज दर्द होता है। आंत्रों में मल के शुष्क और कठोर होने पर दूषित वायु आवेग के कारण अण्डकोष में सूजन उत्पन्न हो जाती है.
विभिन्न औषधियों से उपचार-
1. तिल : 25 ग्राम काले तिल में 25 ग्राम एरण्ड के बीजों की गिरी को एक साथ पीसकर अण्डाकोष(andkosh) पर एरण्ड के पत्तों के साथ बांधने से सूजन जल्दी मिट जाती है।
2. तंबाकू :
<> तंबाकू के पत्तों पर थोड़ा-सा तिल का तेल लगाकर हल्का सा गर्म करके अण्डाकोषों पर बांधने से अण्डकोषों के सूजन(andkosh ki sujan )में काफी लाभ होता है।
<> तंबाकू के पत्तों पर सरसों या तिल का तेल लगाकर हल्का-सा सेंककर अण्डकोषों पर बांधने से उनकी सूजन मिट जाती है।
3. इन्द्रायण :
<> इन्द्रायण की जड़ और पुष्करमूल को तेल में पीसकर गाय के दूध के साथ सेवन करने से कुछ दिनों में अण्डकोष का बढ़ना समाप्त हो जाता है।
<> इन्द्रायण की जड़ को बरीक कूट-पीसकर, कपडे़ द्वारा छानकर एरण्ड के तेल में मिलाकर अण्डकोषों पर लेप करने से अण्डकोष सूजन की बीमारी मिट जाती है।
4. बच : 10 ग्राम बच और 10 ग्राम सरसों को पानी के साथ पीसकर रोजाना अण्डकोष पर लेप करने से सूजन मिट जाती है।
5. करंज : करंज की मींगी को एंरड के तेल में घोटकर उसे तंबाकू के पत्ते पर लपेटकर अण्डकोषों पर लेप करने से अण्डकोष की सूजन समाप्त हो जाती है।
6. त्रिफला (हरड़, बहेड़ा आंवला) :
<> 10-10 ग्राम त्रिफला, अरलू की जड़, एरण्ड की जड़, सभी को एक साथ लेकर कांजी में पीसकर लेप करने से सूजन और दर्द दूर हो जाते हैं।
<> लगभग 1 चौथाई ग्राम त्रिफला के काढ़े को लगभग 1 चौथाई ग्राम गाय के मूत्र के साथ दिन में 2 बार सेवन करने से अण्डकोष की सूजन कम हो जाती है।
7. बैंगन : बैंगन की जड़ को पानी में मिलाकर अण्डकोषों पर कुछ दिनों तक लेप करने से अण्डकोषों की सूजन और वृद्धि में लाभ होता है।
8. पलाश : पलाश की छाल का चूर्ण बनाकर 5 ग्राम पानी के साथ सेवन करने से अण्डकोषों की वृद्धि में लाभ होता है।
9. गुड़मार : 2 ग्राम की मात्रा में गुड़मार के पत्तों का रस शहद में मिलाकर कुछ दिनों तक पीने से अण्डवृद्धि यानी अण्डकोष का बढ़ना समाप्त हो जाता है।
10. बिनौले : 10-10 बिनौले और सोंठ को लेकर कूट-पीसकर पानी के साथ लेप बनाकर हल्का-सा सेंकने अण्डकोषों पर बांधने से लाभ होता है।
11. जीरा : 10-10 ग्राम जीरा और कालीमिर्च पीसकर पानी में उबालकर उस पानी से अण्डकोषों को धोने से सूजन मिट जाती है।
12. छोटी अरनी : छोटी अरनी के पत्तों को पीसकर हल्का-सा गर्म करके बांधने से अण्डकोष का बढ़ना मिट जाता है।
13. कटेरी : कटेरी की जड़ की छाल का 10 ग्राम चूर्ण, 5 ग्राम कालीमिर्च के चूर्ण के साथ पानी में पीसकर फिर पानी में मिला दें। इस मिश्रण को छानकर कुछ दिनों तक वह पानी पीने से अण्डवृद्धि मिट जाती है।
14. भिलावे : 10 ग्राम भिलावे के पत्ते, 5 ग्राम हल्दी पानी के साथ पीसकर हल्का-सा सेंककर अण्डकोषों पर लेप करने से उसकी सूजन(andkosh ki sujan ) को कम करने में लाभ होता है।
15. धतूरा : धतूरे के पत्ते पर तेल लगाकर अण्डकोषों पर बांधने से अण्डवृद्धि जल्द मिट जाती है।
16. कनेर : सफेद कनेर के पत्ते कांजी के साथ पीसकर हल्का-सा गर्म करके बांधने से अण्डकोष की वृद्धि से लाभ होता है।
17. माजूफल : 10-10 ग्राम माजूफल और असगंध लेकर पानी के साथ पीसकर थोड़ा-सा गर्म करके बांधने से अण्डकोष की सूजन मिट जाती है।
18. अमलतास : 20 ग्राम अमलतास के गूदे को 100 मिलीलीटर पानी में उबाल लें, 50 मिलीलीटर पानी शेष रह जाने पर 25 ग्राम घी में मिलाकर पीने से अण्डकोष की सूजन कम हो जाती है।
19. आम :
<> आम के पेड़ की गांठ को गाय के दूध में पीसकर लेप करने से अण्डकोष की सूजन कम हो जाती है।
<> आम के पेड़ की गांठ को गाय के दूध में पीसकर लेप करने से अण्डकोष की सूजन कम हो जाती है।
<> 25 ग्राम की मात्रा में आम के कोमल पत्तों को पीसकर उसमें 10 ग्राम सेंधा नमक मिलाकर हल्का-सा गर्म करके अण्डकोष पर लेप करने से अण्डकोष की सूजन मिट जाती है।
20. कचूर : 20 ग्राम कचूर के चूर्ण में पानी मिलाकर लेप बनायें। इस लेप को हल्का सा गर्म करके अण्डकोष पर लेप करने से शीत ऋतु के कारण उत्पन्न अण्डकोष की सूजन से आराम मिलता है।
21. गुग्गल : 2-4 ग्राम शुद्ध गुग्गल, 7-14 मिलीलीटर गाय के मूत्र के साथ सुबह-शाम सेवन करने से अण्डकोष की सूजन कम हो जाती है।
22. दशमूल : 14-28 मिलीलीटर दशमूल के काढ़े में 7-14 मिलीलीटर एरण्ड के तेल को मिलाकर सुबह सेवन करने से अण्डकोष की सूजन कम हो जाती है।
23. सेंधानमक : 1 ग्राम सेंधा नमक को 7-14 मिलीलीटर एरण्ड के तेल के साथ 1-3 ग्राम गाय के मूत्र में उबली हुई, हरीतकी के साथ सुबह-शाम सेवन करने से अण्डकोष की सूजन मिट जाती है।
24. हरीतकी : 6-12 ग्राम की मात्रा में हरीतकी फल मज्जा का मिश्रण, 7-14 मिलीलीटर एरण्ड के तेल में तलकर पिप्पली और सेंधा की 1-1 ग्राम की मात्रा के साथ सुबह-शाम सेवन करने से अण्डकोष की सूजन से राहत मिलती है।
25. मकोय : मकोय के पत्ते गर्म करके दर्द वाले स्थान पर शोथयुक्त अण्डकोषों और हाथ-पैरों की सूजन पर लगाने से लाभ होता है।
26. आक :
<> 8-10 ग्राम आक की छाया में सुखाई छाल को कांजी के साथ पीसकर लेप करने से पैरों और फोतों की गजचर्म के समान मोटी पड़ी हुई चमड़ी पतली हो जाती है।
<> आक के 2-4 पत्तों को तिल्ली के तेल के साथ पत्थर पर पीसकर मलहम सा बना फोड़े, अण्डकोष के दर्द में चुपड कर लंगोट कस देने से शीघ्र आराम होता है।
<> आक के पत्तों पर एंरड तेल को चुपडकर अण्डकोषों पर बांधने से पित्त के कारण उत्पन्न शोथ मिटता है।
27. अदरक : अदरक के पांच ग्राम रस में मधु मिलाकर तीन-चार सप्ताह प्रतिदिन सेवन करने से बहुत लाभ होता है।
28. भांग :
<> पानी में भांग को थोड़ी देर भिगोंकर रखते हैं, फिर उस पानी से सूजन अण्डकोषों को धोने से तथा फोम को अण्डकोषों पर बांधने से अण्डकोषों की सूजन मिट जाती है।
<> भांग के गीले पत्तों की पुल्टिश बनाकर अण्डकोषों की सूजन पर बांधना चाहिए। और सूखी भांग को पानी में उबालकर बफारा देने से अण्डकोंषों की सूजन उतर जाती है।
29. सिरस : सिरस की छाल को पीसकर लेप करने से अण्डकोषों की सूजन समाप्त हो जाती है।
30. टमाटर : 100 ग्राम लाल टमाटर पर सेंधानमक और अदरक मिलाकर भोजन से पहले सेवन करने से लाभ होता है।
*हाइपर थाइरोइड और हाइपो थाइरोइड का घरेलु और सफल उपचार*
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आज कल की भाग दौड़ भरी ज़िन्दगी में ये समस्या आम सी हो गयी हैं, और अलोपथी में इसका कोई इलाज भी नहीं हैं, बस जीवन भर दवाई लेते रहो, और आराम कोई नहीं।
थायराइड मानव शरीर मे पाए जाने वाले एंडोक्राइन ग्लैंड में से एक है।* थायरायड ग्रंथि गर्दन में श्वास नली के ऊपर एवं स्वर यन्त्र के दोनों ओर दो भागों में बनी होती है। इसका आकार तितली जैसा होता है। यह थाइराक्सिन नामक हार्मोन बनाती है जिससे शरीर के ऊर्जा क्षय, प्रोटीन उत्पादन एवं अन्य हार्मोन के प्रति होने वाली संवेदनशीलता नियंत्रित होती है।
यह ग्रंथि शरीर के मेटाबॉल्जिम को नियंत्रण करती है यानि जो भोजन हम खाते हैं यह उसे उर्जा में बदलने का काम करती है।
इसके अलावा यह हृदय, मांसपेशियों, हड्डियों व कोलेस्ट्रोल को भी प्रभावित करती है।
आमतौर पर शुरुआती दौर में थायराइड के किसी भी लक्षण का पता आसानी से नहीं चल पाता, क्योंकि गर्दन में छोटी सी गांठ सामान्य ही मान ली जाती है। और जब तक इसे गंभीरता से लिया जाता है, तब तक यह भयानक रूप ले लेता है।
आखिर क्या कारण हो सकते है जिनसे थायराइड होता है।
*थायरायडिस-* यह सिर्फ एक बढ़ा हुआ थायराइड ग्रंथि (घेंघा) है, जिसमें थायराइड हार्मोन बनाने की क्षमता कम हो जाती है।
इसोफ्लावोन गहन सोया प्रोटीन, कैप्सूल, और पाउडर के रूप में सोया उत्पादों का जरूरत से ज्यादा प्रयोग भी थायराइड होने के कारण हो सकते है।
कई बार कुछ दवाओं के प्रतिकूल प्रभाव भी थायराइड की वजह होते हैं।
थायराइट की समस्या पिट्यूटरी ग्रंथि के कारण भी होती है क्यों कि यह थायरायड ग्रंथि हार्मोन को उत्पादन करने के संकेत नहीं दे पाती।*
भोजन में आयोडीन की कमी या ज्यादा इस्तेमाल भी थायराइड की समस्या पैदा करता है।
सिर, गर्दन और चेस्ट की विकिरण थैरेपी के कारण या टोंसिल्स, लिम्फ नोड्स, थाइमस ग्रंथि की समस्या या मुंहासे के लिए विकिरण उपचार के कारण।
जब तनाव का स्तर बढ़ता है तो इसका सबसे ज्यादा असर हमारी थायरायड ग्रंथि पर पड़ता है। यह ग्रंथि हार्मोन के स्राव को बढ़ा देती है।
यदि आप के परिवार में किसी को थायराइड की समस्या है तो आपको थायराइड होने की संभावना ज्यादा रहती है। यह थायराइड का सबसे अहम कारण है।
ग्रेव्स रोग थायराइड का सबसे बड़ा कारण है। इसमें थायरायड ग्रंथि से थायरायड हार्मोन का स्राव बहुत अधिक बढ़ जाता है। ग्रेव्स रोग ज्यादातर 20 और 40 की उम्र के बीच की महिलाओं को प्रभावित करता है, क्योंकि ग्रेव्स रोग आनुवंशिक कारकों से संबंधित वंशानुगत विकार है, इसलिए थाइराइड रोग एक ही परिवार में कई लोगों को प्रभावित कर सकता है।
थायराइड का अगला कारण है गर्भावस्था, जिसमें प्रसवोत्तर अवधि भी शामिल है। गर्भावस्था एक स्त्री के जीवन में ऐसा समय होता है जब उसके पूरे शरीर में बड़े पैमाने पर परिवर्तन होता है, और वह तनाव ग्रस्त रहती है।
रजोनिवृत्ति भी थायराइड का कारण है क्योंकि रजोनिवृत्ति के समय एक महिला में कई प्रकार के हार्मोनल परिवर्तन होते है। जो कई बार थायराइड की वजह बनती है।
*थायराइड के लक्षण:-*
*कब्ज-* थाइराइड होने पर कब्ज की समस्या शुरू हो जाती है। खाना पचाने में दिक्कत होती है। साथ ही खाना आसानी से गले से नीचे नहीं उतरता। शरीर के वजन पर भी असर पड़तापैर ठंडे रहना- थाइराइड होने पर आदमी के हाथ पैर हमेशा ठंडे रहते है। मानव शरीर का तापमान सामान्य यानी 98.4 डिग्री फॉरनहाइट (37 डिग्री सेल्सियस) होता है, लेकिन फिर भी उसका शरीर और हाथ-पैर ठंडे रहते हैं।
*प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होना-* थाइराइड होने पर शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता कम़जोर हो जाती है। इम्यून सिस्टम कमजोर होने के चलते उसे कई बीमारियां लगी रहती हैं।
*थकान–* थाइराइड की समस्या से ग्रस्त आदमी को जल्द थकान होने लगती है। उसका शरीर सुस्त रहता है। वह आलसी हो जाता है और शरीर की ऊर्जा समाप्त होने लगती है।
*त्वचा का सूखना या ड्राई होना–* थाइराइड से ग्रस्त व्यक्ति की त्वचा सूखने लगती है। त्वचा में रूखापन आ जाता है। त्वचा के ऊपरी हिस्से के सेल्स की क्षति होने लगती है जिसकी वजह से त्वचा रूखी-रूखी हो जाती है।
*जुकाम होना–* थाइराइड होने पर आदमी को जुकाम होने लगता है। यह नार्मल जुकाम से अलग होता है और ठीक नहीं होता है।
*डिप्रेशन-* थाइराइड की समस्या होने पर आदमी हमेशा डिप्रेशन में रहने लगता है। उसका किसी भी काम में मन नहीं लगता है, दिमाग की सोचने और समझने की शक्ति कमजोर हो जाती है। याद्दाश्त भी कमजोर हो जाती है।
*बाल झड़ना-* थाइराइड होने पर आदमी के बाल झड़ने लगते हैं तथा गंजापन होने लगता है। साथ ही साथ उसके भौहों के बाल भी झड़ने लगते है।
*थायरायड की प्राकृतिक चिकित्सा*
थायरायड के लिए हरे पत्ते वाले धनिये की ताजा चटनी बना कर एकबडा चम्मच एक गिलास पानी में घोल कर पीए रोजाना.... एक दम ठीकहो जाएगा (बस धनिया देसी हो उसकी सुगन्ध अच्छी हो)
*आहार चिकित्सा*
सादा सुपाच्य भोजन, मट्ठा, दही, नारियल का पानी, मौसमी फल,ताजी हरी साग सब्जियां, अंकुरित गेंहूँ, चोकर सहित आटे की रोटीको अपने भोजन में शामिल करें।
*परहेज :*
मिर्च-मसाला, तेल, अधिक नमक, चीनी, खटाई, चावल, मैदा, चाय,काफी, नशीली वस्तुओं, तली-भुनी चीजों, रबड़ी, मलाई, मांस, अंडाजैसे खाद्यों से परहेज रखें। अगर आप सफ़ेद नमक (समुन्द्री नमक) खाते है तो उसे तुरन्त बंद कर दे और
सैंधा नमक ही खाने में प्रयोग करे, सिर्फ़ सैंधा नमक ही खाए सब जगह
गले की गर्म-ठंडी सेंक
*साधन :–*
गर्म पानी की रबड़ की थैली, गर्म पानी, एक छोटा तौलिया,
एक भगौने में ठण्डा पानी।
पथरी का कारण लक्षण व सबसे प्रभावशाली आयुर्वेदिक उपचार
★ गुर्दे की पथरी भी पित्ताशय (वह स्थान जहां पित्त एकत्रित होती है) की पथरी के तरह बनती है।
★ जब कभी गुर्दे में कैल्शियम, फास्फेट व कार्बोनेट आदि तत्त्व इकट्ठा हो जाते हैं तो वह धीरे-धीरे पथरी का रूप धारण कर लेती है।
★ जब तक शरीर के सभी गंदे तत्त्व मूत्र के साथ सामान्य रूप से निकलते रहते हैं तब तक सब कुछ ठीक रहता है लेकिन जब किसी कारण से मूत्र के साथ ये सभी तत्व नहीं निकलने पाते हैं तो ये सभी तत्व गुर्दे में एकत्रित होकर पथरी का निर्माण करने लगते हैं।
★ गुर्दे की पथरी बनने पर पेशाब करते समय तेज जलन व दर्द होता है।
पथरी होने का कारण :
★ जो स्त्री-पुरुष खान-पान में सावधानी नहीं रखते हैं उन्हें यह रोग होता है।
★ अधिक खट्ठे-मीठे, तेल के पदार्थ, गर्म मिर्च-मसाले आदि खाने के कारण गुर्दे की पथरी बनती है।
★ जो लोग इस तरह के खान पान हमेशा करते हैं उनके गुर्दो में क्षारीय तत्त्व बढ़ जाते हैं और उनमें सूजन आ जाती है।
★ कभी-कभी मौसम के विरुद्ध आहार खा लेने से भी गुर्दे की पथरी बन जाती है।
★ शुरू में यह पथरी छोटी होती है और बाद में धीरे-धीरे बड़ी हो जाती है।
पथरी होने के लक्षण :
★ पथरी बनने के पश्चात मूत्र त्याग के समय जलन होती है।
★ कभी-कभी पेशाब करते समय इतना दर्द होता है कि रोगी बेचैन हो जाता है।
★ गुर्दे की पथरी नीचे की ओर चलती है और मूत्रनली में आती रहती है जिससे रोगी को बहुत दर्द होता है
पथरी का आयुर्वेदिक घरेलु उपचार :
1. कुल्थी : 250 ग्राम कुल्थी को साफ करके रात को 3 लीटर पानी में भिगो दें। सुबह फुली हुई कुल्थी को उसी पानी के साथ धीमी आग पर लगभग 4 घंटे तक पकाएं और जब 1 लीटर पानी रह जाए तो उतारकर इसमें 50 ग्राम देशी घी, सेंधानमक, कालीमिर्च, जीरा व हल्दी का छोंका लगाएं। यह भोजन के बाद सेवन करने से गुर्दे की पथरी गलकर निकल जाती है।
2. लहसुन : लहसुन की पुती के साथ 2 ग्राम जवाखार पीसकर रोगी को सुबह-शाम देने से गुर्दे की पथरी बाहर निकल जाती है।
3. पपीता : 6 ग्राम पपीते की जड़ को पीसकर 50 मिलीलीटर पानी में मिलाकर 21 दिन तक सुबह-शाम पीने से पथरी गल जाती है।
4. मेंहदी : 6 ग्राम मेंहदी के पत्तों को 500 मिलीलीटर पानी में डालकर उबालें। जब 150 मिलीलीटर पानी रह जाए तो छानकर 2-3 दिन पीने से गुर्दे का दर्द ठीक होता है।
5. मूली : मूली का 100 मिलीलीटर रस मिश्री मिलाकर सुबह खाली पेट सेवन करने से कुछ दिनों में ही गुर्दे की पथरी गलकर निकल जाती है और दर्द शान्त होता है।
6. मक्का : मक्के के भुट्टे के 20 ग्राम बालों को 200 मिलीलीटर पानी में उबालें और जब पानी केवल 100 मिलीलीटर बच जाए तो छानकर पीएं। इससे गुर्दे की पथरी का दर्द ठीक होता है।
7. तुलसी : 20 ग्राम तुलसी के सूखे पत्ते, 20 ग्राम अजवायन और 10 ग्राम सेंधानमक लेकर पॉउड़र बनाकर रख लें। यह 3 ग्राम चूर्ण गुनगुने पानी के साथ प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करने से गुर्दे का तेज दर्द दूर होता है।
8. दालचीनी : दालचीनी का चूर्ण बनाकर 1 ग्राम पाउड़र पानी के साथ खाने से गुर्दे का दर्द दूर होता है।
9. खरबूजे : खरबूजे के बीजों को छीलकर पीसकर पानी में मिलाकर हल्का सा गर्म करके पीने से गुर्दो का दर्द खत्म होता है।
10. अजवायन : अजवायन का चूर्ण 3 ग्राम मात्रा में पानी के साथ खाने से पथरी गलकर बाहर निकल जाती है।
11. चौलाई : प्रतिदिन चौलाई का साग बनाकर खाने से पथरी गलकर निकल जाती है।
12. करेला : करेले के 20 मिलीलीटर रस में शहद मिलाकर प्रतिदिन पीने से पथरी खत्म होकर पेशाब के रास्ते निकल जाती है। करेले की सब्जी बनाकर रोज खाने से पथरी खत्म होती है।
13. खीरा : खीरे का रस 150 मिलीलीटर प्रतिदिन 2-3 बार पीने से गुर्दे की पथरी खत्म होती है।
14. जामुन : प्रतिदिन जामुन खाने से गुर्दे की पथरी धीरे-धीरे खत्म होती है।
15. सहजन : सहजन की सब्जी रोजाना खाने से गुर्दे की पथरी धीरे-धीरे पेशाब के रास्ते निकल जाती है और दर्द ठीक होता है।
16. जवाखार :
गाय के दूध के लगभग 250 मिलीलीटर मट्ठे में 5 ग्राम जवाखार मिलाकर सुबह-शाम पीने से गुर्दे की पथरी खत्म होती है।
जवाखार और चीनी 2-2 ग्राम की मात्रा में लेकर पीसकर पानी के साथ खाने से पथरी टूट-टूटकर पेशाब के साथ निकल जाती है। इस मिश्रण को रोज सुबह-शाम खाने से आराम मिलता है।
17. पालक :
100 मिलीलीटर नारियल का पानी लेकर, उसमें 10 मिलीलीटर पालक का रस मिलाकर पीने से 14 दिनों में पथरी खत्म हो जाती है।
पालक के साग का रस 20 से 40 मिलीलीटर की मात्रा में प्रतिदिन सुबह-शाम खाने से पथरी में लाभ मिलता है
18. अजमोद : अजमोद के फल का चूर्ण 1 से 4 ग्राम सुबह-शाम सेवन करने से पथरी रोग में लाभ होता है। ध्यान रहे कि मिर्गी के रोगी और गर्भिणी को यह औषधि न दें।
19. पाठा : पाठा के जड़ के बारीक चूर्ण को गर्म पानी से छानकर रख लें। इस छाने हुए पानी को सुबह-शाम पीने से पूरा लाभ मिलता है।
20. चिरचिरी : चिरचिरी की जड़ 5 से 10 ग्राम या काढ़ा 1 से 50 मिलीलीटर सुबह-शाम मुलेठी, गोखरू और पाठा के साथ खाने से गुर्दे की पथरी खत्म होती है। इसकी क्षार अगर भेड़ के मूत्र के साथ खाए तो पथरी रोग में ज्यादा लाभ मिलता है।
21. गोक्षुर : गोक्षुर के बीजों का चूर्ण 3 से 6 ग्राम बकरी के दूध के साथ प्रतिदिन 2 बार खाने से पथरी खत्म होती है।
22. लकजन : लकजन की जड़ का काढ़ा 20 से 40 मिलीलीटर सुबह-शाम खाने से पेशाब की पथरी में लाभ मिलता है।
23. बड़ी इलायची : लगभग आधा ग्राम बड़ी इलायची को खरबूजे के बीज के साथ पीसकर पानी में घोटकर सुबह-शाम पीने से पथरी गलकर निकल जाती है।
24. नारियल : नारियल की जड़ का काढ़ा 40 मिलीलीटर दिन में तीन बार पीने से पथरी व दर्द ठीक होता है।
25. बिजौरा नींबू : बिजौरा नींबू की जड़ 10 ग्राम को पीसकर प्रतिदिन सुबह-शाम पिलाने से पेशाब की पथरी खत्म होती है।
26. गुलदाउदी : 10 ग्राम सफेद गुलदाउदी को पीसकर मिश्री मिलाकर पीने से गुर्दे की पथरी का दर्द दूर होता है।
27. सुहागा : भुना सुहागा, नौसादर और कलमीशोरा 1-1 ग्राम पीसकर दर्द के समय आधा ग्राम की मात्रा में नींबू के 2-3 चम्मच रस के साथ रोगी को देने से दर्द ठीक होता है
28. फिटकरी : भुनी हुई फिटकरी 1-1 ग्राम दिन में 3 बार रोगी को पानी के साथ सेवन कराने से रोग ठीक होता है।
29. अदरक : अदरक का रस 10 मिलीलीटर और भुनी हींग 120 ग्राम पीसकर नमक मिलाकर पीने से लाभ मिलता है।
30. अजमोद : 25 ग्राम अजमोद को 500 मिलीलीटर पानी में उबालें और आधा रह जाने पर ठंड़ा करके आधा या 2 कप 3-3 घंटे के अन्तर पर रोगी को पिलाएं। इससे दर्द तुरन्त समाप्त हो जाता है।
31. कमलीशोरा : कमलीशोरा, गंधक और आमलासार 10-10 ग्राम अलग-अलग पीसकर मिला लें और हल्की आग पर गर्म करने के 1-1 ग्राम का आधा कप मूली के रस के साथ सुबह-शाम लेने से गुर्दे की पथरी में लाभ मिलता है।
32. काला जीरा : काला जीरा 20 ग्राम, अजवायन 10 ग्राम और काला नमक 5 ग्राम को एक साथ पीसकर सिरके में मिलाकर 3-3 ग्राम सुबह-शाम लेने से आराम मिलता है।
33. आलू : एक या दोनों गुर्दो में पथरी होने पर केवल आलू खाते रहने पर बहुत लाभ होता है। पथरी के रोगी को केवल आलू खिलाकर और बार-बार अधिक मात्रा में पानी पिलाते रहने से गुर्दे की पथरियां और रेत आसानी से निकल जाती हैं। आलू में मैग्नीशियम पाया जाता है जो पथरी को निकालता है तथा पथरी बनने से रोकता है।
34. अनन्नास : अनन्नास खाने व रस पीने से पथरी रोग में बहुत लाभ होता है।
पथरी बन्ने के कारण व उससे छुटकारा पाने के असरकारक प्रयोग
शरीर में अम्लता बढने से लवण जमा होने लगते है और जम कर पथरी बन जाते है . शुरुवात में कई दिनों तक मूत्र में जलन आदि होती है , जिस पर ध्यान ना देने से स्थिति बिगड़जाती है .
धूप में व तेज गर्मी में काम करने से व घूमने से उष्ण प्रकृति के पदार्थों के अति सेवन से मूत्राशय परगर्मी का प्रभाव हो जाता है, जिससे पेशाब में जलन होती है।
कभी-कभी जोर लगाने पर पेशाब होती है, पेशाब में भारी जलन होती है, ज्यादा जोर लगाने पर थोड़ी-थोड़ी मात्रा में पेशाब होती है। इस व्याधि को आयुर्वेद में मूत्र कृच्छ कहा जाता है। इसका उपचारहै-
उपचार : कलमी शोरा, बड़ी इलायची के दाने, मलाईरहित ठंडा दूध वपानी। कलमी शोरा व बड़ी इलायची के दाने महीन पीसकर दोनों चूर्ण समान मात्रा में लाकर मिलाकर शीशी में भर लें।एक भाग दूध व एक भाग ठंडा पानी मिलाकर फेंट लें, इसकी मात्रा 300 एमएल होनी चाहिए। एक चम्मच चूर्ण फांककर यह फेंटा हुआ दूध पी लें। यह पहली खुराक हुई। दूसरी खुराक दोपहर में व तीसरी खुराक शाम को लें।दोदिन तक यह प्रयोग करने से पेशाब की जलन दूर होती है व मुँह के छाले व पित्त सुधरता है। शीतकाल में दूध में कुनकुना पानी मिलाएँ।
– महर्षि सुश्रुत के अनुसार सात दिन तक गौदुग्ध के साथ गोक्षुर पंचांग का
सेवन कराने में पथरीटूट-टूट कर शरीर से बाहर चली जाती है । मूत्र के साथ यदि रक्त स्राव भी हो तो गोक्षुर चूर्ण को दूध में उबाल कर मिश्री के साथ पिलाते हैं ।
– गोमूत्र के सेवन से भी पथरी टूट कर निकल जाती है .
– पुनर्नवा अर्क या पुनर्नवा टेबलेट का प्रयोग
– मूत्र रोग संबंधी सभी शिकायतों यथा प्रोस्टेट ग्रंथि बढ़ने से पेशाब का रुक-रुक कर आना, पेशाब का अपने आप निकलना (युरीनरी इनकाण्टीनेन्स), नपुंसकता, मूत्राशय की पुरानी सूजन आदि में गोखरू 10 ग्राम, जल 150 ग्राम, दूध 250ग्राम को पकाकर आधा रह जाने पर छानकर नित्य पिलाने से मूत्र मार्ग की सारीविकृतियाँ दूर होती हैं ।
– गिलास अनन्नास का रस, १ चम्मच मिश्री डालकर भोजन से पूर्वलेने से पिशाब खुलकरआता है और पिशाब सम्बन्धी अन्य समस्याए दूर होती है
– खूब पानी पिए .– कपालभाती प्राणायाम करें .– हरी सब्जियां , टमाटर , काली चाय,चॉकलेट , अंगूर , बीन्स , नमक , एंटासिड , विटामिन डी सप्लीमेंट कम ले .– रोजाना विटामिन बी-६ (कम से कम १० मि.ग्रा. ) और मैग्नेशियम ले .– यवक्षार ( जौ की भस्म ) का सेवन करें .– मूली और उसकी हरी पत्तियों के साथ सब्जी का सुबह सेवन करें .– ६ ग्राम पपीते को जड़ को पीसकर ५० ग्राम पानी मिलकर २१दिन तक प्रातः और सायं पीने से पथरी गल जाती है।– मेहंदी की छाल को उबाल कर पीने से पथरी घुल जाती है .– नारियल का पानी पीने से पथरी में फायदा होता है। पथरीहोने पर नारियल का पानी पीना चाहिए।– 15 दाने बडी इलायची के एक चम्मच, खरबूजे के बीज की गिरी और दोचम्मच मिश्री, एक कप पानी में मिलाकर सुबह-शाम दो बार पीने से पथरी निकल जाती है।– पका हुआ जामुन पथरीसे निजात दिलाने मेंबहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पथरी होने पर पका हुआ जामुन खाना चाहिए।– बथुआ की सब्जी खाए .– आंवला भी पथरी में बहुत फायदा करता है।आंवला का चूर्ण मूलीके साथ खाने से मूत्राशय की पथरी निकल जाती है।– जीरे और चीनी को समान मात्रा में पीसकर एक-एक चम्मच ठंडे पानी से रोज तीन बार लेने से लाभ होता है और पथरी निकल जाती है।– सहजन की सब्जी खानेसे गुर्दे की पथरी टूटकर बाहर निकल जाती है। आम के पत्ते छांव में सुखाकर बहुत बारीक पीस लें और आठ ग्राम रोज पानी के साथ लीजिए, फायदा होगा ।
– मिश्री, सौंफ, सूखा धनिया लेकर 50-50 ग्राम मात्रा में लेकर डेढ लीटर पानी में रात को भिगोकर रख दीजिए। अगली शाम को इनको पानी से छानकर पीस लीजिए और पानी में मिलाकर एक घोल बना लीजिए, इस घोल को पीजिए। पथरीनिकल जाएगी।– चाय, कॉफी व अन्य पेय पदार्थ जिसमें कैफीन पाया जाता है, उन पेय पदार्थों का सेवन बिलकुल मत कीजिए।– तुलसी के बीज का हिमजीरा दानेदार शक्कर व दूध के साथ लेने से मूत्र पिंड में फ़ंसी पथरी निकल जाती है।– जीरे को मिश्री की चासनी अथवा शहद के साथ लेने पर पथरी घुलकर पेशाब के साथ निकल जाती है।– बेल पत्थर को पर जरा सा पानी मिलाकर घिस लें, इसमें एक साबुत काली मिर्च डालकर सुबह काली मिर्च खाएं। दूसरे दिन काली मिर्च दो कर दें और तीसरे दिन तीन ऐसे सात काली मिर्च तक पहुंचे।आठवें दिन से काली मिर्च की संख्या घटानी शुरू कर दें और फिर एक तक आ जाएं। दो सप्ताह के इस प्रयोग से पथरी समाप्त हो जातीहै। याद रखें एक बेल पत्थर दो से तीन दिन तक चलेगा
पथरी के लिए..
अकरकरा ,संभालू के बीज, गोखरू चूर्ण, तुलसी के पत्ते, पाषाण भेद ,पिपली, मुलेठी, कास (कासला) का जड़, लौंग, सोंठ सब बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर रख ले।
1गिलास पानी मे 12 से 15 ग्राम चूर्ण डालकर काढ़ा बना ले ।काढ़ा बनाते समय 1 ,2 इलायची का चूर्ण भी मिलाये। सुबह दोपहर शाम दे।
गुलहड़ (उड़हुल) के फूल का पाउडर 1 चम्मच सुबह शाम सादे पानी से ले इसके लेने पर पेट मे दर्द होगा वो दर्द पथरी के टूटने के कारण होता है पानी का सेवन अत्यधिक मात्रा में करें
कुल्थी के दाल का पानी पिये व इसकी दाल बनाकर खाये
छुई-मुई की 10 मिलीलीटर जड़ का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पीने से पथरी गलकर निकल जाती है।लाजवन्ती (छुई-मुई) के पंचांग का काढ़ा बनाकर प्रतिदिन सुबह-शाम पीयें। इसके काढ़े से पथरी घुलकर निकल जाती है।
पाषाण भेद का काढ़ा पिये दिन में 3 बार 15 से 30 दिन।
या
होमेओपेथी की berveriss velgeriss Q की 10 10 बूंद चौथाई कप पानी मे दिन में 3 बार पिये 30 से 45 दिन
पथरी निकल जाने के बाद भविष्य में पथरी न हो इसके लिए होमेओपेथी की Chinia 1000 की 2 2 बूंद स
इस ईलाज से दो-तीन महीने में पित्त की पथरी गल जाती है
अमर शहीद राष्ट्रगुरु, आयुर्वेदज्ञाता, होमियोपैथी ज्ञाता स्वर्गीय भाई राजीव दीक्षित जी के सपनो (स्वस्थ व समृद्ध भारत) को पूरा करने हेतु अपना समय दान दें
मेरी दिल की तम्मना है हर इंसान का स्वस्थ स्वास्थ्य के हेतु समृद्धि का नाश न हो इसलिये इन ज्ञान को अपनाकर अपना व औरो का स्वस्थ व समृद्धि बचाये। ज्यादा से ज्यादा शेयर करें और जो भाई बहन इन सामाजिक मीडिया से दूर हैं उन्हें आप व्यक्तिगत रूप से ज्ञान दें।
*विधि :—* सर्वप्रथम रबड़ की थैली में गर्म पानी भर लें। ठण्डे पानी केभगौने में छोटा तौलिया डाल लें। गर्म सेंक बोतल से एवं ठण्डी सेंक तौलिया को ठण्डे पानी में भिगोकर , निचोड़कर निम्न क्रम से गले केऊपर गर्म-ठण्डी सेंक करें -
3 मिनट गर्म ——————– 1 मिनट ठण्डी
3 मिनट गर्म ——————– 1 मिनट ठण्डी
3 मिनट गर्म ——————– 1 मिनट ठण्डी
3 मिनट गर्म ——————– 1 मिनट ठण्डी
इस प्रकार कुल 18 मिनट तक यह उपचार करें।
इसे दिन में दो बार – प्रातः– सांय कर सकते हैं।
*पित्त की पथरी क्या है :*
*किसी कारणवश पित्त (Bile) में बाधा पड़ने पर यह रोग उत्पन्न हो जाता है। जो लोग शारीरिक परिश्रम न कर मानसिक परिश्रम अधिक करते हैं अथवा बैठे-बैठे दिन व्यतीत करते है तथा नाइट्रोजन और चर्बी वाले खाद्य पदार्थ अधिक मात्रा में खाते हैं, उन मनुष्यों को ही इस रोग से आक्रान्त होने की अधिक सम्भावना रहती है। सौ में से दस रोगियों को 40 से 50 वर्ष की आयु के बाद और अधिकतर स्त्रियों को यह रोग हुआ करता है। आइये जाने क्यों होती है पित्त पथरी |*
*पित्त पथरी के कारण :1) आधुनिक वैज्ञानिकों का मत है कि कुछ रोगों के कीटाणु (जैसे-टायफायड के कीटाणु) पित्ताशय में सूजन उत्तपन्न कर देते हैं जिस कारण पथरी बन जाती है।*
*2) बी-कोलाई (B-Coli) नामक कीटाणु इस रोग का मुख्य कारण माना जाता है। पथरी पित्ताशय में साधारण रेत के कणों (1 से 100 तक) से लेकर दो इन्च लम्बी और एक इन्च तक चौड़ी होती है।*
*पित्त पथरी के लक्षण :*
*1) पथरी जब तक पित्ताशय में रुकी रहती है तब तक रोगी को किसी भी तरह की कोई तकलीफ महसूस नहीं होती है। कभी-कभी पेट में दर्द मालूम होता है। किन्तु जब यह पथरी पित्ताशय से निकलकर पित्त-वाहिनी नली में पहुँचती है, तब पेट में एक तरह का असहनीय दर्द पैदा होकर रोगी को व्याकुल कर देता है। इस भयानक दर्द को पित्तशूल कहते है।*
*2) यह शूल दाहिनी कोख से शुरू होकर चारों ओर (दाहिने कन्धे और पीठ तक) फैल जाता है।*
*3) दर्द के साथ अक्सर कै (वमन) ठण्डा पसीना, नाड़ी कमजोर, हिंमांग (Callapse) कामला, साँस में कष्ट, मूच्छ आदि के लक्षण दिखलायी देते हैं। यह दर्द कई धन्टों से लेकर कई सप्ताह तक रह सकता है और जब पथरी आँत के अन्दर आ जाती हैं तब रोगी की तकलीफ दूर हो जाती है। और रोगी सो जाता है। जब तक पथरी स्थिर भाव में रहती है तब तक तकलीफ घट जाती है और जब पथरी हिलती-डुलती है उसी समय तकलीफ पुनः बढ़ जाया करती है। इस प्रकार पथरी के हिलने-डुलने से तकलीफ बढ़ती-घटती रहती है। यह क्रम कई घन्टों से लेकर कई सप्ताह तक चल सकता है।*
*4) पित्ताशय शूल के लक्षण स्पष्ट होने पर पित्त पथरी का ज्ञान हो जाता है। यदि वैद्य(चिकित्सक) को निदान में सन्देह हो तो तुरन्त X-Ray करा लेना चाहिए।*
*पित्त पथरी का घरेलू इलाज :*
*1) प्याज को कतरकर जल से धोकर उसका 20 ग्राम रस निकाल कर उसमें 50 ग्राम मिश्री मिलाकर पिलाने से पथरी टूट कर पेशाब के द्वारा बाहर निकल जाती है।*
*2) नीबू का रस 6 ग्राम, कलमी शोरा 4 रत्ती, पिसे तिल 1 ग्राम (यह खुराक की मात्रा है) शीतल जल के साथ दिन में 1 या 2 बार 21 दिन तक सेवन कराने से पथरी गल जाती है।*
*3) मूली में गड्ढा खोद उसमें शलगम के बीज डालकर गूंथा हुआ आटा ऊपर से लपेट कर आग में सेकें। जब भरता हो जाये या पक जाये तब आग से निकालकर आटे को अलग कर खावें । पथरी टुकड़े-टुकड़े होकर निकल जाती है*
*4) पपीते की जड़ ताजी 6 ग्राम को जल 60 ग्राम में पीस छानकर 21 दिन तक पिलाने से पथरी गलकर निकल जाती है*
*5) केले के खम्भे के रस या नारियल के 3-4 औंस जल में शोरा 1-1 ग्राम मिलाकर दिन में दो बार देते रहने से पथरी कण निकल जाते हैं और पेशाब साफ आ जाता है।*
*6) अशोक बीज 6 ग्राम को पानी के साथ सिल पर महीन पीसकर थोड़े, से जल में घोलकर पीने से कुछ दिन में ही पथरी निर्मूल हो जाती है।*
*7) मूली का रस 25 ग्राम व यवक्षार 1 ग्राम दोनों को मिलाकर रोगी को पिलायें। पथरी गलकर निकल जायेगी।*
*8) टिंडे का रस 50 ग्राम, जवाखार 16 ग्रेन (1 ग्रेन=1 चावल भर) दोनों को मिलाकर पीने से पथरी रेत बनकर मूत्र मार्ग से बाहर निकल जाती है।*
*9) केले के तने का जल 30 ग्राम, कलमी शोरा 25 ग्राम दूध 250 ग्राम तीनों को मिलाकर दिन में दो बार पिलायें। दो सप्ताह सेवन करायें। पथरी गलकर निकल जाती है।*
*10) लाल रंग का कूष्मान्ड (कुम्हड़ा या कददू) खूब पका हुआ लेकर 250 ग्राम रस निकालें इसमें 3 ग्राम सेन्धा नमक मिलाकर पिला दें। प्रयोग दो सप्ताह । नियमित दिन में 2 बार करायें। पथरी गलकर मूत्र मार्ग से निकल जाती है।*
*पित्त पथरी का आयुर्वेदिक इलाज :*
*1) रस : त्रिविक्रम रस 250 मि.ग्रा. दिन में 2 बार मधु से सभी प्रकार की पथरी में दें । पाषाण वज्रक रस 500 मि.ग्रा. से 1 ग्राम तक दिन में 2-3 बार कुलुभी क्वाथ से दें। सभी प्रकार की पथरी में लाभप्रद है। अपूर्वमालिनी बसन्त 125 मि.ग्रा. तक दिन में 2-3 बार बिजौरा निम्बूरस से दें। क्रव्यादि रस 125-250 (मात्रा, अनुपान, लाभ, उपर्युक्त।*
*2) लौह : धात्री लौह व वरुणाद्य लौह 500 पि.ग्रा. दिन में 2 बार मधु से दें। समस्त अश्मरियों में लाभप्रद है।*
*3) भस्म : बदर पाषाण भस्म व वराटिका भस्म अनुपान नारिकेल जल से, पथरी भेदन हेतु वाटिका भस्म, पित्ताश्मरी में शूल शमनार्थ ।*
*4) गुग्गुल : गोक्षुरादि गुग्गुल 2 गोली दिन में 2-3 बार दुग्ध से दें वात श्लेष्म विकृति पर दें।*
*5) वटी : सर्वतो भद्रवटी 1 गोली दिन में 2 बार वह्वणादि क्वाथ से दें। लाभ व कार्य उपर्युक्त।*
*चन्द्रप्रभा वटी 1 गोली दिन में 2 बार मूलक स्वरस दें। (लाभ उपर्युक्त) वात श्लेष्म वकृति पर।शिवा वटी मात्रा 2 गोली दिन में 2-3 बार शर्बत बिजूरी से लाभ उपरोक्त ।*
*6) क्षार पर्पटी : श्वेत पर्पटी 500 मि.ग्रा. नारिकेल जल से दिन में 3 बार, यवक्षार 500 मि.ग्रा. से 1 ग्राम तक अविमूत्र से तथा तिलादि क्षार मात्रा उपर्युक्त जल से दें। पथरी भेदक, मूत्र कृच्छ हर है।*
*7) चूर्ण : गोक्षुर चूर्ण, 3 ग्राम दिन में 2-3 बार अविदुग्ध से तथा पाषाण भेदादि चूर्ण उपयुक्त मात्रा में गौमूत्र से पथरी भेदक तथा मूत्र कृच्छहर उत्तम चूर्ण है।*
*8) आसव : चन्दासव पित्तानुबन्ध होने पर, पुनर्नवासव वातानुबन्ध होने पर, 15 से 25 मि.ली. समान जल मिलाकर भोजनोत्तर।*
*9) घृत : वरुणादि घृत, पाषाण भेदादि घृत, कुशादि घृत, कुलत्यादि घृत 5 से 10 ग्राम दिन में 2 बार गौ दुग्ध से सब प्रकार की अश्मरियों में कुछ समय लेने पर लाभदायक है।*
*10) अवलेह पाक : कुशावलेह पाषाण भेदक पाक 5 से 10 ग्राम दिन में 2 बार गोदुग्ध से लाभ उपर्युक्त ।*
*11) क्वाथ : वीरतर्वादि क्वाथ कफज में, पाषाण भेदादि क्वाथ वातज में, एलादि क्वाथ पित्तज में 20 मि.ली. दिन में दो बार ।*
*त्रिकंटकादि क्वाथ 40 मि.ली. दिन में 2 बार 250 से 500 मि.ग्रा. शिलाजी मिलाकर-सभी प्रकार की अश्मरियों में लाभप्रद है।*
*पित्त पथरी का प्राकृतिक इलाज :*
*1)दर्द की अवस्था में रोगी को गरम पानी में रखना चाहिए । पानी रोगी को सहने योग्य गरम होना चाहिए। कमरे में वायु के प्रवेश का अच्छा प्रबन्ध होना चाहिए। रोगी के सिर पर ठण्डे पानी से भीगी तौलिया रखना नहीं भूलना चाहिए। रोगी को गरम पानी में आवश्यकतानुसार आधे घण्टे तक रखा जा सकता है जिसे हृदय, यकृत अथवा धमनी का भी रोग हो या जो वृद्ध या कमजोर हो, उसके लिए यह उपचार ठीक न होगा। ऐसे रोगी के लिए गर्म सेंक उपयुक्त सिद्ध होगा ।*
*2) कोई मोटा कपड़ा गरम पानी में निचोड़कर पित्ताशय के सामने वाले भाग अर्थात् नीचे की पसलियों और उदर के ऊपर वाले पूरे भाग पर रखना चाहिए तथा उसकी गर्मी बनाए रखने के लिए ऊपर ऊनी कपड़ा लपेट देना चाहिए। इस पट्टी को थोड़ी-थोड़ी देर के अन्तर से बदलते रहना चाहिए। इस प्रकार ताप का प्रयोग करने से शरीर के तन्तु ढीले पड़ जाते हैं । कष्ट कम हो जाता है। तथा पथरी निकलने में भी सहायता मिलती है।*
*3) रोगी को जिस अवस्था में आराम मिले, उसी अवस्था में लिटाकर पूर्ण विश्राम देना चाहिए। दर्द का दौरा होने के पूर्व लक्षण प्रकट होते ही गरम पानी का एनिमा देकर एक गरम जल का कटिस्नान दे देने से राहत मिलती है ।*
*4) स्थायी लाभ के लिए रोग की प्रबलता के अनुसार 2 से 4 दिनों का उपवास करना चाहिए । उपवास के दिनों में सिर्फ ठण्डा अथवा गरम जल नीबू के रस के साथ लेना चाहिए और सुबह-शाम गुनगुने पानी का एनिमा लेना चाहिए। एनिमा प्रातःसमय शौच के बाद शाम के समय सोने से कुछ पहले लेना चाहिए। इसके बाद 3 दिन तक केवल रसदार फलों का प्रयोग करना चाहिए । प्रातः समय और रात को सोने से पहले एक गिलास गरम जल में 1 नीबू का रस डालकर प्रतिदिन सेवन करना चाहिए।*
*तदुपरान्त तीन दिनों तक फलाहार के साथ धारोष्ण दूध, मठा अथवा दही का घोल लेना चाहिए। अन्त में कुछ दिनों तक निम्नांकित चिकित्सा-क्रम चलाना चाहिए, फिर दर्द के दौरे का भय नहीं रहेगा। ।*
*5) सुबह के समय उठकर एक गिलास गरम जल में एक कागजी नीबू का रस निचोड़कर पीना चाहिए । फिर दैनिकक्रिया, प्रातःकालीन भ्रमण से लौटकर विश्राम तदुपरान्त हिपबाथ उसके डेढ़ घण्टे के बाद रसदार फल का जलपान, 1 घण्टे के बाद 1 गिलास ठण्डे जल में 1 कागजी नीबू का रस निचोड़कर पीना, दिन के भोजन में-भाजी, सलाद, मठा और उबली हुई तरकारी । सन्ध्या के समय यकृत और पेडू पर गीली पट्टी आधा घण्टा तक फिर टहलना और सायंकालीन भोजन में-ताजे फल, किशमिश, मूंग की अँकुरी और दूध, तथा सूर्यास्त से पहले रात को कमर की गीली पट्टी की लपेट दें । जब तक पेट खूब अच्छी तरह ठीक न हो जाए तब तक दिन और रात के भोजन में अन्न के स्थान पर रामदाना, मखाना या थोड़ा-सा चोकर जोड़ा जा सकता है। उसके बाद दिन में थोड़ा-सा चावल अथवा 1-2 चोकरयुक्त आटे की रोटी मिला सकते हैं। बीच-बीच में एक दिन का उपवास करके 2 दिनों का फलाहार करना चाहिए तथा प्रतिमाह 2 बार पूरे शरीर का भापस्नान भी लेना चाहिए।*
*पित्त की पथरी के लिए अन्य असरकारी घरेलू उपचार*
*परिचय :पित्ताशय में कोई पदार्थ जब जमकर पथरी का रूप धारण कर लेती है तो उसे ही पित्त की पथरी कहते हैं। ये पथरी जब एक पित्ताशय में होती है। तब तक तो यह कोई दर्द नहीं करती मगर जब यह पित्त नली से निकलने लगती है तब यह बहुत दर्द करता है*
*कारण :जब ज्यादा वसा से भरा पदार्थ यानी घी, मक्खन, तेल वगैरह से बने पदार्थ का सेवन करते हैं तो शरीर में कोलेस्ट्रोल, कैल्शियम कार्बोनेट और कैल्शियम फांस्फेट के अधिक बनने से पित्ताशय में पथरी का निर्माण होता है। रक्त विकृति के कारण छोटे बच्चों के शरीर में भी पथरी बन सकती है। पित्ताशय में पथरी की बीमारी से स्त्रियों को ज्यादा कष्ट होता है। 30 वर्ष से ज्यादा की स्त्रियां गर्भधारण के बाद पित्ताशय की पथरी से अधिक ग्रस्त होती हैं। कुछ स्त्रियों में पित्ताशय की पथरी का रोग वंशानुगत भी होता है। खून में कोलेस्ट्रोल की मात्रा ज्यादा होने पर कैल्शियम के मिलने से पथरी बनने लगती है।*
*लक्षण :पेट के ऊपरी भाग में दायीं ओर बहुत ही तेज दर्द होता है और बाद में पूरे पेट में फैल जाता है। लीवर स्थान बड़ा और कड़ा और दर्द से भरा होता है। नाड़ी की गति धीमी हो जाती है। शरीर ठंड़ा हो जाता है, मिचली और उल्टी के रोग, कमजोरी (दुर्बलता), भूख की कमी और पीलिया रोग के भी लक्षण होते हैं। इसका दर्द भोजन के 2 घण्टे बाद होता है इसमें रोगी बहुत छटपटाता है।*
*भोजन तथा परहेज :*
*पित्त पथरी में क्या खाये :*
*खट्टे रसदार फल, ताजे शाक, मक्खन, मठा, जैतून का तेल, सोते समय तरबूजा, खीरा आदि इस रोग में लाभ करते हैं।*
*पित्त पथरी में क्या नहीं खाना चाहिए :*
*श्वेतसार (स्टार्च) )और चर्बी वाले खाद्य पदार्थ जैसे-घी, दूध, केला आदि गूदेदार फल, सूखे मेवे, आलू आदि जमीन के नीचे पैदा होने वाली तरकारियाँ (मूली, गाजर, शलजम को छोड़कर) चीनी, मैदे की चीजें तली चीजें तथा नशीली चीजें इस रोग में हानिकारक है।*
*गाय का दूध, जौ, गेहूं, मूली, करेला, अंजीर्ण, तोरई, मुनक्का, परवल, पके पपीता का रस, कम खाना, फल ज्यादा खाना और कुछ दिनों तक रस आदि का प्रयोग करें।*
*चीनी और मिठाइयां, वसा और कार्बोहाइड्रेट वाली चीजें- इस रोग में कदापि सेवन न करें। तेल, मांस, अण्डा, लाल मिर्च, हींग, उड़द, मछली और चटपटे मसालेदार चीजें, गुड़, चाय, श्वेतसार और चर्बीयुक्त चीजें, खटाई, धूम्रपान, ज्यादा मेहनत और क्रोध आदि से परहेज करें।*
*विभिन्न औषधियों से उपचार-*
*जैतून का तेल :- पित्त पथरी होने पर 2 से 3 दिनों तक जैतून का तेल सेवन करना चाहिए। जैतून का तेल सेवन करने के तुरंत बाद रोगी को नींबू का रस पिलाना चाहिए। इसके बाद 3-4 मिनट बाद फिर थोड़ा सा तेल पिलाकर उसके ऊपर नींबू का रस पिलाएं। इस तरह जैतून का तेल पिलाने के बाद नींबू का रस पिलाने से उल्टी नहीं आती। इस तरह जैतून का तेल पीने से 2 से 3 दिनों में पित की पथरी समाप्त हो जाती है।(एक से दो चम्मच तेल व 5 से 7 बून्द निम्बू रस)*
*1. अजमोदा : पित्त की पथरी ( pitt ki pathri ) में अजमोदा फल का चूर्ण 1 ग्राम से 4 ग्राम सुबह-शाम देने से फायदा होता है। मगर यह मिर्गी और गर्भवती महिला को नहीं देना चाहिए*
*2. पथरचूर :<> पथरचूर का रस चौथाई से 5 मिलीलीटर सुबह-शाम खाने से धीरे-धीरे पथरी खत्म हो जाती है* *होमेओपेथी में इसकी बेरवेरिस भलगेरिस के नाम से दवा मिलती है* *(पथरी के साथ साथ किडनी रोग व मूत्र रोग हेतु उत्तम)*
*<> पाथरचूर का रस 5 से 6 बूंद शर्करा के साथ खाने से पथरी में लाभ होता ह*
*<> पथरचूर का रस 5 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह-शाम खाने से धीरे-धीरे पथरी खत्म हो जाती है।*
*3. मजीठा : मजीठा को कपड़े से छानकर 1 ग्राम को रोज 3 बार खाने से सभी तरह की पथरियां गलकर मूत्र के द्वारा बाहर निकल जाती हैं। इससे फायदा न होने पर ऑपरेशन क्रिया की राय ले सकते हैं।*
*4. छोटा गोखरू : छोटा गोखरू का चूर्ण 3 ग्राम से 6 ग्राम सुबह-शाम शहद के साथ खाने से और ऊपर से बकरी का दूध सिर्फ 7 दिनों तक पीने से ही पथरी दूर हो जाती है।*
*5. गोखरू :<> गोखरू के काढ़े में, कलमीसोरा लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से 1.20 ग्राम सुबह-शाम पिलाने से पथरी रोग में लाभ होता है।*
*<> गोखरू के बीजों के चूर्ण को शहद के साथ भेड़ के दूध में मिलाकर पिलाने से पथरी खत्म होकर निकल जाती है।*
*6. बड़ी इलायची : बड़ी इलायची लगभग आधा ग्राम को खरबूजे के बीज के साथ पीसकर खाने से पथरी रोग में फायदा होता है।*
*7. भटकटैया : भटकटैया, रेंगनीकांट की जड़ बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण करके 2 ग्राम सुबह-शाम मीठे दही के साथ मात्र 7 दिनों तक पीने से पथरी रोग में फायदा होता है।*
*8. धतूरे : धतूरे के बीज 0.06 से 0.12 ग्राम दही के साथ खाने से दर्द कम हो जाता है और उल्टी भी नहीं होती है। इसके प्रयोग से पहले धतूरे के बीज को 12 घंटे तक गाय के मूत्र में या दूध में उबालकर शोंधन कर लें। इससे पथरी में लाभ होगा।*
*9. सहजना : सहजना की जड़ की छाल का काढ़ा और हींग को सेंधानमक में मिलाकर सुबह-शाम खाने से पित्तपथरी ( pitt ki pathri )में फायदा होता है।*
*10. अपामार्ग चिड़चिड़ी : पित्त की पथरी में अपामार्ग की जड़ 5 से 10 ग्राम कालीमिर्च के साथ या जड़ का काढ़ा कालीमिर्च के साथ 15 से 50 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह-शाम लेने से पथरी में लाभ होता है। काढ़ा अगर गरम-गरम ही लें तो लाभ होगा।* *इससे नियमित दातुन करते हुए रर्स को पीना भी उत्तम है*
*11. नारियल : नारियल के जड़ का काढ़ा 40 मिलीलीटर सुबह-शाम सेवन करने से पित्त की पथरी या किसी भी तरह की पथरी में लाभ होता है*
*12. पालक : पालक के साग का रस 10 से 20 मिलीलीटर तक खाने से पित्त की पथरी या किसी भी तरह की पथरी खत्म हो जाती है।*
*13. मूली : पित्त की पथरी के रोगी को सुबह-शाम मूली के पत्तों का रस 20 से 40 मिलीलीटर सेवन करने से लाभ होता है*
*14. गाजर : गाजर का रस पीने से पथरी टूटकर निकल जाती है।*
*15. नींबू : गर्म पानी में नींबू निचोड़कर पीने से पथरी में आराम मिलता है।*
*16. सेब का सिरका : सेब का सिरका यानि ACV यानि apple cider vinegar में अम्लीय गुण पाए जाते हैं जो की लीवर को कोलेस्ट्रॉल बनाने से रोकते हैं| साथ ही यह सिरका पथरी को घोलने में मदद करता है और पथरी के दर्द से भी राहत दिलवाता है|*
*पथरी को घोलने के लिए और दर्द से छुटकारा पाने का एक आसान नुस्खा ये है के एक गिलास गुनगुने पानी में एक चम्मच निम्बू का रस और 2 चम्मच सेब का सिरका मिलाकर रोजाना सुबह खली पेट पीयें|*
*17. सोंठ :<> 6 ग्राम पिसी हुई सोंठ में 1 ग्राम नमक को मिलाकर गर्म पानी से फंकी लेने से पथरी में लाभ होगा*
*<> सोंठ, वरूण की छाल, रेड़ के पत्ते और गोखरू का काढ़ा बनाकर सुबह खाने से पथरी जल्दी खत्म हो जाती है।*
*18. वरूण :<> वरूण के पेड़ की छाल का काढ़ा पिलाने से पित्ताशय की पथरी ( pitt ki pathri ) खत्म होकर निकल जाती है।*
*<> वरूण की छाल, सोंठ और गोखरू का काढ़ा बनाकर पीने से पथरी खत्म होती है।*
*19. इन्द्रायण : इन्द्रायण की जड़ और कुलथी का काढ़ा बनाकर पीने से पथरी के रोग में बहुत लाभ होता है।* *(मधुमेह रोगियों के लिए भी मधुमेह नाशक)*
*20. सोडा वाटर : एक कप सोडा वाटर के पानी में 2 चम्मच ग्लिसरीन डालकर रोज दोपहर और शाम को कुछ दिनों तक खाने से पथरी में लाभ होगा।*
*21. इमली : लगभग आधा से एक ग्राम इमली रस सुबह-शाम यवक्षार से घुले ताजे पानी के साथ लेने से पथरी खत्म हो जाती है। यह अजीर्ण और पेशाब की परेशानी को भी दूर करता है।*
*22. कदली (केला) : कदली क्षार और तिल क्षार प्रत्येक को 0.24 ग्राम से 1.08 ग्राम शहद में मिलाकर रोज 3 से 4 बार खाने से सब तरह की पथरी खत्म होती है।*
*23. केला :<> केले के पेड़ के तने के रस में थोड़ी-सी मिश्री को मिलाकर पीने से कुछ दिनों में ही पथरी खत्म होकर निकल जाती है।*
*<> केले के तने का रस 30 मिलीलीटर, कलमी शोरा 25 मिलीलीटर दूध में मिलाकर पिलाने से पथरी खत्म हो जाती है*
*24. कड़वी तुंबी : कड़वी तुंबी का रस और यवक्षार मिलाकर मिश्री डालकर पीने से पथरी खत्म होती है।*
*25. अंगूर का रस : रोज 200 मिलीलीटर अंगूर का रस पीने या अंगूर खाने से पित्ताशय की पथरी ( pitt ki pathri )में बहुत ही फायदा होता है।*
*26. सीताफल : सीताफल के 25 ग्राम रस में सेंधानमक मिलाकर रोज पिलाने से पथरी खत्म होकर निकल जाती है।*
*27. अरहर : अरहर के पत्ते 6 ग्राम और संगेयहूद 0.48 ग्राम को बारीक पीसकर पानी में मिलाकर पीने से पथरी में बहुत ही फायदा होता है।*
*28. प्याज : प्याज, लहसुन, सरसों, महुआ और सहजन की छाल को पानी के साथ पीसकर, पित्ताशय के ऊपर लेप करने से सूजन और दर्द दूर होता है और इससे पथरी में लाभ होगा।*
*हर प्रकार पथरी के लिए..*
*अकरकरा ,संभालू के बीज, गोखरू चूर्ण, तुलसी के पत्ते, पाषाण भेद ,पिपली, मुलेठी, कास (कासला) का जड़, लौंग, सोंठ सब बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर रख ले।*
*1गिलास पानी मे 12 से 15 ग्राम चूर्ण डालकर काढ़ा बना ले ।काढ़ा बनाते समय 1 ,2 इलायची का चूर्ण भी मिलाये। सुबह दोपहर शाम दे।*
*गुलहड़ (उड़हुल) के फूल कापाउडर 1 चम्मच सुबह शाम सादे पानी से लें इसके लेने पर पेट मे दर्द होगा वो दर्द पथरी के टूटने के कारण होता है पानी का सेवन अत्यधिक मात्रा में करें*
*कुल्थी के दाल का पानी पिये व इसकी दाल बनाकर खाये*
*छुई-मुई की 10 मिलीलीटर जड़ का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पीने से पथरी गलकर निकल जाती है।लाजवन्ती (छुई-मुई) के पंचांग का काढ़ा बनाकर प्रतिदिन सुबह-शाम पीयें। इसके काढ़े से पथरी घुलकर निकल जाती है।*
*DR VED PRSKASH JI 8709871868 के ज्ञानानुसार*
*पित्त की थैली की पथरी (Gall Bladder Stone) होम्योपैथिक मेडिसिन*
(1) Chelidonium Q
(2) Berberis Vulgaris Q
(3) Fabriana ImbricataQ
(4) Luffa BindalQ
इन चारों दवाओं को 10-10 ml लेकर आपस में मिक्स करके कांच की शीशी में रख लें और 20-20 बूँद दवा दिन में तीन बार आधा कप पानी में घोलकर ले
(5) Calculi bilari 30 इसकी चार चार बूंदे दिन में तीन बार पानी में मिक्स करके लें
(6) Cholesterinum 30 इसकी चार चार बूंदे दिन में तीन बार पानी में
*मिक्स करके लें सब दवाएं अच्छी प्रतिष्ठित कंपनी की लें*
*दवाई के आधे घंटे आगे पीछे कुछ न खाए कच्चा प्याज लहसुन इलायची flavored milk आदि सुगन्धित खाद्य पदार्थों का सेवन न करे ये होम्योपैथिक दवा की कार्य प्रणाली में बाधा पहुचाते है*
*दवा मिक्स करके रखने के लिए बड़ी शीशी होमियोपैथी स्टोर पर ही मिलती है घरेलु शीशियों का प्रयोग न करें वह सुविधाजनक नहीं होती दवाई waste हो जाती है*
*इस ईलाज से दो-तीन महीने में पित्त की पथरी गल जाती है*
*अमर शहीद राष्ट्रगुरु, आयुर्वेदज्ञाता, होमियोपैथी ज्ञाता स्वर्गीय भाई राजीव दीक्षित जी के सपनो (स्वस्थ व समृद्ध भारत) को पूरा करने हेतु अपना समय दान दें*
*मेरी दिल की तम्मना है हर इंसान का स्वस्थ स्वास्थ्य के हेतु समृद्धि का नाश न हो इसलिये इन ज्ञान को अपनाकर अपना व औरो का स्वस्थ व समृद्धि बचाये। ज्यादा से ज्यादा शेयर करें और जो भाई बहन इन सामाजिक मीडिया से दूर हैं उन्हें आप व्यक्तिगत रूप से ज्ञान दें।*
मुनक्का
1) कब्ज के रोगियों को रात्रि में मुनक्का और सौंफ खाकर सोना चाहिए। कब्ज दूर करने की यह रामबाण औषधि है।
2) भूने हुए मुनक्के में लहसुन मिलाकर सेवन करने से पेट में रुकी हुई वायु (गैस) बाहर निकल जाती है और कमर के दर्द में लाभ होता है।
3) यदि किसी को कब्ज़ की समस्या है तो उसके लिए शाम के समय 10 मुनक्कों को साफ़ धोकर एक गिलास दूध में उबाल लें फिर रात को सोते समय इसके बीज निकल दें और मुनक्के खा लें तथा ऊपर से गर्म दूध पी लें , १इस प्रयोग को नियमित करने से लाभ स्वयं महसूस करें | इस प्रयोग से यदि किसी को दस्त होने लगें तो मुनक्के लेना बंद कर दें |
4) पुराने बुखार के बाद जब भूख लगनी बंद हो जाए तब 10 -12 मुनक्के भून कर सेंधा नमक व कालीमिर्च मिलाकर खाने से भूख बढ़ती है |
5) बच्चे यदि बिस्तर में पेशाब करते हों तो उन्हें 2 मुनक्के बीज निकालकर व उसमें एक-एक काली मिर्च डालकर रात को सोने से पहले खिला दें , यह प्रयोग लगातार दो हफ़्तों तक करें , लाभ होगा |
6) मुनक्के के सेवन से कमजोरी मिट जाती है और शरीर पुष्ट हो जाता है |
7) मुनक्के में लौह तत्व Iron की मात्रा अधिक होने के कारण यह Haemoglobin खून के लाल कण को बढ़ाता हैै |
8) 4-5 मुनक्के पानी में भिगोकर खाने से चक्कर आने बंद हो जाते हैं |
9) 10 -12 मुनक्के धोकर रात को पानी में भिगो दें | सुबह को इनके बीज निकालकर खूब चबा -चबाकर खाएं , तीन हफ़्तों तक यह प्रयोग करने से खून साफ़ होता है तथा नकसीर में भी लाभ होता है |
10) 5 मुनक्के लेकर उसके बीज निकल लें , अब इन्हें तवे पर भून लें तथा उसमें कालीमिर्च का चूर्ण मिला लें | इन्हें कुछ देर चूस कर चबा लें ,खांसी में लाभ होगा |
चने के फायदे
1) चने के सेवन से सुंदरता बढ़ती है साथ ही दिमाग भी तेज हो जाता है।
2) मोटापा घटाने के लिए रोजाना नाश्ते में चना लें।
3) अंकुरित चना 3 साल तक खाते रहने से कुष्ट रोग में लाभ होता है। गर्भवती को उल्टी हो तो भुने हुए चने का सत्तू पिलाएं।
4) चना पाचन शक्ति को संतुलित और दिमागी शक्ति को भी बढ़ाता है। चने से खून साफ होता है जिससे त्वचा निखरती है।
5) सर्दियों में चने के आटे का हलवा कुछ दिनों तक नियमित रूप से सेवन करना चाहिए। यह हलवा वात से होने वाले रोगों में व अस्थमा में फायदेमंद होता है।
6) रात को चने की दाल भिगों दें सुबह पीसकर चीनी व पानी मिलाकर पीएं। इससे मानसिक तनाव व उन्माद की स्थिति में राहत मिलती है। 50 ग्राम चने उबालकर मसल लें। यह जल गर्म-गर्म लगभग एक महीने तक सेवन करने से जलोदर रोग दूर हो जाता है।
7) चने के आटे की की नमक रहित रोटी 40 से 60 दिनों तक खाने से त्वचा संबंधित बीमारियां जैसे-दाद, खाज, खुजली आदि नहीं होती हैं। भुने हुए चने रात में सोते समय चबाकर गर्म दूध पीने से सांस नली के अनेक रोग व कफ दूर हो जाता हैं।
8) 25 ग्राम काले चने रात में भिगोकर सुबह खाली पेट सेवन करने से डायबिटीज दूर हो जाती है। यदि समान मात्रा में जौ चने की रोटी भी दोनों समय खाई जाए तो जल्दी फायदा होगा।
दूध सर्वोत्तम पोष्टिकयुक्त एक संपूर्ण आहार है।
माँ का दूध:-जीवन हेतु, शारीरिक विकास हेतु, वात पित शमन हेतु, नेत्र रोगों में सर्वोत्तम औषधी
इसके लिये एक वाक्य इस कहावत से समझे
"अगर अपनी माँ का दूध पिया है तो सामने आ"
देशी गाय का दूध:-इसके बारे में एक वाक्य
जिस प्रकार नवजात शिशु हेतु माँ का दूध
उसी प्रकार माँ के दूध के बाद गौमाता का दूध।
भैस का दूध:-शुक्र बढ़ाने हेतू, अनिद्रा का नाश , कफकारी,भूख को खत्म करने हेतु जिसकी जठराग्नि तीव्र हो उसके लिये सर्वोत्तम
बकरी का दूध:-रक्तपित्त, ज्वर,आतिसर, स्वास कास, शोष व क्षय रोग हेतु
भेड़ का दूध:- वात रोग व पथरी रोग हेतु हितकर
घोड़ी गदही का दूध:-बलकारक,दृढ़ताकारक,शोष नाशक,वात नाशक
हथनी का दूध:- नेत्र रोग, पुष्टिकारक, वृष्य , बलकारक,दृढ़ता उत्पन्न करने सर्वोत्तम
ऊंटनी का दूध:-वात रोग,कफ रोग,पेट फूलना/अफरा, उदर रोग,कृमि रोग,अर्श रोग,शोथ ,कुष्ट रोग , मधुमेह,थैलेसेमिया, टयूमर विरोधी कर्क व एड्स रोग हेतु सर्वोत्तम
सोयाबीन का दूध:- मस्तिष्क, स्नायु,स्मरण,मिर्गी,हिस्टीरिया, फेफड़ो के रोग,कील मुहासे,काले चकते,मधुमेह,रक्तहीनता, जिगर की खराबी,अम्लता बढ़ने से रोग,वात रोग व गुर्दे के रोग हेतु
सूरजमुखी का दूध:- विटामीन D प्रधान, हड्डियों व पौरुष शक्ति हेतु
खरबूजे का दूध:- हड्डियों, दिमाग को तरोताजा व ऊर्जा हेतु
सफेद तिल का दूध:- हड्डी,मस्तिष्क, दाँत, स्त्रियों में रजोरोध, त्वचा रोग व कामशक्ति हेतु
प्राकृतिक दूधो में सिर्फ तिल का दूध ही त्रिदोषनाशक है।
मूंगफली का दूध:- मस्तिष्क व शारिरिक दुर्बलता हेतु
बादाम का दूध:- मानसिक श्रमिको हेतु
काजू का दूध:- मधुमेह रोगियों हेतु
नारियल का दूध:- कब्ज,आंतरिक सूजन हेतु
मेवों का दूध :- वजन,बल,मर्दाना शक्ति हेतु
प्राकृतिक वस्तुओं का दूध बनाने की विधि:-
जिसका भी दूध बनाना चाहते हैं उसे 12 घंटे पानी मे भिगो दें उसके बाद उसका छिलका उतारकर लुगदी बना ले व इसके मात्रा के 8 या 6 गुना पानी मिलाकर छान लें दूध तैयार अब आप इस दूध की दही, पनीर भी बना सकते हैं।
आज की मॉडर्न युग मे शुद्ध दूध नही मिलता है तो आप निराश न होकर उपयुर्क्त पद्धति द्वारा शुद्ध दूध तैयार कर अपने परिवार को स्वस्थ व समृद्व बनायें।
आपका अनुज
गोविन्द शरण प्रसाद
9958148111
उपर्योक्त जानकारी डॉ अरविंद सेठ(एम. डी.)
लिखित पुस्तक काला दूध ( प्रथम संस्करण जनवरी 2016) से मिले ज्ञान के आधार
*बवासीर*
*बवासीर(पाइल्स) का कारण*
★ यह रोग अधिकतर उन युवकों को जो अक्सर बैठे रहते हैं। जिन्हें पुराना कब्ज हो, और जो अधिक मदिरापान करते हो जाता है | तथा बूढों को यह रोग प्रोस्टेट ग्रन्थि के बढ़ जाने के कारण और मूत्राशय में पथरी बन जाने से हो जाता है। (स्त्रियों को कम होता है)
★ इस रोग की उत्पत्ति कटु, अम्ल, लवण, विदाही, तीक्ष्ण एवं उष्ण पदार्थों के सेवन, मन्दाग्नि, बार-बार रेचक़ औषधियों के सेवन, शौचक्रिया के समय अधिक जोर लगाने तथा निरन्तर सवारी करना, विषम या कठिन आसन लगाने, लगातार बैठकर काम करने की प्रवृत्ति तथा व्यायाम का अभाव, शीतल स्थान पर अधिकतर बैठना, गुदा की शिराओं पर अधिक दबाव डालने के कारण (यथा-सगर्भता, उदर-श्रोणिगत अर्बुद, गर्भच्युति, विषम-प्रसूति आदि) वायु,. मल-मूत्र आदि के अधारणीय वेगों को रोकना अथवा बिना प्रवृत्ति के ही उन्हें त्यागने की कोशिश करना, यकृत की खराबी व अधिक मदिरापान से भी यह रोग हो जाता है।
*बवासीर के लक्षण :*
★ इस रोग में गुदाद्वार पर मस्से फूल जाते है। मलद्वार की नसें फूल जाने से वहाँ की त्वचा फूल कर सख्त हो जाती है और अंगूर की भाँति एक दूसरे से जुड़े हुए गुच्छे से उभर आते हैं। जिनमें रक्त भी बहता है, उसे खूनी बवासीर के नाम से जाना जाता है और जिसमें रक्त नहीं बहता, उसे बादी बबासीर के नाम से जाना जाता है।
*खूनी बवासीर के लक्षण*
★ रक्तार्श में जलन, टपकन, अकड़न और काटकर फेंकने जैसा दर्द होता है।
★ रोगी को बैठने में तकलीफ होती है। रोगी कब्ज के कारण दुःखी रहता है, उसको पतले दस्त नहीं आते तथा उसके मल में प्रायः रक्त आया करता है।
★ मल त्याग करते समय अत्यन्त पीड़ा होती है जो पाखाना करने के बाद भी कुछ देर तक होती रहती है।
★ गुदा के चारों तरफ लाली हो जाती है। गुदा में दर्द, जलन, खुजली होती रहती है। रोगी का चेहरा तथा पूरा शरीर नीला पड़ जाया करता है।
*बादी बवासीर के लक्षण :*
★ बादी बवासीर में गन्दी हवा (वायु) निकला करती है। है, रोगी के जोड़ों में टूटने जैसा दर्द होता है, उठते बैठते उसके जोड़ चटका करते है तथा रोगी को भू
ख कम लगती है इसके साथ ही उसकी जाँघों में भी पीडा बनी रहती है।
★ रोग प्रतिदिन कमजोर होता चला जाता है।
*बवासीर में क्या खाएं क्या ना खाएं :*
अर्श की चिकित्सा में कब्ज कतई न रहने दें। रोगी को ऐसा भोजन दिया जाना चाहिए जिसंसे मल साफ आये अन्यथा उसे एनीमा दें। मिश्री मक्खन के साथ छिलका उतरे हुए तिल या भीगा हुआ चना रोज सवेरे देने से कब्ज दूर होगी सवेरे उठने पर तथा रात्रि को सोते समय एक गिलास गर्म पानी देने से भी कब्ज दूर होता है। मन पसन्द हल्का-फुल्का व्यायाम, प्रातः सायं नित्य करने का रोगी को निर्देश दें। शोथ की अवस्था में पूर्ण विश्राम की सलाह दें
★ जिमीकन्द, पपीता, मक्खन, पिस्ता, बादाम, नाशपाती, सेब, पुराने चावल का भात, पका कोहडा, मट्ठा, दुध विशेषतः बकरी का, मिश्री व कच्ची मूली दें।
*अपथ्य (इनके सेवन से बचें)*
★ चाय, काफी, रूखी चीजें, भुनी और उत्तेजक चीजें, मादक वस्तुएँ, धूप या आग तापना, लहसुन, प्याज, मछली, माँस, उड़द की दाल, लाल मिर्च आदि खाना निषेध करा दें तथा टेढ़े होकर बैठना, घोडे और ऊँट की सवारी करना, मल-मूत्र के वेगों को रोकना, मैथुन करना, उपवास करना, कठोर श्रम |
आइये जाने बवासीर का अचूक इलाज ,बवासीर का आयुर्वेदिक इलाज हिंदी में |
*बवासीर का घरेलू उपाय / उपचार :*
(1) आँवला 15 ग्राम और 15 ग्राम मेंहदी के पत्तों को डेढ़पाँव पानी में रातभर भीगने दें | सुबह उसका पानी पीने से बवासीर मिट जाती है |
(2) गुड़ और हरड़ के चूर्ण की गोली बनाकर खाने से अर्श-रोग में लाभ होता है।
(3) गोरखमुण्डी की छाल का चूर्ण छाछ में मिलाकर पीने से अर्श ठीक हो जाता है।
(4) गोरखमुण्डी का चूर्ण गाय के दूध या दही के साथ खाने से बवासीर में लाभ होता है।
(5) इन्द्रायण की जड़ का चूर्ण 2 रत्ती(364 mg), कालीमिर्च चूर्ण पाव तोला के साथ खाने से बवासीर में लाभ होता है।
(6) रसौत का चूर्ण 2 ग्राम और कालीमिर्च एक नग दही या मट्ठे के साथ दिन । में तीन बार खाने से बवासीर मिट जाता है।
(7) जमीकन्द का भुर्ता बनाकर प्रतिदिन खाने से बवासीर ठीक हो जाता है।
(8) कालीमिर्च 2 ग्राम , जीरा 1 ग्राम और शक्कर साढ़े सात ग्राम मिलाकर एक चम्मच पानी के साथ लेने से बवासीर मिट जाता है।
(9) सुबह 3 बजे से 5 बजे के बीच उठकर श्रृंग-भस्म या लौह-भस्म मक्खन के साथ खाकर पुनः सो जाने से बवासीर में लाभ होता है।
(10) निम्बोली, बकायन, इन्द्र-जौ, गूगल, एलुआ और छोटी हरड.1-1 तोला और कपूर 6 ग्राम की गोंद के रस में गोलियाँ बनाकर खाने से अर्श मिट जाता है।
(11) जायफल और सौठ डेढ़-डेढ़ तोला तथा अनार का छिलका 5 तोला को पीसकर दही के साथ खाने से बवासीर में लाभ होता हैं।
(12) तीस ग्राम हुलहुल के पत्ते पीसकर टिकिया बनाकर बवासीर के मस्सों पर रखकर ऊपर से लँगोट पहन लें। तीन दिन इस प्रकार करने से मस्से ठीक हो जायेंगे।
(13) खट्टी करतूत और गूगल 1-1 ग्राम पीसकर गोलियाँ बनाकर सुबह-शाम खाने से बवासीर में लाभ होता है। यही दवा बवासीर पर लेप करनी चाहिए।
(14) ठण्डे पानी के साथ काले तिल (कच्चे) खाने से अर्श-रोग ठीक हो जाता है।
(15) आक, बेर, जिनजिनी और गूगल की जड़ का चूर्ण बनाकर 1 रत्ती(182 mg ) दवा केले के साथ खाने से बवासीर मिट जाता है।
(16) त्रिफला और मिश्री बराबर मात्रा में लेकर गुलाबजल में घोटकर सात ग्राम की मात्रा में खाने से अर्श-रोग में लाभ होता है।
(17) जिमीकन्द के टुकड़े छाया में सुखाकर चूर्ण बनाकर 10 ग्राम हर रोज सुबह 20 दिन लेने से बवासीर दूर हो जाता है।
(18) जिमीकन्द के ऊपर मिट्टी लगाकर कपड़ा लगा दें और उसे आग में डाल दें। जब मिट्टी लाल हो जाए, तब उसे मिट्टी से अलग करके नमक और तेल मिलाकर खाने से बवासीर में लाभ होता है।
(19) 2 ग्राम हरड़ का चूर्ण ईसबगोल की भूसी के साथ रात में खाने से बवासीर मस्सा मिट जाता है।
(20) 3 ग्राम अजवायन और 3 ग्राम रसौत खाने से अर्श-रोग में लाभ होता है।
(21) सात ग्राम गन्धक-बिरोजा को पानी के साथ लेने से बवासीर दूर होता है।
(22) लवण-भास्कर का चूर्ण भोजन के बाद खाने से दस्त लगकर बवासीर ठीक हो जाता है।
(23) दही का तोड़ पीने से बवासीर में आराम मिलता है।
(24) शक्कर या रसकपूर के साथ गोरखमुण्डी लगाने से बवासीर के मस्से ठीक हो जाते हैं।
(25) इन्द्रायण की जड़ 750 ग्राम में 100 ग्राम जीरा डालकर घोट लें। 5-5 टङ्क की टिकिया बनाकर बाँधने से बवासीर मिट जाती हैं।
(26) दस वर्ष पुराना घी लगाने से बबासीर के मस्से मिट जाते हैं।
(27) गरम-गरम कण्डों की राख लगाने से मस्से मिट जाते हैं।
(28) अखरोट के तेल में कपड़ा भिगोकर बाँधने से बवासीर के मस्सों में लाभ होता है।
(29) अनार के पत्ता पीसकर टिकिया बना लें। इसे घी में भूनकर गुदा पर बाँधने से मस्सों की जलन, दर्द और सूजन मिट जाती है।
(30) इन्द्रायण के बीज और गुड़ पीसकर लुगदी बनाकर गुदा पर बाँधने से मस्सों में लाभ होता है।
(31) काले साँप की केंचुली जलाकर सरसों के तेल में मिलाकर गुदा पर चुपड़ने से मस्सा कट जाता है।
(32) थूहर का दूध लगाने से मस्से और त्वचा के फोड़ों में लाभ होता है।
(33) सूरजमुखी के पत्तों का साग दही के साथ खाने से मस्से मिट जाते है।
(34) काले जीरे की पुल्टिस बाँधने से बाहर लटके हुए मस्से बैठ जाते है।
(35) खैर, मोम और अफीम मिलाकर पीसकर लगाने से मस्से सिमट जाते हैं।
(36) अजवायन और पुराना गुड़ कूटकर 4 ग्राम सुबह गरम पानी के साथ खाने से सूखे मस्सों और कमर के दर्द में लाभ होता है।
(37) अरणी से पत्ते पीसकर पुल्टिस बनाकर बाँधने से बवासीर की सूजन और पीड़ा मिट जाती है।
(38) अडूसे के पत्ते पीसकर नमक मिलाकर बाँधने से बवासीर और भगन्दर में लाभ होता है ।
(39) दस ग्राम भाँग के हरे पत्ते और 3 ग्राम अफीम घोटकर एक टिकिया बना लें और तबे पर गरम करके गुदा पर बाधेने से बवासीर मस्से मिट जाते हैं।
(40) दस ग्राम फिटकरी को बारीक पीसकर 20 ग्राम मक्खन में मिलाकर लगाने से मस्से सूखकर गिर जाते हैं।
(41) कुचला और अफीम को पानी में घिसकर मस्सों पर लगाने से मस्से सूख जाते हैं।
(42) बनगोभी के पत्तों को कूटकर उनका रस निकाल लें। इस रस को दिन में तीन-चार बार मस्सों पर लगायें। एक सप्ताह में मस्से ठीक हो जायेंगे।
(43) मूली का रस 125 ग्राम और जलेबी 100 ग्राम । जलेबी को मूली के रस में एक घण्टे तक भीगने दें। इसके बाद जलेबी खाकर रस पीलें । एक सप्ताह यह प्रयोग करने से बवासीर मिट जाती हैं।
(44) चार प्यालों में धारोष्ण गाय का दूध आधा भरें, इनमें आधा-आधा नीबू का रस निचोड़ कर पीते जायें। याह 5-6 दिन तक पीने से बवासीर मिट जाती है।
(45) पाँच ग्राम कचूर का चूर्ण सुबह पानी के साथ खाने से दो सप्ताह में बवासीर ठीक हो जाती है।
(46) नागकेसर और सफेद सुर्मा बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। आधा ग्राम दवा को 6 ग्राम शहद में मिलाकर चाटने से सभी प्रकार की बवासीर में लाभ होता है।
(47) तीन ग्राम कच्चे अनार के छिलके के चूर्ण में 100 ग्राम दही मिलाकर खाने से बवासीर मिट जाता है।
(48) छः ग्राम चिरिचिटा के पत्ते और 5 ग्राम कालीमिर्च को ठण्डाई की तरह घोटकर पीने से अर्श-रोग में लाभ होता है।
(49) कड़वी तोरई के बीज पानी में पीसकर लगाने से बवासीर मिट जाती है।
(50) अजवायन देशी, अजवायन जङ्गली और अजवायन खुरासानी को समभाग लेकर महीन पीसकर मक्खन में मिलाकर मस्सों पर लगाने से कुछ दिन में मस्से सूख जाते हैं।
(51) आम के पत्तों का रस लगाने से मस्से सूख जाते हैं।
(52) नीम और पीपल के पत्ते घोट-पीसकर मस्सों पर लेप करने से मस्से सूख जाते हैं।
(53) चने के दाने के बराबर फिटकिरी पाउडर नियमित सुबह शाम पानी में घोलकर पिने से ठीक हो जाता है
(54) दो चुटकी फिटकरी पावडर एक अमरूद में अंदर भर दे,आग पे भुने ,फिर चबा चबाकर चूसते हुए रस पिये व ठोस पदार्थ फेंकते जाए,तीन दिन तक करे
(55) नियमित एक चौथाई चम्मच कुकरौंधा के पत्ते का रस पीने से 7 से 10 दिन में बवासीर ठीक होता है
(56) शीशम के पत्ते की चटनी एक चम्मच एक गिलास पानी मे घोलकर या उबालकर पीने से या इसके पत्ते चबाकर रस पिने से खूनी बवासीर में खून आना बंद हो जाता है
*विशेष चिकित्सीय सलाह हेतु आप व्यक्तिगत रात्रि 9 बजे के बाद सम्पर्क कर सकते हैं*
*Homoeo Trang: 🌹🌹डॉ. वेद प्रकाश,नवादा( बिहार)🌹8051556455🌹*
*निरोगी रहने हेतु महामन्त्र*
*मन्त्र 1 :-*
*• भोजन व पानी के सेवन प्राकृतिक नियमानुसार करें*
*• रिफाइन्ड नमक,रिफाइन्ड तेल,रिफाइन्ड शक्कर (चीनी) व रिफाइन्ड आटा ( मैदा ) का सेवन न करें*
*• विकारों को पनपने न दें (काम,क्रोध, लोभ,मोह,इर्ष्या,)*
*• वेगो को न रोकें ( मल,मुत्र,प्यास,जंभाई, हंसी,अश्रु,वीर्य,अपानवायु, भूख,छींक,डकार,वमन,नींद,)*
*• एल्मुनियम बर्तन का उपयोग न करें ( मिट्टी के सर्वोत्तम)*
*• मोटे अनाज व छिलके वाली दालों का अत्यद्धिक सेवन करें*
*• भगवान में श्रद्धा व विश्वास रखें*
*मन्त्र 2 :-*
*• पथ्य भोजन ही करें ( जंक फूड न खाएं)*
*• भोजन को पचने दें ( भोजन करते समय पानी न पीयें एक या दो घुट भोजन के बाद जरूर पिये व डेढ़ घण्टे बाद पानी जरूर पिये)*
*• सुबह उठेते ही 2 से 3 गिलास गुनगुने पानी का सेवन कर शौच क्रिया को जाये*
*• ठंडा पानी बर्फ के पानी का सेवन न करें*
*• पानी हमेशा बैठ कर घुट घुट कर पिये*
*• बार बार भोजन न करें आर्थत एक भोजन पूर्णतः पचने के बाद ही दूसरा भोजन करें*
*भाई राजीव दीक्षित जी के सपने स्वस्थ भारत समृद्ध भारत और स्वदेशी भारत स्वावलंबी भारत स्वाभिमानी भारत के निर्माण में एक पहल आप सब भी अपने जीवन मे भाई राजीव दीक्षित जी को अवश्य सुनें*
*स्वदेशीमय भारत ही हमारा अंतिम लक्ष्य है :- भाई राजीव दीक्षित जी*
*मैं भारत को भारतीयता के मान्यता के आधार पर फिर से खड़ा करना चाहता हूँ उस काम मे लगा हुआ हूँ*
🍀🍀छोटी-मोटी परेशानियों के लिए घरेलू नुस्खे🍀🍀
* कांच या कंकर खाने में आने पर ईसबगोल भूसी गरम दूध के साथ तीन समय सेवन करें!
* घाव न पके, इसलिए गरम मलाई (जितनी गरम सहन कर सकें) बांधें!
* तुतलापन दूर करने के लिए रात को सोने से पांच मिनट पूर्व दो ग्राम भुनी फिटकरी मुंह में रखें!
* बच्चों का पेट दर्द होने पर अदरक का रस, पांच ग्राम तुलसी पत्र घोटकर, औटाकर बच्चों को तीन बार पिलाएं!
* सर्दियों में बच्चों की सेहत के लिए तुलसी के चार पत्ते पीसकर 50 ग्राम पानी में मिलाएं! सुबह पिलाएं!
* आमाशय का दर्द तुलसी पत्र को चाय की तरह औटाकर सुबह-सुबह लेना लाभदायक!
* सीने में जलन हो तो पावभर ठंडे जल में नीबू निचोड़कर सेवन करें!
* शराब ज्यादा पी ली हो तो छह माशा फिटकरी को पानी/दूध में मिलाकर पिला दें या दो सेबों का रस पिला दें!
* अरहर के पत्तों का रस पिलाने से अफीम का नशा कम हो जाता है!
* आधी छटांक अरहर दाल पानी में उबालकर उसका पानी पिलाने से भांग का नशा कम हो जाता है!
* केला हजम करने के लिए दो छोटी इलायची काफी होती है!
* आम ज्यादा खा लिए हों तो हजम करने के लिए थोड़ा सा नमक सेवन कीजिए!
* मुंह से बदबू आने पर मोटे अनार का छिलका पानी में उबालकर कुल्ले करें!
* मछली का कांटा यदि गले में फंस जाए तो केला खाएं!
* हिचकी आने पर पोदीने के पत्ते या नीबू चूस लें!
* वजन घटाने हेतु गरम जल में शहद व नीबू मिलाकर सेवन करें!
* कान/दांत दर्द, खांसी व अपचन में जीरा व हींग 1/1-2 मात्रा में सेवन करें!
* जख्मों पर पड़े कीड़ों का नाश करने के लिए हींग पावडर बुरक दें!
* दाढ़ दर्द के लिए हींग रूई के फाहे में लपेटकर दर्द की जगह रखें!
* शीत ज्वर में ककड़ी खाकर छाछ सेवन करें! शराब की बेहोशी में ककड़ी सेवन कराएं!
* वजन घटाने हेतु गरम जल में शहद व नीबू मिलाकर सेवन करें!
* कान/दांत दर्द, खांसी व अपचन में जीरा व हींग 1/1-2 मात्रा में सेवन करें!
*🌵एलोविराके लाभ🌵*
*एलोविरा का सेवन: -* अपने चेहरे को दाग धब्बे से मुक्त, पिंपल, कील मुंहासे से दूर, गोरा और खूबसूरत बनाए रखने के लिए कई तरह के ब्यूटी प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करते रहते हैं जबकि कुछ घरेलू नुस्खे और उपाय ऐसे भी हैं जिसके इस्तेमाल से हम अपनी खूबसूरती में चार चांद लगा सकते हैं. अपने चेहरे को बेदाग और आकर्षक बना सकते हैं.
एलोवेरा एक ऐसा औषधि है जो हमारे सभी तरह के स्वास्थ की काफी बेहतर तरीके से देखरेख करता है.
एलोवेरा का सेवन करने से पेट से जुड़ी सारी समस्या खत्म हो जाती है. ये बालों के लिए भी रामबाण का काम करता है. साथ ही आपके चेहरे को बेदागनुमा खूबसूरती प्रदान करने में अमृत का काम करता है.
एलोवेरा जेल को अपने चेहरे पर लगाकर आप अपनी त्वचा को गोरा और स्वस्थ बना सकते हैं. इसके फायदे अनेक हैं और इसे लगाने का तरीका भी बहुत ही ज्यादा आसान है.
1. एलोवेरा आपके स्किन के लिए नेचुरल स्किन मॉश्चराइजर का काम करता है. इसे त्वचा पर लगाने से त्वचा में नमी आती है साथ ही त्वचा को पोषण भी मिलता है. अगर आपको किसी तरह की एलर्जी नहीं है तो आप किसी भी तरह के स्किन टाइप पर एलोवेरा जेल का इस्तेमाल कर सकते हैं.
2. अपनी त्वचा में निखार लाना चाहते हैं तो इसके लिए एलोवेरा जेल का उपयोग प्रकृति का सबसे बेहतर तोहफा है. ये आपके चेहरे से धूल-मिट्टी, डेड स्किन और गंदगी को साफ करने में काफी मददगार होता है. इससे आपका स्किन ग्लो करने लगता है और आकर्षक दिखता है.
3. एंटी एजिंग गुण से भरपूर एलोवेरा में एंटीआक्सीडेंट की मात्रा भी मौजूद होती है जो आपके चेहरे से झुर्रियों को हटाने में काफी मददगार होता है. एलोवेरा जेल के नित्य इस्तेमाल से आप लंबे समय तक जवान और खूबसूरत दिख सकते हैं.
4. त्वचा से सनबर्न की समस्या से छुटकारा दिलाने में भी एलोवेरा जेल काफी महत्वपूर्ण योगदान निभाता है.
5. चेहरे को पिंपल मुक्त और बेदाग बनाने में एलोवेरा रामबाण का काम करता है.
6. चेहरे से मेकअप हटाने के लिए एलोवेरा जेल का इस्तेमाल काफी अच्छा होता है. इससे स्किन को किसी तरह का कोई नुकसान नहीं होता.
7. शरीर के स्ट्रेच मार्क्स को हटाने के लिए भी एलोवेरा जेल काफी हद तक मददगार होता है. इसके लिए एलोवेरा जेल में गुलाब जल मिलाकर इस्तेमाल करना फायदेमंद होता है.
8. घाव या फिर चोट के निशान या छोटे-मोटे कट हो जाए तो उसे ठीक करने में भी एलोवेरा जेल काफी असरदार होता है.
9. फटी हुई बदसूरत एड़ियों को एलोवेरा जेल मुलायम और खूबसूरत बनाने में रामबाण का काम करता है.
10. होठों को मुलायम और गुलाब जैसा खूबसूरत बनाने में भी एलोवेरा जेल काफी असरदार होता है.
चेहरे पर कैसे लगाएं एलोवेरा जेल -
1. चेहरे पर अगर मुंहासे के निशान या फिर तिल के निशान हैं तो उसके लिए नीम के पेड़ की छाल के रस में एलोवेरा जेल को मिलाकर अप्लाई करें सारे दाग मिट जाएंगे.
2. फेस को चमकदार बनाए रखने के लिए 1 चम्मच शहद, 1 चम्मच दूध और थोड़ा सा गुलाब जल के साथ चुटकी भर हल्दी मिलाकर पैक बना लें और इसमें एलोवेरा जेल मिलाकर चेहरे पर अप्लाई करें सूख जाने पर साफ पानी से धो लें.
3. चेहरे को गोरा बनाने के लिए अजवाइन, तुलसी के पत्ते और शहद के साथ एलोवेरा जेल मिलाकर चेहरे पर अप्लाई करें.
4. त्वचा से झाइयां मिटाने के लिए नींबू के छिलके को पीसकर एलोवेरा जेल मिलाकर चेहरे पर लगाएं.
5. स्किन से चकत्ते और दाग को साफ करने के लिए एलोवेरा जेल में टमाटर मिलाकर इस पैक को लगाने से काफी फायदा मिलता है.
6. ऑयली स्किन से निजात पाने के लिए एलोवेरा जेल में बेसन मिलाकर चुटकी भर हल्दी मिलाएं और इसे थोड़ा गर्म कर चेहरे पर अप्लाई करें. सूख जाने पर साफ पानी से धो लें.
एलोवेरा का सेवन - स्किन से जुड़ी कोई भी समस्या हो एलोवेरा जेल हमेशा रामबाण का काम करता है. बस जरूरत है उसे सही तरीके से इस्तेमाल करने की. उपर बताए तरीकों के अनुसार अगर आप एलोवेरा जेल का उपयोग करते हैं तो आपकी त्वचा निश्चित रूप से बेदाग खूबसूरती के साथ बेहद आकर्षक बन जाएगी और आप लंबे समय तक जवान बने रहेंगे.
वन्देमातरम !
*पुनर्नवा जो बनाये आपके शरीर को नया*
पुनर्नवा जो बनाये आपके शरीर को नया
शरीर पुनर्नवं करोति इति
पुनर्नवा ।
जो अपने रक्तवर्धक एवं रसायन गुणों द्वारा सम्पूर्ण शरीर को अभिनव स्वरूप प्रदान करे, वह है ‘पुनर्नवा’ ।
यह हिन्दी में साटी, साँठ, गदहपुरना, विषखपरा, गुजराती में साटोड़ी, मराठी में घेटुली तथा अंग्रेजी में ‘हॉगवीड’ नाम से जानी जाती है ।
मूँग या चने की दाल मिलाकर इसकी बढ़िया सब्जी बनती है, जो शरीर की सूजन, मूत्ररोगों (विशेषकर मूत्राल्पता), हृदयरोगों, दमा, शरीरदर्द, मंदाग्नि, उलटी, पीलिया, रक्ताल्पता, यकृत व प्लीहा के विकारों आदि में फायदेमंद है । इसके ताजे पत्तों के 15-20 मि.ली. रस में चुटकी भर काली मिर्च व थोड़ा-सा शहद मिलाकर पीना भी हितावह है । भारत में यह सब्जी सर्वत्र पायी जाती है ।
पुनर्नवा का शरीर पर होनेवाला रसायन कार्यः
दूध, अश्वगंधा आदि रसायन द्रव्य रक्त-मांसादि को बढ़ाकर शरीर का बलवर्धन करते हैं परंतु पुनर्नवा शरीर में संचित मलों को मल-मूत्रादि द्वारा बाहर निकालकर शरीर के पोषण का मार्ग खुला कर देती है ।
बुढ़ापे में शरीर में संचित मलों का उत्सर्जन यथोचित नहीं होता । पुनर्नवा अवरूद्ध मल को हटाकर हृदय, नाभि, सिर, स्नायु, आँतों व रक्तवाहिनियों को शुद्ध करती है, जिससे मधुमेह, हृदयरोग, दमा, उच्च रक्तदाब आदि बुढ़ापे में होनेवाले कष्टदायक रोग उत्पन्न नहीं होते ।
यह हृदय की क्रिया में सुधार लाकर हृदय का बल बढ़ाती है । पाचकाग्नि को बढ़ाकर रक्तवृद्धि करती है । विरूद्ध आहार व अंग्रेजी दवाओं के अतिशय सेवन से शरीर में संचित हुए विषैले द्रव्यों का निष्कासन कर रोगों से रक्षा करती है ।
बालरोगों में लाभकारी पुनर्नवा शरबतः पुनर्नवा के पत्तों के 100 ग्राम स्वरस में मिश्री चूर्ण 200 ग्राम व पिप्पली (पीपर) चूर्ण 12 ग्राम मिलाकर पकायें तथा चाशनी गाढ़ी हो जाने पर उसको उतार के छानकर शीशी में रख लें । इस शरबत को 4 से 10 बूँद की मात्रा में (आयु अनुसार) रोगी बालक को दिन में तीन-चार बार चटायें । खाँसी, श्वास, फेपडों के विकार, बहुत लार बहना, जिगर बढ़ जाना, सर्दी-जुकाम, हरे-पीले दस्त, उलटी तथा बच्चों की अन्य बीमारियों में बाल-विकारशामक औषधि कल्प के रूप में इसका उपयोग बहुत लाभप्रद है ।
औषधि- प्रयाग
1. (अ) नेत्रों की फूलीः पुनर्नवा की जड़ को घी में घिसकर आँखों में आँजें ।
(ब) नेत्रों की खुजलीः पुनर्नवा की जड़ को शहद या दूध में घिसकर आँख में आँजें ।
(स) नेत्रों से पानी गिरनाः पुनर्नवा की जड़ को शरहद में घिसकर आँखों में आँजें ।
2. पेट के रोगः गोमूत्र एवं पुनर्नवा का रस समान मात्रा में मिलाकर पीयें ।
3. गैसः 2 ग्राम पुनर्नवा के मूल का चूर्ण, आधा ग्राम हींग व 1 ग्राम काला नमक गर्म पानी से लें ।
4. मूत्रावरोधः पुनर्नवा का 40 मि.ली. रस अथवा उतना ही काढ़ा पीयें पुनर्नवा के पत्ते बाफकर पेडू पर बाँधें । 1 ग्राम पुनर्नवाक्षार (आयुर्वेदिक औषधियों की दुकान से मिलेगा) गर्म पानी के साथ पीने से तुरंत फायदा होता है ।
5. पथरीः पुनर्नवा की जड़ को दूध में उबालकर सुबह-शाम पीयें ।
6. सूजनः पुनर्नवा की जड़ का काढ़ा पिलाने एवं सूजन पर जड़ को पीसकर लेप करने से लाभ होता है ।
7. वषण शोथ (हाइड्रोसिल) : पुनर्नवा का मूल दूध में घिस के लेप करने से वृषण की सूजन मिटती है ।
8. पीलियाः पुनर्नवा के पंचांग (जड़, छाल, पत्ती, फूल और बीज) को शहद एवं मिश्री के साथ लें अथवा उसका रस या काढ़ा पीयें ।
9. पागल कुत्ते का विषः सफेद पुनर्नवा के मूल का 25 से 50 ग्राम घी में मिलाकर रोज पीयें ।
10. फोड़ाः पुनर्नवा के मूल का काढ़ा पीने से कच्चा अथवा पका हुआ फोड़ा भी मिट जाता है ।
11. अनिद्राः पुनर्नवा के मूल का 100 मि.ली. काढ़ा दिन में 2 बार पीयें ।
12. संधिवातः पुनर्नवा के पत्तों की सब्जी सोंठ डालकर खायें ।
13. एड़ी में वायुजन्य वेदना होती हो तो ‘पुनर्नवा तेल’ एड़ी पर घिसें व सेंक करें ।
14. योनिशूलः पुनर्नवा के हरे पत्तों को पीसकर बनायी गयी उँगली जैसे आकार की लंबी गोली को योनी में रखने से भयंकर योनिशूल भी मिटता है ।
15. खूनी बवासीरः पुनर्नवा के मूल को पीसकर फीकी छाछ (200 मि.ली.) या बकरी के दूध (200 मि.ली.) के साथ पीयें ।
16. हृदयरोगः हृदयरोग के कारण सर्वांग सूजन हो गयी तो पुनर्नवा के मूल का 10 ग्राम चूर्ण और अर्जुन की छाल का 10 ग्राम चूर्ण 200 मि.ली. पानी में काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पीयें ।
17. दमाः 10 ग्राम भारंगमूल चूर्ण और 10 ग्राम पुनर्नवा चूर्ण को 300 मि.ली. पानी में उबालकर काढ़ा बनायें । 50 मि.ली. बचे तब सुबह-शाम पीयें ।
18. हाथीपाँवः 50 मि.ली. पुनर्नवा का रस और उतना ही गोमूत्र मिलाकर सुबह-शाम पीयें ।
19. जलोदरः पुनर्नवा की जड़ के 2-3 ग्राम चूर्ण को शहद के साथ खायें ।
वन्देमातरम !
प्रत्येक घर में एक रसोई होती है, और इस रसोई में एक *डॉक्टर* छुपा बैठा होता है, बिना फीस वाला । आइए आज अपने उसी डॉक्टर से आपका परिचय करायें ।
💼 1- केवल सेंधा नमक का प्रयोग करने पर आप *थायराइड* और *ब्लडप्रेशर* से बचे रह सकते हैं, यही नहीं, आपका *पेट* भी ठीक रहेगा ।
💼 2- कोई भी रिफाइंड न खाकर तिल, सरसों, मूंगफली या नारियल के तेल का प्रयोग आपके शरीर को कई बीमारियों से बचायेगा, रिफाइंड में कई हानिकारक *कैमिकल* होते हैं ।
💼 3- सोयाबीन की बड़ी को दो घंटे भिगोकर मसलकर झाग निकालने के बाद ही प्रयोग करें, यह झाग *जहरीली* होती है ।
💼 4- रसोई में एग्जास्ट फैन अवश्य लगवायें, इससे *प्रदूषित* हवा बाहर निकलती रहेगी ।
💼 5- ज्यादा से ज्यादा मीठा नीम/कढ़ी पत्ता खाने की चीजों में डालें, सभी का *स्वास्थ्य* सही रहेगा ।
💼 6- भोजन का समय निश्चित करें, *पेट* ठीक रहेगा ।
💼 7- भोजन के बीच बात न करें, भोजन ज्यादा *पोषण* देगा ।
💼 8- भोजन से पहले पिया गया पानी *अमृत*, बीच का *सामान्य* और अंत में पिया गया पानी *ज़हर* के समान होता है ।
💼 9- बहुत ही आवश्यक हो तो भोजन के साथ गुनगुना पानी ही पियें, यह *निरापद* होता है ।
💼 10- सवेरे दही का प्रयोग *अमृत*, दोपहर में *सामान्य* व रात के खाने के साथ दही का प्रयोग *ज़हर* के समान होता है ।
💼 11- नाश्ते में *अंकुरित* अन्न शामिल करें, पोषण, विटामिन व फाईबर *मुफ्त* में प्राप्त होते रहेंगे ।
💼 12- चीनी कम-से-कम प्रयोग करें, ज्यादा उम्र में *हड्डियां* ठीक रहेंगी । भोजन में *गुड़* व * देशी शक्कर* का प्रयोग बढ़ायें ।
💼 13- छौंक में राई के साथ कलौंजी का प्रयोग भी करें, *फायदे* इतने कि लिखे नहीं जा सकते ।
💼 14- एक *डस्टबिन* रसोई के अंदर और एक बाहर रखें, *सोने से पहले* रसोई का कचरा बाहर के डस्टबिन में डालना न भूलें ।
💼 15- करेले, मेथी और मूली यानि कड़वी सब्जियां भी खाएं, *रक्त* शुद्ध होता रहेगा ।
💼 16- पानी मटके के पानी से अधिक ठंडा न पियें, *पाचन* व *दांत* ठीक रहेंगे ।
💼 17- पानी 250 टीडीएस से ऊपर हो तभी _*RO*_लगवायें । नहीं तो _*UV*_ वाला फ़िल्टर ही प्रयोग करें ।
💼 18- बिना कलौंजी वाला अचार न खायें, यह *हानिकारक* होता है ।
💼 19- माइक्रोवेव, ओवन का प्रयोग न करें, यह *कैंसर कारक* है ।
💼 20- खाने की ठंडी चीजें ( आइस क्रीम) कम से कम खायें, ये पेट की *पाचक अग्नि* कम करती हैं, *दांत* खराब करती हैं ।
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_सब स्वस्थ, सुखी व नीरोग रहें,_
इसी *कामना* के साथ.
🌹 मंगलमय हो जीवन सबका 🌹
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वन्देमातरम !
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*🔆घाव और छाले*
Arogyanidhi 🔆🔅
🔅पहला प्रयोगः तुलसी के पत्तों का चूर्ण भुरभुराने से अथवा बेल के पत्तों को पीसकर लगाने से लाभ होता है।
🔅दूसरा प्रयोगः मक्खन में कत्था घोंटकर लगाने से गंदा मवाद निकलकर घाव भरने लगता है।
🔅तीसरा प्रयोगः शस्त्र से घाव लगने पर तुरंत उस पर शुद्ध शहद की पट्टी बाँधें अथवा हरड़े या हल्दी या मुलहठी का चूर्ण या भूतभांगड़ा या हंसराज की पत्तियों को पीसकर उसका लेप घाव पर करने से रक्त तुरंत रुक जाता है व पकने की संभावना कम रहती है।
🔅चौथा प्रयोगः चोट लगकर खून निकलता हो तो हल्दी भुरभुराकर सर्वगुण तेल का पट्टा बाँधे। बाजारू पिसी हुई हल्दी में नमक होता है अतः दूध में हल्दी पीस लें।
*🙋वैसे भी शरीर पर किसी भी प्रकार से कटकर घाव पड़ जाने पर 24 घंटे तक कुछ नहीं खाने से घाव पकता नहीं।*
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*🔆चेचक के घावः*
🔅पहला प्रयोगः हल्दी एवं कत्था एक साथ पीसकर लगाने से अथवा नीम के पत्तों को पीसकर लगाने से लाभ होता है।
🔅दूसरा प्रयोगः जब चेचक निकलने की शुरूआत हो तो बालक को दो-तीन निबौली (नाम के फ़ल का बीज) पानी के साथ पीसकर पिलाने से चेचक नहीं निकलती और निकले भी तो ज्यादा जोर नहीं करती।
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*🔆🔅भीतरी (अंदरूनी) चोट*
*भीतरी चोट*
🔅पहला प्रयोगः 1 से 3 ग्राम हल्दी और शक्कर फाँकने और नारियल का पानी पीने से तथा खाने का चूना एवं पुराना गुड़ पीसकर एकरस करके लगाने से भीतरी चोट में तुरंत लाभ होता है।
🔅दूसरा प्रयोगः 2 कली लहसुन, 10 ग्राम शहद, 1 ग्राम लाख एवं 2 ग्राम मिश्री इन सबको चटनी जैसा पीसकर, घी डालकर देने से टूटी हुई अथवा उतरी हुई हड्डी जल्दी जुड़ जाती है।
🔅तीसरा प्रयोगः बबूल के बीजों का 1 से 2 ग्राम चूर्ण दिन शहद के साथ लेने से अस्थिभंग के कारण दूर हुई हड्डी वज्र जैसी मजबूत हो जाती है।
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*मोच एवं सूजनः🔆🔅*
Arogyanidhi 🔆🔅
🔅पहला प्रयोगः लकड़ी-पत्थर आदि लगने से आयी सूजन पर हल्दी एवं खाने का चूना एक साथ पीसकर गर्म लेप करने से अथवा इमली के पत्तों को उबालकर बाँधने से सूजन उतर जाती है।
🔅दूसरा प्रयोगः अरनी के उबाले हुए पत्तों को किसी भी प्रकार की सूजन पर बाँधने से तथा 1 ग्राम हाथ की पीसी हुई हल्दी को सुबह पानी के साथ लेने से सूजन दूर होती है।
🔅तीसरा प्रयोगः मोच अथवा चोट के कारण खून जम जाने एवं गाँठ पड़ जाने पर बड़ के कोमल पत्तों पर शहद लगाकर बाँधने से लाभ होता है।
🔅चौथा प्रयोगः जामुन के वृक्ष की छाल के काढ़े से गरारे करने से गले की सूजन में फायदा होता है।
सूजन में करेले का साग लाभप्रद है।
आरोग्य निधि 🔆🔅
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*🚩वैज्ञानिक : पिज्जा, बर्गर बीमारियां बढ़ाता है, भारतीय भोजन बीमारियां मिटाता है*
19 अप्रैल 2019
www.azaadbharat.org
*🚩जर्मनी के वैज्ञानिकों ने लंबी शोध के बाद निष्कर्ष निकाला कि विदेशी फास्टफूड बर्गर, पिज़ा आदि बीमारियों को बुलावा लाता है जबकि भारतीय भोजन दाल-चावल, सोयाबीन आदि बीमारियों को मिटाने का काम करता है।*
*🚩भारतीय लोग अपने आहार का महत्व नहीं समझकर विदेशी लोग का अंधानुकरण करके स्वाद के लिए पिज़ा, बर्गर, चिप्स आदि खाने लगे हैं जिसके कारण आज लगभग हर व्यक्ति को कुछ न कुछ बीमारी पकड़ लेती है फिर डॉक्टरों के पास चक्कर काटता रहता है पर बीमारी ठीक नहीं हो पाती है, अब हमें अपने भोजन का महत्व समझकर भोजन करना चाहिए और बीमारियों को बुलावा देने वाले फास्टफूड आदि का त्याग करना चाहिए।*
*🚩जर्मनी के वैज्ञानिकों ने बीमारी पर शोध किया:*
*जर्मनी के यूनिवर्सिटी ऑफ़ L .beck के हालिया अध्ययन में कहा गया है कि भारतीय आहार खराब डीएनए के कारण होने वाली बीमारी को मार सकता है। शोध में यह भी पाया गया कि डीएनए, न केवल डीएनए, बीमारियों का सबसे महत्वपूर्ण कारण है, बल्कि आहार भी सबसे महत्वपूर्ण है जो बीमारी का कारण बन सकता है और इस पर एक स्पंज डाल सकता है। विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रॉल्फ लुडविक के नेतृत्व में तीन वैज्ञानिकों द्वारा हाल ही में किए गए शोध प्रकाशित किए गए थे। तीन शोधकर्ताओं में डॉ. आर्टेम वोरोवैव, इज़राइल के डॉ. तान्या शेजीन और डॉ यास्का गुप्ता शामिल हैं। 2 वर्षों तक चूहों में किए गए शोध से पता चलता है कि पश्चिमी देश में उच्च कैलोरी आहार बीमारी को बढ़ाते हैं। जबकि भारत का कम कैलोरी वाला आहार बीमारियों से बचाता है।*
*🚩फास्ट फूड, जैसे पिज्जा, बर्गर, आनुवांशिक बीमारियों को बढ़ाता है ।*
*डॉ. गुप्ता ने जर्मनी से भास्कर को बताया कि अब तक सभी आनुवंशिक बीमारियां केवल डीएनए में दिखाई देती थीं। इस शोध में इसे आहार पर ध्यान केंद्रित करके मापा गया है। शोधकर्ताओं ने ल्यूपस नामक बीमारी से पीड़ित चूहों के एक समूह पर प्रयोग किया। ल्यूपस बीमारी सीधे डीएनए से संबंधित है। यह शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को कम करता है और विभिन्न अंगों और जोड़ों, गुर्दे, हृदय, फेफड़े, मस्तिष्क और रक्त कोशिकाओं को नष्ट करता है। डॉ. यास्का गुप्ता ने कहा कि इस शोध के परिणामों से पता चलता है कि पश्चिमी देशों में पिज्जा, बर्गर जैसे फास्ट फूड से भारत के शाकाहारी भोजन - चावल, सोयाबीन तेल, दाल, सब्जियां, विशेष रूप से जड़ी-बूटियों को बढ़ाने में मदद मिलती है - शरीर को इन बीमारियों से बचाता है। है। - स्त्रोत : भास्कर*
*🚩कौन से फास्ट से फूड क्या नुकसान होता है?*
*🚩पेस्ट्री*
*पेस्ट्री में अधिक मात्रा में शुगर, फेट और कैलोरी होती है। पेस्ट्री खाने की आदत आपका मोटापा बढ़ा सकती है। इसलिए थोड़ा ध्यान रखें क्योंकि पेस्ट्री शरीर को काफी नुकसान देती है।*
*🚩पिज्जा*
*पिज्जा की लत से आपको दिल संबंधी बीमारी हो सकती है। इसमें कोलेस्ट्रोल के कारण आपकी आर्ट्रीज बंद हो सकती हैं और इससे हार्ट अटैक भी आ सकता है।*
*🚩पाइज*
*पाइज खाने में स्वादिष्ट है लेकिन एक अध्ययन में पता चला है कि यह शरीर के लिए बेहद नुकसानदेह है। पाइज खाने से आगे चलकर शुगर लेवल बढ़ने और मधुमेह की समस्या आती है।*
*🚩बर्गर*
*बर्गर से वजन तो बढ़ता ही है साथ ही दिल की बीमारी भी हो सकती है। यह डाइटरी कोलेस्ट्रोल को तेजी से बढ़ाता है और बर्गर से हाइ ब्लड प्रेशर की भी परेशानी है।*
*🚩सैंडविच*
*सैंडविच खाने की आदत आपका मोटापा बढ़ा देगी।*
*🚩चिप्स*
*चिप्स खाने से शरीर को नुकसान होता है। चिप्स में कैलोरी ज्यादा होती है जिसके कारण फेट बढ़ता है। नियमित चिप्स खाने वालों को वजन बढ़ने की समस्या हो जाती है। चिप्स खाने से कोलेस्ट्रोल भी बढ़ता है। सोडियम ज्यादा मात्रा में होने के कारण हाई ब्लड प्रेशर भी हो जाता है।*
*🚩सॉफ्ट ड्रिंक्स*
*सॉफ्ट ड्रिंक्स भी लोग काफी पीते हैं और कई लोगों ने तो रोजाना सॉफ्ट ड्रिंक्स पीने की आदक डाल रखी है। मगर इससे समस्या भी उतनी ही है। सॉफ्ट ड्रिंक्स पीने वालों को दांतों में सड़न बहुत तेजी से हो सकती है। सॉफ्ट ड्रिंक्स पीने से मोटापा और छाती में जलन की परेशानी भी धीरे-धीरे गंभीर रूप ले सकती है। - स्त्रोत : अमर उजाला*
*🚩अब आपने देखा कि फास्टफूड शरीर को कितना नुकसान पहुँचता है अतः इससे बचने के लिए हमारा भारतीय भोजन करें। यह ध्यान रखें कि हमारा पेट गटर नहीं है इसलिए कोई भी बीमारी करे ऐसा भोजन नहीं करे।*
*🚩भारतीय लोग अपनी संस्कृति की महिमा खुद नहीं समझते, जबतक विदेश के कोई वैज्ञानिक नहीं बोल दें जबकि आज के वैज्ञानिक जो शोध कर रहे हैं वे शोध हमारे ऋषि-मुनि लाखों साल पहले बता चुके हैं पर भारतीय उनका आदर करे तब न, जब भारतीय लोग खुद की संस्कृति का आदर करने लगेंगे तब दुनिया भी भारतीय संस्कृति अपनाकर अपने को धन्य मानेंगी।*
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